सोमवार, 10 सितंबर 2018 को 'भारत बंद' था, इस बंद को 20-21 पार्टियों का समर्थन मिला. इन पार्टियों का 50% तक का वोट शेयर है. इसलिए ये एक अच्छा खासा पॉलिटिकल इवेंट था. अगर भारत बंद सफल होता है तो काफी बड़ी हेडलाइन बनती है. अगर मिला जुला असर होता है तब भी हेडलाइन तो बनती है. जैसे मेरी आदत है हर सुबह जो पहला न्यूजपेपर मैं उठाता हूं. वो इंडियन एक्सप्रेस है. मैंने न्यूजपेपर देखा तो मुझे काफी खबरें दिखाई दीं. लेकिन भारत बंद का कहीं भी कोई जिक्र नहीं है. मुझे लगा कि कहीं हमने गलती तो नहीं की जो हमने वीडियो क्विंट पर दिखाए वो क्या थे?
अब पेपर के अंदर गए. पेज नंबर-6 पर काफी बड़ी रिपोर्ट है. और राज्यवार खबरें हैं. अगर इसे पढ़ेंगे तो लगेगा कि बंद काफी सफल था. महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, असम,केरल, गुजरात, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, झारखंड, राजस्थान में सफल रहा लेकिन अखबार के पहले पन्ने पर कुछ नहीं था.
अब जो दूसरा पेपर मैं रोज उठाता हूं- द टाइम्स ऑफ इंडिया.
यहां भी बड़ी बड़ी हेडलाइंस हैं लेकिन बंद का ज्यादा जिक्र नहीं दिख रहा है. जितनी भी बड़ी हेडलाइंस मैंने देखीं मुझे बंद की खबर यहां भी नहीं दिखाई दी. मैंने फिर सोचा, जो वीडियो कल हमने क्विंट पर दिखाए थे.
जब मैंने अपने सहयोगियों को कहा कि देखिए कहीं मेरी आंखें मुझे धोखा तो नहीं दे रही हैं, तो फिर मेरे एक सहयोगी ने बताया कि टाइम्स ऑफ इंडिया में फ्रंट पेज में एक बॉक्स में खबर गई है. तो मैंने खुद को सही किया-ये तो फ्रंट पेज पर है.
लेकिन जिस तरह के वीडियो हमने पोस्ट किए और जिस तरह से इन दो बड़े अखबारों में इस न्यूज की कवरेज हुई है मैं तो घबरा गया था कि कहीं कल हम लोगों ने क्विंट पर फेक वीडियो या फेक न्यूज तो नहीं लगा दी.
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