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#IndiaSupportsCAA:PM मोदी ने असहमत होने का विकल्प क्यों नहीं दिया?

बीजेपी और खुद प्रधानमंत्री का दावा रहा है कि उन्हें देश की सवा अरब जनता का समर्थन है

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सिटिजन अमेंडमेंट एक्ट यानी CAA के पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अभियान चलाना पड़ा है. इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि देश के मुखिया को अपने उस कानून के समर्थन में अभियान चलाना पड़ा हो जिसे भारी बहुमत से दोनों सदनों में पारित किया गया हो. कानून बनने से पहले अभियान चलाने की जरूरत तो समझ में आती है जिसे आम राय बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है लेकिन कानून बन जाने के बाद ऐसी रायशुमारी का क्या मकसद हो सकता है? क्या सरकार अपने फैसले के सही या गलत होने को समझना चाह रही है?

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अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानना चाहते हैं कि नागरिकता को लेकर कानून में संशोधन करने संबंधी उनकी सरकार का फैसला सही है या गलत, तो वे इस विषय पर ‘हां’ या ‘ना’ के विकल्प के साथ राय ले सकते थे. मगर, उन्होंने ऐसा नहीं किया है. #IndiaSupportsCAA का अभियान केवल समर्थन का विकल्प देता है. ऐसा लगता है मानो वे इस कानून के समर्थकों की संख्या जानना चाहते हों. मगर, ऐसा क्यों?

बीजेपी और खुद प्रधानमंत्री का दावा रहा है कि उन्हें देश की सवा अरब जनता का समर्थन है. अगर यह मान भी लिया जाए कि यह बस एक जुमला है तो भी 303 लोकसभा सीट अपने दम पर बीजेपी के पास है. एनडीए सरकार को करीब साढ़े तीन सौ सांसदों का समर्थन है. धारा 370 हटाने के मामले में तो 370 सांसदों ने साथ दिया था. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से जनसमर्थन का आकलन करने की जरूत क्यों पड़ रही है, यह बात अचरज में डालती है.

पीएम का अभियान विरोध की जीत!

प्रधानमंत्री की ओर से ट्विटर पर चलाए जा रहे अभियान #IndiaSupportsCAA की वजह कहीं ये तो नहीं कि नागरिकता कानून के विरोध में देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से मोदी सरकार विचलित हो रही है! विरोध प्रदर्शन को जवाब देने के लिए यह तरीका तो नहीं आजमाया जा रहा है? अगर ऐसा है, तो भी यह विरोध प्रदर्शन के तौर पर हो रहे आंदोलनों की जीत है.

नागरिकता कानून पर दो टूक समर्थन की उम्मीद कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगर कोई स्पष्टीकरण ही दिया होता, विरोधी प्रदर्शनकारियों से बातचीत की पेशकश ही की होती तो वह कहीं अधिक प्रभावशाली होता. यह कदम लोकतांत्रिक भी माना जाता. विरोधियों का सम्मान करना, विरोध प्रदर्शन को सम्मान देना लोकतंत्र की परम्परा है.

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सद्गुरु के वीडियो में नया क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सद्गुरु का एक वीडियो भी ट्वीट किया है जिसमें उनका दावा है कि सीएए को लेकर भ्रांतियां दूर की गयी हैं. अंग्रेजी भाषा में 21 मिनट 57 सेकंड का यह पूरा वीडियो एक शिष्य के सवाल का जवाब है. इसमें सद्गरु ने कहा है कि सीएए लाने में देर की गयी है. कजाकिस्तान के एक शहर में एक पीड़िता के हवाले से वे बताते हैं कि किस तरह इस्लामिक गणराज्य में एक हिन्दू युवक से उसकी पत्नी छीन ली जाती है और वह बेबस है क्योंकि हिन्दू रीति रिवाज से विवाह को वहां मान्यता नहीं है. वे ऐसे पीड़ितों को शरण देने की वकालत करते हैं.

सद्गुरू धर्म के आधार पर देश के विभाजन के बाद भारत में सभी धर्म के लोगों को सुरक्षा और पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की असुरक्षा की ओर भी ध्यान दिलाते हैं. सीएए-एनआरसी विवाद पर सड़क पर विरोध को वे स्वार्थी तत्वों की प्रेरणा से हो रहा विवाद बताते हैं. सद्गुरू जामिया मिल्लिया इस्लामिया कैम्पस में पुलिस के घुसकर कार्रवाई को यह कहकर सही ठहराते हैं कि पुलिस के पास गोलियां चलाने का भी अधिकार था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. उन्होंने देश के नागरिकों की पहचान करने की जरूरत बताते हुए इस पर उठते सवालों को खारिज किया.

इन सवालों-चिन्ताओं का जवाब तो दीजिए

न सद्गुरू ने और न ही सीएए-एनआरसी के समर्थक सरकार के किसी नेता ने अब तक उन सवालों या चिन्ताओं का जवाब देने की जरूरत समझी है जिसकी वजह से यह आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है. ये सवाल हैं-

  1. जब असम की एनआरसी से पूर्व राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद का परिवार बाहर हो जाता है, घुसपैठिया हो जाता है तो पूरे देश में एनआरसी लागू होने पर गरीब तबके के साथ ऐसा नहीं होगा, इस पर कैसे विश्वास किया जाए? (इसका मतलब है कि एनआरसी का असर भारतीय नागरिकों पर पड़ेगा)
  2. सीएए के बाद जो लोग एनआरसी के दायरे से बाहर होंगे, वे केवल और केवल मुसलमान ही होंगे. अगर एक भी गरीब नागरिक घुसपैठिए की कतार में खड़ा होने को मजबूर होता है तो उसकी लड़ाई देश क्यों न लड़े? वह अकेले क्यों लड़े?
  3. विवाद का विषय यह भी है कि सीएए में नागरिकता को धर्म से जोड़ा गया है. छह धर्म के लोगों को तीन देशों में प्रताड़ित माना गया है और इस्लाम को उत्पीड़क. धर्म के आधार पर प्रताड़ित हैं लोग, यह सच है. मगर, इसके लिए उन तीन देशों की सरकारें जिम्मेदार हैं न कि इस्लाम. इस्लाम इसलिए नहीं है क्योंकि इस्लाम मानने वाले लोग केवल इन तीन देशों में ही नहीं रहते. यही वह तर्क है जिस आधार पर नागरिकता कानून में संशोधन एक धर्म के प्रति पूर्वाग्रही दिख रहा है. तो सवाल ये है कि सिर्फ मुसलमानों को नागरिकता में सहूलियत देने से इंकार क्यों किया गया?

अगर सद्गुरू या प्रधानमंत्री उठ रहे सवाल या उठ रही चिन्ता के जवाब लेकर सामने आते तो विरोध का कारण खत्म हो जाता. पीड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने की वकालत हिन्दुस्तान की कोई ऐसी पार्टी नहीं है जिसने नहीं की है. यह विवाद का विषय है ही नहीं.

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बेहतर था असहमत लोगों की संख्या पता की जाती

अगर प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी ने कोई ऐसा हैशटैग चलाया होता जिससे उनसे असहमत लोगों की संख्या का पता चलपाता, तो वह उनके लोकतांत्रिकचरित्र को उजागर करता. मगर, उन्होंने#IndiaSupportsCAA हैशटैगऔर सद्गरु के वीडियो ट्वीट करते हुए ऐसा कदम उठाया है जिसमें आने वाले समय में इसविषय पर लामबंदी और तेज होगी. इससे हासिल कुछ नहीं होगा.

एक निजी टीवी चैनल ने भी ऐसा ही अभियान चलाकर मोदी सरकार के लिए एक करोड़ से अधिक का मिसकॉल जुटाया है. मगर, यह लोकतांत्रिक देश में विरोध की आवाज़ को दबाने की कोशिश है न कि स्वस्थ बहस को शुरू करने की. अगर समर्थन जुटाते वक्त दोनों किस्म के विकल्प हों, तब निश्चित रूप से उसे स्वस्थ बहस कहा जा सकता था.

गरीबों को ट्वीट-रीट्वीट से क्या मतलब?

सवाल यह भी है कि गरीब लोग जो वास्तव में सीएए का शिकार होंगे, वे ट्वीट, रीट्वीट या लाइक कर पाएंगे? उनके पास मोबाइल नहीं होगा, मोबाइल होगा तो इंटरनेट नहीं होगा और सबकुछ होगा तब भी वे इसका इस्तेमाल करना नहीं जानते होंगे. कोई अपने ही परिवार में देख सकता है कि कोई न कोई सदस्य ऐसा जरूर होता है जो इंटरनेट, एंड्रायड फोन जैसी चीजों से दूर रहता है. समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभियान किन लोगों के लिए है और वास्तव में इसका मकसद क्या है? यह अभियान बता रहा है कि प्रचंड बहुमत वाली सरकार को जनता के बहुमत पर भरोसा नहीं रहा.

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