ADVERTISEMENTREMOVE AD

गुजरात चुनाव का नतीजा क्‍या ड्रॉ की ओर बढ़ता नजर आ रहा है?

गुजरात चुनाव में अभी तक कोई हीरो नहीं दिखा है. क्या मौजूदा हीरो की चमक फीकी पड़ गई है?

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

1974 में जब रमेश सिप्पी शोले बना रहे थे, तब किशोर कुमार ने भी एक फिल्म बनाई थी, जिसका नाम था बढ़ती का नाम गाड़ी. इस फिल्म में आईएस जौहर ने एक अमीर पारसी का किरदार निभाया था, जो सबसे लंबी दाढ़ी रखने वाले शख्स को 10 लाख रुपये (आज के 100 करोड़ रुपये के बराबर) देने का फैसला करता है.

किशोर कुमार ने इस फिल्म को ख्यालों की भेलपुरी बताया था. इसमें उन्होंने ऐसी दुनिया दिखाई थी, जो पागल हो गई है. फिल्म हास्यास्पद और हंसी से लोटपोट करने वाली थी, लेकिन किशोर कुमार की अधिकतर निर्देशित फिल्मों की तरह यह भी बॉक्स ऑफिस पर पिट गई.

ये भी पढ़ें- गुजरात चुनाव नतीजों से पहले न्यूज चैनलों में क्या चलेगा

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इसमें एक गाना था, हूं कौन छूं, माने खबर न थी. इसे आईएस जौहर, सुंदर, भगवान और मारुति ने गाया था. ये चारों उस दौर के जाने-माने कॉमेडियन थे. आप इस गाने को यूट्यूब पर देख सकते हैं.

इस फिल्म का खयाल मेरे मन में गुजरात विधानसभा चुनाव की वजह से आया. यह चुनाव किशोर कुमार की इस फिल्म से कहीं ज्यादा हास्यास्पद हो गया है. नेता चुनाव में जो मुद्दे चुन रहे हैं और एक दूसरे को जिस तरह से जवाब दे रहे हैं, अगर किशोर कुमार उसे देख लेते तो ईर्ष्या किए बगैर न रह पाते.

बेतुकेपन की हद

जरा देखिए गुजरात में क्या हो रहा है. पटेल जैसी ‘फॉरवर्ड’ कम्युनिटी आरक्षण की मांग कर रही है. इसके 24 साल के लीडर कह रहे हैं कि इसमें संविधान कोई बाधा नहीं है. कांग्रेस अचानक से हिंदू पार्टी में बदल गई है, जो जरूरत पड़ने पर मुख्यमंत्री पद के लिए शायद किसी मुस्लिम को भी चुन सकती है. इसके नेता राहुल गांधी जनेऊधारी हिंदू बन गए हैं, जबकि उन्हें दलितों और आदिवासियों से खुद को जोड़ना चाहिए था.

किशोर कुमार की फिल्म में केएन सिंह ने खलनायक का रोल निभाया था. गुजरात चुनाव में यह काम बीजेपी कर रही है. फिल्म में केएन सिंह ने एक आइटम सॉन्ग किया था. वह इसमें कमर तक लटकती नकली दाढ़ी लगाकर एक नदी के किनारे पांच लड़कियों को रिझाने की कोशिश करते हैं. अगर आपने फिल्म नहीं देखी है, तो शायद ही आपको केएन सिंह के आइटम सॉन्ग करने पर यकीन होगा. गुजरात चुनाव में बीजेपी भी आइटम सॉन्ग कर रही है.

फिल्म के हीरो किशोर कुमार हैं. दिलचस्प बात यह है कि गुजरात चुनाव में अभी तक कोई हीरो नहीं दिखा है. या ये कहें कि जो चुनाव जीतेगा, वही हीरो कहलाएगा? 18 दिसंबर को इस सवाल का जवाब हमें मिल जाएगा.

BJP 95, अन्य 87?

किशोर कुमार की फिल्म की तरह ही चुनाव में असल मुद्दों को जान-बूझकर पीछे धकेल दिया गया है. गुजरात में बीजेपी के पिछले और इस बार के कैंपेन में यह सबसे बड़ा फर्क है. पिछले कैंपेन में उसका ध्यान गवर्नेंस पर हुआ करता था, इस बार पार्टी आइडेंटिटी पर फोकस कर रही है. यह बात हैरान करने वाली है क्योंकि गुजराती वोटर जाति और धर्म से ज्यादा भौतिक चीजों की परवाह करता है.

बीजेपी की इस रणनीति की वजह शायद यूपी में हिंदुत्व को मुद्दा बनाने से मिली ऐतिहासिक जीत है या दिल्ली और 2015 में बिहार में विकास केंद्रित चुनाव प्रचार के बाद पार्टी की हार का इससे लेना-देना है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
वजह जो भी हो, एक बात साफ है कि बीजेपी अपने कोर मेसेज की तरफ लौट गई है. वह यह कह रही है कि अगर आप अच्छे गुजराती हैं, तो बीजेपी को वोट दीजिए, क्योंकि बुरे गुजराती ही कांग्रेस के लिए वोट करते हैं.

दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी का जोर अच्छे गुजराती पर है, न कि अच्छे हिंदू पर. अच्छी-खासी जमीन रखने वाला पटेल समुदाय कभी बीजेपी का कोर समर्थक हुआ करता था. उनका क्या? यहां चौधरी चरण सिंह की याद आती है.

राजनीति में कोई हमारा दोस्त या दुश्मन नहीं होता

यूपी में खेती-किसानी करने वाला जाट समुदाय कभी कांग्रेस का समर्थक हुआ करता था, लेकिन 1960 के दशक के मध्य में 1965 और 1966 के सूखे के बाद उसने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था और वह चरण सिंह के साथ हो लिया था. राजनीति में कोई भी स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, सिर्फ आपके स्थायी हित होते हैं. धर्म से पहले आमदनी आती है.

अगर आप लोगों से उसकी कमाई छीनेंगे, तो आफत को न्योता देंगे. गुजरात में यही हो रहा है. खेती से कमाई घटने से पटेलों की जेब पर चोट पड़ी है. जीएसटी को जिस हास्यास्पद तरीके से लागू किया गया, उससे छोटे और मझोले कारोबारियों की आमदनी पर बुरा असर पड़ा है.

बीजेपी गुजरात में 1995 से सत्ता में है. इसलिए उसे कुछ सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ रहा है. इस मामले में वह कुछ खास कर भी नहीं सकती. हालांकि, पिछले तीन साल में जो चीजें गलत हुई हैं, उसके लिए वह अपने अलावा किसी और को दोषी भी नहीं ठहरा सकती.

गुजरात में हालात संभालने के लिए मोदी कोच और नॉन-प्लेइंग कैप्टन बन गए. लेकिन जब पारी लड़खड़ा रही हो, तब मैदान पर टीम और कैप्टन का प्रदर्शन ही काम आता है. जब ऐसा नहीं होता, तब टेस्ट मैच की तरह ड्रॉ होता है. क्या गुजरात में यही होने जा रहा है? क्या बीजेपी को वहां 95 और अन्य को 87 सीटें मिलने जा रही हैं?

(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

ये भी पढ़ें- हर नतीजा कुछ कहता है- गुजरात के चुनाव से जुड़ी 5 अहम बातें

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×