ADVERTISEMENTREMOVE AD

वोट देने और दिलाने वालों को खुश कैसे रखेंगे मोदी जी?

किसानों और कार्यकर्ताओं, दोनों को कुछ न कुछ देना ही होगा, सिर्फ मोदीजी की मुस्कान से बात नहीं बनेगी.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

साल 2002 में जब अदनान सामी नए-नए आए थे, उन्होंने एक बढ़िया गाना लिखा था और गाया भी था. उसका नाम 'थोड़ी सी लिफ्ट करा दे' था. गाने का सार ये था कि एक बहुत ही हारा-थका-पिटा, गरीब इंसान भगवान से कह रहा है कि आपने 'ऐसे वैसे को दिया है, मेरी भी थोड़ी लिफ्ट' करा दिजिए.

उन दिनों अटल जी की सरकार थी और अटल जी काफी परेशानी में थे. तब मैंने पीएमओ में एक मित्र को वो गाना भेजा था इस गुजारिश के साथ कि वो अटल जी को सुना दे. ऐसा मेरे मित्र ने नहीं किया, ये कह कर कि वो मेरी तरह मसखरा नहीं है. पर मैं अब भी ये मानता हूं कि अटल जी उस गाने को सुनकर थोड़ा मुस्कुरा तो देते.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

खैर कोई बात नहीं, कुछ ही दिनों बाद उनकी बुश साहेब ने लिफ्ट करा दी. अब जब वर्ल्ड बैंक ने और मोदी की क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने इंडिया का दर्जा थोड़ा सा बढ़ा दिया है, मुझे वही गाना याद आ रहा है. दोनों ही ने मोदी जी की थोड़ी सी लिफ्ट करा दी.

एक तरफ ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में 30 रैंक का सुधार आया है और अब क्रेडिट रेटिंग में भी एक छोटा-सा सुधार. दोनों का असर विदेशी निवेश पर पड़ना चाहिए. पर पड़ेगा कि नहीं, और पड़ेगा तो कितने समय के बाद, ये भी देखना है. बाकी बहुत सारी चीजों पर निर्भर विदेशी निवेश है. स्टेट्स की नीतियां और वहां का भ्रष्टाचार इससे जुड़ा हुआ है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

'मैन्नू की फरक पैंदा'

इसलिए अभी ताली सिर्फ हल्के से बजनी चाहिए. पर मुझे ऐसा लगता है कि बीजेपी और मोदीजी प्रशंसा के इतने भूखे हैं कि वो इन दोनों को लेकर देश के हर कोने में नगाड़े बजाते रहेंगे.

ये उनका हक है कि जो थोड़ी सी लिफ्ट हो गई है, उसे हाइलाइट करें, पर असली बात तो ये है कि न तो ईज ऑफ डूईंग बिजनेस रेटिंग का, न क्रेडिट रेटिंग का, 90 करोड़ वोटर्स के साथ कुछ लेना-देना है. जहां तक वोटरों का सवाल है, ये 'मैन्नू की फरक पैंदा' वाली बात है.

इसलिए मैं बीजेपी को कहना चाहता हूं कि यू आर रेस्पॉन्डिंग टू द रॉन्ग क्रिटिक्स. जो अंग्रेजी बोलते हैं और जिनकी तादाद कम है. और तो और, न तो उनके वोट मैटर करते हैं, न तो उनके ओपिनियन.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
ADVERTISEMENTREMOVE AD

पब्लिक मूड का बैरोमीटर है व्हाट्सअप

मेरा कहना ये नहीं कि मोदी सरकार ढोल नहीं बजाए, बस यही कि जरा कम बजाए. पिछले तीन साल में यही गलती उन्होंने बार-बार की है और उसी की वजह से आज लोग असंतुष्ट हैं. बीजेपी को व्हाट्सअप के चुटकुलों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि ये पब्लिक मूड का एक बैरोमीटर है.

मिसाल के तौर पर कुछ दिन पहले एक जोक आया था, जिसमें मोदी जी कह रहे हैं 'अच्छे दिन तो आ गए हैंः बस स्मॉग की वजह से आपलोगों को दिख नहीं रहे हैं.'

असली आलोचना का ये भी एक रूप है. दुनिया के हर देश में ये देखने में आया है कि जब लोग बहुत ही ज्यादा दुखी हो जाते हैं, तो मजाक बनाना और करना शुरू कर देते हैं. बीजेपी का अब वही हाल हो रहा है.

मोदीजी और अमित जी को जरूर ये पता होगा कि जो आलोचना असली महत्व रखती है, वो किसानों की और बीजेपी के मिडिल लेवल कार्यकर्ताओं की आलोचना है. एक ग्रुप वोट देता है, और दूसरा वोट दिलाता है. किसान दुखी हैं और कार्यकर्ता परेशान. इन्हें इग्नोर करना बहुत बड़ी गलती होगी, क्योंकि पिछले साढ़े तीन साल में दोनों को कुछ नहीं मिला है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD
ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब मोदीजी की और अमित जी की समस्या ये है कि वोट देने वाले और दिलाने वाले को कैसे खुश किया जाए. पर उनके पास कोई ठोस सॉल्यूशन नहीं है. मुझे लगता है बीजेपी आलाकमान को इस बात का एहसास है, इसलिए वो हिंदुत्व, पद्मावती इत्यादि पर फिर से जोर दे रही है. पर जो स्ट्रैटजी यूपी में 2017 में कामयाब हुई, वो फिर दूसरी बार होगी?

ये गुजरात और हिमाचल के चुनाव परिणामों से साफ हो जाएगा. वहां आधे से ज्यादा सीट भले ही बीजेपी क्‍यों न जीते, वोट शेयर में गिरा, तो पार्टी को स्ट्रैटजी बदलनी होगी.

किसानों और कार्यकर्ताओं को, दोनों को कुछ न कुछ देना ही होगा, सिर्फ मोदीजी की मुस्कान से बात नहीं बनेगी.

(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×