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तलवार खूब भांजी तुमने टीपू- लेकिन तुम हार गए

नेताजी का टीपू चाचा से हार गया, लेकिन अफसोस इस बार पापा ने ही हराया

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उत्तरप्रदेश के यादवी कुनबे में अहं का टकराव अब अपने खातमे की ओर बढ़ चला है. चाचा भतीजे के बीच चले इस गृह युद्ध में अगर ये कहा जाए की जीत चाचा की हुई हैऔर भतीजे को मुंह की खानी पडी है तो शायद ये गलत नहीं होगा.

ऐलान-ए-जंग इस बार अखिलेश ने किया

नेताजी का टीपू चाचा से हार गया, लेकिन अफसोस इस बार पापा ने ही हराया
(फोटो: ट्विटर)

चाचा शिवपाल के खास सिपहसलार दीपक सिंघल प्रदेश के सबसे ताकतवर नौकरशाह यानी मुख्य सचिव थे. इनको पद से हटाया फिर विवादस्पद लेकिन शिवपाल के बेहद करीबी मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को अपने मंत्रीमंडल से बर्खास्त किया.

ये वो वक्त था कि सूबे के लोगों को लगा कि अखिलेश यादव अब किसी की नहीं सुनेंगे और प्रदेश अपनी मर्जी से चलाएंगे, किसी के दवाब में नहीं.

शिवपाल के दांव से पहले मुलायम खुद उतर गए

चाचा शिवपाल अपनी चाल चलते इससे पहले ही पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव खुद खेल में कूद गए. इस मोड़ पर पुत्र अखिलेश के बजाय उन्होंने भाई शिवपाल का साथ देना उचित समझा.

आनन-फानन में उन्होंने अखिलेश को उत्तरप्रदेश समाजवादी पार्टी अध्यक्ष के पद से हटाकर अपने भाई शिवपाल को उस गद्दी पर आसीन कर दिया. फिर क्या था? मानो समाजवादी पार्टी में कयामत आ गई हो. तिलमिलाए अखिलेश ने ये बताना उचित समझा कि मुख्यमंत्री वो ही हैं. एक झटके में उन्होंने चाचा शिवपाल से पीडब्ल्यूडी, सिंचाई और राजस्व जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय छीन कर उन्हें पैदल कर दिया.

मंत्रालय के नाम पर अगर शिवपाल के पास कुछ बचा तो वो था समाज कल्याण मंत्रालय जिसकी गिनती प्रदेश के निम्न मंत्रालयों में होती है.

नेताजी का टीपू चाचा से हार गया, लेकिन अफसोस इस बार पापा ने ही हराया
(फोटो: Twitter)

अब शिवपाल को अपने पत्ते खोलने थे

शिवपाल को पीडब्ल्यूडी मंत्री के नाम से संबोधित कर अखिलेश ने साफ कर दिया कि वो अब किसी को बर्दाश्त करने वाले नहीं हैं. प्रदेश की जनता भी हैरान थी, चर्चा होने लगी कि क्या बच्चा वाकई बड़ा हो गया है और क्या अखिलेश ने पार्टी के अंदर भ्रष्टाचार के खिलाफ खुला मोर्चा खोल दिया है.

जनता तो जनता प्रदेश में मीडिया ने भी अखिलेश की पीठ थपथपाई और उनकी शान में कसीदे पढ़ने शुरु कर दिए. लेकिन अब शह और मात के इस खेल मे बारी थी चाचा शिवपाल की. अब शिवपाल को अपना मोहरा चलना था.

बड़ी चतुराई से शिवपाल ने उम्मीद से एकदम उलट अलग ही रणनीति अपनाई. पार्टी आलाकमान को न धमकी दी और न चेतावनी. बगैर किसी शक्ति प्रदर्शन के उन्होंने रहे- सहे एक मंत्रालय और प्रदेश अध्यक्ष के पद से भी स्तीफा देकर अखिलेश की बाजी को पलट दिया. वो कोप भवन में चले गए लेकिन संदेश साफ शब्दों में दे दिया.

पार्टी नेताजी (मुलायम सिंह) यादव की है और उनकी हर बात मानेंगे पार्टी नहीं छोड़ेंगे और नेताजी का संदेश उनके लिए आदेश है.
नेताजी का टीपू चाचा से हार गया, लेकिन अफसोस इस बार पापा ने ही हराया
(फोटो: Twitter)

कुछ ऐसा ही झगड़ा परिवार में 2012 मे हुआ था जब पार्टी को उत्तरप्रदेश में बहुमत हासिल हुआ था और सवाल उठा था कौन बनेगा मुख्यमंत्री?

नेता जी ने क्यों दिया शिवपाल का साथ?

चाचा शिवपाल और भतीजा अखिलेश दोनों दावेदार थे लेकिन नेताजी ने साथ दिया था पुत्र अखिलेश का. पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले शिवपाल को खून का घूट पीना पड़ा था.

लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं प्रदेश में चुनाव कुछ ही महीने के फासले पर है. पार्टी संगठन के अन्दर शिवपाल की ताकत से मुलायम सिंह भी वाकिफ हैं. हकीकत ये है कि पार्टी के ज्यादातर विधायकों का रुझान अखिलेश के बजाय शिवपाल की ओर है. नेताजी सामने खड़ी चुनौती को तुरंत भांप गये और उन्होंने वक्त की नजाकत को देखते हुए बेटे के बजाय भाई का साथ देना उचित समझा.

इस बार अमृत शिवपाल के हाथ लगा

सपा मंथन में इस बार अमृत शिवपाल के हिस्से लगा और विष मिला अखिलेश को. उनके हाथ से प्रदेश अध्यक्ष का पद तो खिसक ही गया चाचा से छीने हुए सारे मंत्रालय वापिस करने की घोषणा भी करनी पड़ी.

नेताजी का टीपू चाचा से हार गया, लेकिन अफसोस इस बार पापा ने ही हराया
(फोटो: Twitter)

लेकिन अखिलेश के लिए सबसे बड़ी मात थी गायत्री प्रजापति को अपने मंत्रिमंडल में वापिस लेने की घोषणा. जिस मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोपों में निकालकर अखिलेश ने अपनी और अपने सरकार की छवि साफ करने की कोशिश की थी वो दांव भी उल्टा पड़ा.

चंद शब्दों में कहें तो अखिलेश को न माया मिली और न ही राम

रही बात पार्टी के यूथ ब्रगेड या लोहिया ब्रगेड के कार्यकर्ताओ की जो लखनऊ की सडकों पर अखिलेश को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के लिए आवाज बुलन्द कर रहे हैं, उनको शान्त करने के लिए पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की एक घुड़की ही काफी है. हां टिकटों के बटवारे में भागीदारी के लिए अखिलेश के लिए एक नया पद जरूर बनाया जा सकता है.

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