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पाकिस्तान और चीन की 'पक्की दोस्ती' में दरारें दिखने लगी हैं

पाकिस्तान पर बलोच और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के बढ़ते हुए हमलों को देखते हुए बीजिंग, तालिबान पर दबाव बना सकता है.

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एक बात कही जा सकती है कि पाकिस्तान से जुड़ी कोई भी बात हो उसकी अलग-अलग कूटनीतिक चालें हमेशा ही किसी न किसी तरह मजाक का विषय बन जाती हैं. उदाहरण के लिए, हाल में चीन और पाकिस्तान के संयुक्त बयान को लें, जिसमें पाकिस्तान ने न सिर्फ तिब्बत, हॉन्गकॉन्ग और दक्षिण चीन सागर पर चीन की स्थिति को स्वीकृति दी है, बल्कि शिनजियांग, जहां मुसलमानों को खदेड़ा जा रहा है, इसे लेकर भी पाकिस्तान ने चीन का साथ दिया, जिससे उसके रिश्ते नरम रहें.

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हालांकि, इसके तुरंत बाद इस्लामाबाद ने भारत में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का मुद्दा उठाया. ये पाकिस्तान का हैरान करने वाला एक ऐसा विरोधाभासी बयान था, जो हास्यास्पद लग रहा था.

यहां ये बताने की जरूरत नहीं है कि चीन की तरफ से इस कार्यक्रम में ऐसा कुछ नहीं कहा गया. हालांकि, ऐसा बहुत कुछ किया गया जो दो ‘iron brothers’ के हित में है और उनके बीच संबंधों को विस्तार देता है.

बैठक से पहले क्या था?

इस दौरे के महीनों पहले से ही ये दिखने लगा था कि चीजें मुश्किल होने जा रही हैं. इन मुद्दों के केंद्र में पाकिस्तान की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था थी और ये तथ्य भी कि पिछले 3 सालों से जून 2022 तक उस पर चीन का बहुत ज्यादा कर्ज है. ये करीब 6 बिलियन डॉलर है और उससे कहीं ज्यादा जो पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से लिया है.

ये रकम 2.8 बिलियन डॉलर है. जाहिर है कि ये कर्ज मुद्दों के केंद्र में रहेगा. ये ऐसा कुछ है जो महीनों तक चर्चा में रहा और बीजिंग इसे कुशलता से टालता रहा है.

ये दौरा चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के दूसरे फेज और स्पेशल इकनॉमिक जोन्स (SEZ) के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट से इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट में बदलने से लेकर एग्रीकल्चर सेक्टर जैसे कई मुद्दों को लेकर था.

समस्या ये है कि इसका फर्स्ट फेज पहले ही बुरी तरह पिछड़ रहा है. ये बात खुद प्रधानमंत्री ने सीनेट रिपोर्ट के सामने आने के बाद स्वीकार की है, जिसमें चीन की असंतुष्टि की बात कही गई.

इससे ज्यादा खराब स्थिति को दिखा रही है Aid Data की रिपोर्ट, जिसमें न सिर्फ कैसे लोन उपलब्ध कराया जाए, इसमें लुका छिपी की प्रक्रिया सामने आ रही है, बल्कि एक औसत लोन के साथ ब्याज दरें भी करीब 3.76 प्रतिशत हैं और इसकी अवधि 13.2 वर्ष है. वहीं, ये सब इस तरह तैयार किया गया है जिससे इंवेस्टर्स के लिए जोखिम को कम किया जा सके.

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सबसे अहम ये है कि इस्लामाबाद वापस IMF के पास जा रहा है और ये इतना आसान नहीं है. ये फंड सिर्फ अकाउंट बुक्स पर निर्भर नहीं करता बल्कि इसके लिए इस्लामाबाद को कानून बनाना पड़ा जिसके तहत स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान पर कड़े नियंत्रण लागू हैं, जो इसे अतिक्रमण जैसी स्थिति से मुक्त करते हैं.

इस बीच पॉलिसी मेकर्स चीन पाकिस्तानों संबंधों में आ रही एक गंभीर रुकावट को दूर करने में लगे हैं. इसके लिए रिवॉल्विंग बैंक अकाउंट खोले जा रहे हैं, जिससे चीन की पावर कंपनियों को पेमेंट की स्वीकृति मिल सके. ये दशकों से चले आ रहे सर्कुलर कर्ज की समस्या को दूर करने के लिए किया जा रहा है. कर्ज को कम करने के लिए चीनी IPPs के नाम एक बार फिर 50 बिलियन रुपये जारी किए गए. इसके अलावा हैरान करने वाली दूसरी घोषणा ये कि 11.6 मिलियन डॉलर का भुगतान चीन के उन लोगों को किया जाएगा, जो आतंकी हमलों में घायल हुए या मारे गए हैं. साफ तौर पर इमरान खान का बीजिंग दौरान बहुत अच्छा नहीं माना जाएगा, लेकिन पूरी तरह से ऐसा नहीं है.

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बीजिंग की बैठक

“Framework Agreement on Industrial Cooperation” को इस उम्मीद के साथ साइन किया गया था कि इससे फेज 2 के स्पेशल इकनॉमिक जोन्स में इंडस्ट्री को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. इसमें पेंच ये है कि इस समझौते में चीन के निवेशकों को कई ब्यूरोक्रेटिक प्रक्रियाओं से छूट दी गई है. ईज ऑफ बिजनेस के लिए इकनॉमिक जोन एक्ट में संशोधन किए गए हैं और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ये वादा भी कर रहे हैं कि वो किसी भी रुकावट पैदा करने वाली स्थिति में खुद व्यक्तिगत रूप से दखल देंगे.

नए कानून में अब प्रधानमंत्री कार्यालय के पास कई महत्वपूर्ण शक्तियां हैं, जो CPEC अथॉरिटी के अधिकारियों को आपराधिक जांचों से बचाएंगी.

हालांकि, ज्वॉइंट स्टेटमेंट में ग्वादर के लिए ‘हाई क्वालिटी डेवलपमेंट’ प्रोजेक्ट्स की बात कही गई है. इसमें कथित तौर पर एक स्टील और मेटल रिसाइकलिंग प्लांट भी शामिल है.
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इस्लामाबाद प्रोजेक्ट्स को पूरा कर पाएगा?

लेकिन यहां रुकावट क्या है ये जानिए. कर्ज को रिन्यू किए जाने को लेकर करंसी स्वैप में 4.5 बिलियन डॉलर से 10 बिलियन डॉलर का एक्सटेंशन और 5.5 बिलियन डॉलर का एडिशनल फाइनेंशियल सपोर्ट अभी भी विचाराधीन है.

बीजिंग साफतौर पर और ज्यादा पैसों के लिए स्वीकृति देने से पहले ये देखने के इंतजार में है कि इस्लामाबाद इस बार प्रोजेक्ट्स को पूरा कर पाएगा या नहीं.

यहां बता दें कि एकमात्र सबसे बड़ा प्रोजेक्ट मेन लाइन वन है जो कराची से पेशावर तक है, वो अभी तक लटका हुआ है. इससे पहले बीजिंग को न सिर्फ इस बात को शंका रही है कि पाकिस्तान प्रोजेक्ट के कॉस्ट को कम करता रहा है, बल्कि IMF के लगाए गए प्रतिबंध और G-20 Debt Servicing Suspension Initiative जैसी बातें भी उसके संदेह को बढ़ा रही हैं.

ये सभी गंभीर मुद्दे हैं, लेकिन यहां CPEC भी है जिसमें 9 पावर प्रोजेक्ट्स हैं. इन प्रोजेक्ट्स में से एक मटियारी-लाहौर ट्रांसमिशन लाइन तैयार है और चालू हो चुकी है जबकि 6 अन्य प्रोजेक्ट्स को लेकर भी कहा जा रहा है कि वो जल्द पूरे होने जा रहे हैं.

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फेज 2 से जुड़े महत्वपूर्ण पहलू

यहां ये भी जानिए कि फेज 2 से जुड़े ऐसे कई महत्वपूर्ण पहलू हैं जो चीन के हितों में होंगे. सबसे पहला डिजिटल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स जो पाकिस्तानी मिलिट्री के स्पेशल कम्युनिकेशन ऑर्गनाइजेशन के पास हैं.

यहां रोचक ये है कि फाइबर ऑप्टिक लाइन का पहला स्टेज इस्लामाबाद तक न होकर, रावलपिंडी तक पूरा हुआ. अगले फेज में ये ग्वादर तक जाएगा जिसमें एक नया सबमरीन लैंडिग स्टेशन भी होगा.

इसमें चीन का फायदा क्या है? और वो ये कि यह यूरोप, मिडिल ईस्ट और अफ्रीका तक ट्रांजिट टेलीकॉम ट्रैफिक के लिए वैकल्पिक और कम समय में पहुंच को उपलब्ध कराएगा. इससे अमेरिका द्वारा किसी भी तरह के केबल कटिंग ऑपरेशन्स का हल मिल जाएगा. वहीं, पाकिस्तान इससे अपने मिलिट्री कम्यूनिकेशंस की सुरक्षा को भी सुनिश्चित कर सकता है. लेकिन यहां इसका मतलब ये भी है कि पाकिस्तान के पूरे इंटरेनट स्पेस पर चीन का अधिकार होगा और इससे चीनी मोबाइल कंपनियों का निवेश बढ़ेगा.

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दूसरा पहलू ये कि फेज 2 में CPEC का सबसे महत्वपूर्ण या कहें एक्चुअल हार्ट कृषि भी शामिल है. इससे पहले मास्टर प्लान में सामने आया था कि इसमें बीजों, फर्टिलाइजर, क्रेडिट और कीटनाशकों से लेकर प्रोसेसिंग फैसिलिटीज और लॉजिस्टिक्स के लिए एक end-to-end सप्लाई चेन होगा. इनमें से कई फार्म चीनी कंपनियों द्वारा ऑपरेट किए जाएंगे. ऐसे समय में जब चीन ऊंची कीमतों, सूखे और कृषि के लिए योग्य जमीन के कम होने जैसी दिक्कतों का सामना कर रहा है. इस स्थिति में ये फार्म चीन की खाद्य आपूर्ति के लिए एक बड़े प्रोजेक्ट के तौर पर देखे जा रहे हैं. हालांकि, इसका अंतिम परिणाम अप्रत्यक्ष रूप से उपनिवेश बसाने की इजाजत देने जैसा ही होगा.

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दोस्ताना विदेश नीति

शिनजियांग के मुद्दे पर चीन का समर्थन करके पाकिस्तान ने खुद को किनारे कर लिया है. वहीं बीजिंग, यूएन चार्टर, सिक्योरिटी काउंसिल के रेजॉल्यूशंस और द्विपक्षीय समझौतों का हवाला देते हुए बार बस इतना कहता है कि कश्मीर मुद्दा इतिहास का विवाद है.

हालांकि, वो ऐसी किसी एकपक्षीय कार्रवाई का भी विरोध करता है जो स्थिति को और जटिल बना दे. दूसरे शब्दों में कहें तो चीन लगातार ये स्वीकार करता रहा है कि पूर्व कश्मीर राज्य की सीमाएं विवादित हैं, लेकिन धारा 370 को हटाने का विरोध भी चीन करता है.

याद कीजिए कि कश्मीर के एक क्षेत्र पर चीन के कब्जे के बाद ये 2 मार्च 1963 के PRC Pakistan Agreement के तहत शासित हो रहा है. इसके अनुसार कश्मीर विवाद के समाधान के बाद इसे दोबारा तैयार किया जाएगा. ये उसके बिल्कुल उलट है जो तर्क चीन गलवान को लेकर देता है.

यहां ज्वाइंट Gandhara आर्ट एग्जिबिशन का एक संदर्भ भी है. विडंबना ये कि यह एक कट्टर इस्लामिक स्टेट और एक कम्युनिस्ट देश के बीच था, लेकिन फिर इस बात से ये भी साफ नजर आता है कि बीजिंग स्टेट कंट्रोल्ड रिलीजन का इस्तेमाल अपने उद्देश्यों के लिए कैसे करता है.

चीन ने बार बार पाकिस्तान की संप्रभुता, स्वतंत्रता और सुरक्षा को संरक्षित रखने का समर्थन देने की पुष्टि की है, जो खतरनाक ढंग से उस प्रतिबद्धता जैसा लगता है जिसकी आड़ में वो खुद का भी बचाव करता रहता है. वहीं ये काफी हद तक न्यूक्लियर और रक्षा संंबंधों को लेकर भी है.

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ये कभी इस्लामाबाद के लिए सपोर्ट का बड़ा स्तंभ था और वो अपने न्यूक्लियर उपकरणों के लिए पूरी तरह से चीन की मदद पर निर्भर था. लेकिन ये सहयोग दूसरा रूप भी ले सकता है. नवम्बर 2021 में पाकिस्तान की नौसेना ने चार तरह के 054A/P युद्ध पोत लिए थे. ये चीन के अब तक के सबसे बड़े सौदे का हिस्सा था. इसमें न सिर्फ शक्तिशाली युद्धपोत थे बल्कि 8 सबमरीन भी थे. ये सबकुछ भारत के साथ संतुलन बैठाने के लिए मॉडर्नाइजेशन ड्राइव का हिस्सा था.

ये युद्धपोत एक देशी मिसाइल से लैस थे जिसके बारे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये असल में Chinese hypersonic anti-ship missile CM-401 थी, जो बड़ी ही कुशलता से इंटरसेप्शन को पकड़ सकती है. कह सकते हैं कि ये भारी भरकम पैकेज था, लेकिन इसका सबसे रोचक पहलू ये है कि चीन की नौसेना के इन रत्नों का रखरखाव पाकिस्तान अकेले नहीं कर पाता. इसलिए पीएलए नेवी इस पर कड़ाई से नजर रखती है और इसका मतलब ये कि यहां भी पाकिस्तान की स्वायत्तता खत्म होती नजर आती है.

यहां ये भी जानना जरूरी है कि यह सिर्फ पाकिस्तान के मॉडर्नाइजेशन की बात नहीं है. ये डील साल 2017 में साइन हुई थी. ये वही समय था जब भारत ने Quad के लिए हस्ताक्षर किए थे. इसलिए ये डील बीजिंग को सूट करती है. ये भारत को कुछ हद तक मात देती है और चीन की नौसेना को Ormara में मजबूत पकड़ बनाने का मौका भी देती है.
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इमरान खान का कूटनीतिक संकेत

कुल मिलाकर ये सबकुछ बीजिंग के इशारे पर होता रहा है. यहां तक कि कश्मीर पर भी इस्लामाबाद ने अपनी आवाज एक निश्चित दायरे तक ही रखी.

पाकिस्तान और चीन का लोहे जैसा मजबूत रिश्ता साफ तौर पर ऐसा हो गया है जैसे इसमें जंग लग गई हो, लेकिन ये तकरार से बहुत दूर है. ऐसा होगा नहीं. अभी तक पाकिस्तान लगातार कोशिश कर रहा है बीजिंग से उसके रिश्ते अच्छे रहें और वो उससे मुंह न मोड़े.

पाकिस्तान पर बलोच और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के बढ़ते हुए हमलों को देखते हुए बीजिंग, तालिबान पर दबाव बना सकता है, लेकिन उसे इसके लिए इस्लामाबाद की जरूरत नहीं होगी और ये बात इमरान खान अच्छी तरह जानते हैं.

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यही वजह है कि इमरान खान ने ऐसा कुछ किया जिसे वो अपने जीवन की सबसे बड़ी कूटनीतिक चाल मानते हैं. उन्होंने 1970 के मशहूर Henry Kissinger बैकचैनल का बदला लेते हुए चीन और अमेरिका को करीब लाने का ऑफर दिया जिससे वो पेकिंग तक पहुंच बना सकें. लेकिन ये जहाज इस्लामाबाद के बिना ही निकल गया. जाहिर है कि इस तरह की बातें सीधे तौर पर होंगी या इससे कहीं ज्यादा विश्वसनीय माध्यमों के जरिए. इसके लिए ऐसे जोखिम भरे प्रधानमंत्री की जरूरत शायद न हो.

(डॉ. तारा कार्था Institute of Peace and Conflict Studies (IPCS) में एक प्रतिष्ठित फेलो हैं. उनसे ट्विटर पर @kartha_tara पर संपर्क किया जा सकता है. ये ओपिनियन आर्टिकल है और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. क्विंट की इसमें सहमति जरूरी नहीं है.)

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