हार्दिक पटेल के कथित वीडियो सामने आए हैं, जिनमें वो कमरे में महिला के साथ हैं. ये वीडियो ऐसे वक्त में आए हैं जब गुजरात में चुनावों का ऐलान हो चुका है.
हार्दिक पटेल पिछले दो सालों से गुजरात की बीजेपी सरकार से दो-दो हाथ कर रहे हैं. पटेल समुदाय बीजेपी से खासा नाराज है. ऐसे साफ संकेत मिल रहे हैं कि इस बार वो बीजेपी को हराने के लिये वोट करेंगे.
दो साल पहले बेरोजगारी से बेहाल पटेल समुदाय जब आरक्षण की मांग के लिये अहमदाबाद में जुटा तो पूरे देश में हंगामा मच गया.
एक 22 साल के लड़के की अगुवाई में गुजरात के इतिहास की सबसे बड़ी रैली हुई. आंदोलन को दबाने की कोशिश हुई, हिंसा और जेल का सहारा लिया गया.
सैकड़ों पटेल समुदाय के लड़कों, महिलाओं को घर में घुसकर जमकर पीटा गया और जेल की सलाखों के पीछे भेजा गया. हार्दिक के ऊपर देशद्रोह का मुकदमा लगा, उसे नौ महीने जेल मे रखा गया. जब वो जेल से बाहर आया तो छोटी सी उम्र में राष्ट्रीय नेता बन चुका था. उसकी अगुआई में बीजेपी का पारंपरिक वोट बैंक पाटीदार समुदाय बगावत का ऐलान कर चुका था.
आज वही हार्दिक कांग्रेस के साथ खड़ा दिखता है. बीजेपी के दिग्गजों की रातों की नींद उड़ी हुई है. आशंका जताई जा रही है कि बीजेपी चुनाव हार भी सकती है.
हार्दिक का वीडियो महज इत्तेफाक नहीं
यहां दो बेहद महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं.
पहला सवाल, क्या वीडियो में हार्दिक कहा जा रहा शख्स महिला के साथ कोई जोर जबरदस्ती कर रहा है? वीडियो इस बात की तस्दीक नहीं करता. कहीं इस बात का प्रमाण नहीं है कि महिला की रजामंदी के खिलाफ सेक्स की कोशिश की गई है. न ही लेख लिखे जाने तक किसी भी महिला ने इस बारे में कोई शिकायत दर्ज कराई है.
वीडियो से अभी यही लगता है कि दो वयस्क लोगों के बीच रजामंदी से संबंध बनाए गए. फिर हंगामा किस बात का है? क्या इस देश में रजामंदी से यौन संबंध गुनाह है?
हार्दिक एक बालिग लड़का है. वो अपनी मर्जी से किसी भी महिला के साथ आपसी सहमति से संबंध बनाने के लिए स्वतंत्र है. देश का संविधान और कानून उन्हें इसकी इजाजत देता है. ऐसे में इस वीडियो के आने के बाद टीवी चैनलों के एंकर क्यों उत्साहित दिखते हैं और हार्दिक को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास करते हैं.
ज्यादा से ज्यादा हार्दिक के माता-पिता को आपत्ति हो सकती है या फिर उसकी महिला मित्र को? बाकी किसी को इस बारे में फैसला न तो सुनाने का अधिकार है और न उसकी नैतिकता पर सवाल खड़े करने का हक है.
दूसरा सवालः सही मायनों में यह एक नागरिक की निजता का हनन है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों निजता यानी प्राइवेसी को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया. प्राइवेसी नये समाज का नया मूल्य है. हो सकता है भारतीय समाज अभी पश्चिम की तरह प्राइवेसी को एक सामाजिक मूल्य मानने को तैयार न हो पर नये समाज मे जिस तरह से तकनीक की दखलंदाजी बड़े पैमाने पर बढ़ी है और पिछले दिनों सरकारें जिस कदर नागरिकों और संस्थाओं की निजी बातों को सुनने को उत्सुक हुई हैं, और आधार स्कीम की आड़ में हर नागरिक की छोटी से छोटी जानकारी को इकट्ठा करने का उपक्रम हो रहा है, निजता की सुरक्षा में यह बड़ा सवाल है.
हार्दिक के मामले में या इस जैसे मामलों में किसी तरह का चोरी छिपे वीडियो बनाना एक अपराध है. फिर वो वीडियो भले ही सेक्स वीडियो ही क्यों न हो?
हार्दिक का वीडियो कहीं षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं?
इसके जरिए हार्दिक को कठघरे में खड़ा करने की जगह पुलिस में एक आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए. इस बात की पड़ताल की जानी चाहिये कि ये वीडियो किसने बनाया? ये क्या किसी एक व्यक्ति की खुराफात है या फिर इसके पीछे शातिर दिमाग है? वीडियो के पीछे शातिर दिमाग कौन है? वीडियो के पीछे जिनका हाथ है वो किस स्तर के लोग हैं? क्या साजिश करने वाले किसी पार्टी विशेष से जुड़े हैं? या किसी संवैधानिक पद पर बैठे हैं?
चुनाव के मौके पर ऐसे वीडियो आना, एक दो नहीं बल्कि आधा दर्जन. साथ ही इन वीडियो क्लिप का टीवी चैनलों तक पहुंच जाने से लगता है कि बड़े पैमाने पर और बहुत बड़े स्तर पर साजिश रची गई है और इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया है.
मुझे याद पड़ता है कई साल पहले इसी तरह का एक और वीडियो सामने आया था. बीजेपी के एक संगठन मंत्री संजय जोशी के एक वीडियो ने पार्टी के अंदर काफी हंगामा मचाया था. उसके राज अभी तक नहीं खुले हैं.
मैं ये पूरी जानकारी के आधार पर कह सकता हूं कि अध्यक्ष बनने के बाद नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह दोनों नेताओं ने संजय जोशी को पार्टी में लाने की भरसक कोशिश की. जब मैंने संजय जोशी से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि वो निर्दोष हैं, वीडियो झूठा है. वो आगे कभी इस षड्यंत्र और षड्यंत्र के पीछे के दिमाग का खुलासा करेंगे.
हार्दिक की तरह उनकी निजता का भी उल्लंघन हुआ था, अगर वो इस वीडियो में थे तो, और अगर नहीं थे तो वीडियो के जरिए उनका चरित्र हनन किया गया और उनके बढ़ते राजनीतिक जीवन को खत्म करने का प्रयास हुआ. इस वीडियो की आड़ में एक अत्यंत प्रभावशाली राजनीतिक करियर पर लंबा ग्रहण लग गया. तो क्या वीडियो के माध्यम से संजय जोशी की तरह हार्दिक पटेल का राजनीतिक जीवन भी खत्म करने का षड्यंत्र रचा गया है ? अलग-अलग पैमाने क्यों?
छत्तीसगढ़ के मंत्री पर भी लगा था आरोप
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के एक मंत्री का नाम एक वीडियो में आने की खबर आई. ये मंत्री राज्य के मुख्यमंत्री के खास माने जाते हैं. पर वीडियो पब्लिक में आए इसके पहले ही छत्तीसगढ़ पुलिस दिल्ली के करीब इंदिरापुरम पहुंच गई. रात के साढ़े तीन बजे एक वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा के घर जाकर गिरफ्तार किया गया. मीडिया के विरोध के बाद भी उनको जमानत नहीं मिली है और वो सलाखों के पीछे हैं.
विनोद वर्मा पर आरोप है कि वो वीडियो की सैकड़ों कॉपियां बनवाकर पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत को ब्लैकमेल कर रहे थे. ब्लैकमेल का कोई सबूत अभी तक सामने नहीं आया है.
विनोद वर्मा को जानने वाले कहते है कि वो एक निहायत ईमानदार पत्रकार हैं, बीबीसी लंदन में काम कर चुके हैं और उनका करियर बेदाग रहा है. इसी तरह बीजेपी के गुजरात वलसाड के सांसद केसी पटेल का भी वीडियो बनने की खबर आई थी.
सांसद महोदय ने पुलिस में की शिकायत में कहा कि हनीट्रैप कर उनका सेक्स वीडियो बना लिया गया है. पटेल की कोई मानहानि नहीं हुई. उलटे महिला को ही जेल की हवा खानी पड़ी. अब ऊपर के दो मामलों की तुलना करें.
सरकार ने चाहा तो वीडियो के षड़यंत्र में आनन-फानन में पुलिसिया कार्रवाई हुई और कथित नेताओं को बचाने के लिए गिरफ्तारियां भी हो गई . पर संजय जोशी मामले को सालों हो गये, कहीं कोई अपराधी सामने नहीं आया . हालांकि दबे छुपे सबको पता है षडयंत्र के पीछे कौन था. यही हश्र हार्दिक के मामले का भी होगा.
दोष किसको दें? राजनीति को या फिर समाज को?
राजनीति तो है ही दुराचारिणी. उससे नैतिकता की उम्मीद करना मूर्खता है. पर मैं ये जरूर कहना चाहूंगा कि भारतीय राजनीति में विरोधी को गिराने के लिये सेक्स वीडियो का चलन पिछले दिनों ही काफी प्रमुख हो चला है. टीवी की टीआरपी दौड़ भी इसके लिये काफी जिम्मेदार है पर उससे ज्यादा जिम्मेदार है हर हालत में विपक्षी को कुचल देने की मानसिकता.
ये मानसिकता न तो निजता के सिद्धांत का ख्याल रखती है और न ही उसका लोकतंत्र में कोई यकीन है. इसके अलावा एक और सवाल समाज के दोहरे चरित्र का भी है.
सेक्स हमेशा से ही समाज की हिप्पोक्रेसी को टेस्ट करने की कसौटी रहा है. इसके लिए सिर्फ भारतीय समाज को ही क्यों दोष दें? पश्चिमी समाज भी इस मामले में उतना ही हिप्पोक्रेट है.
सार्वजनिक जीवन जीने वालों के लिये एक अलग मानदंड वो तय कर लेता है. गैरी हार्ट एक जमाने में अमेरिकी राजनीति के काफी चमकते सितारे थे. वो 1988 में डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होते-होते रह गये. उम्मीदवार होने के छह हफ्ते पहले उनकी एक तस्वीर उनकी महिला मित्र डोना राइस के साथ आई थी.
अजीब इत्तेफाक है कि जिस जहाज से उनकी फोटो बनी थी उसका नाम "मंकी बिजनेस" था. वो जे एफ कैनेडी से प्रभावित थे. कैनेडी राष्ट्रपति होने के बाद भी महिलाओं से अपनी दोस्ती के लिये प्रख्यात थे.
पांच साल पहले जब हार्ट ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार के बनने के लिए अपनी पत्नी ली हार्ट से सलाह ली तो उन्होंने आगाह किया, "तुम्हारा पतन सेक्स की वजह से होगा." पत्नी सच साबित हुई. इन्क्वॉयरर मैगजीन में डोना राईस के साथ छपी फोटो के बाद हार्ट कभी उबर नहीं पाये. उनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया. भारत में भी कुछ बड़े नेताओं को लगता है कि विरोधियों को खत्म करने का सबसे आसान तरीका है ‘सेक्स’. हार्दिक के साथ किया गया षडयंत्र बस एक बानगी है.
(लेखक आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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