पड़ोसी ओडिशा से 'लड़ाई' खत्म करते हुए पश्चिम बंगाल ने जियोग्राफिकल इंडीकेशन (जीआई) टैग जीत लिया. ये टैग बताता है कि स्पंजी, मीठे सीरे से भरा रसगुल्ला मूल रूप से बंगाल का है. इस घोषणा से जीआई रजिस्ट्री ने दो राज्यों के बीच करीब ढाई साल चली लंबी लड़ाई खत्म कर दी.
जीआई टैग मिलने से रसगुल्ले को अब पश्चिम बंगाल का आविष्कार माना जायेगा. रसगुल्ले को जीआई टैग मिलने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बधाई दी.
कई साल से जारी था विवाद
रसगुल्ले के अविष्कार को लेकर पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच सालों से कानूनी लड़ाई चल रही थी. दोनों ही इसके अविष्कारक होने का दावा कर रहे थे. आखिरकार जीआई ने ओडिशा के दावे को खारिज कर दिया. इसके बाद रसगुल्ला नाम पर बंगाल का एकाधिकार हो गया है.
रसगुल्ले पर ओडिशा और पश्चिम बंगाल की सरकार ने अपना-अपना दावा जताने के लिए सरकारी समितियां तक गठित कर दी थी.
दरअसल, ये विवाद तब शुरू हुआ, जब ओडिशा के पहाल में मिलने वाले रसगुल्लों को लेकर 2 साल पहले ओडिशा सरकार ने जीआइ टैग हासिल करने की कोशिश की. कटक और भुवनेश्वर के बीच स्थित पहाल में हाइवे के दोनों किनारे सालों से रसगुल्ले का थोक बाजार लगता है. पहाल रसगुल्ले के लिए बहुत मशहूर है. यहां से इस मिठाई को पश्चिम बंगाल भी सप्लाई किया जाता है.
इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने रसगुल्ले पर अपना हक जताने के लिए अपनी दलीलें देनी शुरू कीं. इसी के बाद से रसगुल्ले के ईजाद पर विवाद की शुरुआत हुई.
कैसे मिली बंगाल को जीत?
किसी भी उत्पाद का जीआई टैग उसके स्थान विशेष की पहचान बताता है. बंगाल सरकार ने रसगुल्ला पर अपना दावा करते हुए जीआई टैग के लिए कोर्ट में अपील की थी. दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने और सबूतों के आधार पर पश्चिम बंगाल को रसगुल्ले के लिए जीआई टैग दे दिया गया.
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