ऐसा लगता है कि बिहार में सत्ताधारी जेडीयू और बीजेपी के दिल अब तक पूरी तरह नहीं मिल पाए हैं. दरअसल, पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ का चुनाव बुधवार को होना है. इस चुनाव से ठीक पहले बीजेपी-जेडीयू के बीच तकरार खुलकर साामने आ गया.
मामला जनता दल (यूनाइटेड) के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर से जुड़ा हुआ है. किशोर को लेकर बीजेपी और जेडीयू के बीच विवाद गहराते जा रहे हैं. सोमवार रात को ये टकराव सार्वजनिक हो गया, जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों ने किशोर की कार पर पथराव कर दिया.
इस घटना में किशोर को तो कोई चोट नहीं लगी, लेकिन दोनों पार्टियों के रिश्ते में कड़वाहट आ गई. पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में एबीवीपी और छात्र जेडीयू के बीच सीधा मुकाबला है.
सोमवार शाम किशोर अचानक विश्वविद्यालय के कुलपति (वीसी) प्रो. रासबिहारी सिंह के आवास पहुंचे और लगभग पांच घंटे तक वहां जमे रहे. इस बैठक में मुख्य चुनाव अधिकारी प्रो. रामशंकर आर्य भी मौजूद थे. इस बारे में सूचना मिलते ही एबीवीपी सर्मथकों ने वीसी आवास का घेराव कर लिया और किशोर के खिलाफ नारेबाजी करने लगे.
देर रात पुलिस की सुरक्षा में प्रशांत किशोर बाहर आए. किशोर को देखते ही छात्रों का गुस्सा अपने चरम पर पहुंच गया. एबीवीपी सर्मथकों ने उनकी कार पर पथराव कर दिया. किशोर के सकुशल बाहर निकलने के बाद पुलिस ने एबीवीपी के 10 सदस्यों को हिरासत में ले लिया.
बीजेपी नेताओं ने किशोर के इस दौरे को आचार संहिता का उल्लंघन करार दिया. देर रात बीजेपी के कई विधायकों ने इस बारे में राज्यपाल लालजी टंडन से मिलकर शिकायत की. उनके मुताबिक, किशोर छात्रसंघ चुनाव को गंदी राजनीति का अखाड़ा बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
जेडीयू नेताओं ने कहा है कि ‘छोटी-मोटी बातों’ को मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए. दूसरी तरफ, किशोर का कहना है कि उनके चाचा और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार के सदस्य यूके मिश्रा उन्हें वीसी आवास ले गए थे और छात्रों के प्रदर्शन की वजह से उन्हें पांच घंटे तक वहां रुकना पड़ा.
प्रशांत किशोर ने कहा:
‘‘ये सारे आरोप गलत और बेबुनियाद हैं. मैंने 2014 से लेकर अब तक किसी अधिकारी को फोन नहीं किया है. मैं अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को साबित करने की चुनौती देता हूं.’’
कुलपति रासबिहारी सिंह ने भी एक बयान जारी कर कहा कि उन्हें प्रशांत किशोर के आने की जानकारी नहीं थी. हालांकि मतदान से महज 36 घंटे पहले जेडीयू उपाध्यक्ष का विश्वविद्यालय दौरा सवालों से घेरे में जरूर है. मसलन न तो किशोर और न ही कुलपति ने अब तक बताया है कि इस मुलाकात में यूनिवर्सिटी के मुख्य चुनाव अधिकारी क्यों और किसके आदेश से उपस्थित थे?
इसके अलावा, न तो जेडीयू और न ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने किशोर और वीसी के बीच हुई बातचीत का ब्योरा सार्वजनिक किया है.
पुरानी रंजिश
किशोर और बीजेपी के स्थानीय नेताओं के बीच मतभेद की यह पहली घटना नहीं है. इस साल अगस्त में जेडीयू में शामिल होने और सितंबर में पार्टी में दूसरे नंबर पर आने के बाद से बीजेपी के स्थानीय नेता किशोर को लेकर असहज है. इसके बाद किशोर की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद के बीच सुलह-समझौते की कोशिशों की खबरें भी आईं. इस पर बीजेपी के स्थानीय नेताओं के बीच तीखी प्रतिक्रिया सामने आई थी.
वहीं, विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी कुछ बीजेपी विधायकों ने ‘बिहार विजन डॉक्यूमेंट-2025’ के मुद्दे पर भी किशोर को घेरने की कोशिश की थी.
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 से पहले राज्य सरकार ने पीके की संस्था आई-पैक को इसे बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी. उस वक्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे जनता का ‘घोषणा पत्र’ करार दिया था. इस काम को सरकार ने संस्था को करोड़ों रुपये का ठेका भी दिया था, लेकिन तीन साल गुजर जाने के बाद भी इस ‘घोषणा पत्र’ का अता-पता नहीं है.
बड़ी तादाद में बीजेपी कार्यकर्ता नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की जोड़ी को शक की नजर से देखते हैं. उनके मुताबिक, दोनों नेता बार-बार अपनी निष्ठाएं बदलते रहते हैं, जिस वजह से उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता.
प्रतिष्ठा का प्रश्न
किशोर जेडीयू में आने के बाद से ही पार्टी कैडर बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. इसके लिए उन्होंने बीते दो महीनों में पार्टी के छात्र और युवा विंग के नेताओं के साथ कई दौर की बैठक की. इसमें उन्होंने छात्रसंघ चुनाव में पूरी जी-जान से उतरने का भी ऐलान किया था. पार्टी नेताओं के मुताबिक, वे युवाओं को अपनी तरफ लुभाने में जुटे हुए हैं. हालांकि बीजेपी के कई नेता इसे अपने ‘वोटबैंक’ में सेंधमारी मान रहे हैं.
पार्टी के बिहार ईकाई के नेताओं के मुताबिक छात्रसंघ चुनावों को ‘फिक्स’ कर किशोर अपनी जगह सुनिश्चित करना चाहते हैं. साथ ही, इस बारे में ये नेता उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की भूमिका को लेकर भी खासे नाराज हैं.
बीजेपी सांसद सीपी ठाकुर ने कहा, '‘सोमवार की घटना शर्मनाक है. पुलिस और प्रशासन एबीवीपी सदस्यों को परेशान कर रही है. पार्टी के बड़े नेता मुंह में दही जमाए बैठे हैं.’'
मंगलवार को बीजेपी के कई विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ पटना में धरने पर बैठ गए. उनके मुताबिक पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन ‘व्यक्ति विशेष’ के दबाव में काम कर रही है.
(निहारिका पटना की जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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