जम्मू-कश्मीर में नई सरकार के गठन को लेकर लगातार अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. पर पीडीपी ने इस बीच कई ऐसे संकेत दिए हैं, जिनसे लगता है कि बीजेपी के साथ उनका गठबंधन बरकरार रहेगा.
मुफ्ती मुहम्मद सईद के इंतकाल के बाद, मुख्यमंत्री पद के लिए नामित पूर्व मुख्यमंत्री की बेटी महबूबा मुफ्ती के शपथ लेने में अनिच्छा दिखाने के कारण बीजेपी-पीडीपी गठबंधन सरकार गिर गई. ऐसे में सूबे में संवैधानिक संकट पैदा होने पर राज्यपाल शासन लागू हो गया.
बीजेपी के आश्वासन की जरूरत
शुरुआती खबरों से लगा कि महबूबा अपने पिता के इंतकाल से सदमे में हैं और इस समय शासन संभालने की स्थिति में नहीं हैं. उनकी इस स्थिति को समझा जा सकता था, क्योंकि उन्होंने न सिर्फ अपने पिता को, बल्कि अपने सबसे अच्छे दोस्त और मार्गदर्शक को खो दिया था.
पर कुछ वक्त बाद पार्टी के लोगों ने संकेत देना शुरू किया कि महबूबा की अनिच्छा के पीछे कुछ और भी कारण हैं. पीडीपी की ओर से खबरें आना शुरू हो गईं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने से पहले महबूबा बीजेपी से आश्वासन चाहती हैं.
महबूबा के वरिष्ठ सहयोगी नईम अख्तर ने सधे हुए शब्दों में कहा भी कि पीडीपी सरकार बनाने की जल्दी में नहीं है. वह यह देखना चाहेगी कि पिछले साल जिस कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर हस्ताक्षर करने के बाद पीडीपी ने बीजेपी से हाथ मिलाया था, उस पर काम किया जा रहा है या नहीं.
अख्तर के इस बयान के बाद महबूबा ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई, जहां पार्टी ने सरकार बनाने का आखिरी फैसला महबूबा के हाथ में छोड़ दिया.
बीजेपी के खिलाफ महबूबा की पुरानी शिकायत
मीटिंग के बाद उन्हीं नईम अख्तर ने अपने नए बयान में साफ इशारा किया कि पार्टी इस गठबंधन से बाहर आने के बारे में नहीं सोच रही है. उन्होंने गठबंधन के एजेंडा को पार्टी के लिए एक ‘पवित्र दस्तावेज’ बताया.
अख्तर ने मीटिंग से पहले और बाद में जो भी कहा, उससे अलग पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि बीजेपी से साथ सरकार बनाने को लेकर कई ऐसी वजहें हैं, जो महबूबा को पसोपेश में डाल रही हैं.
पहली वजह तो यही है कि महबूबा पीडीपी-बीजेपी सरकार के पिछले 10 महीनों के कार्यकाल से खुश नहीं हैं. उन्हें शिकायत है कि बीजेपी ने उनके पिता के लिए चीजें मुश्किल कर दी थीं.
बीफ पर हुए बवाल से लेकर जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने की कोशिशों को देखते हुए महबूबा बीजेपी के साथ सत्ता बांटने से डर रही हैं.
दूसरे, महबूबा को मोदी से एक निजी शिकायत भी है कि वे मुफ्ती के अंतिम संस्कार में भाग लेने कश्मीर नहीं आए, जबकि मुफ्ती के साथ इस गठबंधन की नींव उन्हीं ने रखी थी.
तीसरे, महबूबा को दिल्ली से अब तक उनके सूबे को न तो वह वित्तीय सहायता दी है, जिसका गठबंधन के समय वादा किया गया था, न ही उनके पावर प्रॉजेक्ट फिर से शुरू कराने में मदद की है.
ऐसे में महबूबा मुश्किल में फंस गई हैं, क्योंकि बीजेपी से शिकायतें होते हुए भी वे गठबंधन से बाहर नहीं आ सकतीं, क्योंकि गठबंधन तोड़ने का मतलब होगा कि उन्हें अपने पिता के उठाए कदम पर यकीन नहीं है.
ऐसा करने का मतलब होगा कि जनता के सामने वे स्वीकार कर रही हैं कि बीजेपी से हाथ मिलाना उनके पिता की गलती थी और वे ऐसा कभी नहीं करेंगी.
क्या महबूबा अपने पिता के फैसले की इज्जत रखेंगी?
यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि पार्टी के अंदरूनी विरोध और कई क्षेत्रीय ताकतों के विरोध के बावजूद मुफ्ती मुहम्मद सईद ने बीजेपी से हाथ मिलाया था. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की मानें, तो महबूबा ने खुद इस गठबंधन का विरोध किया था. पर बाद में उनके पिता ने उन्हें यकीन दिला दिया कि 2014 की बाढ़ के बाद से आर्थिक संकट में फंसी कश्मीर घाटी को इस गठबंधन की जरूरत है.
अब एक बार फिर वे उसी दुविधा में फंसी हैं, क्योंकि कई पार्टी नेताओं का मानना है कि बीजेपी से हाथ मिलाने से घाटी में पार्टी की स्थिति कमजोर होगी. इन नेताओं का कहना है कि बीजेपी कोई न कोई विवाद खड़ा करती रहेगी और इससे सरकार पर गलत प्रभाव पड़ेगा.
वरिष्ठ बीजेपी नेता (वे पहचान जाहिर नहीं करना चाहते)मुफ्ती साहब बड़े नेता थे. उनका अनुभव बहुत ज्यादा था. वे चीजों को संभाल सकते थे, पर उनके जाने के बाद पार्टी नेतृत्व के लिए बीजेपी को काबू में रखना मुश्किल हो जाएगा.
विरोध की कई आवाजों के बावजूद यह काफी हद तक निश्चित हो गया है कि महबूबा बीजेपी के साथ मिलकर ही सरकार बनाएंगी, चाहे यह उनके पिता के फैसले की इज्जत रखने के लिए ही क्यों न हो.
भले ही खुले तौर पर महबूबा बीजेपी के सामने कोई शर्त न रखें, पर वे बीजेपी को ये जरूर साफ कर देंगी के वे मुफ्ती मुहम्मद सईद नहीं, महबूबा मुफ्ती हैं. और अगर बीजेपी सूबे में कोई नया विवाद पैदा करती है, तो तय है कि वे गठबंधन से पीछे हटने में देर नहीं लगाएंगी.
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