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क्या नई संसद में होगा ‘BJP का राज’? परिसीमन का मिलेगा बड़ा फायदा

नई लोकसभा में 888 सांसद होंगे, उत्तर प्रदेश के सांसदों की संख्या सबसे अधिक होगी, फिर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के

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संसद की नई इमारत के शिलान्यास और नई एनेक्सी में सीटों की संख्या के बढ़ने पर चर्चा छिड़ी है. ये सब 2026 में लोकसभा के ‘डीलिमिटेशन’ (परिसीमन) की ही तैयारी है.

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इस नई इमारत में 888 लोकसभा सांसदों के बैठने की व्यवस्था होगी जोकि मौजूदा संख्या से 345 अधिक है.

इस संख्या तक कैसे पहुंचे? भई, ये कोई रॉकेट साइंस नहीं है. जैसा कि नियम कहते हैं, हर 10 लाख की आबादी पर 1 सांसद होना चाहिए. 2019 के आम चुनावों में लगभग 88 करोड़ वोटर थे. इसका मतलब है कि उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए 888 सांसद होने चाहिए.

परिसीमन क्या होता है और फिर से इसकी जरूरत क्यों है

दरअसल परिसीमन का मतलब है, लोकसभा और विधानसभाओं की सीमाओं को फिर से सीमांकित करना, ताकि आबादी में होने वाले बदलावों को सही तरीके से प्रतिनिधित्व मिल सके.

संविधान के अनुच्छेद 81 के अनुसार, लोकसभा के संयोजन में आबादी में होने वाले बदलाव नजर आने चाहिए.

हालांकि 1976 में जो डिलिमिटेशन किया गया था, उसका आधार 1971 की जनगणना थी, और उस समय सीटों की संख्या कमोबेश पहले जैसी ही थी.

राज्य की सीटों की संख्या और आबादी का अनुपात सभी राज्यों में लगभग एक सा होना चाहिए. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि हर राज्य को एक बराबर प्रतिनिधित्व मिले.

हां, 60 लाख से कम आबादी वाले छोटे राज्यों को इस नियम से छूट दी जाती है. हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश को कम से कम एक सीट आवंटित है, भले ही उसकी जनसंख्या कितनी भी हो. उदाहरण के लिए लक्षद्वीप की आबादी एक लाख से कम है लेकिन संसद में वहां से एक लोकसभा सांसद है.

दक्षिण के राज्यों में परिवार नियोजन को बढ़ावा दिया गया है. लेकिन ये सुनिश्चित करने के लिए कि उन्हें कम सीटें न मिलें, 2001 तक वहां परिसीमन का काम इस आधार पर रोक दिया गया कि देश में 2026 तक आबादी की एक समान वृद्धि दर हासिल कर ली जाएगी.
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नई लोकसभा कैसी होगी

नई लोकसभा में 888 सांसद होंगे. उत्तर प्रदेश के सांसदों की संख्या तब भी सबसे अधिक होगी- 143. इसके बाद महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल का स्थान आता है. पूर्वोत्तर के राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के सांसदों की संख्या में इजाफा नहीं होगा.

जिन 10 राज्यों के सांसदों में सबसे अधिक बढ़ोतरी होगी, वे हैं, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात और तेलंगाना.सांसदों की संख्या में जो बढ़ोतरी होगी, उसका लगभग 80 प्रतिशत तो इन्हीं 10 राज्यों में बढ़ेगा.
नई लोकसभा में 888 सांसद होंगे, उत्तर प्रदेश के सांसदों की संख्या सबसे अधिक होगी, फिर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के

लोकसभा का क्षेत्रवार सीट वितरण

परिसीमन के बाद नई लोकसभा का क्षेत्रवार विश्लेषण बताता है कि दक्षिण (-1.9 प्रतिशत) और पूर्वोत्तर (-1.1 प्रतिशत) के प्रतिनिधित्व में गिरावट होगी. वर्तमान लोकसभा में उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व 27.8 प्रतिशत है, और उसके प्रतिनिधित्व में 1.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी. डिलिमिटेशन के बाद नई लोकसभा में उसका हिस्सा 29.4 प्रतिशत होगा.

इसी तरह पूर्वी भारत (+0.5 प्रतिशत), पश्चिमी भारत (+0.5 प्रतिशत) और मध्य भारत (+0.5 प्रतिशत) को भी उच्च प्रतिनिधित्व मिलेगा. बीजेपी फिलहाल उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत में बहुत मजबूत है, और दक्षिण में कमजोर.

नई लोकसभा में 888 सांसद होंगे, उत्तर प्रदेश के सांसदों की संख्या सबसे अधिक होगी, फिर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के
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अगर परिसीमन अभी किया जाए तो मौजूदा लोकसभा कैसी होगी

अगर बीजेपी, कांग्रेस और अन्य की सीटों की मौजूदा संख्या के हिसाब से नई लोकसभा की सीटों का आकलन किया जाए तो बीजेपी के 515 सांसद होंगे. कांग्रेस के 75 और क्षेत्रीय दलों एवं स्वतंत्र के 296 सांसद.

राज्यों के क्षेत्रीय संयोजन में बदलाव के बाद उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बढ़ेगी, जहां बीजेपी मजबूत है. संसद के निचले सदन में इस समय बीजेपी सांसदों का हिस्सा 55.8 प्रतिशत है जोकि नई लोकसभा (परिसीमन के बाद) में बढ़कर 58.1 प्रतिशत हो जाएगा.

लेकिन कांग्रेस का हिस्सा 9.6 प्रतिशत से घटकर 8.5 प्रतिशत हो जाएगा- क्योंकि फिलहाल, उसके आधे से ज्यादा सांसद दक्षिणी राज्यों से जीतकर आए हैं. क्षेत्रीय दलों की संख्या भी गिर जाएगी, क्योंकि उनके भी लगभग 40 प्रतिशत सांसद दक्षिण भारत से चुने गए हैं.
नई लोकसभा में 888 सांसद होंगे, उत्तर प्रदेश के सांसदों की संख्या सबसे अधिक होगी, फिर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के
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प्रतिनिधित्व में क्षेत्रीय असमानता- उत्तर भारत को ही फायदा क्यों

वैसे परिसीमन में अभी समय है. बाकी, 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 2026 के बाद होने वाली जनगणना, जोकि 2031 में होगी, तक लागू रहेगी, बशर्ते उसमें संशोधन कर दिया जाए या जनगणना पहले कर ली जाए.

हालांकि प्रतिनिधित्व में जो क्षेत्रीय अंतर है, वह बताता है कि उत्तर भारत को सबसे ज्यादा फायदा हो सकता है, और दक्षिण भारत को नुकसान.

वैसे राजनीति में 11 साल काफी लंबा समय होता है. बीजेपी अपना प्रभुत्व कायम रख पाती है या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. पर अगर मौजूदा रुझानों के हिसाब से देखें तो ऐसा लगता है कि इस परिसीमन का सबसे ज्यादा फायदा उसे ही होने वाला है. निचले सदन में उसी के सांसदों की संख्या बढ़ने वाली है.

(लेखक स्वतंत्र पॉलिटिकल कमेंटेटर हैं. उनका ट्विटर हैंडल @politicalbaaba है. यह एक ओपिनियन लेख है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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