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इतना उजियारा हमारी जिंदगी में ला रहा ‘अंधियारा’, कई बीमारियां  

दुनिया भर में प्रकाशित 126 शोधपत्रों की विस्तृत जांच से पता चलता है दुनिया में प्रकाश प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है

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नेशनल प्रदूषण कंट्रोल डे पर बात एक ऐसे प्रदूषण की, जिस पर वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण जितनी बातचीत नहीं होती. ये ऐसा प्रदूषण है जिससे इंसान, बाकी जीव-जंतु और पेड़ पौधे तक प्रभावित हो रहे हैं. इससे हमारी नींद, प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है. हमारा पाचन खराब हो रहा है. हमें कैंसर, मधुमेह, मोटापा जैसी बीमारियां मिल रही हैं. हम डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं

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कृत्रिम प्रकाश से जिंदगी रोशन या अंधेरा?

कृत्रिम प्रकाश यानी आर्टिफिशियल लाइट की खोज, जिसकी शुरुवात थॉमस अल्वा एडीसन द्वारा इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार से शुरू होती है, ने हम इंसानों को दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने का मौका दिया. मगर आज जरूरत से ज्यादा आर्टिफिशियल लाइट का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसकी वजह से लाइट पॉल्यूशन यानी प्रकाश प्रदूषण पैदा हो रहा है. इसे फोटो पॉल्यूशन या लुमिनस पॉल्यूशन (Luminous pollution) भी कहा जाता है. लाइट पॉल्यूशन का केवल हमारे वातावरण पर ही नहीं, बल्कि इंसानों, जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों पर भी बुरा असर पड़ता है.

हाल ही में जर्नल ऑफ नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन के नए अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र में यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर के वैज्ञानिकों ने इस खतरे की एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की है कि रात को दिन में बदलने की हम इंसानों की जिद, इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों और वनस्पतियों को भी निगलने लगी है.
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दुनिया भर में प्रकाशित 126 शोधपत्रों की विस्तृत जांच-पड़ताल से किया गया यह अध्ययन हमें चेताता है कि दुनिया में प्रकाश प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है और अगर इस पर लगाम न लगाया गया तो आने वाले सालों में इंसानों, जानवरों और पेड़-पौधों का जीवन चक्र बुरी तरह प्रभावित हो सकता है. एक आंकड़े के मुताबिक 2012 से 2016 के बीच दुनिया में रात में कृत्रिम प्रकाश वाले क्षेत्र में 2.2 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ोत्तरी हुई है.

अब दुनिया भर के कस्बों और शहरों को रौशन करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कई सफेद एलईडी में चमक पैदा करने के लिए हरे, नीले और लाल वेवलेंथ के मिश्रण का प्रयोग किया जा रहा है जोकि बेहद घातक है.

कीट-पतंगे सबसे बड़े शिकार

प्रकाश प्रदूषण का सबसे गहरा प्रभाव कीट-पतंगों पर पड़ रहा है. यह एक जरूरी मुद्दा है, क्योंकि दुनिया भर में जीव जगत में विलुप्ति (Extinction) का सबसे ज्यादा खतरा कीट-पतंगों पर ही है. बहुत सारे कीट केवल रात में उड़ते हैं और अपने क्रियाकलापों द्वारा कई फूलों का परागण (Pollination) करते हैं.

जब ये कीट परागण नहीं करते तो फिर फसलों के पैदावार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. दूसरी तरफ, ज्यादातर कीट सड़कों के किनारे की रौशनी के चारों-तरफ रात भर उड़ते हुए बल्ब की गर्मी में झुलस कर मर जाते हैं. इस हालिया शोध के जरिए वैज्ञानिक चेता रहे हैं कि अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश भी एक भयावह प्रदूषण है. इससे रात में आसमान में तारे दिखने बंद हो जाते हैं, उपग्रहों से रात में पृथ्वी का चित्र लेने में बाधा पड़ रही है और साथ ही बिजली की बर्बादी भी हो रही है.

शोधकर्ताओं की मानें तो यह असर इतना व्यापक है कि अब प्रकाश प्रदूषण को भी जलवायु परिवर्तन, वैश्विक ताप वृद्धि (Global warming) और प्रजातियों की विलुप्तिकारण जैसी समस्याओं के समान तवज्जो दिए जाने की जरूरत है.
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आंखों की नींद छीन रहा कृत्रिम प्रकाश

हम इंसान विशेष तौर पर दिन में सक्रिय रहने वाले प्राणी हैं. हमारी आंखे दिन में सूर्य की रौशनी में ठीक से काम करने के लिए अनुकूलित हैं. हां, रात में भी कुछ काम कर सकते हैं. मगर हम रात्रिचर (Nocturnal) प्राणियों की तरह अंधेरे में पूरी तरह से सक्रिय नहीं रह सकते हैं, इसलिए हम रात में आर्टिफिशियल लाइट का इस्तेमाल करते हैं. आर्टिफिशियल लाइट के इस्तेमाल में कोई भी बुराई नहीं है मगर बाहरी भाग में फैला चुभता हुआ जरूरत से ज्यादा प्रकाश निश्चित रूप से प्रदूषण है. अनेक प्रकृतिविद, पर्यावरणवादी तथा अनुसंधानकारी चिकित्सक अनुभव करते हैं कि प्रकाश प्रदूषण, पर्यावरण प्रदूषण का सर्वाधिक खतरनाक रूप है. शहरी क्षेत्रों में उत्पन्न प्रकाश फोटोन्स जाने अनजाने में सभी पर गहरा प्रभाव डालते हैं.

शोधकर्ताओं की मानें तो प्रकाश प्रदूषण पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) पर खतरनाक असर डाल रहा है जिससे इंसानों और जानवरों की नींद लेने की प्राकृतिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है. प्रकृति के अन्य जीव मसलन कीटों, मछलियों, चमगादड़ों, चिड़ियों एवं अन्य जानवरों की प्रवासन प्रक्रिया (Migration process) भी प्रभावित हो रही है.

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रॉयल एस्ट्रोनामिकल सोसाइटी के अनुसार विश्व की 70 प्रतिशत आबादी प्रकाश प्रदूषण की जद में है. विकसित देशों में स्थिति और भी बुरी है. विकसित देशों के 98 प्रतिशत लोग प्रकाश प्रदूषण के पंजे में हैं. भारत के दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता जैसे बड़े शहर भी प्रकाश प्रदूषण को अपना मेहमान बना चुके हैं.

क्या होता जब बिगड़ती है कि शरीर की घड़ी?

प्रकाश प्रदूषण का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव मनुष्य पर हो रहा है. ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि मनुष्य ही प्रकाश प्रदूषण का जन्मदाता है. मनुष्य पर होने वाला प्रभाव इतना अप्रत्यक्ष होता है कि हममें से ज़्यादातर लोग उसे समझ ही नहीं पाते और अनेकों रोगों का इलाज कराते घूमते रहते हैं. बच्चे भी इसका शिकार होने लगे हैं.

अब यह पूर्ण स्थापित तथ्य है कि हमारी शारीरिक गतिविधियां शरीर के अन्दर स्थित, पृथ्वी के रातदिन के साथ लयबद्ध, 24 घन्टों वाली घड़ी से संचालित होती है. यह घड़ी मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस नामक हिस्से मौजूद होती है. शरीर का तापमान, हार्मोन का रिसाव, सतर्कता और नींद इसी घड़ी से चलती है. दिवार पर लगी या हाथ पर बंधी घड़ी के मुताबिक हमारा शरीर नहीं चलता. रात का समय होते ही हमारे शरीर की क्रियाएं धीमी पड़ने लगती है. नींद के हार्मोन का रिसाव होने लगता है.

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अगर हम समय पर सोते नहीं हैं तो हम अपने ही खिलाफ लड़ाई लड़ने लगते हैं. इससे शरीर की लय गड़बड़ा जाती है. इसका पहला दुष्प्रभाव पाचन क्रिया के गड़बड़ाने के रूप में होता है. पेट में अल्सर होने की संभावना बढ़ जाती है. कैंसर, मधुमेह, मोटापा आदि भी मानव शरीर में घुसने का मौका तलाशने लगते हैं. शरीर थका-थका सा रहने लगता है. चिड़चिड़ापन उत्पन्न होता है. घर व बाहर के रिश्ते बिगड़ने लगते हैं. इससे डिप्रेशन भी होता है.

प्रकाश प्रदूषण यानी कम प्रतिरोधक क्षमता

वैज्ञानिकों के मुताबिक इंसानी शरीर में ‘मेलाटोनिन’ नामक एक हार्मोन का निर्माण तभी संभव होता है जब नेत्रों को अंधकार का संकेत मिलता है. इसका काम शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने से लेकर कोलेस्ट्रॉल में कमी लाना होता है जो एक स्वस्थ शरीर के लिए जरूरी है.

रात में भी प्रकाश के कारण कई पक्षी यह फैसला नहीं ले पाते कि सुबह है या रात. यही नहीं, यह उन प्रवासी पक्षियों को भी दिग्भ्रमित (Confuse) करता है जो साल में मौसम के अनुसार स्थान बदलते हैं. दरअसल वह चांद और तारों को देख दिशा का पता लगाते हैं और किसी प्रकाशीय प्रान्त से गुजरते समय उन्हें स्थिति का सही आभास नहीं हो पाता.

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पेड़-पौधों पर असर

हम सभी को मालूम है कि पेड़-पौधे ‘फोटोसिंथेसिस’ की क्रिया से अपना भोजन बनाते हैं और रात्रि का अंधेरा उन्हें एक महत्वपूर्ण यौगिक तैयार करने में मदद करता है जिसे हम ‘फाइटोक्रोम’ के नाम से जानते हैं. हर वक्त मिल रही रौशनी से उनके यह गुण और प्रक्रिया बाधित होती है. कुछ कोरल रीफ की प्रजातियों के प्रजनन (Reproduction) के लिए चांद की रौशनी बेहद जरूरी होती है, पर अब चांद की रौशनी मानव निर्मित प्रकाश से दब जाती है, इसलिए इन प्रजातियों का प्रजनन चक्र प्रभावित हो रहा है.

अभी हम अपने गली-मोहल्ले को रात में ज्यादा से ज्यादा प्रकाशित करने में लगे हैं. शहरों में राजमार्गों का विकास हो रहा है, जहां रात्रि प्रकाश को सर्वाधिक महत्व दिया जा रहा है. अब इस नीति को छोड़ कर दक्षता पूर्ण प्रकाश नीति को अपनाना होगा. रात में बिजली जलाते समय, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रकाश, उस क्षेत्र तक ही सीमित रहे जहां उसकी जरूरत हो. प्रकाश प्रदूषण अभी नया विषय है. ज्ययादात लोग इसके घातक प्रभाव से परिचित और जागरूक नहीं हैं. अज्ञानता किसी का रक्षा कवच नहीं बन सकती. सही यही होगा कि हम प्रकाश के साथ अंधकार के महत्व को भी जाने-पहचानें!

(प्रदीप एक साइंस ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वे विगत लगभग 7 वर्षों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. इनकी एक किताब और तकरीबन 150 लेख प्रकाशित हो चुके हैं)

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