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UPSC में तीनों टॉपर लड़कियां, उधर पढ़ाई की तमन्ना लिए दुनिया से चली गईं 3 बहनें!

अनगिनत लड़कियों के लिए शिक्षा किसी संघर्ष से कम नहीं हैं.

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ये अजीब विडंबना है कि जिस दिन मेरी नजर यूपीएससी 2021 के रिजल्ट और तीन टॉपर लड़कियों पर पड़ी, उसी दिन मेरी नजर जयपुर से कुछ किलोमीटर दूर तीन बहनों की एक खबर पर भी पड़ी. जयपुर से करीब 60 किमी दूर दूदू जिले में 28 मई को एक कुएं से दो बच्चों के साथ तीन बहनों का शव बरामद हुआ.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, तीनों बहनों को ससुराल में दहेज के लिए परेशान किया जाता था और पढ़ने को लेकर ताने दिए जाते थे. तीनों पढ़ने में अच्छी थीं, लेकिन ससुराल वालों ने उन्हें आगे पढ़ने नहीं दिया, ऐसा आरोप है.

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वहीं, इसी दिन आए केंद्रीय लोक सेवा आयोग (UPSC) के रिजल्ट में लड़कियों ने बाजी मारकर इतिहास रच दिया. UPSC परीक्षाओं में टॉप 3 लड़कियां ही रहीं — पहले पर श्रुति शर्मा, दूसरे पर अंकिता अग्रवाल और तीसरे पर गामिनी सिंगला.

ये दोनों खबरें इस एक देश की ही हकीकत बयां कर रही हैं. जहां एक ओर देश के टॉप परीक्षाओं में लड़कियां बाजी मार रही हैं, तो वहीं कहीं हालात ऐसे भी हैं जहां लड़कियां आज भी शिक्षा से वंचित हैं या पढ़ाई के लिए उनके सामने तमाम चुनौतियां हैं.

लड़कियों को पढ़ने से रोक कर हम अपना नुकसान कर रहे

इस साल आए कुछ बोर्डस के नतीजों को देखिए. मध्य प्रदेश की 10वीं बोर्ड परीक्षाओं में लड़कियों ने बाजी मारी है. बिहार 10वीं बोर्ड परीक्षाओं में भी रमायनी रॉय टॉपर रहीं. हाल ही में आए राजस्थान 12वीं साइंस और कॉमर्स रिजल्ट में भी लड़कियों का पासिंग प्रतिशत लड़कों से ज्यादा है.

और सिर्फ इसी बार नहीं, पिछले कई सालों के बोर्ड के नतीजे उठा के देख लीजिए, लड़कियां ज्यादातर लड़कों से आगे ही रही हैं. लेकिन बावजूद इसके आज भी शिक्षा के रास्ते में लड़कियों के सामने अनगिनत चुनौतियां खड़ी हैं.

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पढ़ाई में लड़कियों के सामने चुनौती, इसके बावजूद आ रही हैं अव्वल

इस देश में लड़की होना आसान नहीं है. घर से लेकर सड़कों तक लड़कियां अपने अधिकारों के लिए रोजाना एक संघर्ष करती हैं. पढ़ना भी अनगिनत लड़कियों के लिए किसी संघर्ष से कम नहीं हैं.

इसमें कोई दोराय नहीं है कि समाज लड़कियों के प्रति भेदभाव रखता है. सड़कों से लेकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट तक लड़कियों के लिए सेफ नहीं है.

सेफ पब्लिक प्लेस का न होना लड़कियों की पढ़ाई में सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. सड़क पर चलना या देर रात बस लेना शायद एक लड़के के लिए आसान है, कि उसे अपनी सुरक्षा की इस कदर चिंता नहीं होगी, जितना एक लड़की को घर के बाहर कदम रखते वक्त करनी पड़ती है. आप आसपास नजर दौड़ा लीजिए, बड़े शहरों को छोड़ दें तो ज्यादातर जगहों पर रात 10 बजे के बाद लड़कियां या महिलाएं सार्वजनिक जगहों पर नजर नहीं आतीं.

इसके अलावा, घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ भी लड़कियों की शिक्षा में सालों से आड़े आता रहा है. घर पर माता-पिता का हाथ बांटने या कम उम्र में शादी हो जाने से कई लड़कियां हाईस्कूल भी नहीं पास कर पाती हैं.

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मिर्जापुर में 22 किमी पैदल जाकर पढ़ने जाती हैं लड़कियां

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के हलिया एक आदिवासी बहुल इलाका है, जहां पक्की सड़क नहीं होने से लड़कियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. मतवार न्याय पंचायत में लड़कियों को 8वीं के बाद पढ़ाई करने के लिए करीब 22 किमी का सफर तय करके हलिया ब्लॉक जाना पड़ता है. लड़कियां जंगल के रास्ते स्कूल जाने को मजबूर हैं. सुबह 9 बजे की घर से निकली लड़कियां रात 9 बजे घर पहुंचती हैं, जिससे घबराए अभिभावक उनसे पढ़ाई छोड़ने के लिए कह रहे हैं.

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UNICEF का U-रिपोर्ट पोल 2022 बताता है कि देश भर में स्कूलों से लड़कियों की ड्रॉपआउट (स्कूल छोड़ना) दर में वृद्धि चिंताजनक है. इस पोल में जवाब देने वाले 38% लोगों का कहना था कि वो कम से कम एक ऐसी लड़की को जानते हैं, जिसने स्कूल छोड़ा हो.

इन तमाम चुनौतियों को पार कर भी अगर इस देश की लड़कियां पढ़ रही हैं, परीक्षाओं में अव्वल आ रही हैं, तो एक देश के तौर पर ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें आगे बढ़ने के वो तमाम मौके दें, जिसकी वो हकदार हैं. सिर्फ 'शिक्षा का अधिकार' कानून ला कर हम अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते.

अगर हम आज भी उन्हें पढ़ने से मना कर रहे हैं, तो अपने देश और समाज का ही नुकसान कर रहे हैं.

लड़कियों को शिक्षा से दूर रखना न सिर्फ उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि ये इस देश को तरक्की की राह पर ले जाने से रोकना होगा. इस जुर्म को रोकना जरूरी है.

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