जब क्विंट ने मुझसे निर्मला सीतारमण के बारे में जवाहरलाल यूनिवर्सिटी (JNU) में उनके 1980 के स्टूडेंट जीवन के बारे में लिखने के लिए कहा तो मुझे ठीक से नहीं पता था कि मैं इससे कितना इंसाफ कर पाउंगा. मुझे यह काम इसलिए सौंपा गया क्योंकि मैं भी उसी समय JNU का स्टूडेंट था, जब सीतारमण यहां थीं. लेकिन उस बात को तीन दशक गुजर चुके हैं; उम्र के साथ यादें मिट गई हैं. हालांकि खास बातें अब भी जेहन में दर्ज हैं, पर बारीक बातें थोड़ी धुंधली हो चुकी हैं.
‘फ्री थिंकर’ समूह का हिस्सा थीं सीतारमण
सीतारमण और मैं ना तो क्लासमेट थे, ना ही बैचमेट; JNU में हम दो अलग डिपार्टमेंट में पढ़ रहे थे. सीतारमण ने सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग (CESP) से मास्टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (SIS) में एमफिल के लिए इंटरनेशनल ट्रेड डिपार्टमेंट में प्रवेश ले लिया था.
मैं पूरे समय सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज (CPS) का स्टूडेंट बना रहा; इस तरह हमारे बीच पढ़ाई को लेकर बहुत कम बातचीत हुई थी.
इकलौती वजह, जिसके चलते सीतारमण और मैं करीब आए वह यह था कि हम दोनों ही स्टूटेंड एक्टिविस्ट थे. हालांकि हम दोनों ही दो अलग स्टू़डेंट संगठनों से जुड़े थे: निर्मला फ्री थिंकर्स (धार्मिक मान्यताओं समेत सभी तरह की स्थापित मान्यताओं को खारिज करने वाले) समूह की सदस्य थीं.
JNU में इस संगठन की नींव आनंद कुमार ने रखी थी- जो बाद में आम आदमी पार्टी से निकल कर बने स्वराज अभियान के अध्यक्ष हुए. वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से समाजवादी पृष्ठभूमि से आए थे. आनंद कुमार समाजवादी युवजन सभा (SYS) के टिकट पर BHU की स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बने थे.
लेकिन जब वह 1970 की शुरुआत में JNU में सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में एमफिल करने आए तो उन्होंने पाया कि प्रकाश करात, जो कि बाद में CPI (M) के जनरल सेक्रेटरी बने, के नेतृत्व वाली स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) स्टूडेंट के बीच गहरी पैठ बनाए हुए हैं.
इसलिए आनंद ने JNU में SYS का इकाई की स्थापना करने के बजाय कम्युनिस्ट राजनीति का विरोध करने वाले सारे स्टूडेंट्स का समर्थन हासिल करने के लिए सबको शामिल करते हुए एक संगठन बनाया, जिसका नाम रखा “फ्री थिंकर्स”
व्यक्तिगत आजादी और तर्कशीलता की हिमायत
आनंद कुमार 1973 में प्रकाश करात से पहला चुनाव हार गए, लेकिन 1974 में उनको बुरी तरह हरा कर बदला चुका लिया. जब आनंद अपनी डॉक्ट्रेट करने यूएस गए, तो CSS के चंद्रशेखर टिबरेवाल ने फ्री थिंकर्स के संयोजक का जिम्मा संभाल लिया.
उन्होंने कम्युनिस्टों के समग्रता के सिद्धांत और कार्यक्रमों के खिलाफ मोर्चा जारी रखा और बहुलता व विविधता के उदारवादी विचारों का प्रचार किया.
सीतारमण खुद को गर्व से फ्री थिंकर कहती थीं, क्योंकि वह सभी मुद्दों पर अपनी तरह से सोचना अपना अधिकार मानती थीं, वह चाहे कैंपस के मुद्दे हों या राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय घटनाएं.
SFI और AISF जैसे कम्युनिस्ट स्टूडेंट संगठनों के सदस्यों के उलट, जो कि भेड़चाल से चलते थे और राष्ट्रीय कम्युनिस्ट पार्टियों के निर्देशों पर चलते थे, और जिसके कारण सोवियत यूनियन और चीन की नीतियों के पिछलग्गू बन जाते थे, निर्मला सीतारमण और उनके फ्री थिंकर्स के साथियों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और तर्कशीलता की शमा जलाए रखी.
मैं फ्री-थिंकर नहीं था; मैं स्टूडेंट्स फॉर डेमोक्रेटिक सोशलिज्म (SDS) का सदस्य था, जो कि फ्री थिंकर्स की तरह एक कैंपस आधारित संगठन था, लेकिन जो फ्री-थिंकर्स के उलट, स्टूडेंट राजनीति में एक वैचारिक तत्व के साथ प्रभुत्व रखता था.
हमारे- FT और SDS बीच सबसे बड़ी समानता यह थी कि हमारा कोई बाहरी स्वामी नहीं था, जिसके लिए आज्ञाकारिता का प्रदर्शन करना होता.
हर बात पर मजबूती से तर्क रखती थीं निर्मला
हम, स्टूडेंट के तौर- अपने सीमित ज्ञान और अनुभव के साथ- अपने फैसले लेने और गलतियां करने के लिए आजाद थे. हमारी स्टूडेंट पॉलिटिक्स की यह सबसे खूबसूरत बात थी.
यह स्वाभाविक था कि शक्तिशाली SFI और AISF की चुनौती का सामना करने के लिए हमारे- FT और SDS को- लिए गठबंधन बनाना जरूरी था. करात, डीपी त्रिपाठी, सीताराम येचुरी, कमल मित्रा चिनॉय और कई स्टूडेंट लीडर की चमत्कारी नेतृत्व शैली के चलते SFI और AISF का JNU के स्टूडेंट के बीच अपराजेय आधार था.
हमने 1982 के स्टूडेंट यूनियन चुनाव में गठबंधन कियाः मैं FT-SDS पैनल से अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया गया. उस चुनाव में सीतारमण नहीं खड़ी थीं, लेकिन उन्होंने पैनल की जीत के लिए पोस्टर लिखने से लेकर दीवारों पर चिपकाने तक और पर्चे बांटने और स्टूडेंट्स के बीच प्रचार में जो कड़ी मेहनत की, उसकी यादें आज भी मेरे जेहन में ताजा हैं.
हमारी तरफ से उस चुनाव को ‘खुले’ और ‘बंद’ दिमाग के बीच लड़ाई के तौर पर पेश किया गया, और स्टूडेंट्स को इनके बीच में चुनाव करना था.
सीतारमण इस तर्क को बहुत मजबूती से रखती थीं; वह स्टूडेंट्स के छोटे ग्रुप को संबोधित करतीं और उनके बीच इस सवाल को रखतीं- क्या वह कल्पनालोक के एक भ्रामक सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए अपने सोचने की आजादी को बंधक रखना चाहेंगे?
सीतारमण और उनके दोस्त- खासकर तमिलनाडु की राजकुमारी, जो कि खुद भी CESP की स्टूडेंट थीं और उन दिनों सीतारमण की हमसाया जैसी थीं- ने पैनल की जीत के लिए बहुत ज्यादा मेहनत की थी.
बड़ा हलचल भरा दौर था वह
उस साल, मैं स्टूडेंट यूनियन का अध्यक्ष चुन लिया गया, और इससे भी बड़ी बात कि JNUSU के इतिहास में पहली बार, एक गैर-कम्युनिस्ट ग्रुप का स्टूडेंट्स काउंसिल में बहुमत हुआ था (यह एक ऐसी उपलब्धि थी जो आनंद कुमार के समय में और बाद में डेविड थॉमस के फ्री थिंकर्स की तरफ से JNUSU का अध्यक्ष चुने जाने के समय भी हासिल नहीं हुई.)
चुनाव में FT-SDS पैनल की जीत से आगे भी साथ मिलकर काम करने का रास्ता बना. उस साल मई में, हमने JNU प्रशासन के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई शुरू की, जिस पर उन्होंने पुलिस बुला ली. करीब एक हजार लड़के-लड़कियों को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया.
वह काफी अफरातफरी का समय था. करीब 300 लड़कियां गिरफ्तार कर जेल के महिला सेक्शन में रखी गई थीं, हालांकि मुझे ठीक से याद नहीं है कि हमारे साथ सीतारमण भी जेल में थीं या नहीं.
जेल में हम लड़के, तकरीबन हर रोज जनरल बॉडी मीटिंग (GBM) करते थे. हम तीन हफ्ते जेल में रहे. लेकिन जब हम रिहा किए गए तो कैंपस को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया.
सभी स्टूडेंट को घर जाना पड़ा. स्टूडेंट गर्मियों की छुट्टियों के बाद कैंपस लौटे. लेकिन मुझे यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया. मैं पढ़ाई के लिए वापस नहीं लौट सकता था. मैं कैंपस में दाखिल भी नहीं हो सकता था, क्योंकि वहां मेरा प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था.
इस तरह मई 1983 के उन तूफानी दिनों के बाद, मेरा सीतारमण और कई दोस्तों से संपर्क टूट गया.
वह BJP में शामिल कैसे हो गईंं?
मैं सीतारमण से दोबारा 25 साल बाद, शायद 2008 में कैंपस की मशहूर पार्थसारथी पहाड़ियों पर JNU अल्युमनाई मीट में मिला. उन्होंने मुझे अपनी जिंदादिल युवा बेटी से मिलवाया. मैंने सीतारमण से पूछा कि क्या उनके पति भी अल्युमनाई मीट में आए हैं, उन्होंने सपाट चेहरे के साथ हां कहा और परकला प्रभाकर की तरफ इशारा किया. प्रभाकर भी JNU के एक पुराने स्टूडेंट थे और जिनसे मैंने कुछ मिनट पहले ही बात की थी, लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि उन्होंने सीतारमण से शादी की है.
मैं प्रभाकर को एक अच्छे दोस्त और राजनीतिक एक्टिविस्ट के तौर पर जानता था. उन्होंने NSUI की तरफ से JNU में अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था, लेकिन मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि सीतारमण और प्रभाकर डेटिंग कर रहे थे. शायद मेरे 1983 में कैंपस छोड़ देने के बाद कामदेव ने उन पर तीर छोड़ा था. लेकिन उस मुलाकात में मुझे ज्यादा अचंभित उस जवाब ने किया, जब मैंने सीतारमण से पूछा कि वो क्या कर रही हैं.
उन्होंने कहा कि उन्होंने BJP ज्वाइन कर ली और पार्टी का काम कर रही हैं.
मैं स्वीकार करता हूं कि यह सुनकर मुझे झटका लगा. एक मुक्त-सोच, तर्कशील-विचारों वाली JNU की लड़की, जिसने वामपंथी कम्युनिस्ट समूहों का उनके विचारों की कट्टरता के लिए विरोध किया था, उसने BJP जैसी दक्षिणपंथी रुझान वाली वैचारिक रूप से रूढ़ पार्टी ज्वाइन कर ली.लेकिन, फिर उन्होंने कहा वह समाज और देश के लिए कुछ करना चाहती थीं और पार्टी प्लेटफॉर्म ने उन्हें ऐसा करने का मौका दिया.
JNU से उनका नाम हमेशा जुड़ा रहेगा
ठीक है, उन्होंने BJP में शामिल होने का फैसला लिया और कड़ी मेहनत और समझदारी से पार्टी में बड़ी जगह बना ली, लेकिन मैं कह सकता हूं कि उन्हें इसकी परवरिश JNU से मिली. सिर्फ एक दशक में वह साधारण पार्टी सदस्य से रक्षा मंत्री बन गईं, जो केंद्रीय कैबिनेट में चार प्रमुख पदों में से एक है.
राजनीति में बिना फादर या गॉडफादर के ऐसा जबरदस्त उत्थान सिर्फ पश्चिमी देशों के लोकतंत्रों में ही मुमकिन है, लेकिन सीतारमण ने इसके साथ ही एक नई राह भी दिखाई है.
मदुरई गर्ल, जो हिंदी फिल्में नहीं देखती, क्योंकि उन्हें हिंदी समझ में नहीं आती (JNU में उनकी रूममेट और क्लासमेट शशि गांधी ने एक बार मुझे बताया कि सीतारमण उनके साथ सिनेमाहॉल में ‘सिलसिला’ देखने गईं थीं, तो पूरे समय पूछती रहीं कि क्या हो रहा है, क्योंकि उन्हें हिंदी का एक भी शब्द समझ में नहीं आ रहा था), अब हिंदी पट्टी के प्रभाव वाली राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है.
इस पर मतभेद हो सकते हैं कि क्या उनकी JNU की गतिविधियों ने उनको अनपेक्षित सफलता के लिए तैयार किया, लेकिन उनके विरोधी और समर्थक तो इस बात को मानेंगे ही कि उनका नाम JNU से कभी जुदा नहीं किया जा सकता. मुझे भरोसा है कि वह बड़ी चुनौतियों से निपट लेंगी और पार्टी और प्रधानमंत्री के उन पर जताए गए भरोसे पर खरी उतरेंगी.
लेकिन, मुझे अफसोस है कि सीतारमण, जो कि JNU में पढ़ाई के दिनों में शास्त्रीय संगीत समारोहों में नियमित रूप से शामिल होती थीं, उन्हें अपने सामने आए अप्रत्याशित अवसर के बेहतर इस्तेमाल के लिए अपने संगीत के प्यार को सीमित करना होगा.
(लेखक ने टाइम्स ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में एडिट पेज के लिए असिस्टेंट एडिटर; हिंदुस्तान टाइम्स, पटना के रेजिडेंट एडिटर; इंडिया टीवी, नोएडा में प्लानिंग एंड रिसर्च एडिटर के तौर पर काम किया है. वर्तमान में वह जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मास कम्युनिकेशन (JIMMC), नोएडा के निदेशक हैं)
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