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#TalkingStalking एपिसोड 3 | अश्लील तस्वीरें और डरावनी धमकियां

साइबर स्टॉकिंग का डराने वाला केस

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अनामिका (बदला हुआ नाम) अपनी इंस्टाग्राम टाइमलाइन चेक कर रही थीं जब एक अंजान संदेश उनकी प्राइवेट चैट में नजर आया. उसने नोटिफिकेशन पर ये सोचते हुए क्लिक किया कि वो कोई फॉरवर्ड मैसेज होगा. लेकिन इस एक संदेश ने उसकी जिंदगी बदल दी.

इस मैसेज में अनामिका की एक तस्वीर थी जिसमें उसके चेहरे को, एक नग्न शरीर पर चिपका दिया गया था. ये अनामिका के लिए बिखर जाने वाला पल था. उसे बुरी तरह तोड़ देने वाला. जब उसने प्रोफाइल पर क्लिक किया तो उसे कुछ नहीं मिला.

पुलिस ने की टालने की कोशिश

उसे यकीन ही नहीं हुआ कि ये हो क्या रहा है. उसे झटका लगा था. उसने वो तस्वीर अपने पिता को दिखाई, इससे पूरी तरह अंजान कि आगे क्या किया जाए. वो FIR दर्ज कराने के लिए अपने पिता के साथ नजदीकी थाने पहुंची. पुलिस को मालूम ही नहीं था कि सायबर क्राइम का मुकाबला कैसे किया जाए.

अनामिका और उसके पिता का सामना पुलिस के बेपरवाह रवैये से हुआ. पुलिस तो केस दर्ज करने को भी तैयार नहीं थी. उन्हें बताया गया कि FIR दर्ज कराना एक उलझाऊ प्रक्रिया होगी. पुलिस के लिए भी और पीड़ितों के लिए भी. पुलिस ने सिर्फ शिकायत दर्ज की और मदद का वादा किया.

हालांकि पुलिस ने जल्द वादा तोड़ दिया क्योंकि कई दिनों तक कोई कार्रवाई नहीं की गई. केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी को ट्वीट और मीडिया की कुछ खबरों का नतीजा ये हुआ कि पुलिस कम से कम FIR दर्ज करने को तैयार हो गई.

पुलिस ने कुछ समय बाद आरोपी की पहचान तो कर ली लेकिन उसे गिरफ्तार करना अब भी बाकी है. वो अाज भी जेल की सलाखों से दूर और आजाद है.

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मदद के लिए आगे आया क्विंट

क्विंट ने अनामिका की मदद का फैसला किया. Talking Stalking चुप्पी तोड़ों की मुहिम के तहत क्विंट ने अनामिका की मदद के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के एडिशनल एसपी दिनेश यादव को बुलाया. यादव ने यूपी पुलिस के सायबर अपराध विभाग को बनाने में मदद की है. उनके मुताबिक, पुलिस को बिना देरी के इस केस में FIR दर्ज कर लेनी चाहिए थी. FIR दर्ज न करना पुलिस की लापरवाही दिखाता है.

क्विंट ने अपनी पड़ताल के सिलसिले में राजस्थान पुलिस की ‘सायबर क्राइम वेबसाइट’ पर पहुंचने की कोशिश की. लेकिन हम तब चौंक गए जब गूगल पर सायबर क्राइम राजस्थान सर्च करने पर एक प्राइवेट जासूस की वेबसाइट पहले नंबर पर आती है.

साइबर स्टॉकिंग का डराने वाला केस
Cyber Crime Rajasthan सर्च करने पर गूगल पर सबसे पहले दिखता है प्राइवेट जासूस का रिजल्ट
(फोटो: स्क्रीनग्रैब)

जब हमने राजस्थान की ‘असल’ सायबर क्राइम सेल को संपर्क किया तो उन्होंने मिलते-जुलते नाम वाली साइट से पल्ला झाड़ लिया:

ये एक प्राइवेट जासूस की वेबसाइट है. हमारा इस साइट से कोई लेना-देना नहीं. वो अपनी ब्रांडिंग पुलिस के सहयोगी के तौर पर कर रहे हैं लेकिन ऐसा कुछ है नहीं. हम सायबर क्राइम पीड़ितों को थाने जाने या सीधे हमें कॉल करने की सलाह देंगे.
सुरेश कुमार, डिप्टी एसपी, जयपुर पुलिस

क्या कहता है सायबर अपराध कानून?

आईटी एक्ट 2000 को लोगों की जिंदगी में इंटरनेट के बढ़ते दखल के बाद लाया गया था. इसका मकसद सूचना प्रौद्योगिकी के जरिए हुई जालसाजी या ई-कॉमर्स जैसे दूसरे उल्लंघनों से निपटना था. आईटी एक्ट में 2008 में एमेंडमेंट होने तक सायबर स्पेस में धमकाने या उत्पीड़न के मामले आईपीसी के तहत ही देखे जाते थे.

लेकिन, आईटी एक्ट में सुधार के बाद 66A को जोड़ा गया. अब ऐसे अपराधों की पड़ताल इसी के तहत होती है. कोई भी ऐसा संदेश भेजना जो किसी कंप्यूटर या दूसरे कम्युनिकेशन डिवाइस से भेजा जाए और जो दुर्भावना या धमकी से भरा हो वो अपराध है. अगर कोई जानते-बूझते सिर्फ किसी को बेइज्जत करने के लिए भी ऐसे मैसेज भेजता है तो वो अपराधी की श्रेणी में आ सकता है. फिलहाल, आईटी और सायबर कानूनों के तहत ऐसे अपराधो के लिए तीन साल तक की सजा हो सकती है.

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स्टॉकिंग बने गैर-जमानती अपराध

क्या आप जानते हैं कि स्टॉकिंग एक जमानती अपराध है. जिसकी वजह से स्टॉकर, बिना किसी गहरी जांच-पड़ताल के जमानत पर छूट जाते हैं. इसका एक असर ये भी होता है कि स्टॉकिंग का सामना करने वाले लोगों के लिए बड़ा खतरा पैदा हो जाता है जैसे एसिड अटैक, रेप या हत्या तक.

यही वजह है कि क्विंट ने वर्णिका कुंडू के साथ मिलकर change.org पर एक पिटीशन जारी की है. क्विंट इस पिटीशन के जरिए गृहमंत्री राजनाथ सिंह से अपील करता है कि स्टॉकिंग को एक गैर-जमानती अपराध बनाने संबंधित कानून जल्द से जल्द लाया जाए.

कैमरामैन- अतहर राथर, अभिषेक रंजन, शिव कुमार मौर्या

वीडियो एडिटर- राहुल सांपुई

प्रोड्यूसर- गर्विता खैबरी

एक्टर- रोहित खन्ना और दीक्षा शर्मा

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