Dear KK,
पता नहीं कहां से शुरू करूं... कुछ दिन पहले पुणे में तुम्हारा लाइव कॉन्सर्ट शो था. सोचा था जाऊं, तुम्हें लाइव कभी सुना नहीं था. लेकिन साथ चलने को कोई नहीं था तो फिर सोचा कि जब अगला कॉन्सर्ट आएगा तब देख लुंगी. कहां पता था तुम वापस आओगे ही नहीं.
कॉन्सर्ट के लिए जाना चाहिए था मुझे. जैसे तुमने कहा था " चल सोचे क्या, छोटी सी हैं जिंदगी... कल मिल जाए तो होगी खुशनसीबी". जिंदगी की फिलॉसफी सिखाई थी तुमने उस गाने में. यही आखिरी गाना गाया तुमने कोलकाता के कॉन्सर्ट में. उसी शो में ऑडियंस का बेहतरीन रिस्पॉन्स देख तुमने कहा था "हाय मर जाऊं अब यही पर" और कुछ घंटो में तुम चले गए...
80 और 90 की दशक में पैदा हुआ ऐसा कोई बच्चा नहीं होगा जिसे तुम्हारे गानों ने प्यार करना न सिखाया हो. मेरे जनरेशन के सिंगर थे तुम. 1999 में तुम्हारा एल्बम 'पल' रिलीज हुआ था, जिसके गाने आज भी नोस्टालजिक कर देते है.
उस गाने के वीडियो में पहली बार दिखे थे अभय देओल. पता नहीं कितने लोगों ने तब ये गाना सुन कर किसी से प्यार का इजहार किया होगा, कितनों ने किताब में रखा पुराना गुलाब का फूल देखा होगा, किसी ने प्रेमिका के शहर जाती ट्रैन पकड़ी होगी तो किसी ने शाम को बैठे बैठे किसी को याद किया होगा.
चीखता-चिल्लाता म्यूजिक नहीं, तुम सुकून से गाते थे
बहुत सिंपल लगते थे तुम्हारे गाने. तुम्हारे-मेरे अपने लगते थे. बहुत कठिन शब्द नहीं, चीखता चिल्लाता, म्यूजिक नहीं. सुकून से गाते थे तुम. पल गाने के आखिर में चल कर आने वाले तुम आज भी याद हो.. कद में छोटे से, बहुत इम्प्रेसिव पर्सनॅलिटी नहीं थी तुम्हारी.
वो दौर ही कुछ जादुई था. वो शान, सोनू और तुम्हारे एल्बम का दौर था. हिंदी गानों का मॉडर्न बनना वहीं से शुरू हुआ. 1995में अलीशा चुनॉय के 'मेड इन इंडिया' गाने में सिक्स पैक एब्स दिखाता मिलिंद सोमन लकड़ी के बक्से से बाहर निकला था और 1996 में लकी अली 'ओ सनम' गाते हुए अपनी भूरी आंखों का जादू चला रहा था.
सोनू निगम का 'दीवाना' एल्बम 1999 में रिलीज हुआ था और शान का 'तन्हा दिल' 2000 में. उसी के आसपास पलाश सेन ने अपने क्यूट लुक्स और 'धूम' जैसे एलबम्स से धूम मचा दी थी. सोनू तो किसी हीरो से कम नहीं था.
'तू कब ये जानेगी' में नाचते सोनू को देख लड़कियां दिवानी हो गयी थी. 'तन्हा दिल' में अपनी जुल्फें सवारते हुए चलते शान ने सब का दिल चुरा लिया था.
इन सब से तुम अलग थे. डांस नहीं, रोमांटिक शक्ल नहीं. फिर भी तुम्हारे गाने दिल जीत लेते थे, सुकून देते थे. दोस्ती की मिसाल बना तुम्हारा गाना 'यारों'. पता नहीं, अनगिनत बार सुना होगा वो गाना.
पता नहीं कितने कॉलेज में, स्कूल में, कितने ग्रेजुएशन पार्टीज में लाखों बार गाया गया होगा ये गाना! पुराने दोस्तों की याद जब भी आये तो बस एक ही गाना सुनते है हम... कितने सुन्दर पल दिए है तुमने केके !
गुलजार साहब का लिखा और विशाल भारद्वाज का संगीत दिया माचिस फिल्म का 'चप्पा चप्पा चरखा चले' तुम्हारा पहला गाना था. विशाल भारद्वाज और तुम दिल्ली से मुंबई फिल्मों में तकदीर आजमाने करीबन एक साथ ही आये थे .
तब से लेकर आज तक चुनिंदा लेकिन बहुत सुन्दर गाने गए तुमने. 'खुदा जाने ये' इस गाने में अंगड़ाइयां लेता रणबीर दिल की धड़कन तो बन गया लेकिन उस गाने को रोमांटिक बनाया तुमने था. 'तू ही दिल है, तू ही जान भी है' जैसे प्यार करने पर मजबूर करने वाले गाने, और 'तड़प तड़प के इस दिल से' जैसे दिल तोड़ने वाले गाने...
मुझे हमेशा लगता है कि जिंदगी खूबसूरत बनाने में सिर्फ अपनों का हाथ नहीं होता. कई ऐसे अनजाने लोग होते हैं जिनसे हम कभी नहीं मिले, जिन्हें हम जानते नहीं, बात करते नहीं लेकिन वो हमारी जिंदगी सुन्दर बनाते जाते हैं,
कुछ हसींन यादें दे कर जाते हैं, कुछ प्यार के पल वो और प्यारे कर जाते हैं, कुछ लम्हों में रुला जाते हैं. अपने आवाज से, गानों से, किसी सुन्दर कलाकृति से, गहरी बातों से, कविताओं से, किताबों से... उन हसीन लोगों में तुम हो केके. हमेशा रहोगे !
बॉलीवुड की चकाचौंध, नकलीपन से अलग, बहुत सरल, सिंपल से तुम. भागती दौड़ती दुनिया में तुमने मुझे रुकना सिखाया, तुम्हारे गानों ने मुझे सुकून के दो पल दिए, बिछड़े, गुम हुए लोगों की याद दिलाई, हंसाया, रुलाया और कुछ सुन्दर यादें दी !
इन सब के लिए शुक्रिया केके.
जाने की कोई उम्र होती है?
पहले लगता था की जाने की कोई उम्र होती है... इरफान भी 53 का था जब अलविदा कह गया. तुम भी 53 के थे.
तुम्हारे जाने के बाद अब खबरें आ रही है कि वो ऑडिटोरियम ठीक नहीं था, वहां का एसी चल नहीं रहा था, तुम्हें पसीना आ रहा था फिर भी तुमने शो पूरा किया और फिर तुम बाहर निकले.
अब लगता है काश ये सब तुम नहीं करते, काश तुम शो आधा-अधूरा छोड़ के ही निकल आते तो शायद तुम बच सकते थे... जिंदगी से बड़ा क्या कोई शो था केके ? फिर कभी पूरा कर लेते तुम ये आधा-अधूरा शो..
लेकिन इंसान के जाने के बाद इस 'काश' का कोई मतलब नहीं बनता. अब लगता है सच में जाने की कोई उम्र नहीं होती... जो है वो बस ये ही एक पल है... जैसे तुमने कहा था
"आने वाली सुबह जाने रंग क्या लाये दिवानी...
हम रहें या ना रहें कल
कल याद आयेंगे ये पल
पल ये हैं प्यार के पल
चल आ मेरे संग चल
चल सोंचे क्या…
छोटी सी है जिन्दगी…”
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