सशस्त्र बल और भारतीय नौसेना के साथ मेरे संबंध में कुछ चीजें ऐसी हैं जिसे देखकर विशेष रूप से मुझे खुशी मिलती है. उनमें से एक ये है - जब 21 सितंबर, सोमवार को मुझे पता चला कि दो सब-लेफ्टिनेंट की तैनाती समुद्र में की गई है.
मेरे लिए ये महत्वपूर्ण बात इसलिए थी क्योंकि वो दो सब-लेफ्टिनेंट महिलाएं हैं. भारतीय नौसेना के इतिहास में यह कदम सकारात्मक रूप से मील का पत्थर साबित होगा. मुझे इसे देखकर अतीत के सुनहरा पल याद आते हैं.
अपनी वर्दी को त्यागने के पीछे मेरा मुख्य कारण यही था कि महिला अधिकारियों की तैनाती समुद्र में करने की मनाही थी. बीते सालों में मैंने हमेशा चाहा है कि भारतीय नेवी महिलाओं के प्रति अपना रुख बदल ले और उन्हें भी समुद्र में तैनात किया जाए.
इसमें करीब 2 दशक लगे और इन सालों में हमने कई काबिल लोगों को वॉरशिप पर तैनात नहीं किया. वो लोग बतौर अफसर अपना योगदान दे सकते थे.
यह युद्धपोत में तैनाती है. ऐसे कई लोग होंगे जो कहेंगे कि उन्हें एक कोवर्ट या TRV पर तैनात किया जाए और देखें कि वे इसके बारे में कैसा महसूस करते हैं. मुझे उम्मीद है भारतीय नौसेना एक दिन ऐसा भी करेगी.
"इस बात को दो दशक हो गए, इस बीच हमने न जाने कितने ही बेहतरीन महिला ऑफिसरों को खो दिया जिन्हें समुद्री जंग में अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं मिला."
समुद्र में तैनात किए जाने की अहमियत कोई तब तक नहीं समझ सकता जब तक उसे वो खुद समुद्र में तैनात न हुआ हो. मुझे खुशी है कि भारतीय नौसेना के दरवाजे अब महिलाओं के लिए भी खुल चुके हैं खासकर उन चुनौतीपूर्ण कामों के लिए जिनके लिए नेवी को जाना जाता है.
मेरा अनुभव क्या कहता है ?
आज से दो दशक पहले जब INS ज्योति पर मेरी पोस्टिंग हुई थी. तब वो किसी समुद्री किनारे की पोस्टिंग की तरह ही थी. जहां लॉजिस्टिक काडर की पूरी जिम्मेदारी मेरे हाथ में थी. तब शायद मेरी लिए ये काफी संतोषजनक था.
उस समय हमें सबकुछ करना होता था. दिन की शुरुआत 0400 बजे से होती थी. तब सभी डिपार्टमेंट में अपनी भागीदारी देनी पड़ती थी. फिर चाहे गैलरी, स्टोर, ऑफिस या कोई अन्य असाइनमेंट ही क्यों न हो. मैं मुख्य रूप से कम्युनिकेशन सेंटर में कार्यरत थी.
समुद्र में तैनाती काफी चुनौतीपूर्ण है. उस समय मेरे टीम के सभी मेल अफसरों ने एक हफ्ते पहले से ही मेरी ताकत और प्रतिभा का अंदाजा लगाना शुरू कर दिया था. ये सुनिश्चित करने के लिए की क्या मैं इस चुनौतीपूर्ण कार्य के योग्य हूं या नहीं.
"जब मेरी तैनाती INS ज्योति पर हुई थी तब मेरे HOD और लेफ्टिनेंट सीडीआर वी अग्रवाल का मुझसे पहला सवाल यही था कि - क्या मैं अपना काम जानती हूं ?"
मुझे याद है तब मैंने उनसे पूछा था - "सर आप क्या कहना चाहते हैं?"
ये टेस्ट तो सभी का होता है. जब भी कोई किसी जगह पर पोस्ट किया जाता है. मैं कोई अलग नहीं थी. एक महिला होकर मैं यह समझ सकती थी कि पुरुष प्रधान स्थान पर महिलाएं ज्यादातर जांच के दायरे में आती हैं.
महिलाएं कैसे कम्यूनिकेट करती हैं
इन दो युवा महिला अफसरों की समुद्र में तैनाती कर भारतीय नौसेना ने जेंडर इक्वालिटी की ओर दूसरा विशेष कदम उठाया है. इसलिए इन पर अपने कर्तव्यों का भार भी अधिक है. अगर यह मात्र कोई साधारण अपॉइंटमेंट होता और इसे इतनी तवज्जो नहीं दी जाती तो. मैं समझती हूं उसका प्रेशर ऐसा न होता.
बहरहाल, यह मानसिकता सभी जगह मौजूद है फिर चाहे वो सशस्त्र बल हो या सबसे बड़ी नागरिकों की आबादी. लेकिन इस कारण महिलाओं को दस गुना प्रेशर झेलना पड़ता है. खासकर की तब, जब वो सामान्य महिलाओं से हटकर कुछ करने की ओर बढ़ती हैं. महिलाओं के बात करने का तरीका ही उन्हें अलग बनाता है.
अपनी मानसिकता को अगर बेझिझक दूसरे के सामने रख दिया जाए तो उसे गलत या असभ्य समझ लिया जाता है. महिलाओं से हमेशा ये उम्मीद रखी जाती है कि वो धीमी और मीठी आवाज में बातचीत करे ताकि वो सुनने में अच्छी लगे और कोई उसे अपमान भी न समझे.
वास्तव में समानता लाने के लिए ये धारणा बदलनी होगी. पुरुषों को भी समझना होगा कि जिस जगह वो काम कर रहे है महिलाएं भी उनकी बराबरी में हैं. वो टीम हैं. ऐसे में उन्हें भी समान रूप से बातचीत करने का हक है.
मुझे ताजुब होता है कि तब और आज भी अगर महिलाएं पुरुषों के समान ऊंची आवाज में बातचीत कर ले तो उसे अपमान समझा जाता है. खैर मैं मूल मुद्दे से हट रही हूं.
नई आशाओं की उम्मीद
मैं इन दोनों युवा महिलाओं को दुनिया की सारी शुभकामनाएं देती हूं. जिसकी इन्हें काफी जरूरत पड़ने वाली है. इन पर शिप कंपनी, फ्लीट, कमांड एनएचक्यू और उससे भी ज्यादा सड़कों पर मौजूद हर व्यक्ति की पैनी नजर रहेगी. फिर चाहे वो अनुभवी हो या गैर अनुभवी.
वो उनके हर एक मूव को बहुत गौर से आकेंगे और अपना निर्णय भी थोपेंगे. शिप पर उस छोटी जगह में वो उनकी हार-जीत, हर एक बात को बहुत ही गौर से देखेंगे क्योंकि वहां सब एक दूसरे के काफी करीब होते है.
"मैं उन्हें बहुत शुभकामनाएं देती हूं. जब एक महिला की समुद्र में तैनात होती है तब उसे काफी हद तक अपनी टीम पर ही निर्भर रहना पड़ता है."
मुझे आशा है कि नौसेना उनके साथ खड़ी रहेगी. मुझे ये भी आशा है कि पांच नेवी ऑफिसरों के पक्ष में जो सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है उसको अच्छी तरह से लागू किया जाए. मार्च 2020 से वो इसी की उम्मीद कर रही हैं.
क्या मुझे कोई सुन रहा है ?
शन्नो वरुणः
(लेफ्टिनेंट संध्या सूरी नेवी वेटरन हैं, साथ ही वो लेखक, कविताकार हैं. ये एक ओपीनियन पीस है. इसमें लिखे गए विचार लेखक के हैं. द क्विंट का इन विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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