बात 2013 के आखिरी हफ्तों की या 2014 की शुरुआत की है. सही तारीख क्या थी, यह ज्यादा मायने नहीं रखता. आरबीआई मुंबई में मैं नए गवर्नर का अभिवादन करने गया.
युवा और ऊंचे कद के रघुराम राजन, जिनकी लोकप्रियता से मेरा परिचय यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में हो चुका था, जहां मैं अपनी किताब ‘सुपरपावर?: द अमेजिंग रेस बिटवीन चाइनाज हेयर एंड इंडियाज टॉर्टाइज’ के बारे में बात करने गया था.
तकरीबन एक दर्जन स्टूडेंट्स ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके आइकॉनिक प्रोफेसर और ‘फॉल्ट लाइन्स: हाऊ हिडेन फ्रैक्चर्स स्टिल थ्रेटन द वर्ल्ड इकॉनमी’ के लेखक से मिल चुका हूं. मैंने किताब के रिव्यू तो पढ़े थे, लेकिन उसे लिखने वाले शख्स से नहीं मिला था. आरबीआई के दफ्तर में मैं उसी शख्स का इंतजार कर रहा था. मैं बस उनसे मिलने ही वाला था.
भगवान पर कैसे सवाल कर सकता था?
राजन ने गर्मजोशी से हाथ बढ़ाते हुए चेहरे पर हंसी के साथ मेरा स्वागत किया. राजन जैसे तस्वीरों में दिखते हैं, उससे भी कहीं ज्यादा हैंडसम थे. उनका कद उम्मीद से ज्यादा ऊंचा था. हमने बातें शुरू कीं. सभी मुद्दों पर हमारी बात हुई. हमारी बात नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं पर थी. राजन की कभी मोदी से मुलाकत नहीं हुई थी. ये बात मुझे थोड़ा बड़ा बना रही थी, क्योंकि मैं मोदी से कई बार मिल चुका था.
राजन ने परखने के अंदाज में मुझसे पूछा कि मेरी नजर में चुनाव के नतीजे कैसे होंगे, मोदी किस तरह के नेता हैं? क्या वे नई सोच के सुधारवादी नेता हैं या पुराने राजनेताओं जैसे ही हैं? लेकिन आरबीआई की बात वहीं तक छोड़ना चाहूंगा, इसके आगे कुछ नहीं बोलूंगा.
रघुराम राजन का 3 साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है. अपने काम के लिए उन्हें खूब वाहवाही मिल रही है. हालांकि मैं उनके इंट्रेस्ट रेट पॉलिसी से कई बार असहमति जता चुका हूं, फिर भी मैं उनके पेशेवराना अंदाज और ईमानदारी को सलाम करता हूं.
बड़ी तादाद में लोग उन्हें फॉलो करते हैं. हर बार मैं उनके ज्यादा सतर्कता, किताबी बातों और महंगाई पर कागजी रास्ते पर सवाल खड़ा करता हूं. जब कभी मैंने उनकी इन्फ्लेशन पॉलिसी को लेकर सवाल उठाए, तब आरबीआई बीट कवर करने वाले मेरे पत्रकार सहयोगियों, खासकर महिला रिपोर्टर्स ने अपना विरोध दर्ज कराया. आखिर मैं ‘भगवान’ पर कैसे सवाल कर सकता था!!
मैं राजन से क्यों असहमत था?
तो मैं राजन ‘द इन्फ्लेशन वॉरियर’ से क्यों असहमत था? पहला, उनका फोकस सिर्फ ब्याज दर को घरेलू महंगाई को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल करने के फार्मूले पर था, जो सिर्फ विकसित पश्चिमी इकोनॉमीज में काम करता है, जहां इकोनॉमी का बड़ा हिस्सा ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में है. वहां भी महंगाई को कंट्रोल करने के इस तरीके पर अब सवाल उठने लगे हैं.
इस नई एप्रोच की झलक इस हफ्ते के ‘द इकोनॉमिस्ट’ में छपे संपादकीय में मिलती है. वजह यह है कि ऊंची ब्याज दर डिमांड को रोकती है और नई नौकरियों को खत्म कर बेरोजगारों की फौज तैयार करती है.
धनी अर्थव्यवस्थाओं में उन्हें सोशल सेक्योरिटी से सुरक्षा मिलती है. लेकिन कम कमाई वाले देशों में यह काफी अलग है, जहां बहुत सारी गतिविधियां असंगठित सेक्टरों में है. यहां ऊंची ब्याज दर नौकरियों को खत्म कर गरीबों का गला घोंट सकती है.
महंगाई के मामले में राजन के साथ यह मेरा सबसे बड़ा मुद्दा है. आंकड़ों से साफ है कि भारत की बढ़ती महंगाई में खाने-पीने के सामान की बढ़ती कीमत का सबसे बड़ा योगदान है. ऐसी महंगाई को रोकने के लिए ब्याज दर का तरीका कारगर नहीं है.
दूसरी तरफ, खाने-पीने से अलग चीजों की कीमत 5 पर्सेंट या उससे कम की स्पीड से बढ़ रही है, जो हमारी जैसी अर्थव्यवस्था के लिए बेहद सामान्य है. इसलिए मेरा मानना है कि इस पर ज्यादा हाय-तौबा मचाने की जरूरत नहीं है.
दूसरी तरफ उत्पादों की कीमत में लगातार 14वें महीने गिरावट परेशानी पैदा करने वाली थी, जो भारत के उदारीकरण के बाद एक अद्वितीय घटना थी. इसके चलते राजन को लग रहा था कि वह गरीबों के लिए लड़ रहे हैं, जबकि राजन की समझौता न करने की नीति गरीबों की उम्मीदों के पर कतर रही थी. एक संघर्ष करता हुआ, कमजोर प्रोडक्शन सेक्टर में नई जॉब बनाने में अक्षम था. काश, राजन के गुणगान में मशगूल मीडिया उन्हें बुंदेलखंड के रोहित पासवान से मिलवाता.
मिलिए रोहित से
रोहित की उम्र 24 साल है. वह ब्राह्मण नहीं है. वह अपने सात भाई-बहनों (तीन भाइयों और 3 बहनों) में बीच का है. पड़ोस के गांव की सीमा से रोहित की शादी हुई. सीमा अभी गर्भवती है, उनका आने वाला बच्चा 6 अल्पवयस्कों की बढ़ती हुई फौज में जल्द ही शामिल होगा. सभी बच्चे चार कमरों के पक्के मकान के आंगन में खेल रहे हैं.
रोहित के पास एक पैतृक जमीन भी है, जो काफी उपजाऊ है. सिंचाई के लिए एक नहर पास से गुजरती है, जिससे रोहित का परिवार साल में 3 फसल उगाता है. परिवार खेतिहर मजदूरों से काम कराता है, जो खाने और कुछ रकम के बदले यह काम करते हैं. रोहित के बड़े भाई बस स्टैंड के पास एक किराना स्टोर चलाते हैं. शुगर मिल और सीमेंट भट्ठे में काम करने वाले दूसरे भाई को नौकरी से निकाल दिया गया है.
चूंकि उनके मालिकों के लिए बढ़ते ब्याज दर की वजह से धंधा करना मुश्किल हो रहा था इसलिए उन्हें नौकरी से निकालना पड़ा.
रोहित इतने दोस्तों के बावजूद अब ऊब चुका है. वह अब डांस की प्रैक्टिस करते हैं. उनका सपना ‘इंडियाज गॉट टैलंट’ का खिताब जीतना है. भरपूर मात्रा में खाते हैं और माइकल जैक्सन का ‘मून वॉक’ भी कर सकते हैं. सब काम करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. लेकिन इस इलाके में एक प्लांट लगना था, जहां सिर्फ एक फाउंडेशन स्टोन है. कायदे में यहां अब तक एक फैक्ट्री खड़ी हो जानी चाहिए थी. लेकिन बढ़ी हुई ब्याज दर इसके आड़े आती रही.
भारत ऐसे रोहित पासवानों से भरा हुआ है. वे अनाज और सब्जी के लिए ज्यादा कीमत देने को तैयार हैं, यदि उनके पास करने के लिए कोई ढंग का काम हो. लेकिन ब्याज दर काफी ज्यादा होने की वजह से रोजगार के नए मौके ही नहीं हैं.
(डिस्क्लोजर: रोहित एक काल्पनिक किरदार है, जिसे मैंने अपनी बात समझाने के लिए बनाया है)
ठीक है, अब आप समझ गए होंगे. मैं इन्फ्लेशन पर गवर्नर राजन के अड़ियल रवैये से सहमत नहीं था. मेरा विश्वास है गरीबी हटाने के लिए नए रोजगार के मौके पैदा करने होंगे, खाने-पीने के सामान भी अगर थोड़े महंगे होंगे, तो चलेगा.
लेकिन मैं गवर्नर राजन को संस्थागत (इंस्टीट्यूशनल) सुधारों की शुरुआत करने के लिए सलाम करता हूं. उन्होंने जबरदस्त तरीके से बैंकों की बैलेंस शीट की सफाई के लिए जो मुहिम छेड़ी, वह काबिले तारीफ है.
आम तौर पर लोग नौकरी के अंतिम सप्ताह में पैकिंग करते हैं, कागजी कार्रवाई निपटाते हैं और फेयरवेल डिनर का मजा लेते हैं. लेकिन इस दौर में भी उन कड़े उपायों की शुरुआत की, जिसे कई लोग असंभव मान चुके थे. दो दशक पहले राम कृष्ण के नेतृत्व में सेबी ने भारत के इक्विटी शेयर बाजारों की सफाई की थी. अब गवर्नर राजन ने उधार के बाजार में उसी तरह के परिवर्तन के बीज बोए हैं.
तो मिस्टर गवर्नर, आपको मेरा सैल्यूट, मेरा सलाम! आप हमेशा याद आएंगे.
(राघव बहल Quintillion Media Group के साथ ब्लूमबर्ग क्विंट के को-फाउंडर और चेयरमैन हैं. वह दो किताबों (‘Superpower?: The Amazing Race Between China’s Hare and India’s Tortoise’ और ‘Super Economies: America, India, China & The Future Of The World’) के लेखक भी हैं.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)