सत्ता संभालने के करीब तीन महीने बाद 2 सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टोक्यो में कारोबारियों से कहा था ‘मैं गुजराती हूं और मेरे खून में पैसा है’. तब तो शायद लोगों ने इसका ज्यादा एनालिसिस नहीं किया, पर अब पता लग रहा है कि मोदी जी ने ऐसा क्यों कहा था?
पीएम मोदी के चार साल के कार्यकाल में भारतीयों से जिस तरह के इनोवेटिव तरीके से टैक्स ही टैक्स, सेस और फीस ली गई हैं उससे तो ऐसा ही लगता है कि मोदी जी ने अपने कार्यकाल से शुरू में ही लोगों का इसका संदेश दे दिया था.
मोदी जी के सरकार में आते ही टैक्स की मानो झड़ी लग गई, जीएसटी, सर्विस चार्ज, पेट्रोल डीजल, स्वच्छ सेस, कृषि कल्याण सेस, इन्वेस्टमेंट पर टैक्स, शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स. और तो और जो इनमें छूट गया वो रेलवे की टिकट खरीदने में फंसा, सड़क पर चले तो टोल टैक्स बढ़ गया. मेट्रो में चलने वाले का खर्चा दोगुना बढ़ गया.
सिलसिलेवार तरीके से कहें तो ऐसा लगा जिधर प्रधानमंत्री मोदी की नजर पड़ी उधर टैक्स लग गया. और उनसे पदचिन्हों पर चलते हुए रेलवे, बैंक जैसी सरकारी कंपनियों ने भी जहां गुंजाइश देखी वहां वसूली की.
टैक्स पर टैक्स
प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में वादा किया था कि लोगों की सहूलियत बढ़ेंगी क्योंकि भ्रष्टाचार कम होगा, सरकारी पैसे का सही इस्तेमाल होगा. जाहिर है भ्रष्टाचार कम होगा साधनों का सही इस्तेमाल होगा तो जेब में रकम बचेगी. लेकिन लोगों को ये नहीं पता था कि उन्हें उन सर्विस के लिए भी रकम देनी होगी जहां करीब करीब मुफ्त में काम हो जाता था.
पेट्रोल-डीजल पर लगातार बढ़ाई एक्साइज ड्यूटी
पीएम नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में जब सत्ता संभाली थी तब पेट्रोल और डीजल के दाम काफी ऊंचे भाव पर थे क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चा तेल 110 डॉलर से ऊपर था. पर उनके सत्ता संभालते ही कच्चा तेल नीचे आना शुरू हुआ और 2015 शुरू होते होते ये 30 डॉलर तक फिसल गया. लेकिन जिस तेजी से कच्चा तेल नीचे आया तब सरकार ने चुपके-चुपके एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी. यानी सरकार ने कंज्यूमर को सस्ते पेट्रोल या डीजल के मजे नहीं लेने दिए.
पेट्रोल पर टैक्स 105% बढ़ा
मोदी जी जब सत्ता में आए थे तब दिल्ली में 76 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल था तो इसमें केंद्र सरकार का टैक्स (एक्साइज ड्यूटी) 9.48 रुपये था. लेकिन इस सरकार में जब पेट्रोल 77 रुपये पहुंचा तब केंद्र सरकार का टैक्स 19.48 रुपये हो गया है यानी 105 परसेंट बढ़ोतरी की गई.
डीजल पर टैक्स 331% बढ़ा
इसी तरह डीजल के दाम इस वक्त शिखर पर हैं. 4 साल में फर्क ये आया है कि अब इसके दाम बाजार तय करता है. 2013 में जब डीजल के दाम 53 रुपये लीटर थे तब उसमें केंद्र सरकार का टैक्स सिर्फ 3.56 रुपये प्रति लीटर लीटर था. लेकिन अब डीजल के दाम 68 रुपये हैं तो उसमें केंद्र सरकार का टैक्स 15.33 रुपये है, यानी 331 परसेंट की बढ़ोतरी हो गई. इसके अलावा गैस सिलेंडर पर इनकम टैक्स देने वालों से गैस सब्सिडी पूरी तरह खत्म कर दी गई है.
रेलवे ने भी कमाई के नए तरीके निकाले
- तरह तरह के उपायों से कंज्यूमर के लिए यात्रा महंगी कर दी. जैसे अगर 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए अगर सीट या बर्थ लेते हैं तो इसके लिए उन्हें आधी के बजाय पूरा किराया देना होगा.
- इसी तरह टिकट कैंसिलेशन के नियमों को कड़ा बना दिया गया. जैसे, अंतिम मौके पर टिकट कैंसिल कराने में 50 परसेंट चार्ज कट जाएगा.
- प्लेटफॉर्म टिकट 10 रुपये कर दिया गया.
- ज्यादातर एक्सप्रेस और सुपर एक्सप्रेस ट्रेन को डायनामिक प्राइसिंग के दायरे में ला दिया गया. इसका मतलब डिमांड के हिसाब से टिकट की प्राइसिंग होगी. इसके अलावा पहले से टिकट बुक कराने पर कम लेकिन ऐन मौके पर टिकट महंगी होगी.
दिल्ली मेट्रो के किराये बढ़े
सरकार और खुद कई बार पीएम मोदी भी प्राइवेट गाड़ियों के बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने की वकालत करते हैं. लेकिन दिल्ली मेट्रो ने अपने किराये 60 परसेंट तक बढ़ा दिए. एक तरफ एक्साइज ड्यूटी की वजह से पेट्रोल और डीजल के किरायों में लगातार बढ़ोतरी की गई और दूसरी तरफ दिल्ली मेट्रो जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट के किरायों में भारी बढ़ोतरी से लोगों को दोहरी मार पड़ी.
सेस की भरमार
इसके अलावा सरकार ने तरह तरह से सेस भी लगाए जैसे स्वच्छता सेस. कृषि कल्याण सेस. सड़क और इंफ्रास्ट्रक्चर सेस. इन सभी तरह के सेस का मकसद ज्यादा से ज्यादा कमाई जुटाना रहा
GST का दायरा बढ़ाया गया
चलिए ये दलील मान लेते हैं कि जीएसटी से टैक्स का दायरा बढ़ेगा और चोरी मुश्किल हो जाएगी. लेकिन अभी तो जीएसटी बोझ ही बढ़ा रहा है. जरा ध्यान दीजिए क्या क्या महंगा हो गया
- मोबाइल फोन के बिल
- इंटरनेट बिल
- डीटीएच का बिल
- इंश्योरेंस
इन तमाम सर्विस पर 5 परसेंट के आसपास सर्विस टैक्स था जो बढ़कर 18 परसेंट हो गया है.
बैंकों ने कस्टमर से नए-नए तरह की वसूली
सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के बैंकों ने अपने खातेदारों ने अलग -अलग नाम से सर्विस चार्ज की वसूली शुरू की है. चलिए मान लेते हैं प्राइवेट बैंकों पर सरकार का कोई दखल नहीं है पर सरकारी बैंकों ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
- खातेदारों पर रकम निकालने के ट्रांजेक्शन की लिमिट तय करना. महीने पर तय 5 ट्रांजेक्शन के बाद हर ट्रांजेक्शन में 50 रुपये की फीस
- मिनिमम बैलेंस नहीं होने पर जुर्माना. जैसे स्टेट बैंक में अगर अकाउंट है और मेट्रो ब्रांच में है और अकाउंट में 5000 रुपये से नीचे चला जाता है तो 100 रुपये पेनाल्टी और सर्विस टैक्स लगेगा.
- किसी दूसरे बैंक के एटीएम में महीने में तीन से ज्यादा ट्रांजैक्शन होने पर 20 रुपये प्रति ट्रांजेक्शन फीस
- स्टेट बैंक के एटीएम में 5 ट्रांजेक्शन के बाद हर ट्रांजेक्शन में 10 रुपये की फीस लगेगी.
- एसएमएस अलर्ट को भी नहीं बख्शा गया. 25 हजार या उससे कम के अकाउंट होल्डर को SMS के लिए हर तिमाही 15 रुपये देने होंगे
- इसी तरह NEFT जैसे इलेट्रॉनिक फंड ट्रांसफर में बैंक 2 रुपये से 25 रुपये तक की फीस वसूलने लगे हैं.
- इसी तरह आरटीजीएस के तहत फंड ट्रांसफर में कम से कम 25 रुपये चार्ज लिया जाने लगा है.
निवेश पर टैक्स
अगर आप पैसा बचाकर खर्च कम करके बचत करते हैं तो उससे होने वाली कमाई पर भी सरकार की नजर पड़ गई. पहले लंबी अवधि के लिए शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड और डेट फंड में कोई टैक्स नहीं था. एक साल से कम पर बेचने पर सिर्फ 15 परसेंट शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स लगता था. लेकिन फरवरी 2018 से 10 लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स और 4 परसेंट सेस भी लगा दिया गया है. यानी अगर आपका कमाई अच्छी होती है तो भी घट जाएगी.
अभी मैंने सिर्फ केंद्र सरकार के टैक्स की चर्चा की है. जो पीएम मोदी के सत्ता में आने यानी 2014 के बाद लगे हैं. अभी म्युनिसिपल कॉरपोरेशन और राज्य सरकारों के टैक्स का तो मैंने हिसाब ही नहीं किया.
पीएम मोदी अब अपने इस कार्यकाल के पांचवें और अंतिम साल में प्रवेश कर रहे हैं, चुनावी साल है इसलिए इस बार तो उम्मीद कर ही सकते कि जेब में दो रुपया ही सही एक्स्ट्रा दिलाने की जुगत करा दें. चलिए अगर राहत नहीं देनी है तो कोई बात नहीं पर कम से कम इस साल कोई नया टैक्स मत चिपकाइएगा.
ये भी पढ़ें- Modi @4: माया,ममता,अखिलेश,राहुल का मिलन ‘पार्टी’ बिगाड़ सकता है?
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)