सोशल मीडिया हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गया है. उसके बिना जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है. सोशल मीडिया हमें खबरें परोसता है, परिवार और दोस्तों से हमें जोड़ता है, अब तो इसके जरिए शॉपिंग भी की जा सकती है.
चुनावों में भी सोशल मीडिया की खास भूमिका हो गई है. राजनीतिक दल और नेता इसके जरिए मतदाताओं से संवाद करते हैं, अपने मेनिफेस्टो को लोगों तक पहुंचाते हैं, विपक्ष पर हमला करते हैं, अपने एजेंडे का प्रचार करते हैं और लोगों के वोटिंग के तरीके को प्रभावित भी करते हैं.
बिहार के मतदाताओं में 51% युवा हैं तो इसके क्या मायने हैं
COVID-19 के जबरदस्त प्रकोप के बीच चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार के जिन नियमों का ऐलान किया, उसके कारण बिहार में वर्चुअल कैंपेन मुख्यधारा में आ गया है. राज्य के मुख्य राजनीतिक दलों, यहां तक कि आरजेडी और जेडीयू ने भी डिजिटल राजनीति की रणनीति अपनाई.
आरजेडी ने अपना सोशल मीडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत किया है. बड़ा आईटी सेल, वॉलंटियर, वैरिफाइड अकाउंट्स, इन्फ्लूएंसर्स वगैरह.
बिहार में 6.2 करोड़ लोग मोबाइल फोन्स का इस्तेमाल करते हैं, जिनमें से 3.93 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं. वहां टार्गेटेड फेसबुक 1.5 करोड़ लोगों तक पहुंच सकता है जोकि कुल वोटर बेस का 21% है. राजधानी पटना में फेसबुक यूजर्स की संख्या लगभग 30 लाख है.
एक तथ्य यह भी है कि राज्य के कुल मतदाताओं में 51% युवा (18 से 39 वर्ष के बीच) हैं. इसे देखते हुए सभी राजनीतिक दलों ने सोशल और डिजिटल मीडिया रणनीति अपनाई है.
केंद्रीकृत कॉन्टेंट टीम्स अपने काडर को कह रही हैं कि हर सीट पर राज्य से जुड़े मामलों पर काम करें. फेक न्यूज गढ़ने वाले भी दिन रात लगे हुए हैं.
उम्मीदवारों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट को मैनेज करने के लिए कंपनियों को हायर किया है. इन टीम्स का काम यह है कि वह लोकल/हाइपर लोकल कॉन्टेंट तैयार करें और उसे अलग-अलग सीटों में वितरित करें. पार्टी/उम्मीदवार की वेबसाइट और उसके प्रोफाइल पेज को नए रूप रंग के साथ सजाया-संवारा गया है.
मतदाताओं को एकजुट करने, युवाओं को साथ जोड़ने, पैसा इकट्ठा करने यानी क्राउडफंडिंग, जमीनी स्तर पर काम करने और इन्फ्लूएंसर्स की एक फौज तैनात करने के लिए डिजिटल मार्केटिंग टीम्स को काम पर रखा गया है.
सोशल मीडिया पर नीतीश बनाम तेजस्वी
ट्विटर पर नीतीश कुमार ऐसे तीसरे मुख्यमंत्री हैं जिनके सबसे ज्यादा फॉलोअर्स हैं. सोशल मीडिया पर उनके मुकाबले तेजस्वी यादव की क्या स्थिति है, आइए देखें:
- अक्टूबर में नीतीश के मुकाबले तेजस्वी के फॉलोअर्स की संख्या तेजी से बढ़ी
- नीतीश के मुकाबले तेजस्वी के हर ट्वीट पर इंटरैक्शन्स पांच गुना हैं
- तेजस्वी के हर 1,000 फॉलोअर्स पर इंटरैक्शन्स की संख्या नीतीश के मुकाबले दस गुना है
- नीतीश के मुकाबले उनके इंटरैक्शन्स का जोड़ चार गुना है
- यह स्थिति तब है जब नीतीश के मुकाबले तेजस्वी के ट्वीट्स की संख्या कम है और उनके फॉलोअर्स नीतीश के आधे से भी कम हैं
भारत में ट्विटर यूजर्स की संख्या 1.7 करोड़ से कम है, जोकि फेसबुक यूजर्स का सिर्फ 6% है. इसका मतलब यह है कि बिहार में सिर्फ 9 लाख ट्विटर यूजर्स हैं जोकि काफी मामूली है. इसलिए ट्विटर पर बढ़त से तेजस्वी को शायद ही बहुत ज्यादा चुनावी फायदा हो.
ट्विटर को मुख्य तौर से मीडिया में सनसनी फैलाने के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है और इस प्लेटफॉर्म पर मौजूदगी बढ़ने से तेजस्वी को प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में छाए रहने में मदद मिली है. इसका एक फायदा और हुआ है कि सत्तारूढ़ गठबंधन से कम संसाधन होने के बावजूद उनकी बात लोगों तक पहुंच रही है.
बिहार चुनाव और फेसबुक पर राजनीतिक ट्रेंड्स
दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के मुकाबले फेसबुक की पहुंच ज्यादा बड़ी है और वो युवाओं और फर्स्ट टाइम मतदाताओं की पसंद को प्रभावित करने का कारगर माध्यम है. फेसबुक पर इन नेताओं के प्रोफाइल और उनकी गतिविधियों से ये ट्रेंड पता चलते हैं:
- फैन्स के लिहाज से दोनों के पेज पर एक जैसी फॉलोइंग है
- अक्टूबर में नीतीश के मुकाबले तेजस्वी के फॉलोअर्स तेजी से बढ़े हैं
- तेजस्वी के पेज पर लोग ज्यादा इंगेज हो रहे हैं- उनके शेयर्स नीतीश के मुकाबले 15 गुना, कमेंट्स 2.5 गुना और रिएक्शन्स 8.3 गुना हैं
- यूं दोनों के पोस्ट्स की संख्या लगभग बराबर है
- तेजस्वी के हर 1,000 फॉलोअर्स पर इंटरैक्शन्स की संख्या नीतीश के मुकाबले आठ गुना है
- नीतीश के मामले में प्रमोटेड पोस्ट्स के शेयर्स अधिक हैं लेकिन तेजस्वी के मुकाबले एफिशिएंसी रेश्यो कम होने के कारण अपेक्षित नतीजे नहीं मिल रहे हैं, यह गलत माइक्रो-टारगेटिंग के खतरों को दर्शाता है
इंडिया टुडे के मुताबिक इंटरैक्शन्स के सेंटिमेंट एनालिसिस से पता चलता है कि तुलनात्मक रूप से तेजस्वी के पेज पर इंटरैक्शन्स का सेंटिमेंट पॉजिटिव है और नीतीश के पेज पर नेगेटिव:
- तेजस्वी के लिए ‘लाइक्स’ की संख्या नीतीश के मुकाबले 9 गुना है
- नीतीश के लिए ‘एंग्री’ रिएक्शन्स की संख्या तेजस्वी के मुकाबले 2 गुना है
फेसबुक पर तेजस्वी की बेहतर मौजूदगी और ज्यादा इंगेजमेंट से युवा उनके बेरोजगारी और नौकरी देने के चुनावी वादों की तरफ खिंचे चले आ रहे हैं. शायद यही वह वजह है कि उनकी रैलियों में जबरदस्त भीड़ जमा हो रही है. इन रैलियों को सोशल मीडिया हैंडल्स के जरिए भी प्रमोट किया जा रहा है.
सोशल मीडिया पर बीजेपी बनाम आरजेडी बनाम जेडीयू
जब हम सोशल मीडिया पर तीन मुख्य पार्टियों की गतिविधियों के बीच तुलना करते हैं तो एक जैसे ट्रेंड नजर आते हैं.
पिछले महीने फेसबुक पर जेडीयू और बीजेपी की पोस्ट्स (क्रमशः 441 और 620) के मुकाबले आरजेडी की पोस्ट कम थीं (301), फिर भी उसका इंगेजमेंट रेट (रिएक्शन्स, कमेंट्स, इंटरैक्शन्स) ज्यादा था.
RJD के पोस्ट पर सबसे ज्यादा इंटरैक्शन
ट्विटर पर भी यही हाल था. वहां आरजेडी के ट्वीट्स कम थे, लेकिन उसके पोस्ट्स पर लाइक्स जेडीयू और बीजेपी के कुल लाइक्स से ज्यादा थे. हालांकि री-ट्वीट्स में बीजेपी ने बाजी मार ली है. ट्विटर पर बीजेपी के मुकाबले आरजेडी के फॉलोअर्स दोगुने हैं.
गूगल ट्रेंड्स क्या बताते हैं
तेजस्वी गूगल ट्रेंड्स में पिछड़ गए हैं और नीतीश तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. पिछले हफ्ते गूगल सर्च पर नीतीश ने तेजस्वी को पछाड़ दिया था. बीजेपी, जो शायद चुनावों के बाद नीतीश को धता बताने के लिए चुपके चुपके लगी हुई है, के लिए अच्छी खबर नहीं है. उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी गूगल ट्रेंड्स में पीछे चल रहे हैं.
गूगल ट्रेंड्स के मामले में एनडीए (बीजेपी+जेडीयू) और महागठबंधन (आरजेडी+कांग्रेस) के बीच कांटे की टक्कर है. यह दिखाता है कि इंटरेस्ट ओवर टाइम (बिहार में पिछले 30 दिन) में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है और इसके बाद आरजेडी का नाम आता है, यानी इनकी पोजीशन नंबर 1 और 2 है.
कहने का मतलब यह है कि सोशल मीडिया पर आरजेडी ने बीजेपी के लिए चुनावी खेल को मुश्किल बना दिया है. बीजेपी ने हर चुनाव में सोशल मीडिया को बखूबी इस्तेमाल किया है- या यूं कहें कि इस खेल में वह अगुवा रही है. पर सोशल मीडिया इंगेजमेंट रेट्स के लिहाज से तेजस्वी नीतीश से आगे निकल गए हैं- कहीं-कहीं तो वह मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की जोड़ी को भी पीछे छोड़ रहे हैं.
अब देखना यह है कि यह सपोर्ट क्या वोट्स में तब्दील होता है और चुनावी नतीजों पर इसका कितना असर होता है.
(लेखक स्वतंत्र पॉलिटिकल कमेंटेटर हैं. उनका ट्विटर हैंडल @politicalbaaba है. यह एक ओपिनियन लेख है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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