नौकरशाही यानी ब्यूरोक्रेसी के ऊपरी दर्जे में जगह बनाना उसी तरह है, जैसे कम उम्र में शादी करना. इसमें वक्त के साथ एक-दूसरे से दूरी बनने का खतरा होता है. पति-पत्नी एक दूसरे में दिलचस्पी लेना बंद कर देते हैं और बाद में बस सहूलियत की खातिर साथ रहते हैं. जो ब्यूरोक्रेट्स नॉवेल लिखते हैं, उनकी मिसाल से यह बात आसानी से समझी जा सकती है.
नौकरशाहों को मीडिया में दोस्त बनाने आते हैं. उनकी मदद से वे सेलिब्रिटी बन जाते हैं. इनमें से कुछ ही तारीफ के लायक होते हैं. कुछ ऐसे नौकरशाह हैं, जिनकी किताबें दुकानों और लाइब्रेरी में कोने की किसी बुकशेल्फ में पड़ी रहती हैं. उनका काम किसी एकेडमिक रिसर्च से कमतर नहीं होता, लेकिन संकुचित दिमाग की वजह से अकादमिक जगत इन किताबों और उन्हें लिखने वालों को भाव नहीं देता.
यह बात मुझे हमेशा हैरान करती रही है. शायद हेनरी किसिंगर ने ठीक ही कहा था कि अकादमिक जगत के लोग छोटी सोच वाले होते हैं क्योंकि वे छोटी चीजों में उलझे रहते हैं.
इन किताबों ने मुझे चौंका दिया
भारत में दर्जनों ब्यूरोक्रेट्स हैं, जिन्होंने शानदार एकेडमिक रिसर्च की हैं. यहां उन सबका जिक्र करना संभव नहीं है. इसलिए मैं हाल में आई कुछ किताबों की चर्चा कर रहा हूं. इनमें से हरेक ने मुझे चौंकाया है. सुधा शर्मा की लिखी ‘द स्टेटस ऑफ मुस्लिम विमेन इन मीडिइवल इंडिया’ यानी ‘मध्ययुगीन भारत में मुस्लिम महिलाओं की हालत’ ऐसी ही एक किताब है. मैं कभी सपने में भी अंदाजा नहीं लगा सकता था कि वह क्या काम करती हैं. सुधा इंडियन रेवेन्यू सर्विस में अधिकारी थीं और सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (सीबीडीटी) के चेयरमैन पद से रिटायर हुईं.
इस लिस्ट में देबतोरू चटर्जी भी शामिल हैं. उनकी किताब के कवर पर उनका परिचय ‘एक सिविल सर्वेंट’ के रूप में दिया गया है. वह भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं. उनकी लिखी ‘प्रेसिडेंशियल डिस्क्रिशन’ बेहतरीन बुक है. इस विषय पर लिखी गई शायद सबसे अच्छी किताबों को टक्कर देने लायक.
1987 बैच के टीवी सोमनाथन एक और नौजवान अधिकारी हैं. वह प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में ज्वाइंट सेक्रेटरी हैं. इस लिस्ट में वी अनंत नागेश्वरन का नाम भी है, जिन्होंने ‘द इकोनॉमिक्स ऑफ डेरिवेटिव्स’ नाम की शानदार एकेडमिक रिसर्च पेश की है.
गुलजार नटराजन एक और यंग ऑफिसर हैं, जिन्होंने नागेश्वरन के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की संभावनाओं पर एक बुक लिखी है. इसमें भविष्य की खराब तस्वीर पेश की गई है. अफसोस यह है कि यह किताब सिर्फ ऑनलाइन फॉर्म में ही मिल रही है. नटराजन 1999 बैच के अधिकारी हैं. सिर्फ आईएएस, आईपीएस और आईआरएस से ही लेखक नहीं निकले हैं.
इंडियन फॉरेन सर्विस यानी आईएफएस भी इस मामले में बहुत पीछे नहीं है. मेरे कजन टीसीए राघवन ने अब्दुल रहीम खानखाना पर उम्दा किताब लिखी है. चंद्रशेखर दासगुप्ता एक और आईएफएस ऑफिसर हैं, जिन्होंने भारत का बंटवारा क्यों हुआ, इस पर बेहतरीन रिसर्च की है. यह रिसर्च ‘वॉर एंड डिप्लोमैसी इन कश्मीर: 1947-48’ के नाम से पब्लिश हुई है.
किरण दोशी जो अब आईएफएस से रिटायर हो चुके हैं, उन्होंने बॉम्बे में जिन्ना की गुजारी गई जिंदगी पर कमाल का उपन्यास लिखा है. दोशी ने दो और उपन्यास भी लिखे हैं. कई और नौकरशाह हैं, जिन्होंने बेहतरीन किताबें लिखी हैं. ये ऐसी बुक्स हैं, जो अकादमिक जगत की अच्छी से अच्छी किताबों को टक्कर दे सकती हैं.
इन लोगों में एक बड़ी खूबी है. उनके पास प्रशासनिक तजुर्बा है, जो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के पास नहीं होता. साथ ही वे अकादमिक जगत के लोगों की तरह सोच सकते हैं. ब्यूरोक्रेसी में ऐसे अधिक लोग नहीं होते. ये उन एकेडमिक्स से अलग हैं, जो बाद में सरकार से जुड़ गए और उसके बाद कोई अच्छी रिसर्च नहीं कर पाए. इस संदर्भ में मनमोहन सिंह का नाम याद आता है. हालांकि, इन लोगों की निगरानी में कई शानदार रिसर्च हुई हैं. खासतौर पर अर्थशास्त्र के क्षेत्र में.
ऐसे काम आ सकती है ब्यूरोक्रेट्स की काबिलियत
नरेंद्र मोदी अब दूसरे कार्यकाल की तैयारी कर रहे हैं या यूं कहें कि उसका सपना देख रहे हैं. उनके पास इन ब्यूरोक्रेट्स की काबिलियत का फायदा उठाने का बड़ा मौका है. इनमें रिटायर हो चुके और काम कर रहे दोनों तरह के लोग शामिल हैं. मोदी इन लोगों से रोजमर्रा के प्रशासनिक कामकाज के अलावा काफी कुछ करवा सकते हैं.
रुटीन कामकाज भी जरूरी है, लेकिन वह दूसरों पर छोड़ा जा सकता है. मोदी इस टैलेंट हंट का जिम्मा पीएमओ के प्रमोद मिश्रा को दे सकते हैं, जो 1972 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. वह टैलेंट ढूंढने के लिए ब्यूरोक्रेट्स से यह सवाल कर सकते हैं कि क्या आपने कोई अच्छी किताब लिखी है? मोदी को प्रधानमंत्री बने तीन साल से अधिक समय हो गया है और अब तक उन्होंने पॉलिसी के बारे में बहुत कुछ नहीं सोचा है. उनके लिए इन ब्यूरोक्रेट्स की मदद से अब पॉलिसी पेपर्स तैयार करने का वक्त आ गया है.
ये अधिकारी उन्हें निराश नहीं करेंगे. इन लोगों को कैबिनेट सेक्रेटेरियट से जोड़ा जा सकता है और उन्हें दिल्ली से दूर की पोस्टिंग दी जा सकती है, जहां वे बिना किसी रोकटोक के अपना काम कर सकें.
(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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