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घर में पॉल्यूशन, बस में पॉल्यूशन और स्कूल में भी वही हाल

सपना जीने के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए. शुद्ध हवा के बिना हेल्दी शरीर हो नहीं सकता है.

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घर में पॉल्यूशन, बस में पॉल्यूशन और स्कूल में भी वही हाल, लेकिन सबसे क्षुब्ध करने वाले हैं हमारे राजनेताओं के सुर. शुद्ध हवा से जरूरी कुछ हो सकता है क्या? इतना तो हमें ये दे नहीं सकते. लेकिन बड़ी-बड़ी डींगें हांक रहे हैं. सपने दिखा रहे हैं. सपना जीने के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए. शुद्ध हवा के बिना शरीर स्‍वस्‍थ हो नहीं सकता है.

छोटे-छोटे फैसले लेकर हमें ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि सब ठीक हो जाएगा. ऑड-इवेन को ऑक्‍सीजन मास्क की तरह पेश किया जा रहा है. ट्रक की आवाजाही पर रोक लगी, तो सब ठीक. इस तरह के फैसले पहले भी हुए. कोई सुधार आया क्या, हमें इसका जवाब चाहिए.

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हमें तो लगता है कि पॉल्यूशन को कम करने का एक आसान तरीका है नेताओं की बदजुबानी को कम कराया जाए. साउंड पॉल्यूशन में थोड़ी कमी तो आएगी ही. महौल थोड़ा हल्का होगा, तो हाइपर टेंशन जैसी बीमारी तो कम होगी.

सपना जीने के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए. शुद्ध हवा के बिना हेल्दी शरीर हो नहीं सकता है.
पोलुशन को लेकर दूरगामी फैसले हो सकते हैं
( फोटो:Vibhushita Singh/The Quint )

इसके अलावा कुछ दूरगामी फैसले हो सकते हैं. पेड़ लगाने को क्यों नहीं अनिवार्य कर दिया जाए. और पेड़ काटने को कानूनी जुर्म. जहां भी जमीन बची है, वहां तत्काल बहुत सारे पेड़ लगाए जा सकते हैं. क्यों नहीं ऐसा किया जा रहा है?

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हमें यह समझना होगा कि कुछ फैसले लॉन्‍ग टर्म के लिए होंगे और कुछ तात्कालिक राहत के लिए. लॉन्‍ग टर्म के कई फैसले हैं- पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूत करना, कंस्ट्रक्शन को पर्यावरण फ्रेंडली बनाना, आसपास के किसानों को इस बात के लिए राजी करना कि वो अपने खेतों में पुआल न जलाएं. इस तरह के सॉल्यूशन हैं. उन्हें तत्परता से अमल में लाने की जरूरत है.

सपना जीने के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए. शुद्ध हवा के बिना हेल्दी शरीर हो नहीं सकता है.
ग्रीन बिल्डिंग जैसे कंसेप्ट को क्यों प्रमोट नहीं किया जाता
ग्रीन बिल्डिंग जैसा कोई कंसेप्ट भी है. इसको क्यों नहीं प्रोत्साहन दिया जाता है? इस तरह की तकनीक बहुत महंगी भी नहीं है. इसका इस्तेमाल बढ़ेगा, तो लोगों में जागरूकता भी बढ़ेगी. लेकिन इस तरह की सोच कुछ भी नहीं दिखती है. पूरा ध्यान सिर्फ क्विक फिक्स पर- अभी घाव है, तो बैंड-एड लगा लो, इलाज बाद में किया जाएगा.

क्या इस तरह का एप्रोच सही है? क्या हमें सरकारों को मजबूर नहीं कर देना चाहिए कि वो ऐसे फैसले लें, जो हमें कम से कम 24 घंटे शुद्ध हवा तो दे सके?

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