क्या पहाड़ी राज्य हिमाचल (Himachal Pradesh) में BJP की जीत में रास्ते में रोड़ा नहीं पहाड़ नजर आ रहे हैं? और क्या ये पहाड़ खड़ा करने की कोशिश कोई और नहीं बल्कि 'अपने' ही कर रहे हैं? यहां अपने से मतलब अपने विधायक और नेता से है. दरअसल, हिमाचल प्रदेश की सभी 68 सीटों के लिए बीजेपी ने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है, जिसमें हिमाचल सरकार के एक वर्तमान मंत्री समेत 11 विधायकों का टिकट काट दिया गया है. जिसके बाद टिकट कटने वाले विधायकों से लेकर उनके समर्थकों में नाराजगी नजर आ रही है.
लेकिन क्या ये नाराजगी बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी? क्यों बीजेपी ने अपने विधायकों का टिकट काट दिया? बीजेपी के लिए हिमाचल चुनाव में क्या-क्या चुनौतियां हैं?
हिमाचल में 32 साल से एक ही ट्रेंड
इन सारे सवालों के जवाब से पहले थोड़ा इतिहास पढ़ना होगा, अंग्रेजी के पास्ट टेंस को समझना होगा और तब जाकर समझ आएगा कि हिमाचल में पिछले चुनावों में क्या-क्या हुआ था.
दरअसल, 68 सीटों वाली हिमाचल विधानसभा में बहुमत का आकंड़ा 35 है. साल 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 44 सीटें जीतीं थी, वहीं कांग्रेस को बीजेपी की आधी से भी कम सीट यानी 21 सीटें मिली थीं. कांग्रेस और बीजेपी के बीच 7.1 फीसदी वोटों का अंतर था. बीजेपी को 49 फीसदी, तो कांग्रेस को 42 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे.
इन आंकड़ों को देखकर तो ऐसा ही लग रहा है कि बीजेपी मजबूत है, लेकिन थोड़ा और पीछे जाने पर हिमाचल की राजनीति की अलग कहानी दिखेगी. हिमाचल के चुनावी आंकड़े बताते हैं कि 32 साल से यहां सत्ता हर पांच साल में बदल जाती है. मतलब कोई भी पार्टी लगातार दोबारा सत्ता में नहीं आ पाती है. पांच सालों तक कांग्रेस और उसके बाद पांच सालों तक बीजेपी के पास सत्ता की चाबी रहती है.
साल 2012 में जब हिमाचल विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 68 में से 26 सीटें हासिल हुई थीं. वहीं कांग्रेस ने 36 सीट जीतकर सरकार बनाई थी. मतलब जो हाल साल 2012 में बीजेपी का था वैसा ही कुछ हाल साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस का हुआ था.
बीजेपी ने अपने 11 विधायकों के टिकट क्यों काटे?
'सरकार नहीं, रिवाज बदलेंगे' का नारा देने वाली बीजेपी ने अपने 11 उम्मीदवारों को ही बदल दिया यानी मौजूदा विधायकों का ही टिकट काट दिया. इस वजह से नाराज नेताओं ने अपनी पार्टी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है.
इसका असर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Jairam Thakur) के गृह जिले मंडी (Mandi) में भी देखने को मिल रहा है, जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कई नेताओं ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. मंडी में बीजेपी ने इस बार अपने चार मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया है. जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर, करसोग विधायक हीरा लाल, दरंग विधायक जवाहर ठाकुर और सरकाघाट विधायक कर्नल इंदर सिंह को टिकट नहीं दिया गया है.
अब सवाल है कि बीजेपी ने ऐसा क्यों किया? इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं लेकिन फिलहाल दो पहलू पर नजर डालते हैं. पहला, बीजेपी अपनी सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को कम करना चाहती है, दूसरा, उन बड़े नेताओं को एडजस्ट करना जो कांग्रेस पार्टी छोड़कर हाल फिलहाल में बीजेपी में शामिल हुए हैं. हालांकि इस वजह से बीजेपी को अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं की नाराजगी झेलनी पड़ रही है.
उदाहरण से समझिए क्यों बीजेपी कार्यकर्ता हैं नाराज
उदाहरण के तौर पर कांगड़ा सीट को ही ले लीजिए. कांगड़ा में बीजेपी ने कांग्रेस से आए पवन काजल को अपना उम्मीदवार बनाया है, जिसके बाद बीजेपी के कार्यकर्ता नाराज हैं और फिर से टिकट पर सोचने के लिए पार्टी हाई कमान से कह रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ नालागढ़ विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी ने कांग्रेस से आए लखविंद्र राणा को टिकट दिया है. इसे लेकर भी काफी विरोध हो रहा है.
बीजेपी में कौन-कौन हुआ बागी?
हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ BJP में एक खुला विद्रोह नजर आ रहा है, जिन उम्मीदवारों का नाम से लिस्ट से गायब है वो या तो पार्टी छोड़ रहे हैं या निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र तक दाखिल कर दिया है. बीजेपी के बागी नेताओं की लिस्ट में चंदर मोहन ने सरकाघाट से चुनाव लड़ने की घोषणा की है.
कांगड़ा के धर्मशाला से मौजूदा विधायक विशाल नेहरिया का टिकट काटकर राकेश चौधरी को दिया गया है. हिमाचल के कांगड़ा ज्वाली से टिकट न मिलने पर अर्जुन ठाकुर बगावत पर उतर आए हैं. ऐसे दर्जनों नाम हैं जो पार्टी के फैसलों से नाराज हैं और या तो अलग चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं या बीजेपी के उम्मीदवार को हराने की कोशिश.
हालांकि बीजेपी भी बागियों को लेकर सख्ती के मूड में है. हिमाचल बीजेपी अध्यक्ष ने चेतावनी भी जारी की है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने कहा कि केन्द्रीय नेतृत्व से बातचीत के बाद यह निर्णय लिया गया है कि अगर पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता या पदाधिकारी विधानसभा चुनाव में पार्टी द्वारा अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ता है या पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाया जाता है तो उसके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी और 6 साल तक के लिए पार्टी से बाहर कर दिया जाएगा.
बीजेपी के लिए कितनी चुनौतियां?
हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम काफी अहम मुद्दा है. कांग्रेस ने इस मुद्दे को बड़ी जोरशोर से उठाया है. सरकारी कर्मचारी लंबे समय से पुरानी पेंशन स्कीम की मांग कर रहे हैं. राज्य में करीब 2 लाख 40 हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारी हैं और करीब 1 लाख 90 हजार पेंशनधारक, इस लिहाज से छोटे राज्य में ये एक बड़ी संख्या है. इसी को देखते हुए कांग्रेस ने पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का वादा किया है. कांग्रेस की सरकार ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पुरानी पेंशन स्कीम लागू की है.
हिमाचल में रोजगार को लेकर भी बीजेपी सवालों के घेरे में है. हिमाचल से बड़ी संख्या में युवा फौज में भर्ती होते हैं, जिस वजह से ये माना जा रहा है कि विपक्षी पार्टियां अग्निवीर योजना के मुद्दों को चुनावी मुद्दा बनाएंगी.
आम आदमी पार्टी फ्री बिजली और पानी का बिल माफ करने जैसी लोकलुभावन स्कीम के सहारे भी बीजेपी के वोट में डेंट लगाने की कोशिश कर रही है.
फिलहाल बीजेपी अपने ही लोगों में और अपने ही लोगों से उलझी हुई है, लेकिन उसके पास पीएम मोदी का चेहरा है जिसके सहारे दोबारा सत्ता में आने की चाहत है.
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