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हिरासत में हत्या पार्ट 1- यूपी में हत्या के आरोपी दारोगा को सम्मान

पुलिस की दबिश के दौरान हुई नरेंद्र पासवान की संदेहास्पद मौत के मामले में आज तक कोई FIR भी दर्ज नहीं हुई

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वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम

सीनियर एडिटर: संतोष कुमार

देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), जहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर मंच से अपराधियों को 'ठोक देने' की बात करते रहते हैं. लेकिन शायद वो ये भूल चुके हैं कि अपराधियों को सजा देने का काम अदालतों का है, पुलिस का नहीं. और अगर पुलिस को ऐसे ही ठोक देने की खुली छूट मिलती रही तो निःसंदेह उसका दुरुपयोग भी होगा. लोकसभा में खुद सरकार के पेश किए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों के मुताबिक देश में हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें यूपी में होती हैं. पिछले 3 सालों में पूरे देश में हिरासत में हुई मौतों में से करीब 24 फीसदी मौतें यूपी में रिपोर्ट हुईं. लेकिन ये तो सिर्फ आंकड़े हैं, क्योंकि हकीकत में तो कस्टोडियल डेथ के कई मामले कभी रिपोर्ट ही नहीं होते.

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पुलिस की दबिश के दौरान हुई नरेंद्र पासवान की संदेहास्पद मौत के मामले में आज तक कोई FIR भी दर्ज नहीं हुई

मरदह, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

फोटो- क्विंट हिंदी

ऐसी ही एक मौत पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे आखिरी जिले गाजीपुर में हुई है. जनवरी, 2021 की एक रात गाजीपुर शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर मरदह थाने के सोढरा गांव में 42 साल के नरेंद्र पासवान की कथित पुलिस की पिटाई में मौत हो गई. बताया गया कि नरेंद्र पासवान का छोटा भाई चंदन कथित बैट्री चोरी के आरोप में जेल से जमानत पर बाहर आया था. 6 जनवरी की रात करीब 12 बजे दारोगा रमेश सरोज के नेतृत्व में पुलिस टीम ने चंदन को पकड़ने के लिए दबिश दी. मां लीलावती देवी के मुताबिक उन्होंने पुलिस से पूछा, "अभी तो बेटे को जमानत पर बाहर लाए हैं, अब आप क्यों गिरफ्तार करने आए हैं? अगर इसने कुछ गलत किया है तो हम सुबह में थाने पर लेते आएंगे, वहीं फैसला कर लीजिएगा."

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लेकिन पुलिस ने चंदन की मां की दलील नहीं सुनी, इतने में चंदन का बड़ा भाई नरेंद्र भी दारोगा के पैरों में गिरकर भाई को छोड़ देने की अपील करने लगा. आरोप है कि पुलिस ने न सिर्फ मां लीलावती को मारा बल्कि नरेंद्र को धक्का देते हुए सिर पर ऐसी चोट दी कि वो गिर पड़ा और थोड़ी ही देर बाद उसकी जान चली गई. मौत की खबर मिलते ही अहले सुबह ग्रामीणों की भीड़ जुट गई, थाने में जैसे ही ये सूचना पहुंची, पुलिस ने चंदन को छोड़ दिया. लेकिन नरेंद्र की मौत से गुस्साए लोगों ने तब तक हाईवे जाम कर दिया और इंसाफ की मांग करते हुए हंगामा करने लगे. पुलिस ने काफी समझाया लेकिन परिजन नहीं माने, वह नरेंद्र के शव को सड़क पर रखकर प्रदर्शन कर रहे थे. दावा है कि पुलिस ने परिजनों से शव छीनकर उसे जबरदस्ती कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा और फिर पुलिस की देखरेख में ही घाट पर उसका अंतिम संस्कार किया गया.

पुलिस की दबिश के दौरान हुई नरेंद्र पासवान की संदेहास्पद मौत के मामले में आज तक कोई FIR भी दर्ज नहीं हुई

लीलावती देवी, मृतक नरेंद्र पासवान की मां

फोटो- उत्कर्ष सिंह/क्विंट हिंदी

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पुलिस ने पीड़ित परिवार पर बनाए दबाव

एक तरफ नरेंद्र का अंतिम संस्कार हो रहा था दूसरी तरफ इस कस्टोडियल डेथ पर पर्दा डालने की तैयारी चल रही थी. मृतक की मां लीलावती देवी का आरोप है कि पुलिस ने उनसे और वहां मौजूद दूसरे कई लोगों से सादे कागज पर अंगूठे के निशान लगवाए और पंचनामे में नरेंद्र की मौत ठंड लगने से हुई बता दिया. इतना ही नहीं, पुलिस पर नरेंद्र के भाई चंदन को दूसरे मामले में फंसाने और नौकरी न लगने देने की धमकी देकर पीड़ित परिवार पर लगातार दबाव बनाने का भी आरोप है.
पुलिस की दबिश के दौरान हुई नरेंद्र पासवान की संदेहास्पद मौत के मामले में आज तक कोई FIR भी दर्ज नहीं हुई

परिजनों से बात करते दारोगा रमेश कुमार (फाइल)

फोटो- उत्कर्ष सिंह/क्विंट हिंदी

मां के मुताबिक दारोगा रमेश सरोज ने उन्हें 5 हजार रुपए देने की बात कही लेकिन उन्होंने मना कर दिया और कहा कि उन्हें उनका बेटा वापस चाहिए या फिर उसके बच्चों के भरण-पोषण का खर्चा दीजिए. इसके बाद गाजीपुर से लेखपाल और दूसरे अधिकारी मरदह पहुंचे. पहले तो अधिकारियों ने धमकी देकर दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन जब परिवार नहीं माना तो उन्हें 5 लाख 30 हजार रुपया मुआवजा देने का आश्वासन दिया लेकिन दावा है कि पीड़ित परिवार को आज तक कोई मुआवजा भी नहीं मिला.

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मौत के 11 महीने से ज्यादा बीत चुके हैं लेकिन आज तक मृतक नरेंद्र पासवान की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पीड़ित परिवार को नहीं सौंपी गई है. मरदह थाने के मौजूदा थानाध्यक्ष ने बताया कि नरेंद्र पासवान का पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर ने उनका विसरा प्रिजर्व किया था जिसे जांच के लिए भेजा गया था. आमतौर पर विसरा संदेहास्पद मौतों में ही प्रिजर्व किया जाता है.

लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि पुलिस एक्शन के दौरान हुई नरेंद्र पासवान की संदेहास्पद मौत के मामले में आज तक कोई एफआईआर भी दर्ज नहीं हुई, जो सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन है. सवाल ये भी जो विसरा 11 महीने पहले प्रिजर्व किया गया था, उसकी रिपोर्ट आज तक क्यों नहीं आई?
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पुलिस की दबिश के दौरान हुई नरेंद्र पासवान की संदेहास्पद मौत के मामले में आज तक कोई FIR भी दर्ज नहीं हुई

मरदह थाना, गाजीपुर

फोटो- उत्कर्ष सिंह/क्विंट हिंदी

इतना ही नहीं, 6 जनवरी, 2021 की रात मृतक नरेंद्र पासवान के भाई चंदन को पकड़ने उसके घर पहुंची पुलिस टीम की कोई भी एंट्री मरदह थाने की जनरल डायरी या फिर ड्यूटी रजिस्टर में दर्ज नहीं की है. जबकि अगर थाने से कोई पुलिस पदाधिकारी गश्त पर या कोई कार्रवाई करने के लिए निकलता है तो थाने में मौजूद जनरल डायरी में उसकी एंट्री दर्ज होनी ही चाहिए.

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हत्या के आरोपी दारोगा को गृह मंत्रालय ने दिया सम्मान

मृतक की मां के मुताबिक उन्होंने कई बार पुलिस से बेटे की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मांगी, लेकिन हर बार पुलिस ने ये कह कर मना कर दिया कि तुम क्या करोगी? आरोप है कि तत्कालीन थानाध्यक्ष बलवंत सिंह के निर्देश पर दारोगा रमेश कुमार और सिपाहियों ने उनके घर पर दबिश दी थी और रमेश कुमार की पिटाई से ही उनके बेटे की मौत हुई. लेकिन जिस दारोगा पर एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई होनी चाहिए थी, उसे 15 अगस्त, 2021 को 'उत्कृष्ट सेवा' के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सम्मानित किया गया.

पुलिस की दबिश के दौरान हुई नरेंद्र पासवान की संदेहास्पद मौत के मामले में आज तक कोई FIR भी दर्ज नहीं हुई

'उत्कृष्ट सेवा सम्मान' ग्रहण करते दारोगा रमेश कुमार

फोटो- उत्कर्ष सिंह/क्विंट हिंदी

दारोगा रमेश कुमार पर 2020 में चर्चित नगसर कांड में भी कार्रवाई हो चुकी है. रमेश सरोज पर नगसर थानाध्यक्ष रहते हुए आर्मी जवान की परिवार सहित बेरहमी से पिटाई के गंभीर आरोप लगे थे. जब उस मामले ने तूल पकड़ा तो खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर रमेश कुमार को पहले लाइन हाजिर और फिर सस्पेंड किया गया था. लेकिन उसके बाद उन्हें मरदह भेज दिया गया. मरदह थाने में रहते हुए भी उनपर गुंडागर्दी और वर्दी के दुरुपयोग के कई आरोप लगे लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. नरेंद्र पासवान की कस्टोडियल डेथ के बाद भी उनपर कोई एक्शन नहीं लिया गया.
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गाजीपुर की ये घटना इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि पुलिस के टॉर्चर और हिरासत में होने वाली मौतों को किस तरह स्थानीय स्तर पर ही दबा दिया जाता है. पीड़ित परिवार इतने लाचार होते हैं कि एक हद के बाद वो खुद के लिए इंसाफ मांगने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते.

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