बिहार सीएम और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने अपने पुराने दोस्त और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद से फोन पर बातचीत की, उनकी सेहत के बारे में पूछा. इस घटनाक्रम को नीतीश के हालिया बयान के साथ जोड़कर देखें, तो प्रदेश की राजनीति में बड़े बदलाव की आहट सुनाई पड़ती है.
सवाल उठता है कि क्या नीतीश ने 2019 चुनाव से पहले बीजेपी को आईना दिखाने की ठान ली है? क्या एक बार फिर नीतीश का बीजेपी से मोहभंग हो चुका है और वे आने वाले दिनों में कोई चौंकाने वाला कदम उठा सकते हैं? हाल में दोनों पार्टियों के बीच जिस तरह की बयानबाजी देखने को मिली, उससे तो कुछ ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं.
बीजेपी पर चला नीतीश का जुबानी 'तीर'
वीपी सिंह की जयंती पर 25 जून को नीतीश कुमार ने एक प्रोग्राम में जो कुछ कहा, उसकी उम्मीद बीजेपी को कतई नहीं रही होगी. नीतीश ने बिना किसी पार्टी या शख्स का नाम लिए वो सब कहा, जिससे बीजेपी जरूर आहत हुई होगी. नीतीश ने कहा:
‘’देश में वोट के लिए जातीय और सांप्रदायिक तनाव का माहौल बनाया जा रहा है, जिससे वोटर जातीय और सांप्रदायिक आधार पर इधर से उधर हो जाएं.’’
नीतीश ने इसमें ये भी जोड़ा कि चुनाव में केवल काम के आधार पर वोट मांगा जाना चाहिए. उन्होंने ये भी साफ कर दिया कि वो वोटों की नहीं, वोटरों के हित की चिंता करते हैं.
नीतीश के बयान से जाहिर है कि जातीय और सांप्रदायिक तनाव वाले माहौल की बात कहकर वे किसके खिलाफ ‘तीर’ चला रहे हैं. गौर करने वाली बात ये है कि नीतीश की इमेज ऐसे सियासतदान की रही है, जो आम तौर पर एक-एक शब्द नाप-तौल कर बोलते आए हैं.
सीट बंटवारे पर JDU की राय जुदा
बीजेपी और जेडीयू के बीच अगले चुनाव के लिए सीटों को लेकर तनातनी चल रही है, ये बात भी दोनों पार्टियों के मीडिया में दिए बयानों से जाहिर है. 25 जून को ही जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने 2015 के रिजल्ट के आधार पर सीटों के बंटवारे की बात कही थी. दूसरी ओर बीजेपी 2014 लोकसभा चुनाव में हासिल सीटों के आधार पर बंटवारा चाहती है.
चुनाव से पहले सीटों को लेकर तनातनी राजनीति में रुटीन का हिस्सा मानी जा सकती है, लेकिन जेडीयू प्रवक्ता के बयान पर गौर करें, वो बीजेपी को प्रदेश की जमीनी हकीकत का अहसास करवा रहे हैं:
‘माइनस नीतीश कुमार’ वाले एनडीए का मतलब कुछ नहीं है, ये बात बीजेपी अच्छी तरह जानती है.संजय सिंह, जेडीयू प्रवक्ता
पहले नोटबंदी के खिलाफ टिप्पणी और फिर योग दिवस से दूरी बनाकर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ये साफ संकेत दे चुकी है कि वह हमेशा केंद्र के ‘मोटा भाई’ की हां में हां मिलाने को तैयार नहीं है.
तो क्या फिर लालू से दोस्ती गांठेंगे नीतीश?
नीतीश कुमार का अगला कदम क्या होगा, इस बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन राजनीति में हवा का रुख देखकर दोस्त या दुश्मन बनाने का चलन हमेशा से रहा है.
बिहार की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि नीतीश ने जिस उम्मीद के साथ बीजेपी का दामन थामा था, उनकी वे उम्मीदें अब कुंभला रही हैं. उन्हें एनडीए में वो भाव नहीं मिल रहा, जिसकी उन्हें अपेक्षा रही होगी.
कभी विपक्षी खेमे के पीएम दावेदार समझे जा रहे नीतीश को एनडीए के भीतर अपनी अलग पहचान बनाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. तो क्या वे फिर अपने पुराने दिनों के दोस्त लालू प्रसाद के पास लौट जाएंगे?
नीतीश फिर से लालू के पास लौटें या नहीं, लेकिन प्रदेश की कुछ पार्टियां अभी से उन्हें इस तरह के ऑफर देने लगी हैं. इस बारे में प्रदेश के पूर्व सीएम और नीतीश कुमार के कभी बेहद करीबी रहे जीतनराम मांझी का बयान गौर करने लायक है. हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के प्रमुख जीतनराम मांझी ने 25 जून को कहा:
“अगर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद छोड़कर महागठबंधन में शामिल हो जाते हैं, तो भी मुझे लगता है कि तेजस्वी यादव 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में हमारे महागठबंधन के उम्मीदवार होंगे.”
इससे ठीक पहले कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने कहा था कि अगर नीतीश एनडीए से बाहर आकर महागठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव देते हैं, तो इस पर विचार किया जाएगा.
तो अब कौन-सा कार्ड चल सकते हैं नीतीश?
एक सवाल ये है कि अगर नीतीश बिहार सीएम की कुर्सी दांव पर लगाकर बीजेपी से अलग होना चाहें, तो वे पब्लिक के बीच इसका कारण क्या बता सकते हैं?
बिहार की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि नीतीश ने एक तुरुप का इक्का अभी भी बचाकर रखा है, जिसे वह कभी भी चल सकते हैं. वे जनता को बता सकते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की उनकी मांग नहीं मानी, प्रदेश की इसी उपेक्षा से आहत होकर, मजबूरन उन्हें ये कदम उठाना पड़ रहा है.
प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण भी एक मुद्दा हो सकता है. देश में सांप्रदायिक माहौल का मुद्दा उन्होंने बीते दिनों उठा ही दिया है.
जाहिर है, नीतीश अगर एनडीए से पिंड छुड़ाकर फिर से पुराने खेमे में लौटते हैं, तो उनके सामने कई चुनौतियां होंगी. उनके लिए आगे की राह आसान नहीं, लेकिन एक मंजे हुए सियासतदान की तरह वे कम नुकसान वाली राह की ओर कदम बढ़ाना चाहेंगे.
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