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असम: चाय जनजाति की चिंता,‘हमें सिर्फ वोट बैंक की तरह न देखा जाए’

असम चाय बागान में काम करने वालीं मजदूर मोनो का एक ही सपना- उनके बच्चे चाय बागान में मजदूरी न करें

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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

चुनाव आते ही असम के छोटे-बड़े मुद्दे अब नेशनल मीडिया का हिस्सा बन जाते हैं. ऐसे में असम की बात हो तो 'TEA पॉलिटिक्स' को कैसे नजरंदाज किया जा सकता है. क्विंट पहुंचा है असम के चाय बागानों में, यहां काम करने वाले लोगों से उनकी जिंदगी, राजनीति और चुनाव पर उनके नजरिए को देखने समझने.

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असम के चाय जनजाति समुदाय में मूल रूप से, झारखंड, ओडिशा और बंगाल के आदिवासी भी शामिल हैं जिन्हें 19 वीं शताब्दी में अंग्रेज उन्हें असम ले आए. चाय बागान में काम करने वालीं मजदूर शांति कचुआ का कहना है,

वो चुनाव के दौरान रैलियां और सभाएं करते हैं, लेकिन वो वास्तव में कुछ नहीं करते, मैं ये देखकर थक गई हूं उन्होंने मेरे घर की तस्वीरें लीं कहा वे इसका निर्माण कराएंगे पर कोई नहीं आया

चाय बागान के मजदूरों के कल्याण के लिए 2021 के बजट में 1,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, लेकिन 'जन धन योजना' जैसे लाभ कभी-कभी उन लोगों तक नहीं पहुंचते हैं जिनकी उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत होती है, शांति कहती हैं

मैंने सुना है मोदी सरकार हमारे लिए पैसा ट्रांसफर कर रही है लेकिन मुझे कभी कुछ नहीं मिला, जब भी मैं बैंक के लोगों से पूछता हूं, वे कहते हैं, क्या मोदी? मोदी सरकार से कोई पैसा नहीं आया है 
  • असम चाय बागान के मजदूरों की दिहाड़ी मजदूरी 167 रुपये है
  • केरल चाय बागान के मजदूर रोजाना 380.38 रुपये कमाते हैं

असम चाय बागान के मजदूर दिहाड़ी मजदूरी 351.33 रुपये किए जाने की मांग कर रहे हैं

असम में चाय बागान मजदूर जॉर्ज लगुन कहते हैं-

अभी तो मोदी ने बोल दिया, लेकिन बोलने के बाद हमारे लिए कुछ नहीं किया बोलते हैं कि वोट मिलेगा तो हम विकास करेंगे लेकिन वोट देने के बाद भी हमें कुछ नहीं मिला
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मोनो एक अस्थायी मजदूर के रूप में काम करती हैं जिस 6 महीने वो काम करती हैं, पूरे 8 घंटे काम के लिए उन्हें 116 रुपये रोजाना मिलता है, उनका कहना है कि, 'बहुत सारी मुसीबतें हैं, मैं अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता हूं लेकिन पैसे नहीं हैं.' उनका एक ही सपना है कि उनके बच्चे चाय बागान के मजदूरों के रूप में काम न करें

हम गरीब और अशिक्षित हैं क्या हमारे पास सपने नहीं हैं? हम भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं लेकिन हमारे सपने कभी पूरे नहीं होंगे
मोनो, मजदूर, चाय बागान

सिर्फ चाय बागान में काम करने की कम दिहाड़ी ही इन मजदूरों की परेशानी नहीं है, इनमें से कुछ लेबर कॉलोनियों में पीने के साफ पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है.

हम इस गंदे पानी को छानते और पीते हैं, देखिए, पानी का रंग लाल हैक्या आप इसे पीने के बाद बीमार पड़ जाते हैं? बिल्कुल, हम बीमार पड़ जाते हैं पानी इतना गंदा है अगर हम बीमार पड़ते हैं, तो एक अच्छे अस्पताल में जा भी नहीं सकते इतने कम पैसे से हम दवाओं के पैसे कैसे दे पाएंगे?

चाय जनजातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग लंबे समय से चली आ रही है, चाय बगान में काम करने वाले एक मजदूर का कहना है,

जब कांग्रेस सत्ता में थी हमें एसटी का दर्जा मिलना चाहिए था, लेकिन उन्होंने हमें नहीं दिया मोदी सरकार ने कहा कि वो हमें एसटी का दर्जा देंगे यहां तक कि उन्होंने भी नहीं दिया इसलिए, हमने मोदी सरकार को वोट नहीं दिया हम उन्हें केवल तभी वोट देंगे जब एसटी का दर्जा हमें दिया जाएगाचुनावों के दौरान किए गए अधूरे वादों को लेकर चाय जनजाति के लोग भी अब जागरूक हो रहे हैं चाय बगान में काम करने वाले मोनो का कहना है कि, ‘हम उन्हें वोट देते हैं, तब वे बड़े और शक्तिशाली हो जाते हैं, वे हमसे वोट लेते हैं लेकिन उसके बाद वे हमें भूल जाते हैं.’

चुनावों के दौरान किए गए अधूरे वादों को लेकर चाय जनजाति के लोग भी अब जागरूक हो रहे हैं चाय बगान में काम करने वाले मोनो का कहना है कि, 'हम उन्हें वोट देते हैं, तब वे बड़े और शक्तिशाली हो जाते हैं, वे हमसे वोट लेते हैं लेकिन उसके बाद वे हमें भूल जाते हैं.'

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