ADVERTISEMENTREMOVE AD

मराठा आरक्षण को मंजूरी मिली, तो ब्राह्मण भी कसेंगे कमर

पहले आरक्षण केवल अनुसूचित जातियों और आदिवासियों के लिए हुआ करता था....

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

बहुत समय पहले की बात नहीं है. एक वक्‍त था, जब आरएसएस और इसका राजनीतिक मोर्चा बीजेपी आरक्षण के विचार के खिलाफ हुआ करते थे. सच्चाई ये है कि ज्यादातर प्रवासी भारतीय/महाराष्ट्र के प्रवासी भारतीय कहा करते थे कि उन्होंने भारत इसलिए छोड़ा, क्योंकि 'भारत में प्रतिभा नहीं, जाति का महत्व होता है'.

संघ परिवार राजनीति के मंडलीकरण के खिलाफ थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘मराठा भाई’ और ‘कुनबी’

पचास के दशक में वे डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के भी जबरदस्त तरीके से खिलाफ थे, जिन्होंने उनके अनुसार, आरक्षण की अवधारणा को सामने रखा. (अक्षय मुकल की लिखी ‘गीता प्रेस’ पढ़ें, हिन्दुत्व की राजनीति के इतिहास और अम्बेडकर से परिवार के नफरत को लेकर चुनिंदा और शानदार पुस्तक.)

आज बीजेपी (और आरएसएस भी) आरक्षण नीति की वाहवाही कर रहे हैं. यहां तक कि उसका अम्बेडकर से आगे विस्तार कर रहे हैं. तब आरक्षण केवल अनुसूचित जातियों और आदिवासियों के लिए था.

बात यहीं तक नहीं है. यहां तक कि अपने समुदाय के लिए पिछले कुछ सालों से आरक्षण की मांग पर सशस्त्र हुए मराठा भी तब चुप थे, जब मंडल कमीशन लागू किया जा रहा था. आयोग ने कुनबी को आरक्षण को मंजूर किया था, मराठाओं को नहीं. खुद को श्रेष्ठ समझने वाले मराठे तब नाराज हुए, जब उन्हें लगा कि उनकी तुलना कुनबी से हो रही है.

मगर मंडल की परिभाषा में ‘कुनबी’ को ‘पिछड़ा’ घोषित कर दिए जाने के बाद मराठाओं में अंदर से बेचैनी शुरू हो गयी. तभी उन्हें अंतर्ज्ञान हुआ कि कुनबी वास्तव में मराठा ही हैं! नतीजे के तौर पर ‘कमतर कुनबी’ ‘भाई मराठा’ हो गए.

मराठाओं में ऊंच-नीच

मराठा-कुनबी की सम्मिलित आबादी बहुत बड़ी है. महाराष्ट्र की तकरीबन 11 करोड़ आबादी का करीब 34 फीसदी. (कुछ अनुमान इसे 31 प्रतिशत बताते हैं) इसका मतलब है कि महाराष्ट्र की आबादी का करीब 4 करोड़ हिस्सा मराठा हैं. इस तरह जनसांख्यिकीय आधार पर ये लोग प्रांत के अंदर एक प्रांत हैं.

वर्ग और उपजाति के आधार पर ये समान रूप से फैला हुआ समुदाय नहीं है. इनके भीतर 96 उप स्तर हैं. वास्तव में इन 96 स्तरों में ऊंच-नीच भी बहुत स्पष्ट है. तथाकथित 96वां स्तर (जो 96 कुले के नाम से जाना जाता है) इस पद सोपान में सबसे ऊपर है. रोटी-बेटी के रिश्ते में वे कठोर रूप से सख्ती करते हैं. 96 कुले मराठा 92 कुले की लड़की को शादी के लिए उपयुक्त नहीं मानते.

दोनों को जोड़ने वाली सामान्य बात है कि दोनों किसान हैं. खेतों से वे जुड़े हुए हैं. लेकिन एक बार फिर यहां ‘वर्ग’ का अंतर बहुत साफ और बड़ा है. व्यापक रूप में साफ तौर से चार वर्ग हैं.

सबसे नीचे हैं भूमिहीन और कृषि मंजदूर. उसके ठीक ऊपर छोटी या बंजर भूमि, जहां खेती नहीं हो सकती, के स्वामी आते हैं. इससे ऊपर का स्तर ‘मध्यमवर्गीय किसान’ का होता है. इसका मतलब है कि उनके पास अपने परिवार के लिए पर्याप्त जमीन होती है और जरूरती अतिरिक्त आमदनी भी वे कर सकते हैं.

सबसे ऊंचा स्तर उनका होता है, जिनके पास बड़ी मात्रा में जमीन होती है, जो चीनी सहकारी समितियों और फैक्ट्रियों से जुड़े हैं, जो ग्रामीण बैंकों के नेटवर्क में साझेदार हैं, जिन्होंने सालों से निर्माण का काम किया है, जिनके पास शैक्षणिक संस्थाएं और ऐसी ही रसूख बढ़ाने वाली लाभदायक चीजें हैं.

ज्यादातर मराठा रहे हैं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री

शीर्ष स्तर ने मध्यमवर्ग के किसानों को हरित क्रांति के बाद से अपने में समाहित कर रखा है. ये मध्यमवर्गीय किसान खुशहाल हैं, लेकिन वास्तव में सामंतों का हिस्सा नहीं हैं. वे नए शहरी मध्यमवर्गीय जैसे हैं. उनके पास घर हैं. यहां तक कि अच्छे बंगले हैं. कार हैं और उनके बच्चे दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरु में पढ़ते हैं. वे अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के संस्थानों में पढ़ाने में सक्षम हैं.

उदारीकरण और वैश्वीकरण के बाद इन दोनों स्तर के मराठाओं का जाल सभी जगह फैल गया है. वे उच्च पेशेवर बन चुके हैं, जैसे डॉक्टर, आर्किटेक्ट, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट, प्रोफेसर, मीडिया पर्सन वगैरह. सामान्य भाषा के तौर पर इन्होंने अंग्रेजी को अपनाया है और इनमें से कई प्रवासी भारतीय हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शीर्ष स्तर राजनीतिक व्यवस्था का भी हिस्सा है. कई सालों से मंत्रलाय उनकी जागीर है. ज्यादातर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री मराठा रहे हैं (वाईबी चव्हाण से एसबी चव्हान, वसंतदादा पाटिल से शरद पवार और विलासराव देशमुख तक) कई बड़े मंत्री भी मराठा रहे हैं. यही वजह है कि महाराष्ट्र के ‘शक्तिशाली मराठा’ के रूप में मशहूर हैं शरद पवार.

मराठा नायकत्व और अंदरूनी बिखराव

राजनीतिक सत्ता के साथ लम्बे समय से भागीदार और उसका हिस्सा रहने के कारण इनका और भी विस्तार हुआ है. इस वर्ग ने कुछ और मराठाओं को, जो उनसे कमतर पृष्ठभूमि के थे, अपने साथ जोड़ा है. इस तरह एक समांतर सत्ता संरचना का उदय हुआ है, जिसमें वर्ग और जाति घुल-मिल गए हैं.

बहरहाल, यह भी याद रखना होगा कि इस व्यवस्था ने अपने तरीके से ‘अभाव नहीं है’ और ‘अभाव है’ को रचा है. हरित क्रांति ने शीर्ष और दूसरे स्तर के लोगों को उन्नत बनाया. उदारीकरण और वैश्वीकरण ने उन्हें और मजबूत किया, क्योंकि वे अब औद्योगिक पूंजीपतियों के क्लास और बिल्डर-आर्किटेक्ट के साथ जुड़ गए. नब्बे के दशक में इन्होंने समृद्ध होते शहरों में संपत्ति अर्जित की, जहां जमीन की कीमत लगातार ऊंची उठ रही है.

सत्ता की ताकत, दौलत और बड़े-बड़े संस्थानों में रुतबेदार पदों के साथ इस सुपर-डुपर नव धनाढ्य वर्ग ने मराठाओं में आत्मविश्वास भी दिया है और शासक वर्ग की हेकड़ी भी. इससे ये लोग मराठाओं के निचले और सबसे निचले तबके से अलग हो गये, जो वास्तव में किसान जनता का बहुमत हैं.

यह कृषक समुदाय फसल और बाज़ार के लिए मॉनसून की अनिश्चितता, सूदखोरों और बैंकों पर निर्भर है. कर्ज बढ़ता रहा और इसके साथ ही आत्महत्या की घटनाएं भी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वर्ग के अलावा

उनमें से कुछ खुशहाल होना चाहते थे, कुछ अमीर किसानों की ओर देख रहे थे और कुछेक लोगों ने अपनी राजनीतिक या कॉरपोरेट महत्वाकांक्षाओं को पूरा किया. जैसे-जैसे धन पैदा होना शुरू हुआ, असमानता उतनी ही साफ दिखने लगी. शिक्षा, खासकर लड़कियों की शिक्षा के प्रसार के साथ निम्न मध्यम वर्गीय किसान परिवारों ने खुद को हाशिए पर पाया.

इस वर्ग में जाति के अंदर भी भेदभाव आंखें खोलता है. वास्तव में वंचित मराठाओं में यह असंतोष इस समुदाय के नये ताकतवर धनाढ्य वर्ग के खिलाफ है. इस चेतावनी को धनाढ्य वर्ग ने जल्द ही समझ लिया.

तब ‘सभी मराठा’ के नाम पर खास तौर से यह एकजुटता हुई. नारा इस रूप में उभरा “एक मराठा, एक लाख मराठा”. कोशिश वर्गीय विभेद पर पर्देदारी और अखण्ड जाति समुदाय के रूप में उभरने की थी.

जाति-वर्ग टकराव से टूटेगी सोसायटी

इसने असर दिखाया. विडम्बना ये है कि एक ब्राह्मण मुख्यमंत्री के मातहत ये हुआ, जिसकी पार्टी और जिसकी मेंटर संस्था आरएसएस शुरू से आरक्षण नीति का विरोध किया. उन्होंने कुनबी-मराठा को एक साथ देखने का भी विरोध किया. बीजेपी कह सकती है कि उन्होंने कांग्रेस की राजनीति पलट दी है, जो इस समुदाय की परम्परागत रूप से प्रतिनिधित्व करती रही है. लेकिन यह इकलौता उदाहरण भर नहीं है. अगली कार्रवाई अदालतों में दिखेगी, जहां आरक्षण को नकार दिया जाएगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

और अगर यह उस न्यायिक परीक्षा में पास हो जाता है तब रेवड़ी बंटने लगेगी. पटेल और जाट भी आवाज बुलंद करेंगे.

जाति-वर्ग समुदाय में विभेद से समाज और टूटेगा, जो मराठा बनाम अति पिछड़ा बनाम दलित और अब यहां तक कि ब्राह्मण भी-जिन्होंने पहली बार आरक्षण की मांग उठायी है, के रूप में यह संघर्ष बढ़ने वाला है.

(कुमार केतकर दैनिक दिव्य मराठी और लोकसत्ता के पूर्व संपादक हैं. वर्तमान में वे कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य हैं. इस आर्टिकल में लेखक के निजी विचार हैं. इससे क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×