“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो भी काम करते हैं, वो हमेशा बड़े स्तर पर होता है. कोई इसके प्रभाव और व्यावहारिकता पर सवाल उठा सकता है, लेकिन आमूल बदलावों वाले फैसले लेने की उनकी इच्छा शक्ति पर कोई शक नहीं कर सकता.” एक प्रमुख सामाजिक क्षेत्र से जुड़े केंद्रीय सरकार के मंत्रालय के मौजूदा वरिष्ठ अधिकारी ने मिशन कर्मयोगी (Mission karmayogi) पर प्रतिक्रिया देते हुए ये बात कही जिसे सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी है.
पीएम मोदी के मुताबिक ये मिशन-जिसे नेशनल प्रोग्राम फॉर सिविल सर्विसेज कैपेसिटी बिल्डिंग (NPCSCB) यानी राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता विकास कार्यक्रम के नाम से भी जाना जाता है- “सरकार में मानव संसाधन प्रबंधन कार्यप्रणाली में मूलभूत सुधार लाने और सिविल सर्वेंट की क्षमता बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल करने और उन्हें बढ़ाने का” वादा करता है.
इस नई योजना का एक अहम पहलू ये भी है कि पीएम मानव संसाधन परिषद, जो NPCSCB के लिए सर्वोच्च संस्था होगी, के प्रमुख होंगे, जिससे उन्हें नौकरशाही की ट्रेनिंग और मूल्यांकन का सीधा नियंत्रण मिल जाएगा.
मिशन कर्मयोगी को डिकोड करने के लिए द क्विंट ने कई मौजूदा और रिटायर्ड नौकरशाहों, कुछ नेताओं से बात की, जिनमें कार्मिक विभाग पर बनी संसद की स्टैंडिंग कमेटी में शामिल एक सांसद भी शामिल हैं. लेकिन पहले इस योजना के बारे में कुछ जानकारी.
मिशन कर्मयोगी क्या है?
संस्थागत ढांचा
मिशन कर्मयोगी में सबसे ऊपर प्रधान मंत्री की पब्लिक ह्यूमन रिसोर्स (HR) काउंसिल यानी सार्वजनिक मानव संसाधान परिषद है जिसमें पीएम, चुने हुए केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और मानव संसाधान के क्षेत्र में काम करने वाले शामिल हैं.
पीएम की मानव संसाधन परिषद की सहायता कैपेसिटी बिल्डिंग कमीशन (क्षमता निर्माण आयोग) करेगा जो क्षमता निर्माण से जुड़े केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थाओं की निगरानी भी करेगा.
सरकारी कर्मचारियों की ऑनलाइन ट्रेनिंग के लिए डिजिटल एसेट और टेक्नोलॉजिकल प्लेटफॉर्म के स्वामित्व और संचालन के लिए एक स्पेशल पर्पस व्हिकल (विशेष उद्देश्य कंपनी) बनाया जाएगा.
इस कार्यक्रम को एक इंटीग्रेटेड गवर्नमेंट ऑनलाइन ट्रेनिंग या iGOTKarmayogi प्लेटफॉर्म बनाकर अमल में लाया जाएगा जिसमें सभी सरकारी दफ्तरों को शामिल किया जाएगा.
इसमें प्रमुख कार्य-निष्पादन संकेतकों (की परर्फॉर्मेंस इंडिकेटर्स) के अहम आंकड़े भी दिखाएगा.सरकार का कहना है कि मिशन कर्मयोगी का मुख्य उद्देश्य “रूल बेस्ड (नियम आधारित)” से बदल कर “रोल बेस्ड (भूमिकाओं पर आधारित)” प्रबंधन करना है और नौकरशाहों को एक ही जगह रहकर काम करने से रोकना है.
उद्देश्य
रूल बेस्ड (नियम आधारित)” से बदल कर “रोल बेस्ड (भूमिकाओं पर आधारित)” मानव संसाधन प्रबंधन और सिविल सर्वेंट को उनके पद की आवश्यकताओं के अनुसार दिए गए काम को उनकी क्षमताओं के साथ जोड़ना
ऑफ साइट सीखने” की पद्धति को बेहतर बनाते हुए “ऑन साइट सीखने” की पद्धति पर जोर देना
“भारतीय मूल्यों” के आधार पर पेशेवर रवैये को बढ़ावा देना
शिक्षण सामग्री, संस्थानों और कर्मियों सहित साझा प्रशिक्षण बुनियादी ढांचे का एक सिस्टम बनाना.
सभी सिविल सेवा पदों को भूमिकाओं, गतिविधियों और क्षमताओं के एक ढांचे (FRCAs) में जांचना
सभी सिविल सर्वेंट को निरंतर अपनी क्षमताओं को विकसित करने और मजबूत करने के लिए अवसर उपलब्ध कराना
सर्वश्रेष्ठ पब्लिक ट्रेनिंग इंस्टीट्यूशन, यूनिवर्सिटी, स्टार्ट-अप और विशेषज्ञों को प्रोत्साहित करना और उनसे साझेदारी करना
iGOT-कर्मयोगी की ओर से क्षमता निर्माण के अलग-अलग पहलुओं पर उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का विश्लेषण करना.
वित्तीय पहलू
करीब 46 लाख केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर 2020-21 से 2024-25 के बीच पांच सालों तक इस योजना पर करीब 510.86 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. इस खर्च का कुछ हिस्सा करीब 365 करोड़ बहुपक्षीय सहायता से फंड किया गया है.
क्या हैं फायदे और नुकसान?
द क्विंट ने 1965 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस योगेंद्र नारायण से बात की जो राज्य सभा के महासचिव, केंद्रीय रक्षा सचिव और उत्तर प्रदेश मुख्य सचिव सहियत कई प्रमुख ओहदों पर रहे हैं. नारायण ने इस योजना के बारे में कई बातें बताईं जो उन्हें सकारात्मक लगीं.
फायदे
- सिविल सर्वेंट कई विषयों की जानकारी वाले, किसी एक के विशेषज्ञ नहीं होते. लेकिन इस बदलते वैश्विक परिदृश्य में नौकरशाहों को विशेष ट्रेनिंग की जरूरत है. मिशन कर्मयोगी इसके लिए एक अच्छा तरीका होगा. मुझे लगता है कि ये बहुत ही अच्छा विचार है.”
- जिन लोगों से हमने बात की उनमें से अधिकांश का यही कहना था. कि “सभी सरकारी कर्मचारियों को ऑनलाइन ट्रेनिंग उपलब्ध कराना क्षमता निर्माण की प्रक्रिया में काफी मददगार साबित होगा. अब तक सिर्फ कुछ फीसदी को ही इसका फायदा मिल पाता है.”
- प्रमुख कार्य-निष्पादन संकेतकों (की पर्फॉर्मेंस इंडिकेटर्स) का मात्रात्मक मूल्यांकन एक बहुत ही अच्छा प्रस्ताव है. ये मौजूदा तरीके से बहुत ज्यादा कारगर साबित होगा.
- “उदाहरण के तौर पर अगर कोई सिविल सर्वेंट टेलीकॉम सेक्टर में काम कर रहा है तो उसका मूल्यांकन इस आधार पर करना चाहिए कि उसके कार्यकाल में ‘कितने गांवों में ऑप्टिकल फाइबर लगाए गए. वाई-फाई कनेक्टिविटी का कितना विस्तार हुआ’ और इसी तरह के दूसरे आधार पर.”
सभी सरकारी कर्मचारियों को ऑनलाइन ट्रेनिंग उपलब्ध कराना क्षमता निर्माण की प्रक्रिया में बहुत ही मददगार साबित होगा.”योगेंद्र नारायण, पूर्व राज्यसभा महासचिव
मिशन कर्मयोगी योजना से नुकसान के लिए हमने नारायण के दिए गए बिंदुओं के अलावा कुछ पूर्व ब्यूरोक्रैट के विचार भी शामिल किए हैं जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते.
नुकसान
- DANICS कैडर के एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि “जब सरकार मिनिमम गवर्नमेंट का वादा कर रही है तो क्या क्षमता निर्माण आयोग जैसे एक और परिषद का निर्माण ज्यादा अफसरशाही का कारण नहीं बनेगा.”
- कई नौकरशाहों ने इस बात पर चिंता जताई कि योजना के लिए अलग-अलग एजेंसियों से 60 फीसदी फंड क्यों लिए जा रहे हैं.
- योगेंद्र नारायण के मुताबिक इस पूरी प्रक्रिया में समय लग सकता है. “पढ़ाई के लिए उचित सामग्री को इकट्ठा करने, ट्रेनिंग देने वालों की पहचान करने में काफी वक्त लगेगा. उद्देश्य अच्छा है लेकिन इसे लागू करने में मुश्किल आ सकती है.
- यहां एक और समस्या प्रतिनिधित्व की है. जब सीधी भर्ती के जरिए नौ लोगों को संयुक्त सचिव के तौर पर नियुक्त किया गया था तब उनमें से कोई भी आरक्षित श्रेणी का नहीं था. इस बात का खतरा है कि संस्थागत ढांचे जैसे नए बने निकाय में आरक्षित श्रेणी के पर्याप्त लोगों का प्रतिनिधित्व न हो जिससे उनके खिलाफ भेदभाव और बढ़ जाए.
- आंध्र प्रदेश के एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ने कहा कि योजना में केंद्र सरकार के साथ ज्यादा केंद्रीकरण शामिल है जिसके कारण राज्य सरकार इसका विरोध कर सकते हैं.
- इसी तरह एक और अधिकारी ने कहा कि “भारतीय मूल्यों” पर जोर देने को लेकर समस्याएं हो सकती हैं. “ये मूल्य क्या हैं इन्हें कौन परिभाषित करता है? क्या इनमें कोई खास विचारधारा नजर आएगी? क्या उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, केरल और मणिपुर में इन मूल्यों को समान रूप से स्वीकार किया जाएगा?”
- कुछ रिटायर्ड नौकरशाह क्षमता पर सरकार के पूरा जोर दिए जाने पर भी आशंकित दिखे, उनका कहना है कि सरकार की अब तक की कई नियुक्तियां इस सिद्धांत के खिलाफ हुई हो सकती हैं.
राजनीतिक उद्देश्य
ऐसा नहीं है कि पिछली सरकारों ने ऐसे कदम नहीं उठाए, लेकिन उनका दायरा काफी ज्यादा सीमित था. योगेंद्र नारायण ने क्विंट को बताया कि “2012 में कैबिनेट सचिवालय ने इसी तरह के प्रदर्शन के मूल्यांकन का सिस्टम शुरू किया था, ये तीन साल तक चला. हमारे जैसे पूर्व नौकरशाहों को कई मंत्रालय दिए गए थे और हमें आउटपुट और लक्ष्य पूरा करने के आधार पर अंक देने थे. विचार ये था कि एसीआर एक पर्याप्त मूल्यांकन नहीं है. लेकिन एक सीमित कार्य था. जो मौजूदा सरकार ने पेश किया है वो एक बड़े स्तर पर है.”
कई लोगों ने इस बात पर ध्यान दिलाया कि ये मोदी सरकार के नौकरशाही को लेकर व्यापक दृष्टिकोण के मुताबिक है जो ज्यादा नियंत्रण चाहती है.
- बीजेपी गठबंधन में शामिल एक दल के सांसद ने कहा कि “नियंत्रण और केंद्रीकरण. यही इस (मोदी) सरकार की पहचान रही है और ये योजना इसका एक और प्रदर्शन है.”
- 2014 में सत्ता संभालने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नौकरशाही पर ज्यादा नियंत्रण रखना लगातार उनकी एक प्राथमिकता रही है. उसी साल उनकी सरकार ने सेवा में सीधी भर्ती का विचार पेश किया. 2019 में ये लागू हुआ जब 9 लोगों को सीधे संयुक्त सचिव बनाया गया जिसे आईएएस की पकड़ को तोड़ने के एक कदम के तौर पर देखा गया.
- 2016 में पीएम मोदी ने कहा था कि “भारत 19वीं सदी की व्यवस्था के साथ 21वीं सदी में प्रवेश नहीं कर सकता” इससे ये साफ हो जाता है कि नौकरशाही व्यवस्था के बारे में उनकी राय क्या थी.
- मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सरकार ने धीरे-धीरे नौकरशाहों के 360 डिग्री मूल्यांकन का सिस्टम बनाया.
- दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के कुछ समय बाद ही सरकार ने 27 टैक्स अधिकारियों को समय से पहले रिटायर कर दिया.
- इसके बाद एलान किया गया कि सरकार सीधी भर्ती के जरिए और भी भर्तियां करेगी.
इस साल की शुरुआत में बीजेपी नेता भूपिंदर यादव की अध्यक्षता वाली कानून, कार्मिक और लोक शिकायत पर संसदीय समिति ने राज्यसभा को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें सिविल सर्विसेज में “डोमेन एक्सपर्ट” और “कई विषयों की जानकारी रखने वाले विशषज्ञों” को शामिल करने की सिफारिश की गई है.
ये सब इस बात का संकेत है कि मोदी सरकार नौकरशाही को लेकर बड़ा फैसला ले सकती है. अगर बीजेपी में शामिल सूत्रों की मानें तो कोविड 19 महामारी मिशन कर्मयोगी के बारे में अंतिम फैसला लेने में निर्णायक साबित हुई होगी.
बीजेपी के एक नेता ने खुलासा किया कि “अगर मैं एक अनुमान लगाने का खतरा उठाऊं, तो शायद महामारी के कारण पीएम मोदी ने इसकी शुरआत के लिए जोर लगाया. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य की जानकारी रखने वाले अधिकारियों की कमी महसूस हुई. उम्मीद है कि ये मिशन किसी भी स्थिति के लिए नौकरशाहों को तैयार करेगा.
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