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क्या मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल का दाम बढ़ाकर अपना राजस्व बढ़ा रही?

सरकार ने कच्चे तेल की कीमतों में कमी का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया था इसलिए अब उससे राहत की उम्मीद करना मुश्किल है

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पेट्रोल का दाम 1 जून 2021 को मुंबई में ₹100 प्रति लीटर के पार पहुंच गया. 29 अप्रैल को खत्म हुए 4 राज्यों और एक UT के चुनाव के बाद से अब तक पेट्रोल-डीजल के दामों को कम से कम 20 बार बढ़ाया गया है.

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9 जून को दिल्ली में जहां पेट्रोल ₹ 95.56 प्रति लीटर बिक रहा था वहीं मुंबई में लोगों को 1 लीटर पेट्रोल के लिए ₹ 101.76 चुकाने पड़ रहें थे. राजधानी दिल्ली में डीजल का दाम प्रति लीटर ₹ 86.47 था वहीं मुंबई में यह ₹ 93.85 प्रति लीटर था. दामों में इस बढ़ोतरी ने पूरे देश में डीजल और पेट्रोल के दामों को नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा दिया है जिसके कारण आम आदमी की जेब ढीली होती जा रही है, जो पहले से ही महामारी और लॉकडाउन के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रहा है.

CMIE के डेटा के अनुसार लगभग एक करोड़ लोगों ने अपना रोजगार खो दिया है जबकि 2020 की अपेक्षा 97% जनसंख्या गरीब हुई है. आने वाले महीनों में तेल की बढ़ती कीमतों का असर महंगाई पर भी देखने को मिल सकता है.

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दामों में हाल की बढ़ोतरी का कारण क्या है?

हाल में पेट्रोल/डीजल के दामों में होती बढ़ोतरी का कारण वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दामों में 1 महीने के अंदर 6% का इजाफा है. अगली तिमाही में तेलों की मांग में तेजी की उम्मीद के बीच ब्रेंट क्रूड अभी प्रति बैरल 70 USD के ऊपर ट्रेंड कर रहा है.

दिल्ली में मार्च 2020 से अब तक पेट्रोल के दाम में 35% की बढ़ोतरी हुई है. दिल्ली में इसके खुदरा विक्रय मूल्य में केंद्रीय सरकार के उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) और राज्य सरकार के वैल्यू ऐडेड टैक्स की हिस्सेदारी 58% है.

यह GST के अंतर्गत स्वास्थ्य के लिए हानिकारक उत्पादों जैसे तंबाकू, सिगरेट, पान मसाला और लग्जरी आइटम पर लगने वाले टैक्स (28%) के दुगने से भी ज्यादा है. अभी पेट्रोल और डीजल GST के अंतर्गत नहीं आते.

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दिल्ली में पेट्रोल के दाम में क्या-क्या शामिल

सरकार ने कच्चे तेल की कीमतों में कमी का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया था इसलिए अब उससे राहत की उम्मीद करना मुश्किल है
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मोदी सरकार द्वारा राजस्व बढ़ाने की कोशिश

नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में कच्चे तेलों के कम कीमतों का उपयोग करके राजस्व बढ़ाने की नीति जारी रखी है .सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम कीमत का लाभ अंतिम उपभोक्ता को ना देकर उसका प्रयोग इंफ्रास्ट्रक्चर और समाज कल्याण के प्रोजेक्ट पर किया है .

कोविड-19 महामारी के समय कच्चे तेलों के दो दशकों में सबसे कम अंतरराष्ट्रीय दामों का लाभ उठाते हुए सरकार ने मार्च 2020 से मई 2020 के बीच पेट्रोल और डीजल के एक्साइज ड्यूटी में क्रमश ₹13 और ₹16 की बढ़ोतरी कर दी.

मई 2014 में पीएम मोदी के शपथ लेने के बाद से तेल कंपनियों द्वारा डीलरों से वसूले जाने वाले मूल्य में 24% की गिरावट आई है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल $100 से कम होकर $70 के स्तर पर आ गई है .लेकिन आम नागरिकों द्वारा दिए जाने वाले दाम में 32% का इजाफा हो गया है, क्योंकि एक्साइज ड्यूटी को लगभग 3 गुना कर दिया गया है और VAT को लगभग दोगुना.
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महंगाई दर को लागू करने के बाद भी कम होते दाम

अगर एक्साइज ड्यूटी और VAT में मई 2014 से कोई बदलाव नहीं आता तो आज पेट्रोल का दाम ₹62 प्रति लीटर होता ,यानी आज के दाम से 35% कम.अगर हम एक्साइज और VAT में 6% की सामान्य महंगाई दर को लागू भी करते हैं तो आज पेट्रोल का दाम मई 2014 के स्तर से ऊपर नहीं होता.

राज्य चुनाव से पहले एक्साइज ड्यूटी में कमी की उम्मीद की जा रही थी लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण ऐसा नहीं किया गया. सरकार के वित्त पर महामारी का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी में 7.3% की गिरावट आई है. हालांकि पहली लहर के बाद इकॉनमी सुधार के पटरी पर लौटने लगी थी ,वित्त वर्ष 20-21 के अंतिम तिमाही में ग्रोथ रेट 1.6% का रहा, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने कई लोगों का जीवन और रोजगार दोनों छीन लिया.

महामारी के पहले भी भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जा रही थी जब वित्त वर्ष 19-20 में जीडीपी ग्रोथ रेट मात्र 4.18% का ही रहा. वित्त वर्ष 19-20 में टैक्स कलेक्शन में 4% की कमी आई जबकि वित्त वर्ष 20-21 में 14% की.

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टैक्स और एक्साइज ड्यूटी का कलेक्शन

सरकार ने कच्चे तेल की कीमतों में कमी का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया था इसलिए अब उससे राहत की उम्मीद करना मुश्किल है
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सरकार के सामने राजकोषीय घाटे का सवाल

इस दौरान सरकार के लिए फ्यूल पर एक्साइज ड्यूटी बहुत महत्वपूर्ण हो गया है जिसमें क्रमशः 4% और 26% की वृद्धि हुई है .फ्यूल पर एक्साइज ड्यूटी(टैक्स कलेक्शन के प्रतिशत के रूप में )जहां वित्त वर्ष 18-19 में 12% था वहीं यह वित्त वर्ष 20-21 में बढ़कर 20% हो गया है.

कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण कई एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत के जीडीपी के अपने पूर्वानुमान,11% को कम करके 9% कर दिया है. हालांकि अर्थव्यवस्था पर दूसरी लहर का प्रभाव पहली लहर की अपेक्षा कम होने का अनुमान है लेकिन सरकारी टैक्स कलेक्शन को दबाव का सामना करना पड़ सकता है.

सरकार 6.8% के अनुमानित राजकोषीय घाटे के साथ आगे बढ़ रही है और उसके सामने राजस्व कलेक्शन के मोर्चे पर गलती की गुंजाइश नहीं है .इसमें कोई भी बड़ा शिफ्ट भारतीय रेटिंग के डाउनग्रेड का खतरा पैदा कर सकता है.

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मेरे कैलकुलेशन के हिसाब से पेट्रोल डीजल की कीमतों में ₹5 प्रति लीटर की कमी से अर्थव्यवस्था को 62,500 करोड रुपए का बूस्ट मिल सकता है और उससे भी ज्यादा- मल्टीप्लायर इफेक्ट से.

चूंकि सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में कमी का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया था इसलिए अब कि जब सरकार के पास बहुत कम राजकोषीय गुंजाइश है तब उससे राहत की उम्मीद करना मुश्किल है.

(लेखक एक स्वतंत्र राजनैतिक टिप्पणीकार हैं और @politicalbaaba पर ट्विट करते हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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