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भारत-पाक दोस्‍ती: कश्मीरियों की पहली ख्वाहिश, मुफ्ती की आखिरी

पार्टी और प्रदेश से बाहर भी लोकप्रिय रहे भारत के पहले और अकेले मुसलमान गृहमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद को श्रद्धांजलि.

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वक्त हर घाव को भर देता है. पर ऐसा करने के लिए वक्त को भी एक दोस्त की जरूरत होती है, पिछले अनुभवों से सीखने की जरूरत होती है. इसके लिए अपनी जिद को छोड़कर झुकना भी जरूरी हो जाता है और कभी-कभी अपने दुश्मनों से भी हाथ मिलाना पड़ जाता है.

थोड़े समय की बीमारी के बाद 7 जनवरी, 2016 को गुजर जाने वाले मुफ्ती मुहम्मद सईद का जीवन धीरे-धीरे एक समाधान की ओर बढ़ते कश्मीर मुद्दे और सुधरते भारत-पाक रिश्तों की एक मिसाल की तरह देखा जाएगा.

अगर आज हम 1947 की ओर पलटकर देखें, जब भारत और पाकिस्तान की आजादी ने कश्मीर मुद्दे को जन्म दिया था, तो यह मानना सबसे आसान लगता है कि इस समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता. पर आज इन दोनों देशों के बीच मनमुटाव कुछ कम होता नजर आ रहा है. वक्त ने पुराने घावों पर मरहम का काम किया है.

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राजनेता मुफ्ती

मुफ्ती उस समय देश के सबसे ज्यादा नापसंद किए जाने वाले नेता बन गए, जब 1989 में वीपी सिंह की सरकार में गृहमंत्री रहते हुए उन्होंने अपनी बेटी को जम्‍मूू-कश्‍मीर लिबरेशन फ्रंट के अपहरणकर्ताओं से छुड़वाने के लिए पांच आतंकवादियों को रिहा कर दिया था. बीजेपी उस वक्त उनसे काफी नाराज थी, क्योंकि बीजेपी का मानना था कि मुफ्ती के इस आत्मसमर्पण की वजह से ही कश्मीर में हथियारबंद चरमपंथ के नए दौर की शुरुआत हुई थी.

इसके 25 साल बाद बीजेपी और मुफ्ती की पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने मिलकर कश्मीर में गठबंधन सरकार बनाई. यहां तक कि पिछले महीने मुफ्ती ने नरेंद्र मोदी को भारत के बेहतरीन प्रधानमंत्रियों में से एक बताया.

बीमार पड़ने पर 24 दिसंबर, 2015 को इलाज के लिए दिल्ली लाए जाने से पहले मुफ्ती एक खुशमिजाज व्यक्ति थे. उनकी खुशी का राज थी भारत-पाक रिश्तों में अचानक बढ़ी गर्माहट. बैंकॉक में दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों के बीच हुई वार्ता और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पाकिस्तान यात्रा ने दोनों देशों के बीच ठप पड़ी वार्ता के दोबारा शुरू होने की संभावनाएं बढ़ा दी थीं (25 दिसंबर को भारतीय प्रधानमंत्री की लाहौर यात्रा के दौरान ).

भारत-पाक वार्ता समर्थक

भारत-पाकिस्तान के बीच सुधरते रिश्तों से खुश मुफ्ती ने कहा था कि इन संबंधों के सुधरने का सबसे बड़ा फायदा कश्मीरियों को मिलेगा.

मैं यही चाहता हूं कि कश्मीर के लोगों का भाग्य अब बदल जाए और उन्हें पिछले ढाई दशकों से जिस हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, उससे निजात मिले.

मुफ्ती मुहम्मद सईद

उन्होंने कहा, “भारत-पाक वार्ता बहाली, हमेशा से दोनों देशों के बीच के संबंध सुधरने की दुआ करने वाले जम्मू व कश्मीर के लोगों की जीत है. मैं उम्मीद करता हूं कि सुलह का यह नया दौर हम सबके लिए बेहतर नतीजे लेकर आएगा.”

9 दिसंबर, 2015 को अपने गृह जनपद अनंतनाग में दिए एक भाषण के दौरान 2002 के अपने मुख्‍यमंत्रित्‍व काल को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उस समय भी भारत-पाकिस्तान के बीच एक सकारात्मक वार्ता का दौर शुरू हुआ था.

मुफ्ती ने कहा, “मैंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर इतिहास के रुख को बदलते हुए दोस्ती के एक नए दौर की शुरुआत की थी.”

मुफ्ती ने उस दौरान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और कश्मीरी हुर्रियत नेताओं के बीच बातचीत शुरू कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

इस बात की पुष्टि पूर्व रॉ चीफ व बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय में कश्मीर मुद्दे पर नजर रखने वाले ए एस दुलत अपनी किताब ‘कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स’ में भी करते हैं. दुलत लिखते हैं कि केंद्र में बीजेपी सरकार के मुखिया वाजपेयी और जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती उन दिनों कश्मीरियों के घावों पर मरहम रखने सफल रहे थे...

“मुफ्ती एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने कश्मीरियों के मनोविज्ञान को समझा था. उनकी सरकार के तीन साल (मुफ्ती अपने पहले कार्यकाल में तीन साल तक मुख्यमंत्री रहे थे) कश्मीरियों को एक लंबे अरसे के बाद मिले सबसे बेहतर साल थे.”

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अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन

हमने कश्मीर में एक से एक चौंकाने वाले गठबंधन देखे हैं. केंद्र की दोनों बड़ी पार्टियों, कांग्रेस और बीजेपी ने जम्मू व कश्मीर की दोनों बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के साथ गठबंधन बनाया है, इस बात के बावजूद कि दोनों ही केंद्रीय पार्टियों के रिश्ते 1947 से ही इन क्षेत्रीय पार्टियों के साथ तल्ख रहे हैं.

आधुनिक समय के सबसे बड़े कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला हालांकि बीजेपी के लिए कई दशकों तक एक अभिशाप की तरह रहे. उन्हीं के आदेश पर 1953 में भारतीय जनसंघ (बीजेपी का पुराना रूप) के संस्थापक डॉ. एसपी मुखर्जी को कश्मीर में गिरफ्तार किया गया था. नजरबंदी के दौरान ही डॉ. मुखर्जी की मौत हो गई थी. इसके बावजूद भी डॉ. फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला को वाजपेयी के मंत्रिमंडल में जगह मिली थी.

डॉ. अब्दुल्ला मनमोहन सिंह की सरकार में भी मंत्रिमंडल का हिस्सा थे, जबकि उमर अब्दुल्ला कांग्रेस के साथ गठबंधन वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार का जम्मू व कश्मीर में प्रतिनिधित्व कर रहे थे. पीडीपी गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली कांग्रेस की गठबंधन सरकार का हिस्सा बनी थी.

इन बदलते गठबंधन की सरकारों को अवसरवादी सरकार कह देना आसान है. यह मान लेना भी आसान है कि इनका कश्मीर के भविष्य पर कोई खास असर नहीं रहा. पर यह मानना सही नहीं है. ये गठबंधन कश्मीर के लोगों और नेताओं की बदलती विचारधारा का प्रतीक हैं.

कश्मीरियों की पहली ख्वाहिश उनके घर का अमन और चैन है. और वे जानते हैं कि इस अमन और चैन को तभी हासिल किया जा सकता है, जब भारत और पाकिस्तान के बीच के रिश्ते सहज रहेंगे. बस यही ख्वाहिश मुफ्ती मुहम्मद सईद की थी.

एक संवेदनशील शांतिदूत को मेरी श्रद्धांजलि.

(यह आलेख सुधींद्र कुलकर्णी ने लिखा है, जिन्‍होंने भारतीय राजनीति के उतार-चढ़ाव को बहुत नजदीक से देखा है.)

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