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‘मेरे पास नौकरी नहीं, पर शायद चुप रहना ही देशभक्ति’

मंदी की मार को समझने के लिए क्विंट की टीम पहुंची झारखंड के जमशेदपुर. जमशेदपुर को इंडस्ट्री का हब कहा जाता है.

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज और मोहम्मद इरशाद आलम

क्या चुनाव में राजनीतिक दल मंदी की मार झेल रहे हैं? क्या पॉलिटिकल पार्टी ने अपने कार्यकर्ता से कहा कि मंदी है आप निकल जाओ, नहीं ना.. तो फिर देश की इंडस्ट्री का हाल बेहाल क्यों है? यही समझने के लिए क्विंट की टीम पहुंची झारखंड के जमशेदपुर. जमशेदपुर को इंडस्ट्री का हब कहा जाता है.

यहां क्विंट की टीम की मुलाकात आकाश मुखी नाम के एक मजदूर से हुई. आकाश एक ऑटोमोबाइल कंपनी में हेल्पर के तौर पर काम करते थे. लेकिन मंदी की मार ने उनकी नौकरी ही छीन ली. आकाश बताते हैं, “मैे जिस कंपनी में काम कर रहा था. वहां काम नहीं था. वहां छंटनी शुरू हो गई थी. वहां से लोगों को हटाया जा रहा था. तो मुझे भी हटा दिया गया.”

“80 हजार लोगों की नौकरी गई”

आकाश अकेले नहीं हैं जिन्हें अपनी नौकरी गवानी पड़ी. ऑटो प्रोफाइल लिमिटेड कंपनी के चेयरमैन बिकाश मुखर्जी बताते हैं,

पूरे इंडस्ट्रियल एरिया की हालत ये है कि 80 हजार लोग बैठ गए हैं. उन्हें नौकरी से बाहर कर दिया गया है.

आगे बिकाश अपने कंपनी की हालत पर चर्चा करते हुए कहते हैं, “हमारा टर्न-ओवर 15%  पर आकर रुक गया है. करोड़ों का घाटा है. हमारा टर्न-ओवर पिछले साल से पहले करीब 600 करोड़ था. इस बार 100 करोड़ रुपये भी होगा या नहीं, शक है.”

टाटा मोटर्स जैसी बड़ी कंपनी भी मंदी की चपेट में

बता दें कि जमशेदपुर को टाटानगरी भी कहा जाता है. जमशेदपुर में टाटा कंपनी के स्टील से लेकर ऑटो के प्लांट मौजूद हैं. बिकाश मुखर्जी बताते हैं,

टाटा मोटर्स जमशेदपुर में करीब-करीब 12 से 14 हजार गाड़ियों को बनाने की क्षमता है. 10-12 हजार गाड़ी आम दिनों में बनता था. लखनऊ में 8000 की क्षमता है, जिसमें 6 से 7 हजार गाड़ियां बनती थी. अभी गिरते-गिरते जमशेदपुर में 2000 और लखनऊ में 1600-1700 गाड़ियां बन रही हैं.
मंदी की मार को समझने के लिए क्विंट की टीम पहुंची झारखंड के जमशेदपुर. जमशेदपुर को इंडस्ट्री का हब कहा जाता है.
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बड़ी कंपनियों के साथ-साथ छोटी कंपनियों का भी हाल-बेहाल

बड़ी कंपनियों के साथ-साथ छोटी कंपनियों पर भी मंदी का बड़ा असर पड़ा है. सर्फेस ट्रीटमेंट का प्लांट चलाने वाले सुमन सिंह बताते हैं,

टाटा मोटर्स के जो भी वेंडर हैं, उनके जो भी पार्ट्स हैं, वो पेटिंग हमारे यहां होते हैं. अभी जो मार्केट की हालत है, उसके हिसाब से देखेंगे तो हम लोगों पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है. हमारा सेल 60% कम हो गया है. अभी जिंदगी गुजारना भी मुश्किल है. गाड़ियां बन नहीं रही हैं. अब गाड़ियां बनेगी नहीं तो हमारे पास उतने पार्ट पेंटिंग के लिए आ नहीं रहे हैं. जितने पहले आया करते थे. इसलिए हम पर असर पड़ ही रहा है. 

बता दें कि झारखंड के जमशेदपुर में बड़ी और छोटी कंपनियों को मिलाकर करीब एक हजार कंपनियां हैं. फिलहाल मंदी की मार से उबरने का रास्ता सरकार को निकालना होगा, जिसकी उम्मीद में हजारों लोग बेरोजगार बैठे हैं.

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