महिलाओं की दुनिया कई तरह से बदली है और आमतौर पर पहले से बेहतर हुई है. इसमें नारीवादी आंदोलनों से लेकर सामाजिक चिंतकों, समाज सुधारकों, नेताओं, अदालतों और सरकारों की भूमिका रही है. लेकिन जिस एक चीज की इस मामले में अक्सर चर्चा नहीं होती है, वह है विज्ञान और टेक्नोलॉजी, जिसने महिलाओं की जिंदगी को लगातार आसान और मानवीय बनाया है.
महिलाओं के काम को आसान बनाने वाली टेक्नोलॉजी और मशीनों की लिस्ट बेहद लंबी है.
नारीवादी आंदोलनों का हिस्सा टेक्नोलॉजी
चलिए ऐसी चीजों की लिस्ट बनाते हैं, जिनसे महिलाओं की जिंदगी आसान हुई है, या जिनसे उनके समय की बचत हुई है. एक लिस्ट मैं बनाती हूं. इसमें आप अपनी ओर से भी चीजें जोड़ सकती हैं.
मिसाल के तौर पर अगर मैं किचन जाऊं, जिसे आम तौर पर महिलाओं की जगह माना जाता है, तो मुझे वहां सबसे महत्वपूर्ण चीज गैस का चूल्हा नजर आता है. इसके अलावा खाना बनाने के लिए माइक्रोवेव, हॉट प्लेट, ओवन-टोस्टर-ग्रिलर तो है ही. इन तमाम उपकरणों ने रसोई घर को चूल्हे के धुएं से मुक्ति दिला दी है. और जो थोड़ा धुआं खाना बनाते समय बनता है, उसके लिए कई घरों में इलेक्ट्रिक चिमनी और एक्झॉस्ट फैन भी हैं.
अब इनके आने से क्या फर्क पड़ा, ये बेशक पुरुष न बता पाएं. लेकिन इस फर्क के बारे में उन औरतों से, अपनी मां-दादी-नानी से पूछिए जिनकी जिंदगी का खासा समय रसोई घर में खांसते और धुएं में आंसू बहाते बीता है. पूछिए कि गीली लकड़ी जब जलने से मना कर देती थी, चूल्हे में कितनी बार फूंक मारना पड़ता था और खाना बनाने में लगने वाला समय किस तरह बढ़ जाता था.
अगर चटनी पीसना पुरुषों का काम होता तो...
रसोई घर में टेक्नोलॉजी की दखल बहुत ज्यादा है. जैसे पिसाई वगैरह के लिए शहरी घरों में, और अब ग्रामीण घरों में भी मिक्सर, ग्राइंडर एक आम बात है.
हो सकता है कि घर के पुरुषों को हाथ की पिसी धनिया की चटनी में जन्नत का स्वाद आता हो. लेकिन मुमकिन है कि चटनी पीसने वाली घर की महिला के लिए वह इतना आध्यात्मिक अनुभव न हो. अगर चटनी पीसना पुरुषों का काम होता, तो वे शायद ही इस हाथ की पिसी चटनी का हैवेनली प्लेजर लेने की सोचते.
टेक्नोलॉजी ने औरतों के वक्त और बेवजह मेहनत को नई शक्ति दी है
लिस्ट आगे बढ़ाते हैं. रसोई घर में प्रेशर कुकर ने खाना पकाने में लगने वाले समय को काफी कम किया है. साथ ही नॉन स्टिक बर्तनों ने भी जिंदगी आसान की है. बर्तन धोने के लिए डिशवाशर आ गए हैं. फ्रिज यूं तो पूरे घर के काम आता है, लेकिन इसने महिलाओं की जिंदगी को खास तौर पर आसान बनाया है. ताजा पिसे प्याज, लहसुन, अदरख में होती होगी कोई बात, लेकिन कामकाजी औरतों के लिए तीन दिन की पिसाई अगर एक दिन में हो जाए, तो इसका मतलब उन औरतों से ही पूछिए.
दूध को फटने से रोकने के लिए पहले उसे बार-बार उबालना पड़ता था और उफन न जाए, इसलिए चूल्हे के पास रहना पड़ता था. अब फ्रिज ने ऐसे काम को आसान बना दिया है.
‘रेडी टू कुक’ फूड भी बना रहा है जगह
फूड टेक्नॉलॉजी में आए बदलाव के कारण ‘रेडी टू कुक’ फूड की एक नई कटेगरी आ गई है. बस पैकेट खोलिए, उबालिए और खा लीजिए.
इंस्टैंट नूडल्स ने देश की लाखों माताओं के लिए सुबह को आसान बनाया है क्योंकि नूडल्स को उबलते पानी में डालने और बच्चे की प्लेट में परोसने के बीच दो मिनट ही तो लगने हैं. आज आधी रात को पानी गरम करके पी लेना चुटकियों का काम इसलिए है, क्योंकि टेक्नोलॉजी है.
वर्किंग महिलाएं अब चाहे तो काम से लौटने के बाद सब्जी बनाने का झंझट पालने की जगह रेडी टू कुक डिश का पैकेट खोले और उबाल कर खा लें.
जेंडर भेद अब टेक्नोलॉजी के साथ मिट रहा है
इतना ही नही, भारतीय घरों में कुछ साल पहले तक और कई घरों में आज भी मकान का सबसे अंधेरा और उपेक्षित कोना रसोई घर होता है, जहां पुरुष आम तौर पर नहीं जाते. आर्किटेक्चर का यह जेंडर भेद अब टेक्नोलॉजी के साथ मिट रहा है और लिविंग रूम के साथ जोड़कर ओपन किचन बनाए जा रहे हैं. किचन देखते ही देखते मॉड्यूलर भी हो गए.
यह बदलाव अभी नया है और पुराने घरों को यहां तक पहुंचने में लंबा समय लगेगा. ओपन किचन इसलिए बन रहे हैं, क्योंकि टेक्नोलॉजी इसके अनुकूल हो गई है. साफ सफाई के काम को आसान बनाने वाले वैक्यूम क्लिनर लेकर वंडर मॉप जैसे ब्रांड और प्रोडक्ट भी हैं.
गौर कीजिए कि हम महिलाओं की जिंदगी को आसान बनाने वाली लिस्ट बना रहे हैं और अभी तक हम रसोईघर की गिनती भी पूरी नहीं कर पाएं हैं.
रसोई से बाहर भी दुनिया है
रसोई के बाद, महिलाओं के काम का दूसरा डिपार्टमेंट घरेलू साफ-सफाई को माना गया है. यह बात सुनने में कुछ लोगों को बुरी लग सकती है और यह बुरी बात है भी कि घरेलू साफ-सफाई महिलाओं का काम है और पुरुष इसमें कम ही हाथ बंटाते हैं.
भारत में साफ-सफाई से जुड़े प्रोडक्ट के लगभग हर विज्ञापन में महिलाएं ही ये काम करती नजर आती हैं. महिलाओं की यह लोकछवि बनावटी नहीं है. काम का जेंडर के आधार पर बंटवारा एक तथ्य है. भारतीय टेक्स्ट बुक लंबे समय तक भाषा सिखाने के नाम पर – ‘राम पढ़, सीता खाना बना’ सिखाते रहे. विज्ञापनों की ललिता जी बरसों-बरसों तक कपड़ों की चमक तलाशती रहीं.
खैर, अब जबकि टेक्नॉलॉजी ने जिंदगी आसान बना दी है, तो पुरूष भी उन कामों में हाथ बंटाने लगे हैं, जो अब तक महिलाओं के लिए रिजर्व थे. मिसाल के तौर पर, लॉयड कंपनी ने वाशिंग मशीन के एड में अपने प्रोडक्ट को यूनीसेक्स बताते हुए कपड़ा धोते पुरुष को दिखाया है.
यह भी गौर करने की बात है कि जब तक कपड़े धोने का मतलब साबुन की टिकिया घिसना, पटक-पटक कर मैल छुड़ाना और निचोड़ना था, तब तक पुरुष विज्ञापनों से बाहर रहे. अब जब बटन दबाने भर से सफाई हो जा रही है, तो पुरुष अपनी उदारता की टोकरी लिए हाजिर हैं.
नारी मुक्ती और बाजार
कोई यह कह सकता है कि यह सब तो मामूली बात है. टेक्नोलॉजी के बावजूद भी तो महिलाओं को रसोई और सफाई से ही जोड़कर ही देखा जा रहा है. ऐसे लोग यह भी कह सकते हैं कि असली चीज है नारी मुक्ति, जिसके बिना इन खुदरा चीजों से फर्क नहीं पड़ता.
नारी मुक्ति शानदार बात है और इसे होना ही चाहिए. औरत और मर्द की, खासकर अधिकारों के मामले में गैरबराबरी खत्म होना बेहद जरूरी है. लेकिन जब तक नारी मुक्ति संपन्न नहीं होती, तब तक महिलाओं की जिंदगी को उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता. बाजार उन्हें उनके हाल पर छोड़ने वाला भी नहीं है. बाजार ही है जो टेक्नोलॉजी को प्रयोगशाला से लाकर हम तक पहुंचाता है.
टेक्नोलॉजी और बाजार के इस टैंगो डांस में महिलाओं को अपने लिए और कुछ नहीं भी तो, सुविधाएं और आराम जरूर खोज लेना चाहिए.
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