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केरल विधानसभा चुनाव:क्यों इस बार टूट सकता है 4 दशक पुराना ट्रेंड? 

केरल में इस बार सियासी हवा का रुख किस ओर दिख रहा है?

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राज्य
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केरल में इस बार का विधानसभा चुनाव 4 दशक पुराने एक ट्रेंड को तोड़ सकता है. ऐसा किस तरह हो सकता है? इस चुनाव के बड़े मुद्दे क्या हैं? चुनावी अखाड़े में कौन क्या दांव आजमा रहा है? राज्य में इस बार सियासी हवा का रुख किस तरफ दिख रहा है? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं.

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मुकाबले में कौन-कौन है?

केरल की राजनीति लंबे वक्त से कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन - यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) - और सीपीएम के नेतृत्व वाले - लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ)- के इर्द-गिर्द ही रही है. इस बार भी चुनावी मुकाबला मुख्य तौर पर इन दोनों के बीच ही है.

सत्तारूढ़ एलडीएफ इस चुनाव में 4 दशक पुराने ट्रेंड को तोड़कर लगातार दूसरी बार सत्ता में आने की कोशिश में है. केरल में पिछली बार साल 1977 में किसी पार्टी/गठबंधन ने लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की थी, जब कांग्रेस की अगुवाई वाले फ्रंट (जिसमें तब सीपीआई भी शामिल थी) ने चुनाव जीता था. इसके बाद 1980 के विधानसभा चुनाव से सत्ता बदलने का जो ट्रेंड शुरू हुआ, वो अभी तक नहीं टूटा है.

इस बार के चुनाव के जरिए बीजेपी भी केरल में अपना कद बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रही है. केरल के पिछले विधानसभा चुनाव (2016) में बीजेपी राज्य की कुल 140 में से 98 सीटों पर उतरी थी और उसे महज 1 सीट पर ही जीत मिली थी.

केरल में इस बार सियासी हवा का रुख किस ओर दिख रहा है?

सीट बंटवारे की बात करें तो यूडीएफ में कांग्रेस 92 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसके अलावा इस गठबंधन में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) 27 सीटों पर, केरल कांग्रेस (जोसेफ) 10 सीटों पर, मणि सी कप्पन की नेशनलिस्ट केरल कांग्रेस दो सीटों पर और कम्युनिस्ट मार्क्सिस्ट पार्टी एक सीट पर चुनाव लड़ रही है.

एलडीएफ के सीट बंटवारे में सीपीएम के खाते में 85 सीटें आई हैं, जबकि बाकी 55 सीटों पर उसकी सहयोगी पार्टियां लड़ेंगी.

बीजेपी 115 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि बाकी 25 सीटों पर उसके सहयोगी उम्मीदवार उतारेंगे. दक्षिण के इस राज्य में बीजेपी ने भारत धर्म जन सेना (बीजेडीएस) और जनाथीपथ्य राष्ट्रीय सभा (जेआरएस) के साथ गठबंधन किया है.

इस मुकाबले का एक दिलचस्प पहलू यह है कि केरल में जिस कांग्रेस और लेफ्ट के बीच सीधा मुकाबला है, पश्चिम बंगाल में उनके बीच गठबंधन है. 
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चुनाव के बड़े मुद्दे क्या हैं?

सीवोटर के एक हालिया सर्वे के मुताबिक, केरल में जनता के बीच इस बार का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बेरोजगारी का है, जिसे सर्वे का हिस्सा बने 41 फीसदी लोगों ने सबसे बड़ा मुद्दा माना. इसके बाद बिजली/पानी/सड़क की स्थिति (14.5 फीसदी), सरकारी कामों में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण (11.5 फीसदी), कोरोना वायरस महामारी (7.6 फीसदी) बड़े मुद्दों के तौर पर सामने आए हैं.

केरल में इस बार सियासी हवा का रुख किस ओर दिख रहा है?

हालांकि, इन मुद्दों के अलावा सियासी आरोप-प्रत्यारोप के बीच सोना तस्करी मामला और सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला जैसे मुद्दे भी छाए हुए हैं.

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चुनावी अखाड़े में कौन क्या दांव आजमा रहा है?

कांग्रेस

स्नैपशॉट

सबसे पहले कांग्रेस की बात करते हैं, जो अंदरूनी कलह से उबरकर केरल की सत्ता में फिर से वापसी के लिए काफी जोर लगाती दिख रही है.

केरल के वायनाड से सांसद और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले दिनों कहा था, ‘‘पहले 15 साल मैं उत्तर भारत से सांसद रहा, इसलिए मुझे अलग तरह की राजनीति की आदत हो गई थी. मेरे लिए केरल आना नया अनुभव था क्योंकि अचानक मैंने देखा कि लोग मुद्दों में दिलचस्पी रखते हैं, सिर्फ दिखावे के लिए नहीं बल्कि गहनता से उस पर विचार करते हैं.’’

फरवरी में अपने केरल दौरे के वक्त राहुल ने राज्य सचिवालय के सामने पीएससी रैंक धारकों के एक वर्ग की ओर से किए जा रहे विरोध प्रदर्शन को लेकर लेफ्ट सरकार और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन पर निशाना साधा और दावा किया कि केरल में नौकरियां केवल सीपीएम कार्यकर्ताओं के लिए ही उपलब्ध हैं.

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री प्रदर्शनकारियों के साथ उन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं जो नौकरियों की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर हैं, लेकिन अगर वे लेफ्ट पार्टियों से होते तो बातचीत करते. राहुल इन प्रदर्शनकारियों से मिलने पहुंचे थे और उन्होंने उनकी शिकायतें भी सुनी थीं.

राहुल ने केरल के अपने चुनावी अभियान में फ्यूल की ऊंची कीमतों का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने कहा, ‘‘हर दिन, जब आप अपने वाहन में यात्रा करते हैं, तो यह याद रखें कि केंद्र और राज्य दोनों ही आपसे पैसे लेकर इस देश के सबसे अमीर लोगों को दे रहे हैं. यह वह राजनीति है जिसे हम बदलने की कोशिश कर रहे हैं. हम गरीबों के लिए काम करना चाहते हैं.’’

इसके अलावा उन्होंने केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों को लेकर बीजेपी की अगुवाई वाली नरेंद्र मोदी सरकार को भी निशाने पर लिया. उन्होंने आरोप लगाया कि पहले दो कानून देश के कृषि क्षेत्र को नष्ट करते हैं, वहीं तीसरा किसानों को न्याय से वंचित करता है.

राहुल ने वादा किया है कि केरल में यूडीएफ की सरकार बनी तो यहां से न्यूनतम आय योजना (न्याय) को शुरू किया जाएगा. इसे लेकर हाल ही में उन्होंने कहा, “मैं वादा करता हूं कि हमारी सरकार के सत्ता में आने के कुछ दिनों के बाद ही ‘न्याय’ को लागू किया जाएगा. इसके तहत प्रत्येक महीने हर परिवार को 6000 रुपये उनके बैंक खातों में दिए जाएंगे. हम देख पा रहे हैं कि इससे अर्थव्यवस्था सुधरेगी, जो अभी बहुत बुरी स्थिति में है. इन पैसों का इस्तेमाल करके लोग चीजों को खरीद सकते हैं और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किया जाएगा.”

इसके अलावा कांग्रेस ने राज्य में मछुआरों के हितों का मुद्दा उठाकर विजयन सरकार को घेरने की कोशिश की है. राहुल गांधी केरल में मछुआरों के साथ समंदर में तैरते भी दिख चुके हैं.

हालांकि, पिछले दिनों विजयन ने कांग्रेस के उन आरोपों को आधारहीन बताकर खारिज किया कि सरकारी निगमों ने गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए एक अमेरिकी कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार कभी भी ऐसे क्षेत्रों में किसी कॉर्पोरेट को अनुमति नहीं देगी.

विजयन ने कहा कि ईएमसीसी इंटरनेशनल के साथ राज्य के स्वामित्व वाले निगमों की ओर से हस्ताक्षरित दो समझौता ज्ञापन (एमओयू) गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए नहीं है. उन्होंने राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला पर मछुआरों को गुमराह करने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया.

कांग्रेस ने इस चुनाव में सोना तस्करी का मामला भी उठाया है. इस पर कांग्रेस नेता एके एंटनी ने कहा, "क्या कोई भूल सकता है कि सोने की तस्करी के मामले में विजयन के ऑफिस का दुरुपयोग कैसे हुआ और उसका अपना प्रमुख सचिव जेल में है."

बीजेपी

सोना तस्करी मामले पर बीजेपी ने भी विजयन सरकार को घेरने की कोशिश की है. केंद्रीय गृह मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता अमित शाह ने सोना तस्करी मामले में गिरफ्तार मुख्य आरोपी स्वप्ना सुरेश की ओर इशारा करते हुए हाल ही में सवाल किया, ‘‘मुख्यमंत्री का आरोप है कि केंद्रीय एजेंसियां राजनीतिक औजार के रूप में काम कर रही हैं. मैं कुछ सवाल पूछना चाहता हूं. मैं मुख्यमंत्री से पूछना चाहता हूं कि डॉलर या सोना घोटाले की मुख्य आरोपी उनके कार्यालय में काम करती थी या नहीं?’’

सुरेश को केरल स्टेट इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के तहत स्पेस पार्क परियोजना में तब एक संविदा पद से हटा दिया गया था, जब उसका नाम पिछले साल राजनयिक चैनल के जरिए सोने की तस्करी के सिलसिले में सामने आया था. विजयन के तत्कालीन प्रधान सचिव और आईटी सचिव एम शिवशंकर को भी सुरेश से उनके संबंधों के आरोपों पर एक आधिकारिक समिति के निष्कर्ष के आधार पर पद से हटाकर निलंबित कर दिया गया था.

बीजेपी लेफ्ट के साथ-साथ कांग्रेस पर भी हमला बोल रही है. इसी क्रम में शाह ने कोल्लम जिले में एक जनसभा के दौरान कहा, ‘‘ राहुल (गांधी) बाबा पिकनिक के लिए केरल आए थे. केरल के लोगों को उनसे पूछना चाहिए कि कैसे कांग्रेस एक तरफ केरल में कम्युनिस्टों से लड़ रही है जबकि दूसरी तरफ बंगाल में दोनों एक दूसरे के साथी हैं.’’

बीजेपी ने एलडीएफ सरकार पर पिछले विधानसभा चुनाव में किए गए वादों को पूरा ना करने का आरोप लगाया है और कहा है कि राज्य में बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है. केरल की अर्थव्यवस्था में मंदी पर चिंता जताते हुए बीजेपी ने कहा है कि राज्य खाड़ी और बाकी देशों से भेजे जाने धन पर काफी निर्भर है और राज्य में रोजगार के बहुत कम मौके हैं.

बीजेपी ने ‘मेट्रो मैन’ के नाम से मशहूर ई श्रीधरन को पलक्कड़ से उम्मीदवार बनाया है जबकि प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के सुरेन्द्रन को दो सीटों से मैदान में उतारा है. सुरेन्द्रन को मंजेश्वर और कोन्नी विधानसभा क्षेत्रों से पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 मार्च को जब दिल्ली के एम्स में COVID-19 वैक्सीन की पहली खुराक ली थी, तब बाकी चुनावी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश के साथ-साथ केरल की झलक भी दिखाई दी थी. दरअसल प्रधानमंत्री के टीकाकरण के दौरान केरल की नर्स रोसम्मा अनिल वहां मौजूद थीं.

लेफ्ट

बात लेफ्ट की करें तो वो गुड गवर्नेंस, विकास, जनकल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों के दम पर सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहा है. विजयन ने हाल ही में धर्मधाम से अपना नामांकन दाखिल करने के बाद ट्वीट कर कहा था, ‘’पिछले 5 सालों में विकास और कल्याणकारी प्रोजेक्ट को क्रियान्वित किया...इसे आगे और मजबूत किए जाने की जरूरत है. हम केरल की समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए लोगों के साथ खड़े हैं.’’

इसके अलावा विजयन ने अलाप्पुझा में मीडिया से कहा कि उन्होंने कई जिलों को कवर किया है और उन्हें अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली हैं. विजयन ने कहा, "लोगों को अहसास हुआ है कि केवल वामपंथी ही विकास कर सकते हैं. इसी तरह सभी जगहों पर महिलाओं को लेकर एक बहुत बड़ा बदलाव आया है और यह दर्शाता है कि वामपंथी महिलाओं के अनुकूल कार्यक्रम और प्रोजेक्ट लाने में सक्षम साबित हुए हैं. इसका सबसे अच्छा उदाहरण कुडुम्बश्री (महिला सशक्तिकरण) है. कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ इस कार्यक्रम को खत्म करने की कोशिश कर रहा था. उधर कांग्रेस पार्टी तो अपनी महिला विंग को ही नहीं संभाल पा रही है."

विजयन ने आगे कहा, "ये सभी घटनाक्रम साफ तौर पर दर्शाते हैं कि केरल में वामपंथी अपनी सत्ता बनाए रखने में पूरी तरह से कामयाब होंगे क्योंकि केरल के लोग यही चाहते हैं."

वहीं, सबरीमाला जैसे संवेदनशील मुद्दे पर एलडीएफ ज्यादा कुछ बोलने बच रहा है. हालांकि, एलडीएफ में शामिल दूसरी बड़ी पार्टी सीपीआई ने पिछले दिनों साफ किया कि लेफ्ट सरकार सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे पर ‘‘कायम’’ है. पार्टी ने कहा कि हलफनामे में स्पष्ट है कि सरकार नहीं, बल्कि विशेषज्ञों की समिति और ‘हिंदू धर्म’ के विद्वानों को सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर अंतिम फैसला लेना चाहिए.

वहीं, विजयन ने कहा कि कुछ लोग चुनाव के दौरान सबरीमला का मुद्दा उठाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘इसे अभी उठाने की जरूरत नहीं है. अंतिम फैसले के बाद अन्य चीजों के बारे में सोचें.’’ मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने इस तीर्थस्थल पर श्रद्धालुओं की सुविधा को बेहतर बनाने के लिए 1487 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की थी.

इस मामले बीजेपी का कहना है कि लेफ्ट सरकार का यह कहना कि उसके हलफनामे में कोई बदलाव नहीं होगा, इस पवित्र स्थल को फिर से हंगामे की जगह में तब्दील कर देगा. कांग्रेस का कहना है कि कि लेफ्ट सरकार का रुख सबरीमाला के प्रति उसका ‘निष्ठाहीन’ रवैया दिखाता है.

कांग्रेस ने हाल में विजयन से समाज के उन 'जख्मों' को भरने के लिए 'कानूनी इलाजों' की मांग की थी, जो सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए सरकार के कथित जल्दबाजी में लिए गए फैसले के चलते पैदा हुए थे. शीर्ष अदालत का यह फैसला सबरीमाला में भगवान अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश से संबंधित था.

तीनों मोर्चों के घोषणापत्रों के बड़े वादे क्या हैं?

बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के घोषणापत्र के बारे में केंद्रीय मंत्री और बीजेपी प्रकाश जावडेकर ने हाल ही में बताया, “प्रमुख बिंदुओं की बात करें तो यह घोषणापत्र परिवार के कम से कम एक सदस्य को रोजगार देने, केरल को आतंकवाद मुक्त करने, भूख से मुक्त करने, सबरीमाला कानून (मंदिर की परंपरा के संरक्षण के लिए), हाई स्कूल के छात्रों को मुफ्त लैपटॉप और लव जिहाद के खिलाफ कानून की गारंटी देता है.”

यूडीएफ के घोषणपत्र में सभी सफेद कार्ड धारकों को पांच किलोग्राम चावल निशुल्क देने और गरीबों के लिए पांच लाख मकान बनाने का वादा किया गया है. इसके अलावा यूडीएफ ने सबरीमाला के भगवान अयप्पा मंदिर की परंपराओं की रक्षा के लिए एक विशेष कानून बनाने और 40-60 साल की गैर नौकरी पेशा घरेलू महिलाओं को दो हजार रुपये की मासिक पेंशन देने का वादा भी किया है. इस गठबंधन ने महिलाओं को लुभाने के लिए ऐसी माओं को उम्र सीमा में दो साल की छूट देने का वादा किया है, जो सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षा देना चाहती हैं.

एलडीएफ के घोषणापत्र में युवाओं के लिए 40 लाख रोजगार पैदा करने और सभी गृहणियों को ‘पेंशन’ देने का वादा किया है. इसमें तटों के क्षरण को रोकने के लिए 5000 करोड़ रुपये के तटीय क्षेत्र विकास पैकेज समेत कई अन्य वादे भी किए गए हैं. इसके अलावा सामाजिक सुरक्षा पेंशन भी चरणबद्ध तरीके से बढ़ाकर 2500 रुपये करने का वादा किया गया है.

केरल में इस बार सियासी हवा का रुख किस ओर दिख रहा है?
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केरल में कौन जीत रहा है?

सीवोटर के हालिया सर्वे के मुताबिक, केरल में एक बार फिर एलडीएफ की सरकार बनती दिख रही है.

केरल में इस बार सियासी हवा का रुख किस ओर दिख रहा है?

यह अनुमान सही साबित हुआ तो उसके पीछे एक बड़ी वजह यह होगी कि पी विजयन की अगुवाई में एलडीएफ, अंदरूनी कलह से उबरने की कोशिश में जुटी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ से ज्यादा एकजुट और अनुशासित नजर रहा है. कांग्रेस की कलह को समझने के लिए इन घटनाओं पर नजर दौड़ा सकते हैं:

  • कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीसी चाको ने पार्टी छोड़ दी है. चाको ने आरोप लगाया था कि चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवार तय करने में गुटबाजी हावी रही.
  • महिला कांग्रेस की केरल इकाई प्रमुख लतिका सुभाष ने एत्तूमनूर सीट से टिकट न मिलने के बाद न सिर्फ अपने पद से इस्तीफा दे दिया, बल्कि उन्होंने पार्टी कार्यालय के सामने बैठकर अपने सिर के बाल भी मुंड़ा लिए.
  • प्रदेश कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष और एआईसीसी की सदस्य केसी रोजाकुट्टी ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और एलडीएफ से जुड़ने का फैसला किया.
  • टिकट न मिलने को लेकर कई स्थानों पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया. पथनमथिट्टा के पूर्व डीसीसी प्रमुख पी मोहनराज ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया, जबकि कन्नूर जिले में 22 डीसीसी सदस्यों ने पद से इस्तीफा दे दिया.

केरल में 6 अप्रैल को विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग होनी है. इस चुनाव के नतीजे 2 मई को आएंगे.

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