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9/11 ने कैसे दुनिया और अमेरिका-पाकिस्तान-भारत को बदलकर रख दिया

आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी जंग में भारत को अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने का अवसर दिखा

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18 साल पहले, 11 सितंबर 2001 को (इसी हफ्ते) न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दो टावरों से दो जहाज टकराए थे और उसके बाद दुनिया हमेशा के लिए बदल गई...

अमेरिका की धरती पर जिन घटनाओं की वजह से अब तक का सबसे खतरनाक आतंकवादी हमला हुआ था और उससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो खलबली मची, उस पर आज भी यकीन नहीं होता. ओसामा बिन लादेन के पश्चिम के खिलाफ युद्ध से प्रेरित और अल कायदा से प्रशिक्षित 19 इस्लामिक जिहादी सावधानी से बनाई गई योजना के मुताबिक चार अलग-अलग कॉमर्शियल अमेरिकी जेटलाइनर पर सवार हुए और उन्हें आत्मघाती मिसाइल में बदल डाला.

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इन 19 आतंकवादियों में से एक का भी नाम FAA की ‘नो फ्लाई’ लिस्ट में नहीं था. उस वक्त लिस्ट में सिर्फ 12 नाम थे. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला करने वाले आतंकवादियों के गिरोह के कथित सरगना खालिद शेख मोहम्मद, नवाफ अल हाजमी और खालिद अल मिहधार के नाम विदेश मंत्रालय की 61 हजार लोगों की टिपऑफ लिस्ट में तो थे, लेकिन FAA की उस तक पहुंच नहीं थी.

वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला करने वाले ज्यादातर आतंकवादी कम से कम नाम के लिए ही सही, पर अमेरिका के सहयोगी देशों से आए थे. इनमें से तीन सऊदी अरब से आए थे और उन्हें खास वीजा प्रोग्राम का फायदा मिला था, जिसमें अमेरिकी अधिकारियों को इंटरव्यू नहीं देना होता. इनमें से एक हानी हंजोर को सऊदी फ्लाइट स्कूल ने रिजेक्ट कर दिया था, जिसके बाद उसे अमेरिका के एरिजोना से पायलट का लाइसेंस मिला.

हमले के दिन एयरपोर्ट सिक्योरिटी को चकमा देकर वे अपने साथ केमिकल स्प्रे, चाकू और बॉक्स कटर्स ले जाने में सफल रहे. बीच सफर में जब वे एयरक्राफ्ट को अगवा करने के लिए कॉकपिट में घुसे तो उनमें से सिर्फ एक टीम को विरोध का सामना करना पड़ा. यूनाइटेड फ्लाइट 93 पेनसिल्वेनिया के पास शैंक्सविल में क्रैश कर गई और हवाई जहाज में सवार सभी 40 यात्री मारे गए.

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दूसरे एयरक्राफ्ट्स ने अपने लक्ष्य पर अचूक निशाना साधा. आतंकवादी ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि जमीन पर अमेरिकी एजेंसियों के बीच कोई तालमेल और सहयोग नहीं था. एक प्लेन तो पेंटागन पर जा गिरा, जिससे अमेरिकी सेना के बेहद सुरक्षित माने जाने वाले मुख्यालय में गड्ढा हो गया और 125 लोग मारे गए. न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दोनों टावरों (जिन्हें पश्चिम की समृद्धि का चमकदार प्रतीक माना जाता था) में से एक के 17 मिनट बाद दूसरे को निशाना बनाया गया और शायद यह उस दिन का सबसे भयावह मंजर था. हवाई जहाजों के टकराने से टावरों में आग लगी, जिससे पैदा हुई गर्मी से वे जमींदोज हो गए. कुल मिलाकर, इन हमलों में 3,000 लोगों की जान गई, जिनमें 400 से ज्यादा इमरजेंसी सर्विस वर्कर्स थे.

11 सितंबर को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज तो नहीं ही खुला, वह पूरे हफ्ते बंद रहा. 1933 के बाद कभी भी एक्सचेंज इतने लंबे समय तक बंद नहीं रहा था. आखिरकार, जब सोमवार 17 सितंबर को एक्सचेंज खुला तो डाओ जोंस इंडस्ट्रियल इंडेक्स करीब 685 अंक नीचे चला गया. उस हफ्ते के खत्म होने तक लॉस दोगुने से भी ज्यादा हो गया था. बॉन्ड ट्रेडिंग भी रुक गई थी. नॉर्थ टावर के टॉप फ्लोर्स में से चार में कैंटॉर फिट्जेरल्ड का ऑफिस था और 11 सितंबर को उसके 658 कर्मचारी मारे गए. किसी अन्य कंपनी ने आतंकवादी हमले में इतने अधिक कर्मचारी नहीं गंवाए थे.

यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाजारों में भी गिरावट हुई. यूरो, पौंड और येन के मुकाबले डॉलर कमजोर पड़ा. शुरुआती आधिकारिक अनुमान में 16 अरब डॉलर के प्रॉपर्टी लॉस की बात कही गई थी. फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ न्यूयॉर्क ने कहा था कि हमले से शहर को संभावित, प्रॉपर्टी डैमेज और क्लीनअप में 33 से 36 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. न्यूयॉर्क सिटी के प्राइवेट सेक्टर में 1.47 लाख नौकरियां खत्म हो गईं, जो शहर के कुल रोजगार का 5 प्रतिशत था.

9/11 हमलों पर जवाबी कार्रवाई दुनिया में अमेरिका का वर्चस्व बनाए रखने और वहां की अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने के इरादे से हुई, लेकिन उससे 2008 वित्तीय संकट की जमीन तैयार हुई. साथ ही, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा भू-राजनीतिक बदलाव हुआ.

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घटनास्थल से हजारों मील दूर पाकिस्तान और भारत तक पहुंची आंच

पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने इस घटना का इस्तेमाल अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारने और अपने देश के राजनयिक अलगाव को दूर करने के लिए किया. दो साल पहले लोकतांत्रिक सरकार को हटाकर सत्ता पर कब्जा करने के बाद से दूसरे देशों ने पाकिस्तान से दूरी बनाई हुई थी. मुशर्रफ ने भारी वित्तीय मदद के बदले अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान में उसके अभियान के लिए खुफिया और अन्य मदद का वादा किया.

1998 में न्यूक्लियर टेस्ट के बाद पाकिस्तान पर लगे आर्थिक प्रतिबंध भी हटा लिए गए. उसी साल नवंबर में एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 11 सितंबर के आतंकवादी हमलों की भर्त्सना करने और ‘साहस, दूरदृष्टि और नेतृत्व क्षमता’ दिखाने के लिए मुशर्रफ की सराहना की. बुश ने तो पाकिस्तान के तानाशाह को ‘मजबूत सहयोगी’ का ‘मजबूत नेता’ तक बताया था.

आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका की जंग और खासतौर पर पाकिस्तान की इसमें भूमिका की वजह से भारत के लिए चुनौतियां भी खड़ी हुईं और मौके भी बने. अमेरिकी धरती पर 11 सितंबर के आतंकवादी हमलों के बाद भारत दुनिया के उन शुरुआती देशों में शामिल था, जिसने ‘वैचारिक और राजनयिक समर्थन’ की घोषणा की थी और वह अमेरिका को सीधी सैन्य मदद देते-देते रह गया.

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अफगानिस्तान पर अमेरिका के हमले से तुरंत पहले गैलप के एक सर्वे से पता चला कि दुनिया के 37 देशों में से सिर्फ तीन-अमेरिका, इजरायल और भारत- में लोग उन लोगों के खिलाफ सैन्य अभियान के समर्थन में थे, जिनका इस हमले में हाथ था. वहीं, दूसरे देशों के लोग इन लोगों को अमेरिका को प्रत्यर्पित करके उन पर मुकदमा चलाए जाने के हक में थे.अमेरिका के सैन्य अभियान का इजरायल के साथ मिलकर भारतीयों का समर्थन करना चौंकाने वाली घटना थी. इससे भारत और इजरायल के संबंध भी बदले. भारत ने 1992 में ही उसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे. इससे पहले 1948 से वह अलग यहूदी देश बनाने का विरोध करता आया था. धार्मिक और रक्तरंजित इतिहास वाले इजरायल और भारतीय लोकतंत्र की स्थापना एक दूसरे से छह महीने के अंदर हुई थी. दोनों पड़ोसी देशों के विरोध और आतंकवादी हमलों का दंश भी वर्षों से झेलते आए थे.

आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी जंग में भारत को अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने का अवसर दिखा. भारत खुद तब इस्लामिक आतंकवादियों की चुनौती से जूझ रहा था. हालांकि, अमेरिका के इस जंग में पाकिस्तान को सहयोगी बनाने से स्थिति उलझ गई.

भारतीयों को इस मामले में अमेरिका की मजबूरी पता थी. वे यह भी जानते थे कि अगर अल कायदा का नेटवर्क खत्म होता है तो उससे भारत को फायदा होगा. इसके बावजूद भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान के साथ अमेरिका के करीबी रिश्ते बनाने को लेकर वह सहज नहीं था. कुछ भारतीयों ने तो यह भी कहा कि पाकिस्तान और अमेरिका के बीच नजदीकियां बढ़ने से जॉर्ज बुश की प्राथमिकता से भारत बाहर हो सकता है. साथ ही, पाकिस्तान की सरकार से वादा पूरा करने की उम्मीद नहीं की जा सकती.

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भारत का दृष्टिकोण

इसके बावजूद भारत ने संयम रखते हुए समर्थन जारी रखा. अमेरिका के लोकतांत्रिक सहयोगी के रूप में भारत ने परिपक्वता दिखाई. बुश ने पाकिस्तान के साथ भारत से भी आर्थिक प्रतिबंध हटा लिए. भारत और पाकिस्तान ने एक ही साथ एटमी परीक्षण किए थे. दोनों देशों से एक साथ प्रतिबंध हटाने की वजह 2003 की कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस रिपोर्ट थी. उसमें भारत और पाकिस्तान के साथ एक जैसा बर्ताव करने की बात कही गई थी.

अमेरिका ने भारत से दोहरे इस्तेमाल वाली तकनीक (सैन्य और असैन्य) पर पाबंदी भी हटा ली थी, जिसकी बहुत चर्चा नहीं हुई, लेकिन यह महत्वपूर्ण कदम था. 10 साल बाद जब ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान की प्रतिष्ठित मिलिट्री एकेडमी से एक मील से भी कम दूरी पर छिपे होने की बात खुली. नेवी सील की स्पेशल टीम ने 2 मई 2011 को साधारण इमारत में छिपे अमेरिका के मोस्ट वांटेड टेररिस्ट को मार गिराया, लेकिन तब तक लादेन वहां 6 साल से छिपा हुआ था. इस मामले से पाकिस्तान को लेकर भारत की आशंका नाटकीय अंदाज में सही साबित हुई.

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