ADVERTISEMENTREMOVE AD

PM Modi Germany Visit: रूस पर बैन के बाद भारत जर्मन निवेश को अपनी ओर मोड़ पायेगा?

Germany ने रूस के साथ संबंधों में काफी निवेश किया था लेकिन Russia-Ukraine War के बीच वह इसकी कीमत चुका रहा है.

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की जर्मनी यात्रा (PM Modi Germany Visit) और रूस-यूक्रेन युद्ध में संबंध न खोजा जाए, यह हद से ज्यादा मुश्किल है. भारत और जर्मनी, दोनों ही देश इस युद्ध से अलग-अलग तरीकों से गहराई से प्रभावित हैं. लेकिन जैसा कि छठे भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी चर्चा (6th India-Germany Inter-Governmental Consultations) पर जारी ज्वाइंट-स्टेटमेंट कहता है, दोनों देशों ने अपने मतभेदों को दूर कर लिया है. साथ ही "एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था" की जरुरत पर अपनी सहमति व्यक्त की है, जिसमें "सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए सम्मान" की भावना शामिल है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जर्मनी में रूस से संबंध तोड़ने का दृढ़ संकल्प

खास बात है कि इस ज्वाइंट-स्टेटमेंट में सिर्फ जर्मनी ने "रूसी बलों द्वारा यूक्रेन के खिलाफ गैरकानूनी और बिना कारण आक्रामकता" की निंदा की है. लेकिन यह तथ्य कि जर्मनी के इस स्टैंड को ज्वाइंट-स्टेटमेंट में शामिल किया गया था, अपने आप में महत्वपूर्ण है.

इतना ही महत्वपूर्ण था प्रधान मंत्री मोदी का बयान , जिसमें उन्होंने कहा कि "इस युद्ध में कोई भी देश विजयी नहीं होगी" और बातचीत ही एकमात्र रास्ता है.

भारत इस मुद्दे पर इस बात को लेकर गहरी असहज स्थिति में है कि उसे उसी पाले में देखा जायेगा जिसमें चीन और रूस हैं. भारत को वास्तव में कोई प्रत्यक्ष नुकसान नहीं हुआ है, इसके विपरीत यह रियायती दर पर रूसी तेल खरीदकर और दोनों पक्षों द्वारा लुभाए जाने से फायदे में रहा है. लेकिन भविष्य में यह समीकरण बदल सकता है अगर रूस का हथियार उद्योग उसकी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ मार खाए.

0

जर्मनी ने रूस के साथ संबंधों में काफी निवेश किया था. उसने कई महत्वपूर्ण पड़ाव भी पार किए थे और आज इसकी कीमत चुका रहा है. सबसे पहले जर्मनी ने नई Nordstream II गैस पाइपलाइन डील को समाप्त किया और फिर रूस पर कई कड़े प्रतिबंध लगाए. अब यह रूस से तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है और माना जा रहा है कि दूर भविष्य में गैस पर भी ऐसा ही प्रतिबंध लगाया जायेगा.

जर्मनी और रूस के बीच कुल रूसी व्यापार €60 बिलियन (2021 तक) का है. क्रीमिया के मुद्दे पर 2015 में लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद यह जर्मनी के कुल व्यापार का केवल 2.5% है. मर्सिडीज, BMW, मेट्रो और हेनकेल जैसी 3,600 से अधिक कंपनियों ने रूस में लगभग € 25 बिलियन का निवेश किया है और कई ने अब प्रतिबंधों के बीच अपना कारोबार बंद कर दिया है.

जर्मनों को उम्मीद थी कि आने वाले वर्षों में वे रूस के बाजार में अपना विस्तार उल्लेखनीय रूप से करेंगे. लेकिन अब, यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद जर्मनी में रूस के साथ संबंध तोड़ने का दृढ़ निश्चय दिख रहा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत और जर्मनी दोनों के लिए एक अवसर

नई दिल्ली और बर्लिन दोनों को यहां एक अवसर दिख रहा है (हालांकि कुछ हद तक बिना इच्छा). भारत ने जर्मन उद्योगों और निवेश के लिए रूस की जगह खुद को लक्ष्य के रूप में प्रतिस्थापित किया है. भारत में जर्मनी का और उसका निवेश रूस के साथ उसके व्यापार का केवल एक छोटा हिस्सा भर ही है. 2020-21 में भारत में जर्मनी का कुल व्यापार 21.76 अरब डॉलर और निवेश करीब 13 अरब डॉलर था.

मर्सिडीज, वोक्सवैगन, BMW, बॉश और सीमेंस जैसी जर्मन कंपनियों ने पहले से ही दस्तक दे दी है. भारत जर्मनी से मशीनरी, गाड़ियों और केमिकल्स का आयात करता है, जबकि वहां यह केमिकल्स, वस्त्रों और मशीनरी का निर्यात भी करता है.

यही कारण था कि प्रधान मंत्री मोदी की जर्मनी यात्रा का मुख्य आकर्षण अंतर सरकारी चर्चा (IGIGC) था. इसका उद्देश्य दोनों देश "मध्यम और दीर्घकालिक के लिए प्राथमिकताओं" की पहचान करना था.

इसके अलावा दोनों देश अकादमिक क्षेत्र में आदान-प्रदान, साइंस-एंड-टेक्नोलॉजी और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में सहयोग के माध्यम से घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देने की उम्मीद करते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत के प्रति बदल रहा जर्मनी का नजरिया?

जर्मन चांसलर स्कोल्ज ने अगले महीने बवेरियन आल्प्स में होने वाले G-7 शिखर सम्मेलन में एक विशेष अतिथि के रूप में मोदी को आमंत्रित किया है. आमतौर पर जर्मन भारत को G-7 शिखर सम्मेलन में बुलाने से हिचकता रहा है. लेकिन ऐसा लगता है कि हृदय परिवर्तन हो रहा है और G-7 समूह अब भारत को लुभाने के अपने प्रयासों को दोगुना करना चाहता है.

इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में, चांसलर स्कोल्ज ने कहा कि यूक्रेन मुद्दे पर जर्मनी के मुकाबले भारत के अलग दृष्टिकोण होने के बावजूद, वह आश्वस्त थे कि दोनों देशों के बीच इस बात पर सहमति है कि यह युद्ध संयुक्त राष्ट्र चार्टर और संप्रभुता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का उल्लंघन है.

चांसलर स्कोल्ज स्पष्ट थे कि आर्थिक परेशानियों को झेलने के बावजूद जर्मनी जैसे देश रूस पर प्रतिबंध लगाने के लिए दृढ़ हैं. उन्होंने "रूस से जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए बहुत महत्वाकांक्षी नीति" का भी उल्लेख किया.

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक ऑपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×