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GST लोन पर मानी केंद्र सरकार लेकिन हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी

इससे पहले केंद्र सरकार का रुख प्रदेश की सरकारों के लिए हैरान करने वाला था

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोना वायरस महामारी को लेकर शायद ‘एक्ट ऑफ गॉड’ की अपनी सोच बदल ली है. जीएसटी कलेक्शन में भारी गिरावट का मुआवजा देने से पीछे हट रही केंद्र सरकार ने अपनी जिम्मेदारी को समझा है, मगर उसने ऐसा करने में देर कर दी है.

सरकार ने अब घोषणा की है कि जीएसटी कलेक्शन में जो कमी आई है उसकी भरपाई के लिए राज्यों की ओर से वो 1.1 लाख करोड़ रुपये का उधार रिजर्व बैंक से लेगी. पहले उधार की यह रकम 97 हजार करोड़ रुपये थी जिसमें आंशिक बदलाव हुआ है. हालांकि, जीएसटी के कारण मुआवजे की राशि आने वाले समय में जब और बढ़ेगी, तो केंद्र सरकार के सामने चुनौती भी बढ़ेगी.

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दूसरी आजादी करार दी गई जीएसटी प्रांतीय सरकारों और खुद केंद्र सरकार के लिए ढाई साल में ही बोझ बन जाएगी, ऐसा 2017 में इसे लागू करते वक्त नहीं सोचा गया था. तब कहा गया था कि हर साल जीएसटी कलेक्शन में 14 प्रतिशत से कम बढ़ोतरी होने की स्थिति में कमी वाली रकम की भरपाई मुआवजे के तौर पर केंद्र सरकार करेगी. ऐसा 5 साल तक करते रहने का प्रावधान जीएसटी कानून में किया गया था.

इस जिम्मेदारी से वित्त मंत्री यह कहकर हाथ झटक रही थीं कि कोरोना महामारी के चलते समग्र रूप में राजस्व में कमी आई है और यह सामान्य स्थिति नहीं है, यह ‘एक्ट ऑफ गॉड’ है.

केंद्र सरकार का रुख प्रदेश की सरकारों के लिए हैरान करने वाला था. विपक्ष शासित राज्यों ने तुरंत इस पर विरोध जताया. धीरे-धीरे स्थिति यह बनी कि 5 अक्टूबर को जीएसटी की 42वीं बैठक में 10 बीजेपी शासित राज्यों ने भी वित्त मंत्री के सुझाए विकल्पों को मानने से इनकार कर दिया. अब संघीय व्यवस्था की रक्षा करने, विवाद और टकराव से बचने के लिए वित्त मंत्री सीतारमण 12 अक्टूबर को जीएसटी की 43वीं बैठक में विकल्प लेकर आने को विवश हो गईं.

वित्त मंत्री ने प्रदेश सरकारों की ओर से केंद्रीय बैंक से लोन लेने का ऐलान किया. फैसला लेते-लेते भी दो महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है. इस दौरान अब सितंबर तक जीएसटी कलेक्शन का आंकड़ा सामने है. हालांकि संतोष की बात यह है कि 2019 के मुकाबले जीएसटी कलेक्शन बीते महीने में सुधरता दिखा है. कोरोना काल के शुरुआती चार महीनों अप्रैल, मई, जून और जुलाई में जीएसटी का कलेक्शन 2,72,662 करोड़ रुपये था, जो अब सितंबर तक कुल 4,54,591 करोड़ रुपये हो चुका है. 2019 के मुकाबले जहां जुलाई तक कलेक्शन 1,43,514 रुपये कम था, वही सितंबर तक यह रकम मामूली रूप से बढ़कर 1,51,703 करोड़ रुपये हुई है.

कोरोना का काल जीएसटी कलेक्शन के हिसाब से निश्चित रूप से बुरा है और इसकी वजह पहली तिमाही में 23.8 प्रतिशत के नकारात्मक विकास दर में निहित है. मगर, जीएसटी लागू होने से पहले टैक्स कलेक्शन का ग्रोथ रेट 21.33 प्रतिशत था. उसमें बढ़ोतरी तो दूर जीएसटी लागू होने के बाद लगातार कमी आती चली गई. जीएसटी में वृद्धि दर 2017-18 में 5.8 प्रतिशत रही थी, जबकि 2018-19 में 9.2 प्रतिशत और 2019-20 में 8 प्रतिशत रही थी.

हालांकि जिस तरह से मार्च के बाद के छह महीने में 6 लाख करोड़ से ज्यादा का जीएसटी कलेक्शन हुआ है, उम्मीद की जा सकती है कि चालू वित्त वर्ष के बाकी महीनों में इसमें और बढ़ोतरी होगी.

यह 2016-17 में अप्रत्यक्ष कर के तौर पर वसूली गई रकम 8.63 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले अंकगणितीय स्तर पर 60 से 70 फीसदी ज्यादा रहेगी. फिर भी प्रति महीने 1.5 लाख करोड़ के जीएसटी कलेक्शन के स्तर तक पहुंचने और सालाना 18 लाख करोड़ कलेक्शन का सपना अभी कोसों दूर है. 2018-19 में जीएसटी कलेक्शन 8,76,794 करोड़ रुपये था. जबकि, 2019-20 में यह 9,44,414 करोड़ रुपये हो गया.

केंद्र सरकार के लिए अभी चिंता की बात यह है कि जीएसटी के कारण मुआवजे की राशि आने वाले समय में जब और बढ़ेगी तो उस रकम का इंतजाम कैसे होगा.

इन्वेस्टमेंट इन्फॉर्मेशन एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इंडिया यानी आईसीआरए का अनुमान है कि 2020-21 में जीएसटी के मद में प्रदेशों को दी जाने वाली मुआवजे की राशि 3.5 लाख करोड़ तक पहुंच जाएगी. हालांकि यही अनुमान जीएसटी परिषद की बैठक में 2.35 लाख करोड़ रुपये का लगाया गया था. सवाल ये है कि क्या आगे भी रिजर्व बैंक से उधार लेने का रास्ता ही सरकार अपनाएगी?

केंद्र सरकार जीएसटी में कमी के कारण मुआवजे की राशि जुटाने के लिए सेस लगाती है. 2019-20 में सेस से कलेक्शन 95,444 करोड़ रुपये रहा था जबकि केंद्र को 1.65 लाख करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति जारी करनी पड़ी थी. कोरोना काल में सेस कलेक्शन भी बहुत नीचे चला गया. सितंबर महीने में मात्र 7,124 करोड़ रुपये का सेस केंद्र सरकार को मिल सका. अगस्त में यह रकम 7215 करोड़ रुपये थी. कोरोना काल में अतिरिक्त सेस भी केंद्र सरकार ने कई वस्तुओं पर लगाया है.

केंद्र सरकार ने जब प्रदेशों को दो विकल्प सुझाए थे तो पहले विकल्प में 97 हजार करोड़ रुपये की रकम के मूलधन और ब्याज को इसी सेस की रकम से चुकाने की बात कही गई थी. लंबी अवधि में चुकाए जाने पर राज्य सरकार पर किसी किस्म का बोझ नहीं पड़ता. दूसरे विकल्प में 2.35 लाख करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति केंद्र सरकार रिजर्व बैंक से उधार लेकर पूरा करती और ब्याज राज्यों को उठाना पड़ता, सेस की रकम का इस्तेमाल मूलधन के भुगतान में किया जाता.

केंद्र सरकार की चिंता राजस्व घाटे को लेकर रही थी. वित्त मंत्री ने साफ किया है कि इस उधारी का असर भारत सरकार के राजस्व घाटे पर नहीं पड़ेगा. इसे प्रदेश की सरकारों को पूंजीगत आय के तौर पर दिखाया जाएगा और प्रदेश की सरकारों के राजस्व में यह दिखाई देगा. बहरहाल, वित्त मंत्री ने अपने रुख में बदलाव कर न सिर्फ जीएसटी व्यवस्था के प्रति प्रदेशों के विश्वास को बनाए रखा है बल्कि बहुचर्चित ‘एक्ट ऑफ गॉड’ वाले जुमले से भी यू टर्न ले लिया है. कह सकते हैं कि देर आए दुरुस्त आए.

(प्रेम कुमार जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में लेखक के अपने विचार हैं. इन विचारों से क्‍व‍िंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

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