पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक होने से पहले तक माना जा रहा था कि 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को 100 से 120 सीटों का नुकसान हो सकता है. लेकिन कुछ हफ्ते बाद ही ऐसा लगने लगा है कि बीजेपी को 40 से 50 सीटों से ज्यादा नुकसान नहीं होगा.
लेकिन अब स्थिति स्पष्ट होने लगी है. भावनाएं ठंडी पड़ने लगी हैं, तो लगने लगा है कि बीजेपी को 210 से 220 सीटें मिलने जा रही हैं. मतलब 60 से 70 सीटों का नुकसान. 2017 से मैं कह रहा हूं कि भारतीय राजनीति के लिए यह नया पैमाना है. क्योंकि 2014 भारतीय राजनीति का मानक बन चुका है. किसी भी सूरत में यह निश्चित है कि अगली सरकार एनडीए बनाएगी. सवाल केवल यही है कि बीजेपी के सांसद कितने होंगे?
इससे भी अहम सवाल है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने रहेंगे या नहीं. लेकिन इस वक्त मोदी हटाओ का पूरा प्रोजेक्ट धराशायी होता दिख रहा है. यहां तक कि आरएसएस ने भी कोशिश छोड़ दिया है.
इसलिए जब तक कि मूड में बड़ा बदलाव नहीं आता है, ऐसा लगता है कि मोदी अगली सरकार बनाने जा रहे हैं. ऐसे में उन्हें किस तरह अपने काम करने का तरीका बदलना चाहिए?
अब जबकि वे दूसरे कार्यकाल की ओर बढ़ रहे हैं, तो उन्हें अपने आपसे पूछना चाहिए कि देश को वास्तविक मोदी मिले, इसके लिए वे क्या कर सकते हैं. ‘मन की बात’ चर्चा से कोई मकसद हासिल नहीं हुआ है. इसमें वे शेखी बघारते हुए और छिछली बातें करते नजर आते हैं.
अब यह सब जान चुके हैं कि मोदी को सार्वजनिक मंचों पर बढ़ा-चढ़ा कर बोलना पसंद है. अधिकारी या मंत्री स्तर की क्षमता वाले लोगों के साथ मोदी के व्यवहार को जितना निजी तौर पर जान पाया हूं, वे इस स्वभाव से बिल्कुल अलग किस्म के हैं.
नए मोदी?
अगर मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनते हैं, तो वे दो में से किसी एक तरीके से सामने आ सकते हैं. वे यह सोचना जारी रख सकते हैं कि उन्हें किसी बदलाव की जरूरत नहीं है या फिर वे वैसे उदारवादियों को साधने की कोशिश कर सकते हैं, जिन्हें कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों से लगाव नहीं है. लेकिन उनसे बहुत नफरत करते हैं.
इस बारे में मेरे तीन सुझाव हैं
मोदी विरोधी विचारों को तुष्ट करने का एक साधारण तरीका होगा कि कम से कम 15 प्रतिशत मुसलमानो को आम चुनाव में टिकट दिए जाएं. इससे कई उदारवादियों की आग ठंडी हो जाएगी. जहां से वे चुनाव लड़ते हैं, वहां से बीजेपी कभी जीत नहीं सकती. अगर वे हार जाते हैं, तब भी इसके लिए मोदी भी जिम्मेदार नहीं होंगे?
उन्हें उदारवादियों को सम्मानित करना शुरू करना चाहिए क्योंकि ऐसे ज्यादातर लोग पहचान पाने के लिए बेचैन हैं. कांग्रेस ने इस खेल को बेहतरीन तरीके से खेला था.
इनमें से कई लोग सम्मान को अस्वीकार करेंगे, लेकिन मेरा दावा है कि उनमें से ज्यादातर इसे खुशी-खुशी स्वीकार करेंगे. यही मानवीय स्वभाव है. लोगों को यह दावा करना अच्छा लगता है कि उनकी प्रधानमंत्री तक पहुंच है.
अगर वे उन्हें कोई आधिकारिक पद नहीं देना चाहते हैं तो वे कम से कम वे ऐसे लोगों को छोटे-छोटे समूहों में महीने में एक बार रविवार को चाय पर ही सही बुला सकते हैं. अगर कुछ न भी हो, तो भी उन्हें अपना वीकएंड बिताने की खुशी होगी. उनका आनन्द दुगुना हो जाएगा, अगर उनके मेहमान यह सोचते हुए लौटें, “अरे, कुल मिलाकर ये उतना बुरा नहीं है.” कई प्रधानमंत्रियों ने आलोचनाओं को साधने के लिए ऐसा किया है. यह हमेशा कारगर रहा है.
सहजता से, धीरे-धीरे
जैसा मैंने अक्टूबर 2017 में लिखा था, मोदी को दिखाना होगा कि वे बड़े गठबंधन में प्रभावशाली तरीके से काम कर सकते हैं. इसकी ज़रूरत उन्हें मंत्रिपरिषद बनाते वक्त होगी. उन्हें भारत के विभिन्न दृष्टिकोणों वाले लोगों को समायोजित करना होगा.
वास्तव में यह कई मायनों में उन्के लिए यह अब तक की सबसे बड़ी चुनौतियों रहेगी. जब से वे मुख्यमंत्री बने हैं तब से लेकर आज तक उन्हें कभी ऐसा नहीं करना पड़ा है. देश जानना चाहेगा कि गठबंधन दलों से 25 मंत्रियों को साथ लेकर मोदी खुद को किस तरह से अनुकूलित कर पाते हैं. उसके बाद बीजेपी के लिए केवल 45 मंत्री पद ही बाकी रह जाएंगे.
दूसरे कार्यकाल में मोदी को समझने और किसी नतीजे तक पहुंचने के लिए मुझे तीन परीक्षण करने हैं. अपने से विपरीत विचारों के साथ वे कैसा रुख अपनाते हैं, मुसलमानों को वे कितने टिकट देते हैं और किस तरह से वे अपनी पार्टी और एनडीए के बाकी दलों के सहयोगियों के बीच मंत्री पदों का बंटवारा करते हैं.
अच्छी शुरुआत इस बात से हो सकती है कि बीजेपी के किसी सांसद को एचआरडी नहीं दिया जाए. यह मजबूत संकेत होगा यह बताने के लिए कि वे बदल चुके हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)