पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह विपक्ष के महागठबंधन को स्वार्थी, अपवित्र और अवसरवादी क्यों कहते हैं? उनकी भी तो गठबंधन सरकार है. 2019 के लिए भी बीजेपी सहयोगियों को मनाने में लगी है. बात शायद इतनी है कि बीजेपी गठबंधन तो करना चाहती है, पर छिपकर, धीरे-धीरे बोलकर, ताकि कोई सुन ना ले.
पीएम मोदी और अमित शाह के मन की बात समझाने के लिए मैं आपको फिल्म स्टार राजकुमार से जुड़ा एक एपिसोड बताता हूं.
राजकुमार को डायरेक्टर ने ‘मरते दम तक’ फिल्म में डायलॉग दिया, जो उन्हें अपने साथी एक्टर (गोविंदा) से बोलना था-मेरे पास दिमाग है और तुम्हारे पास ताकत है, हम दोनों हाथ मिला लें हम दुश्मनों को खत्म कर देंगे. लेकिन राजकुमार ने डायलॉग जड़ा तुम्हारे पास ताकत है और मेरे पास दिमाग और ताकत दोनों हैं. हम दोनों मिलकर दुश्मनों का सफाया कर देंगे. डायरेक्टर ने समझाने की कोशिश की कि राजकुमार जी, अगर आपके पास दिमाग और ताकत दोनों हैं, तो आपको फिर किसी से हाथ मिलाने की जरूरत क्यों होगी. लेकिन राजकुमार नहीं माने. बोले कि ये नामुमकिन है कि मुझे ताकत के लिए किसी से हाथ मिलाने पड़े. दर्शक ये मान ही नहीं सकते कि राजकुमार के पास ताकत नहीं है.
पीएम मोदी और अमित शाह की स्ट्रैटेजी और भाषण इसी अंदाज में होते दिख रहे हैं. बीजेपी कार्यकारिणी में भी थीम यही थी कि बीजेपी अपने दम पर जीतेगी, पीएम मोदी के चमत्कार से जीतेगी. यानी जीत के लिए किसी की जरूरत नहीं.
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क्या गठबंधन के बगैर 2019 में 2014 से बड़ी जीत हासिल कर लेगी BJP?
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दावा कर रहे हैं कि 2019 में पिछली बार से बड़ी जीत होगी, फिर अगले 50 साल तक बीजेपी को कोई हरा नहीं सकता. सहयोगी, घटक और गठबंधन का जिक्र नहीं के बराबर. लेकिन क्या बिना गठजोड़ के ये संभव है?
बीजेपी अपनी कामयाबी में किसी और को हिस्सेदार बनाने को तैयार नहीं दिखती. एनडीए में करीब 20 दल हैं. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में नए सहयोगियों की तलाश भी जारी है. फिर भी माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि बीजेपी अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है.
‘फिजाओं में मोदी सरकार के कामकाज की खुशबू’
बीजेपी में सभी यही कह रहे हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी के करिश्मे से बीजेपी की फिर सरकार बनेगी. लेकिन अंदर की बात ये है कि सहयोगियों से पूरा सहयोग तो लेंगे, लेकिन जनता को अहसास नहीं होने देंगे.
स्वार्थ के लिए विपक्ष ने हाथ मिलाया: मोदी
पीएम मोदी का दावा है कि उनके काम से परेशान होकर विपक्षी दलों ने 'गैंग' बना लिया है. लेकिन हकीकत यही है कि जिन राज्यों में विपक्ष का गठबंधन है, वहां बीजेपी भी अकेले नहीं, गठबंधन बनाकर मुकाबला करेगी.
तो एक गठबंधन अपवित्र और मौकापरस्त हुआ, तो दूसरा पवित्र कैसे रह पाएगा?
BJP के 'पवित्र' गठबंधन के नियम
- बीजेपी के गठबंधन के नियम अलग हैं. जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ मिलकर बीजेपी ने सरकार चलाई, बाद में इसे अपवित्र करार देते हुए पार्टी सरकार से निकल गई.
- बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ गठबंधन हुआ. जेडीयू और आरजेडी ने बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा था, पर मौका मिलते ही बीजेपी ने नीतीश कुमार से हाथ मिला लिया.
- आंध्र प्रदेश की टीडीपी को 4 साल तक एनडीए में रखा गया, लेकिन जब चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए से हटने का ऐलान किया, तो उन्हें मौकापरस्त करार दे दिया गया.
(एनडीए) गठबंधन Vs विपक्ष का ‘अपवित्र-स्वार्थी’ गठबंधन
उत्तर भारत में बीजेपी को 2014 में जोरदार सफलता मिली थी और इस बार भी उसकी उम्मीदें कामयाबी दोहराने पर ही टिकी हैं. यूपी और बिहार में पहले बड़े दल अलग-अलग लड़े थे, लेकिन अब विपक्ष भी गठबंधन बनाकर मोदी के विजयरथ को रोकने की तैयारी कर रहा है.
कहां कहां बीजेपी गठबंधन और कांग्रेस गठबंधन के बीच मुकाबला है?
उत्तर प्रदेश (80 लोकसभा सीट)
विपक्षी गठबंधन- 3 पार्टियों का गठजोड़
- मायावती की बीएसपी
- अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी
- अजित सिंह का राष्ट्रीय लोकदल
- कांग्रेस (संभावित)
बीजेपी (एनडीए) गठबंधन ( 3 पार्टियां)
- बीजेपी
- अपना दल
- भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी (बीएएसएसपी)
महाराष्ट्र (48 लोकसभा सीट)
बीजेपी (एनडीए) गठबंधन- (3 पार्टियां)
- बीजेपी
- शिवसेना
- रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी
विपक्षी गठबंधन- (4 पार्टियां)
- कांग्रेस
- एनसीपी
- राजू शेट्टी का स्वाभिमान पक्ष
- प्रकाश अंबेडकर वाली रिपब्लिकन पार्टी
बीजेपी के लिए गठबंधन के तौर पर सबसे बड़ा सिरदर्द बिहार ही है. यहां उसे 3 सहयोगियों के साथ सीटों का बंटवारा करना पड़ेगा. नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा पूरा जोर लगाए हुए हैं.
बिहार (40 लोकसभा सीट)
बीजेपी (एनडीए) गठबंधन- (4 पार्टियां)
- बीजेपी
- जेडीयू
- एलजेपी
- आरएलएसपी
विपक्षी गठबंधन- (3 पार्टियां)
- राष्ट्रीय जनता दल
- कांग्रेस
- जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम पार्टी
पंजाब (14 लोकसभा सीट)
बीजेपी (एनडीए) गठबंधन- (2 पार्टियां)
- शिरोमणि अकाली दल
- बीजेपी (जूनियर पार्टनर)
विपक्षी गठबंधन
कांग्रेस अकेले चुनाव मैदान में
बाकी राज्य, जहां कांग्रेस और बीजेपी दोनों कमजोर
- तमिलनाडु- कांग्रेस और बीजेपी दोनों अलग-अलग गठबंधन का हिस्सा
- तेलंगाना- तेलुगूदेशम, कांग्रेस और लेफ्ट मिलकर टीआरएस से मुकाबला करेंगे.
- कर्नाटक- बीजेपी अकेले लड़ेगी. लेकिन कांग्रेस और जनता दल का गठबंधन होगा.
- केरल- लेफ्ट और कांग्रेस के यूडीएफ गठबंधन के बीच मुकाबला
- पश्चिम बंगाल, ओडिशा में सभी पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी
- पूर्वोत्तर राज्य- बीजेपी और कांग्रेस ने अलग-अलग क्षेत्रीय दलों से गठजोड़
लेकिन 8 राज्य ऐसे हैं जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच करीब-करीब सीधा मुकाबला है. यहां तीसरी पार्टी का वजूद बहुत कम है.
कांग्रेस और बीजेपी में सीधे मुकाबले वाले राज्य
- हरियाणा (10 सीट)
- हिमाचल प्रदेश (4 सीट)
- उत्तराखंड (5 सीट)
- असम (14 सीट)
- मध्य प्रदेश (29 सीट)
- राजस्थान (25 सीट)
- छत्तीसगढ़ (11 सीट)
- गुजरात (26 सीट)
बीजेपी गठबंधन करना चाहती है, तो दिखाना क्यों नहीं चाहती?
लोकसभा की करीब 300 सीटों पर दो गठबंधनों के बीच ही मुकाबला होगा. जबकि आठ राज्य (140 सीटें) ही ऐसी होंगी जहां बीजेपी और कांग्रेस सीधे आमने-सामने होंगे.
बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए में करीब 10 बड़े क्षेत्रीय दल और 8 छोटे दल मिलाकर तकरीबन 20 दल हैं, जबकि मुकाबले में जो विपक्षी गठबंधन तैयार हो रहा है, उसमें कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होगी. लेकिन उसमें भी करीब 20 पार्टियां हो सकती हैं.
फर्क बस यही है कि बीजेपी अपने गठबंधन की बहुत बड़ी पार्टी लग रही है, जबकि कांग्रेस अपने गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी तो रहेगी, पर बीजेपी जैसी बड़ी संख्या से दूर ही रहेगी.
कैसे तय होगा कि कौन सा गठबंधन अवसरवादी और स्वार्थी है?
लॉजिक से कहा जाए तो सवाल वाजिब है. अगर दो गठबंधनों के बीच मुकाबला है, तो उनमें एक 'पवित्र' और दूसरा 'अपवित्र' किस आधार पर है? 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार के खिलाफ उतरने वाला विरोधी दलों का समूह 'स्वार्थी', 'मौकापरस्त' और 'अपवित्र' कैसे हो गया?
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