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'खुद से पूछें' एक पहल: सिर्फ इलाज नहीं, सम्मान के साथ मिले स्वास्थ्य सेवा

परिवार नियोजन का काम केवल तकनीकी विकल्प प्रदान करना नहीं है

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता (Quality of Care) बढ़ाने के लिए मरीजों की सम्मानपूर्वक देखभाल पर जोर दिया है. WHO ने कहा- "जनसाधारण की अगर गुणवत्तापूर्वक देखभाल की जाए तो, ये लोगों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और उनके परिणाम प्रभावित करते हैं. इसके लिए जरूरी है कि स्वास्थ्य सेवाएं सुरक्षित हों, कुशल हों, समय से मिलें, बिना भेदभाव के दी जाएं और सबसे महत्वपूर्ण है कि सेवाएं लोगों की जरूरतों के अनुकूल हों.”

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गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं पर 1994 में काहिरा, मिस्र में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 'जनसंख्या और विकास' में विशेष रूप से ध्यान दिया गया. इस कार्यक्रम में गुणवत्ता को बेहतर स्वास्थ्य सेवा, प्रजनन दर और गर्भनिरोध के इस्तेमाल के साथ जोड़ा गया.

जो व्यक्ति अपने परिवार के लिए ‘परिवार नियोजन’ साधनों का इस्तेमाल करना चाहता है, उसे सही विकल्प चुनने में सहायता देने की जरूरत है. इसके लिए सभी परिवार नियोजन साधनों की सही जानकारी दी जानी चाहिए ताकि वह अपनी इच्छा से इसका चुनाव कर सके, भले ही उसने अपना मन किसी एक साधन के लिए बना लिया है.

इसका मतलब है कि स्वास्थ्य कर्मियों को साधनों का तकनीकी ज्ञान कपल्स को सम्मानपूर्वक देना चाहिए. बहुत महत्वपूर्ण होता है कि महिलाएं प्रजनन सेवाओं, गर्भावस्था व परिवार नियोजन के बारे में जागरूकता रखें और साथ में, स्वास्थ्य कर्मियों एवं स्वास्थ्य विभाग के साथ खुल कर बात कर सकें.

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'परिवार नियोजन का काम केवल तकनीकी विकल्प देना नहीं'

परिवार नियोजन का काम केवल तकनीकी विकल्प प्रदान करना नहीं, बल्कि एक महिला को सम्मानजनक एवं बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना भी है.

पूरे देश में करोड़ों महिलाओं की परिवार नियोजन की मांग जो पूरी नहीं होती है, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार पर जोर देने, परामर्श की अच्छी सुविधाओं को उपलब्ध कराने से, सेवा देने के बाद उनको किसी किस्म की परेशानी तो नहीं हो रही है, पूछने से पूरी हो सकती है. इससे प्रजनन दर भी कम हो सकती है.

साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट के 'देविका विश्वास बनाम भारत संघ' मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले ने परिवार नियोजन सेवाओं के प्रावधानों की गुणवत्ता बढ़ाने एवं महिला प्रजनन अधिकारों को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के दौरान, Population Foundation of India के नेतृत्व में विभिन्न संगठनों ने 2014 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में असफल नसबंदी शिविर के दौरान हुई 16 महिलाओं की मौत का संज्ञान लिया.
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सबसे ज्यादा प्रभावित कमजोर वर्ग की महिलाएं

इस रिपोर्ट के जरिए सरकार को परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत दी जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए खास सुझाव दिए गए हैं. हालांकि अगस्त 2021 में ही छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग की तरफ से 7-8 घंटों के भीतर 101 महिलाओं की नसबंदी कराने की खबर आई, जो 7 साल पुरानी दुखद यादों को ताजा करने जैसी थी.

चिंताजनक बात ये है कि ऐसी परिस्थितियों में सबसे ज्यादा कमजोर वर्ग के लोग ही प्रभावित होते हैं. दोनों ही मामले में आदिवासी महिलाएं प्रभावित हुईं. छत्तीसगढ़ की त्रासदी ने परिवार नियोजन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं में क्वालिटी ऑफ केयर के मानकों को अधिक मजबूती से लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया है.

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सेवा कर्मचारी और लाभार्थी के बीच का संबंध उनकी आपस में समझ, सम्मान, गरिमा, गोपनीयता और ईमानदारी पर आधारित होता है. प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं के स्तर पर सेवा देने वाले और लाभार्थियों के बीच सकारात्मक और दोतरफा आदान-प्रदान, परिवार नियोजन साधनों के उपयोग को बढ़ावा देने में कारगर साबित हो सकता है. स्वास्थ्य सेवाओं के दृष्टिकोण एवं गुणवत्ता में सुधार जैसे: सेवा लेने के लिए कम प्रतीक्षा समय, परामर्श के लिए हमेशा महिलाओं के संशय और डर को दूर करने से ड्रॉपआउट रेट कम हो सकते हैं. साक्ष्य बताते हैं कि भारत में अधिकांश मरीजों को पोस्ट-ऑपरेटिव सेवा के दौरान सेवा देने वाले और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता गुणवत्तापूर्वक सलाह नहीं देते हैं.

गर्भनिरोधकों के साथ जुड़ी गलतफहमी, शर्म और परिवार नियोजन सेवाओं की जानकारी के अभाव के कारण कई महिलाएं सेवा प्रदाताओं के किसी साधन के जबरदस्ती इस्तेमाल के लिए या भेदभाव होने पर भी चुप रह जाती हैं. महिलाओं को उनके पास उपलब्ध गर्भनिरोधक साधनों या किसी शिकायत निवारण के तरीकों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है. शिकायत निवारण अगर मौजूद भी हो तो पूरी तरीके से काम करने वाले नहीं होते हैं.

क्वालिटी ऑफ केयर में सुधार के लिए निवेश के साथ-साथ एक व्यवस्थित दृष्टिकोण की भी जरूरत होती है जो सम्मानजनक देखभाल रोगियों की जरूरतों और सेवाओं के साथ उनकी संतुष्टि, सेवा प्रदाताओं को संवेदनशील बनाने, अपमानजनक और नकारात्मक व्यवहार को कम करने पर केंद्रित होती है. स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए हमें अनिवार्य रूप से सभी में सफल प्रक्रियाएं अपनानी होगी जैसे कि सामाजिक जवाबदेही, प्रशिक्षित सेवा प्रदाता, स्वास्थ्य प्रणालियों को सक्षम बनाना और जमीनी स्तर पर महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए शिक्षित एवं सशक्त बनाना.

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जानकारी के अभाव के कारण मजबूर कई महिलाएं

सभी स्वास्थ्य संस्थानों में सम्मानजनक स्वास्थ्य देखभाल को सुनिश्चित करने के लिए हमें कानून बनाने होंगे, नीतियां, गुणवत्ता सुनिश्चित करनी होंगी, सम्मानजनक स्वास्थ्य देखभाल का समावेश करना होगा और इन्हें लागू करने के लिए सशक्त जवाबदेही वाले सिस्टम का निर्माण करना होगा. सम्मानजनक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने वालों के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने की भी जरूरत है.

सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सम्मानजनक और गुणवत्तापूर्ण देखभाल को आगे बढ़ाने वाली नीतियों में महिलाओं की आवाज को समावेशित किया जाये. सम्मानजनक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देने के लिए जो दृष्टिकोण और नीतियां अपनाई जाएं, वो प्रासंगिक होनी चाहिए और इसमें महिलाओं और हर समुदाय को शामिल किया जाना चाहिए.

इस विचार के साथ, बिहार की महिलाएं 'खुद से पूछें' अभियान का नेतृत्व कर रही हैं, जो स्वास्थ्य सेवाओं में महिलाओं के व्यक्तिगत अनुभवों को एक मंच प्रदान करता है. इन अनुभवों को कभी-कभी खारिज कर दिया जाता है, अनुभवों को स्वीकार करना और महिला समुदाय के समाधान को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है, जिससे सम्मानजनक स्वास्थ्य सेवाएं दी जाएं.
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जो महिलाएं पर्याप्त जानकारी प्राप्त करती हैं एवं जिनके साथ स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग के जरिए सम्मानजनक व्यवहार किया जाता है, वह स्वस्थ एवं खुशहाल परिवारों का नेतृत्व करने में सक्षम होती हैं, जिससे भारत अपने स्वास्थ्य लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है. समय के साथ सम्मानजनक स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, उनके कारण उच्च गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकेंगी, जिनसे सेवा प्रदाता एवं लाभार्थी दोनों संतुष्ट होंगे.

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(पूनम मुत्तरेजा पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक हैं. उन्हें डेवलॅपमेंट क्षेत्र में 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है )

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