हमसे जुड़ें
ADVERTISEMENTREMOVE AD

संसद की प्रोडक्टिविटी के आंकड़े चिंताजनक, पिछले 7 साल में 79% बजट बिना चर्चा पास

Budget Session 2023 के दौरान लोकसभा का 44.3% समय “गैर-विधायी” कार्यों में बीता जबकि राज्यसभा में आंकड़ा 56.6% था

Published
संसद की प्रोडक्टिविटी के आंकड़े चिंताजनक, पिछले 7 साल में 79% बजट बिना चर्चा पास
i
Hindi Female
listen

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

मौजूदा सरकार के कार्यकाल में भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को निरंतर खोता जा रहा है और इसके सबूत हम एक के बाद एक देख रहे हैं. इसी कड़ी में भारत के निर्वाचित संसद (Parliament) से कुछ नए उदाहरण हम देख सकते हैं. इसमें काम न करने का बढ़ता रवैया, सीमित एक्टिविटी, हर सत्र में गंभीर रुकावट का आना और पेश किए गए प्रमुख विधेयकों पर बहस का कम होना.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

संसद का बजट सत्र 31 जनवरी 2023 से 6 अप्रैल 2023 तक आयोजित किया गया था, जिसमें 14 फरवरी से 12 मार्च तक अवकाश की घोषणा की गई थी. संसद 25 दिनों तक बैठने के बाद 6 अप्रैल को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च (PRS Legislative Research) द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार के व्यय के अधिकांश प्रस्ताव किसी भी सदन में बिना चर्चा के ही पारित कर दिए गए.

आइए नजर डालते हैं कुछ प्रमुख आंकड़ों पर.

पेश किए गए और पारित किए गए विधेयकों की संख्या में गिरावट

पीआरएस के आंकड़ों के अनुसार, "1952 के बाद से यह छठा सबसे छोटा बजट सत्र रहा है. लोकसभा ने वित्तीय कारोबार पर केवल 18 घंटे खर्च किए, जिनमें से 16 घंटे बजट की सामान्य चर्चा पर बिताए गए".

17वीं लोकसभा के पिछले बजट सत्रों में वित्तीय कारोबार पर औसतन 55 घंटे चर्चा हुई थी. लोकसभा में चर्चा के लिए पांच मंत्रालयों के खर्च (11 लाख करोड़ रुपये) को सूचीबद्ध किया गया था, हालांकि, किसी पर भी चर्चा नहीं हुई.

पीआरएस रिसर्च टीम की रिपोर्ट के अनुसार “सभी मंत्रालयों का 42 लाख करोड़ रुपये का प्रस्तावित व्यय बिना किसी चर्चा के पारित कर दिया गया. पिछले सात सालों में औसतन 79% बजट बिना चर्चा के पास हो गया है."

राज्यसभा में बजट सत्र के दौरान चुनिंदा मंत्रालयों के कामकाज पर चर्चा होती है. इस सत्र में रेल, कौशल विकास, ग्रामीण विकास, सहकारिता और संस्कृति मंत्रालय समेत सात मंत्रालयों के कामकाज पर चर्चा होनी थी. लेकिन किसी पर चर्चा नहीं हुई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नीचे पाई चार्ट में दोनों सदनों के कामकाज के घंटों का विश्लेषण देखें.

लोकसभा का 44.3 प्रतिशत समय “गैर-विधायी” कार्यों में बीता, जबकि राज्यसभा का 56.6 प्रतिशत समय “गैर-विधायी” कार्यों में बीता.

वित्त और विनियोग विधेयकों को छोड़कर, प्रतियोगिता (संशोधन) विधेयक, 2022 इस सत्र के दौरान पारित एकमात्र विधेयक था. यह विधेयक और साथ ही वित्त विधेयक किसी भी सदन द्वारा बिना किसी चर्चा के पारित कर दिया गया.

इसके अलावा, तीन विधेयक पेश किए गए, जिनमें से एक, वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 को एक संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया था.

कुल मिलाकर, पीआरएस रिसर्च के मुताबिक, “इस लोकसभा में अब तक 150 बिल पेश किए गए हैं और 131 पारित किए गए हैं (वित्त और विनियोग विधेयकों को छोड़कर). पहले सत्र में 38 विधेयक पेश किए गए और 28 पारित किए गए. तब से, पेश और पारित किए गए विधेयकों की संख्या में गिरावट आई है. पिछले चार लगातार सत्रों में से प्रत्येक में 10 से कम बिल पेश या पारित किए गए हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या मौजूदा सरकार को दोष देना है?

इस पहचाने गए ट्रेंड के लिए मोदी सरकार के दो कार्यकाल विशेष रूप से जिम्मेदार रहे हैं. जैसा कि जवाहर सरकार ने तर्क दिया, वर्तमान सरकार संसद की 'उत्पादकता/प्रोडक्टिविटी' को "गैर-विधायी कार्यों में बर्बाद किए गए घंटों या मिनटों के संदर्भ में" मापती है.

वर्तमान बजट सत्र के दौरान, जवाहर सरकार ने कहा, "आमतौर पर, ट्रेजरी बेंच संसद में व्यवस्था बहाल करने के लिए बैकरूम चैनल खोलती है, लेकिन मार्च में, ऐसी किसी भी सामान्य स्थिति के लिए कोई सवाल या इरादा नहीं था. सत्ता पक्ष के 'मोदी', 'मोदी' के नारों का विपक्ष “जेपीसी! जेपीसी! (मोदी-अडानी घोटाले में एक संयुक्त संसदीय समिति की मांग) से जवाब दे रहा था.

“सोमवार, 13 मार्च से लेकर अगले दो लंबे हफ्तों तक, वही दृश्य बना रहा. इसके दौरान सांसद योजना के अनुसार केवल चिल्लाने के लिए संसद में उपस्थित हुए और सदनों को एक बार सुबह 11 बजे के बाद और फिर दोपहर 2 बजे, मानों नियम के अनुसार स्थगित किया गया. विपक्ष ने इस बात पर गंभीर चर्चा शुरू कर दी कि इनिसिएटिव को कैसे सीज किया जाए - खासकर जब सरकार ने 24 मार्च को किसी भी चर्चा के बिना खुद के खड़े किए गए हंगामे के बीच लोकसभा में वित्त विधेयक को चुपचाप पारित कर दिया."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

'प्रश्न' के लिए कम समय

वर्तमान लोकसभा कार्यकाल में बजट सत्र 2023 के अंदर प्रश्नों पर सबसे कम समय खर्च किया गया. लोकसभा में प्रश्नकाल निर्धारित समय के केवल 19% और राज्यसभा में 9% चला. प्रत्येक सदन में लगभग 7 प्रतिशत तारांकित/स्टार्ड प्रश्नों के उत्तर दिए गए.

स्रोतः पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च डाटा

मैंने अतीत में बार-बार तर्क दिया है कि सार्वजनिक अविश्वास का संकट बढ़ रहा है जिसे भारत और उसके बाहर हल करने की आवश्यकता है (यह केवल एक भारतीय घटना नहीं है बल्कि दुनिया भर के लोकतंत्र इसका सामना कर रहे हैं).

हमारी किताब, स्ट्रांगमेन सेविअर्स.. ने इस चिंताजनक प्रवृत्ति को भारत से परे, ब्राजील और तुर्की जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्रों के संदर्भ में समझाया है, जहां लोकलुभावन नेतृत्व के समान प्रयासों ने संसदीय संस्थानों को कमजोर किया है. साथ ही हमने उस लोकलुभावनवाद के उदय के पीछे के ताकतों- अधिनायकवाद- के साथ उसकी प्रक्रिया को समझाया है.

(लेखक ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @Deepanshu_1810 है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
और खबरें
×
×