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DU की लड़कियों को फब्तियां कसते लड़कों से बचाने की गारंटी मिलेगी?

डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

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'अरे मैडम, ले लो पर्चा'
'अरे हमनै भी तो पर्चे दे दयो'

सुनने में साधारण लगने वाला ये वाक्य डुसू चुनावों के दौरान लड़कियों की रूह कंपा देते हैं. वजह होती है बोलने का लहजा. छात्र संघ के चुनाव के दौरान डीयू में हरियाणा, यूपी, राजस्थान और दिल्ली से भाड़े पर लाए गए लड़के विश्वविद्यालय, जीटीबी नगर इत्यादि  मेट्रो स्टेशन से निकलती लड़कियों पर छेड़ने वाले लहजे में कमेंट्स पास करते हैं.

ग्रुप बनाकर पर्चे बांटते इन लड़कों की छेड़खानी और फब्तियों से परेशान डीयू में पढ़ने वाली कई लड़कियां इलेक्शन टाइम में अपने पीजी में ही रहना पसंद करती हैं. 12 सितंबर को डुसू चुनाव होना है. तो चुनाव से पहले दिल्ली के इस क्षेत्र में काफी गहमा-गहमी है. हर तरफ छात्र-छात्राएं, पोस्टर-बैनर और काफी मात्रा में गाड़ियां दिखाई दे रही हैं.

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बता दें कि डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है. हालांकि यहां पर महिलाओं की स्थिति हैरान करने वाली है.

संस्कृत से एमए कर रही पूजा (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि चार-पांच साल से चुनावों के दौरान इस तरह की छेड़खानी की आदत हो गई है. उनका कहना है कि ये लोग कमेंट तो पास करते हैं, लेकिन वो इस सबका कोई उत्तर नहीं देतीं. बताती हैं कि बाहर से बसों में भरकर लाए गए ये लड़के गर्ल्स कॉलेज के गेट पर छोड़ दिए जाते हैं. इस तरह इलेक्शन टाइम में घूरने, कमेंट पास करने वाले सैकड़ों की संख्या में हो जाते हैं.

डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

डीयू के नॉर्थ और साउथ कैंपस इस वक्त किसी तंवर, छिल्लर, डेढ़ा, चौधरी या फिर यादव नाम के पर्चों से सटे पड़े हैं. 12 तारीख के इस चुनाव के लिए यूपी और हरियाणा के नंबरों की ऑडी और मर्सिडीज से लेकर ऑल्टो जैसी भी गाड़ियों ने सड़कें जाम की हुई हैं. ऐसा लगता है कि जिसके पास जिस गाड़ी का भी इंतजाम हो पाया, वो ले के आ गया. गाड़ी महंगी हुई तो उतना ही अच्छा, आगे रहेगी.

गाड़ियों से पर्चे उड़ाते लड़कों और नारे लगाती लड़कियों के बीच गेंदे की माला पहने कैंडिडेट छात्र-छात्राओं को बैलेट नंबर याद कराते हुए निकल जाते हैं.

डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

इनके पीछे से इंतजाम होता है वोट अपने पक्ष में गिराने का. कहने को छात्र संघ के चुनाव हैं, पर दांव-पेच किसी राजनीतिक पार्टी की तरह के ही हैं. रानी लक्ष्मीबाई, श्रद्धानंद और सत्यवती जैसे कॉलेजों के बाहर बसें खड़ी हैं, जिनमें पब या पूल पार्टी का लालच देकर स्टूडेंट्स को ठूंसना है, ताकि इन्हीं बसों में वोटिंग वाले दिन स्टूडेंट्स को घरों से लादकर वोट डलवाए जाएं.

पार्टियों के महिला मुद्दों पर की गई बड़ी बड़ी बातें इलेक्शन टाइम महज जुमला बन जाती हैं, जब पार्टियों के भाड़े पर लाए गए लड़के कैंपस में गुंडागर्दी, मार पिटाई के साथ साथ महिलाओं का पीछा करने से लेकर छेड़खानियां करते हैं.

डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

अरबिंदो कॉलेज में पढ़ रही ऋचा (बदला हुआ नाम) का कहना है कि सारी पार्टियां इलेक्शन टाइम में महिलाओं के सतही मुद्दे उठाती हैं, लेकिन खुद इलेक्शन में गुंडों की फौज लेकर आती हैं. उनका कहना है कि नारे लगाती भीड़ में कोई डीयू का स्टूडेंट नहीं है. क्या छात्र संघ के उम्मीदवार ऐसे लड़कों का क्रिमिनल बैकग्राउंड चेक करते हैं? कैंपस एरिया में कोई भी बाहर का गुंडा प्रचार प्रसार के लिए क्यों लाया जाता है? इस पर कोई रोकथाम नहीं.

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महिला सुरक्षा की बात भी और कैंपस में गुंडों की फौज भी

एक तरफ ABVP ने अपने मैनिफेस्टो में औरतों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहने की बात रखी है, वहीं NSUI ने वीमेन फ्रेंडली कैंपस बनाने का दावा पेश किया है. लेकिन महिला स्टूडेंट्स से छेड़खानी करते लड़कों के ग्रुप की जिम्मेदारी न ही ABVP और न ही NSUI लेती है.

उपाध्यक्ष पद पर ABVP से चुनाव लड़ रहे शक्ति सिंह से जब इस मसले पर सवाल पूछा गया तो उनके लीगल एडवाइजर पीयूष ठाकुर ने जवाब देते हुए बताया कि ऐसी कोई शिकायत उनके पास आई नहीं है. अगर कोई शिकायत आती है, तो उसे ICC (इंटरनल कम्प्लेंट्स कमेटी) में देखा जाता है.

डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

UGC की साल 2015 में आई गाइडलाइन्स के तहत इंटरनल कम्प्लेंट कमेटी उच्च शिक्षा में महिलाओं के खिलाफ हो रही यौन हिंसा की रोकथाम के लिए बनाई गई है. यह कॉलेज के स्टूडेंट्स के लिए बनाई गई है. क्या यह कमेटी प्रचार के लिए बुलाई गई स्कूली छात्राओं की शिकायतें भी सुनती है, इस पर पीयूष ठाकुर ने स्कूली बच्चों को किराए पर लाने की बात से इनकार कर दिया.

इस बात की पड़ताल करने के लिए शक्ति सिंह के नाम की टी शर्ट पहनें दो लड़कियों से पूछताछ करने पर पता चला कि वो 'इवेंट' में हिस्सा लेने आई हैं. इवेंट के बारे में और पूछने पर वो लड़कियां बताती हैं कि हमें ये पर्चे लोगों को बांटने हैं. यही इवेंट है. उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें चार सौ रुपये की दिहाड़ी पर बुलाया गया है. इसके लिए सुबह आठ बजे से लेकर शाम के पांच बजे तक काम करना है.

इनमें से 19 साल की वर्षा शाहदरा से आती हैं. वह इन चार सौ रुपए से कॉलेज के लिए नए कपड़े खरीदेगी. उसके पापा पेंट करने का काम करते हैं. बाकी लड़कियों के पिताजी भी साधारण व्यवसायों में ही लगे हैं. कोई मिस्त्री है तो कोई ऑटो चालक.

आर्थिक रूप से कमजोर घरों से आई ये लड़कियां छेड़खानियों के मसले आपस में ही सुलझाती हैं. इनका मानना है कि पुलिस के पास मामला जाने में डर रहता है कि यहां वो अपनी मर्जी से आई हैं, तो किसी भी छेड़खानी की जिम्मेदारी भी उनकी ही है.
डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

ABVP के लिए प्रचार कर रहे लॉ फैकल्टी के एक छात्र का कहना है कि ICC (इंटरनल कम्प्लेंट्स कमेटी) के कंप्लेंट बॉक्स लगा देने से कुछ मसले हल नहीं हु. यह कमेटी सिर्फ कागजों में दिखाने भर के लिए है. ABVP यह सुनिश्चित करेगी कि महिलाओं की शिकायतें सुनी जाएं. इसके लिए उन्होंने हर कॉलेज में एक महिला गार्ड की मांग रखी है. साथ ही कैंपस के इलाके में जहां अंधेरी जगहें हैं, वहां लाइट लगवाने का मुद्दा उठाया है, ताकि रात को बाहर निकलने वाली लड़कियां सेफ महसूस कर सकें.

ABVP की टी-शर्ट पहने लड़कियों में से अधिकतर ने कहा कि वो सब रानी लक्ष्मीबाई कॉलेज से हैं और CYSS के सनी तंवर के पर्चे बांट रही लड़कियों ने कहा कि वो सभी जाकिर हुसैन से हैं. कोर्स और बैच के बारे में पूछने पर वो बीए कह पा रही थीं, विषयों के नाम भी नहीं बता पा रही थीं. घबराहट में एक लड़की ने बता दिया कि वो अभी स्कूल में ही है. यहां सिर्फ ये 'पर्चे' बांटने आई है.

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23 कैंडिडेट में केवल 5 लड़कियां

इस बार हो रहे डूसू चुनाव में कुल 23 कैंडिडेट लड़ रहे हैं, जिनमें मात्र 5 लड़कियां हैं. प्रेसिडेंट की पोस्ट के लिए INSO से एक महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ रही है, बाकी किसी पार्टी ने इस बार महिला कैंडिडेट को चुनाव में नहीं उतारा है.

डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

INSO के ही मोहित भास्कर ने बताया कि पिछले तीन साल से सिर्फ उनकी पार्टी महिला कैंडिडेट को प्रेसिडेंट की पोस्ट के लिए खड़ा कर रही है. पैनल में और लड़कियों की भागीदारी क्यों नहीं है, इसके जवाब में उनका कहना है कि लड़कियां राजनीति में आने को तैयार नहीं. यहां माहौल ही ऐसा है. यहां मुद्दों की राजनीति नहीं कर सकते. थोड़ी देर पहले ही वहां से पिज्जा से भरी हुई गाड़ियां गई थीं.

इससे पहले भी डूसू के चुनावों में लड़कियों को रिझाने के लिए आईलाइनर, लिप बाम और पिज्जा बर्गर बांटकर उनसे वोट मांगे जाते रहे हैं. लड़कों को शराब पहुंचाई जाती है. साथ ही डीयू के आसपास के रेस्ट्रॉ में अच्छे डिनर का भी लालच दिया जाता है.

डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है
साल 2017 में प्रेसिडेंट के पद के लिए भी 2 ही महिला उम्मीदवार थीं. उससे पहले 2016 में 7 उम्मीदवारों में से 4 लड़कियां थीं. इस बार महिला मुद्दों के बावजूद किसी भी पार्टी ने प्रेसिडेंट की पोस्ट के लिए महिलाओं को नहीं उतारा है.

डीयू में दस साल पहले ABVP से चुनाव लड़ने वाली नूपुर शर्मा डूसू की प्रेसिडेंट बनी थीं. उसके बाद डूसू में कोई महिला प्रेसिडेंट नहीं बनी है.

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महिला प्रेसिडेंट का पीछा किया जाता है, गालियां दी जाती हैं

INSO के प्रचार में लगे कुछ लड़के AISA के लिए काम कर रहे लोगों को टुकड़े टुकड़े गैंग कह कर संबोधित कर रहे थे. टुकड़े-टुकड़े का प्रयोजन पूछने पर इन लड़कों ने बताया कि ये लोग भारत को तोड़ देंगे. जब उन लड़कों के कमजोर शरीर की ओर इशारा किया गया कि ये कैसे तोड़ेंगे भारत तो एक ने कहा कि भगत सिंह ने कहा था कि विचारों में बहुत बड़ी ताकत होती है. उनका मानना है कि AISA मुद्दे अच्छे उठाती है लेकिन CYSS के साथ मिलकर उनकी राजनीति भी मनी-मसल वाली हो गई है, सनी तंवर भी ABVP-NSUI की तरह कैंपेन कर रहा है.

डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

डीयू AISA की प्रेसिडेंट कवलप्रीत ने बताया कि पिछले दिनों इलेक्शन कैंपेनिंग के दौरान उनके साथ हिंसा हुई. उन्हें भद्दी गालियां दी गईं. पुलिस ने एफआईआर में मामूली मारपीट का जिक्र किया जबकि मामला हैरेसमेन्ट का था.

पिछले साल से कवलप्रीत को कमेंटबाजी का सामना करना पड़ रहा है. कैंपस में उनका पीछा किया जाता है. अब उनके खिलाफ अर्बन नक्सल और टुकड़े टुकड़े गैंग का नैरेटिव भी शुरू कर दिया गया है. इसी साल जनवरी में सत्यवती कॉलेज में जब उन्हें ऑनलाइन हिंसा पर एक सेमिनार में बुलाया था तो ABVP के सदस्यों ने उनके साथ फिर ऐसी ही कोशिशें की. उस मसले पर ABVP के दो कार्यकर्ताओं को ससपेंड भी किया गया था.

लड़कियों के इस हैरेसमेन्ट पर सामने ना आने की वजह बताते हुए कवलप्रीत ने कहा कि छेड़खानी को नॉर्मलाइज किया जा चुका है. लड़कियां मानती हैं कि कमेंटबाजी तो होती है, बस उन्हें इसका जवाब ना देते हुए निकल जाना है. इलेक्शन के दौरान यह सब बढ़ जाता है.

कवलप्रीत का यह भी कहना है कि जब एक पार्टी की प्रेसिडेंट के साथ हैरेसमेंट हो रहा है, तो आम लड़कियों के साथ कितनी छेड़खानी होती होगी.

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क्यों कर देती हैं लड़कियां देती हैं PG से बाहर जाना बंद

आईपी कॉलेज से पढ़ चुकी श्वेता ने बताया कि किस तरह दो साल पहले के इलेक्शन के दौरान उसे छेड़खानियों का सामना करना पड़ा. शाम को जब वह निरंकारी कॉलोनी में ट्यूशन पढ़ाकर लौट रही होती, तब गाड़ियों के शीशे खोलकर कमेंट मारते हुए लड़के निकल जाते. डर के मारे उसने अपनी ट्यूशन की टाइमिंग जल्दी कर ली.

डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

लॉ फैकल्टी से पासआउट ऋतु जो अब ज्यूडिशरी की तैयारी कर रही हैं, उन्होंने कहा कि कैम्पेन करने आए लड़कों की हरियाणा के नंबर की गाड़ियां उसे फॉलो करती थीं. कई दिन ऐसा हुआ तो उसने मॉरिश नगर थाने में कम्प्लेन दर्ज कराई. लेकिन पुलिस ने उसे ही समझा बुझाकर भेज दिया.

सफेद शर्ट और ब्लू जींस पहने, कैंडिडेट्स की नेमप्लेट लगाए घूम रहे लड़कों की जिम्मेदारी किसी ने भी नहीं ली. पर ये जरूर कहा कि यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि कौन कैंपस में आता है कौन नहीं. हमने इन्हें नहीं बुलाया है, ये लोग भाईचारे में आ गए हैं.

इनसो का प्रचार कर रहे लड़कों ने भी ग्रुप में घूम रहे इन लड़कों की जिम्मेदारी लेने से इनकार करते हुए कहा कि ये लोग कमेंटबाजी तो करते हैं, लेकिन हमारी पार्टी से नहीं हैं. प्रशासन को इनकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

हालांकि NSUI ने मेनिफेस्टो में कहा है कि यूनिवर्सिटी से 100 महिला लीडर बनाएंगे, जिन्हें एक प्रोग्राम के तहत एक्स चीफ मिनिस्टर शीला दीक्षित से मेंटर करवाया जाएगा. पार्टी ने 4 पदों में से एक पद पर ही महिला कैंडिडेट को उतारा है.

नॉर्थ कैंपस के आसपास चाय के ठेले लगाने वालों का कहना है कि लड़ाइयां तो खूब होती हैं. मगर अब लड़ाइयां कम हो गई हैं.

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प्रोफेसर भी होते हैं परेशान

डुसू चुनाव में भाग लेने वाली ज्यादातर पार्टियों ने महिला मुद्दों को ही अपने एजेंडे का मुख्य भाग बनाया है

इस हैरेसमेंट से ना सिर्फ छात्राओं का सामना होता है, बल्कि महिला असिस्टेंट प्रोफेसर को भी यह सब झेलना पड़ता है. नाम ना छापने की शर्त पर दयाल सिंह कॉलेज में पढ़ा चुकी एक महिला प्रोफेसर ने बताया कि प्रचार करने आए बाहरी गुंडों ने किस तरह उनका पीछा कर उनके घर का पता लगवाया, बाद में वो अपनी क्लास में ऐसे गुंडों को प्रचार करने के लिए रोकने लगी. इस वजह से उनकी क्लास के बाहर लड़के हुल्लड़ मचाते.

डीयू का कैंपस ओपन है और यहां बाहरी लोगों को कैंपस में आने से रोकने के कोई इंतजाम नहीं हैं, तो रेजिडेंशियल एरिया में रह रहे लोगों को भी इस तरह की गुंडागर्दी का सामना करना पड़ता है.

(ये लेख हमें ज्योति यादव ने भेजा है. इसमें लिखे विचार उनके हैं. क्विंट का इन विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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