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अगले 10 दिनों में हो सकती है भारत-पाक संबंधों में प्रगति

पठानकोट हमले की जांच में पाक से ज्यादा उम्मीद करना ठीक नहीं है.

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इस साल जनवरी के तीसरे सप्ताह के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पेरिस में थे. इस दौरान भारतीय पक्ष ने पाकिस्तान से चुपचाप इस बात की जानकारी ली क्या उसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जनरल नसीर जंजुआ पेरिस में डोभाल से मिलना चाहेंगे. पाकिस्तान ने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया. कहा गया कि एक और एनएसए स्तर की वार्ता के लिए वह अभी तैयार नहीं है. इससे भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत को लेकर तस्वीरें साफ हो जाती हैं.

एनएसए स्तर की बातचीत को शुरू करने को लेकर पाकिस्तान का रुख ठंडा दिखता है. यह एनएसए स्तर की वार्ता के लेकर भारत के उत्साही रवैये से बिल्कुल उलट है. पाकिस्तान ने अपनी जमीन को भारत के खिलाफ इस्तेमाल न होने देने के जो अनगिनत वादे किए गए हैं उन्हें पूरा करने के लिए उस पर जबरदस्त अंतरराष्ट्रीय दबाव है. ऐसे वादे किसी और ने नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने किए थे. शरीफ ने ऑन रिकार्ड यह माना था कि पठानकोट हमले ने भारत-पाकिस्तान शांति पर नकारात्मक असर डाला है. इसके बावजूद भारत-पाक रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए उनकी ओर से सिर्फ बयानबाजी ही होती रही है.

कोई वादा तो नहीं लेकिन में रुख में थोड़ा बदलाव

अपने वादे को लेकर पाकिस्तान के संजीदा रुख का पता अगले सप्ताह चल जाएगा. अगर वह गंभीर होगा तो अगले दस दिन में भारत-पाकिस्तान रिश्तों की कहानी कुछ कदम आगे बढ़ती दिख सकती है.

पिछले सप्ताह भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने एक भारतीय टीवी चैनल को ऑन-रिकार्ड इंटरव्यू दिया. लेकिन उनकी बातों में कोई नई बात नहीं थी. अब तक उन्होंने जो वादे किए थे उन्हें पूरा करने के लिए कोई प्रतिबद्धता तो नहीं दिख रही थी लेकिन उनके रुख में कुछ बदलाव दिख रहे थे.

पाकिस्तानी होने के बावजूद बासित ने भारत विरोधी कोई घिसी-पिटी बात नहीं दोहराई. हालांकि उन्होंने किसी सवाल का साफ जवाब भी नहीं दिया. वैसे उन्हें इस बात का पूरा भरोसा था कि दोनों देशों के बीच विदेश सचिव स्तर की बातचीत होगी लेकिन इसके लिए उन्होंने कोई निश्चित समय सीमा बताने से इनकार किया.

उनके इस रुख से यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि इस तरह की मामलों में आखिरी फैसला पाकिस्तानी सेना का ही होता है. नवंबर, 2008 के मुंबई हमले और पाकिस्तान में मौजूद इसके षड्यंत्रकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने में नाकाम रहने के सवाल पर भी उनके रुख में थोड़ा सकारात्मक बदलाव दिखा.

बासित ने माना कि मुंबई हमले से जुड़े मामलों को दोनों देशों ने जिस तरह से हैंडिल किया, उसमें कुछ कमी रह गई थी. यह उन कुछ विरले मौकों में से एक था, जब पाकिस्तान ने अपनी नाकामियों को स्वीकार किया था (हालांकि इसमें उसने भारत की नाकामियों को भी शामिल कर लिया था).

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क्या पाक उच्चायुक्त मुंबई हमलों के संदिग्धों का बचाव कर रहे हैं?

पाक की जानी-पहचानी चालों में इस बार एक गौर करने वाला बदलाव भी दिखा. पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने यह बात मानी कि भारत और पाकिस्तान दोनों इस बार आपसी सहयोग को लेकर संजीदा हैं.

मुंबई हमलों की जांच और जकीउर्ररहमान लखवी की जमानत के सवाल उठाने पर उन्होंने समझौता एक्सप्रेस में बम विस्फोट के आरोपियों के खिलाफ मुकदमे और उनकी मौजूदा स्थिति का सवाल दाग किया.

जब उनसे कहा गया कि समझौता एक्सप्रेस में विस्फोट के सभी आरोपियों पर मुकदमा चल रहा है और वे जेल में हैं, जबकि मुंबई हमले के प्रमुख आरोपी और मास्टरमाइंड लखवी को जमानत दे दी गई. इस पर उनका जवाब था कि लखवी को छोड़ कर इस मामले के छह आरोपी अभी भी जेल में हैं. लखवी के खिलाफ अदालत में अब तक कुछ भी साबित नहीं हो सका है.

बासित ने मसूद अजहर की मौजूदा स्थिति से जुड़े सवालों से भी बचने और भागने की कोशिश की. उनसे पूछा गया कि क्या अब भी वह हिरासत में है. इस पर उन्होंने कहा कि वह इस मामले पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं कर सकते. हो सकता है कि वह पांचसितारा सुविधाओं के साथ किसी होटल में हो.

पठानकोट हमले में पाक की मदद से उम्मीद न करें

पाकिस्तान में आर्मी कैंट से महज कुछ दूरी पर ओसामा बिन लादेन की रिहाइश के सवाल पर बासित काफी असहज दिखे. पहली बार सार्वजनिक तौर पर उन्होंने यह माना कि यह पूरी तरह आईएसआई और सीआईए की नाकामी थी.

दोनों एजेंसियां यह पता करने में नाकाम रहीं कि ओसामा बिन लादेन यहां रह रहा है. बासित के इंटरव्यू से यह अंदाजा हो जाता है कि पठानकोट हमले की जांच में पाक से ज्यादा उम्मीद करना ठीक नहीं है.मसूद अजहर को आखिरकार छोड़ दिया जाएगा.

बासित से पूछा गया कि क्या पठानकोट हमले की जांच का हश्र भी मुंबई हमले की जांच की तरह होगा तो उन्होंने कहा कि साजिश रचने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पाकिस्तान को भारत से सबूत चाहिए.मुंबई हमले की साजिश रचने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाने के मामले में भी वह यही रुख अपनाता आया है.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा साबका एक ऐसे देश से है जहां अवाम की औकात वतन के एजेंटों से कम है. ये एजेंट भारत की देह में यहां-वहां हजारों चीरा लगाने में बेहद माहिर हैं. पाकिस्तान के असली मालिक सेना के जनरलों का एजेंडा भी यही है. राजीव शर्मा

(स्वतंत्र पत्रकार और सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं.)

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