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कश्मीर के मुद्दे पर नवाज शरीफ और पाकिस्तानी आर्मी साथ-साथ

जानिए, आखिर नरेंद्र मोदी से अच्छे रिश्ते कायम करने वाले नवाज़ शरीफ ने कश्मीर में इस तरह का कड़ा रुख क्यों अपनाया?

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पाकिस्तान ने कश्मीर में चरमपंथी, अलगाववादी और कथित आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद पैदा हुए हालात को काबू करने के लिए भारतीय सुरक्षा बलों की ओर से उठाए गए कदमों का विरोध किया. विरोध में 20 जुलाई को पाक ने काला दिवस मनाया. लेकिन कुछ रैलियों को छोड़कर पाकिस्तानी अावाम में इसे लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखा.

हाफिज सईद और दक्षिणपंथी जमात-ए-इस्लामी के नेताओं की उग्र बयानबाजियों का भी कोई खास असर नहीं हुआ. हां, पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर बार-बार नवाज शरीफ की क्लीपिंग्स जरूर दिखाई गईं, जिनमें वह कश्मीरियों को आत्मनिर्णय के अधिकार से वंचित करने के लिए भारत को आड़े हाथ लेते दिखे.

उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील भी की कि वह भारत पर कश्मीरियों का मानवाधिकार सुनिश्चित करने का दबाव डालें.

पर आखिर नरेंद्र मोदी से अच्छे रिश्ते कायम करने वाले नवाज शरीफ ने कश्मीर में इस तरह का कड़ा रुख क्यों अपनाया? क्या यह पाक अधिकृत कश्मीर के विधानसभा चुनावों में वोट हासिल करने के लिए था. या फिर इसके लिए आर्मी का दबाव था. क्या यह राजनीतिक तौर पर सबसे प्रभावशाली और अपनी राजनीतिक जमीन पंजाब के दक्षिणपंथी धार्मिक समर्थकों को खुश करने की उनकी कोशिश थी.

शरीफ के रुख के पीछे इन सभी वजहों का थोड़ा-थोड़ा हाथ हो सकता है, लेकिन निजी तौर पर कश्मीर के मामले में उनका रुख हमेशा कट्टर ही रहा है. अब तक के राजनीतिक करियर में उन्होंने कश्मीर के प्रति इसी रुख को जाहिर किया है. कश्मीर के मामले में शरीफ और आर्मी के रुख में कोई अंतर नहीं है. यह कोई बढ़ा-चढ़ा कर कही जाने वाली बात भी नहीं है.

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नवाज के लिए बड़ा मौका

बुरहान की मौत ने नवाज शरीफ को अपनी कश्मीरी प्रतिबद्धता और रुझान जाहिर करने का मौका दे दिया. 9 जुलाई को लंदन से ओपन हार्ट सर्जरी करवाकर लौटने के एक दिन बाद ही उन्होंने बयान दिया कि बुरहान की मौत से वह सदमे में हैं.

उन्होंने बुरहान की मौत का विरोध करने सड़कों पर उतरे कश्मीरियों के खिलाफ भारतीय सुरक्षा बल की कार्रवाइयों को गैरकानूनी करार देते हुए इन्हें रोकने की अपील की.

नवाज ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र से अपील की कि वे कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार सुनिश्चित कराएं और भारत के मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिए कहें.

इसके बाद, जाहिर है नवाज का इशारा मिलते ही पाकिस्तानी राजनयिक मशीनरी बेहद सक्रिय हो गई. इस्लामाबद में तैनात विदेशी राजनयिकों को कश्मीर की स्थिति के बारे में बताया गया. शरीफ के विदेश नीति सलाहकार सरताज अजीज ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव और ओआईसी (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन) को यह कहते हुए चिट्ठी भी लिखी कि जम्मू-कश्मीर का मुद्दा दक्षिण एशिया में तनाव का एक लगातार कारण बना हुआ है. साथ ही यह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए भी चुनौती बन गया है.

पाकिस्तान का गेम प्लान

पाकिस्तान की लगातार यह कोशिश है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीर मुद्दे पर दखल दे, लेकिन कोई देश इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता. पाकिस्तान के दबाव में ओआईसी ने कश्मीरियों के मुद्दे पर भले ही कड़ा बयान जारी किया हो, लेकिन किसी भी इस्लामी देश ने अलग से इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाया. दरअसल कोई भी भारत से रिश्ते नहीं बिगाड़ना चाहता.

पाकिस्तान को जितनी उम्मीद थी उतना सहयोग नहीं मिला, लेकिन इससे शरीफ और आर्मी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. आर्मी के कोर कमांडरों की बैठक में तो बुरहान वानी की मौत पर चर्चा हुई और आर्मी चीफ राहिल शरीफ ने मासूम कश्मीरियों की मौत की निंदा की.

जाहिर है उधर कश्मीरियों को यह संदेश भी गया होगा कि वे विरोध जारी रखें. घाटी में बुरहान वानी की मौत से गुस्सा है. यह इसलिए कि उसने वहां कम उम्र में ही सोशल मीडिया के बेहतरीन इस्तेमाल से नायक जैसी छवि बना ली थी. लेकिन यह भरोसा करना मुश्किल है कि कश्मीर का मौजूदा आंदोलन स्थानीय है और उसे बाहरी तत्वों का समर्थन नहीं मिल रहा है.

यह बिल्कुल गलत है कि कश्मीर का यह आंदोलन भीतर से ही खड़ा हुआ है. यह सब बंदूक के दम पर पाकिस्तान का किया-धरा है. हाफिज के बयान से यह साबित हो गया है, जिसने दो-तीन पहले ही बड़े गर्व के साथ यह ऐलान किया था कि कुछ समय पहले बुरहान वानी से उसकी बात हुई थी.

वानी ने उससे कहा था कि घाटी में उसने काफी काम कर लिया है और अब उसकी ख्वाहिश शहादत पाने की है. यह भी कोई रहस्य नहीं है कि हाफिज सईद और लश्कर-ए-तैयबा पाकिस्तानी जनरलों के इशारों पर काम करते हैं और उनके संदेश आईएसआई के जरिये आतंकियों तक पहुंचते हैं.

स्नैपशॉट

इसे पाकिस्तान का विश्वासघात न कहा जाए?

  • बुरहान वानी की मौत पर शरीफ के बयान पर अचरज नहीं.
  • नवाज कश्मीर पर शुरू से हार्डलाइनर रहे हैं.
  • पाकिस्तान की कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों से अपील जाहिर करता है कि वह घाटी में किस कदर उन्माद को भड़काने में लगा है.
  • पाकिस्तान का दावा है कि कश्मीरियों का संघर्ष अंदरुनी है, लेकिन इसमें पाकिस्तान का रोल छिपा नहीं है. हाफिज का बुरहानी वानी पर दिए गए बयान से इसकी पोल खुल गई है.
  • कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के रुख में विरोधाभास साफ दिखता है. भारत की सहयोग नीति से दोनों देशों के रिश्तों पर सीधा असर पड़ता है.
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नवाज शरीफ की दुविधा

नवाज शरीफ कश्मीर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और भारत के साथ सहयोग के प्रगतिशील रवैये में कोई विरोधाभास नहीं मानते. वह यह मानते हैं कि भारत के साथ खुला व्यापार किए बगैर पाकिस्तान की इकोनॉमी में स्थिरता नहीं आ सकती. इसलिए वह एक ऐसी नीति पर चलने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें एक तरफ कश्मीर में आतंकवाद का समर्थन किया जाए और दूसरी ओर भारत से दूसरे क्षेत्रों में सहयोग किया जाए.

नवाज यह दावा करते हैं कि वह कश्मीरियों का सिर्फ राजनीतिक, कूटनीतिक और नैतिक समर्थन करते हैं, लेकिन यह भी सच है कि पंजाब स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की कश्मीर में गतिविधियों से उन्हें पूरी सहानुभूति है.

यहां इस संदर्भ में यह याद करना जरूरी है कि 1990 में जब वह पंजाब के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने हर साल कश्मीर दिवस मनाने की मांग की थी. यह जम्मू-कश्मीर में अशांति भड़काने की शुरुआत थी.

नवाज की इस मांग को बेनजीर ने पूरा किया और अब हर साल 5 फरवरी को कश्मीर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए पाकिस्तानी जनता राष्ट्रीय छुट्टी मनाती है. वास्तव में अगर मुशर्रफ का कारगिल अभियान सफल हो जाता, तो नवाज कहते कि इस सफलता के जनक वहीं हैं.

(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव (वेस्ट) रहे हैं. उनसे ट्विटर हैंडल @VivekKatju पर संपर्क किया जा सकता है.)

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