प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) बड़ी ही आसानी से विपक्ष की आलोचनाओं को ध्वस्त कर दिया क्योंकि वो तथ्यों से बचकर निकल गए. सोमवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण उनकी सरकार की सफलता का एक अलंकारिक वर्णन था. पीएम मोदी ने अपने इस भाषण में कहा कि उनकी सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान बेहतर ढंग से काम किया और देश की अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर आई.
जब तथ्य मायने नहीं रखते
पीएम मोदी आसानी से विपक्ष की आलोचनाओं को ध्वस्त कर देते हैं खास करके कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बातों का जवाब देते हुए क्योंकि, उनकी सरकार हमेशा तथ्यों से बचकर निकल जाना चाहती है.
राहुल गांधी के 'दो भारत' वाले बयान पर जिसमें उन्होंने कहा कि एक भारत अमीरों का है और दूसरा गरीबों का, इस पर पीएम मोदी ने फ्री राशन की बात कही. उन्होंने कहा कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया गया है. उन्होंने ये भी याद दिलाया कि 100 साल पहले इंफ्लूएंजा महामारी के दौरान लोग फ्लू से ज्यादा भूख से मर रहे थे, लेकिन आज कोरोना महामारी के दौरान उनकी सरकार ने मुफ्त अनाज देने का फैसला किया जिससे हजारों लोगों की जान बचाई जा सकी.
इसके बाद उन्होंने आवास योजना की बात की जिसके तहत गरीबों के लिए घर बनाए गए हैं और फिर उन्होंने ये बताया कि कैसे इससे लोगों को मदद मिली और वो सुखी-संपन्न हुए.
दरअसल, उनकी ये बातें कोई गंभीर बयान नहीं था क्योंकि, भारत में गरीबी के मार्कर्स अभी भी आसमान छू रहे हैं और एक बड़े तबके के लिए खुशहाल होने जैसी कोई बात हो, ऐसा नजर नहीं आता.
लोगों के पास नौकरी नहीं
गरीब सरकार के बनाए घरों में रह रहे हैं और उनके पास कोई नौकरी नहीं है. वो कुपोषण का शिकार हैं क्योंकि, मुफ्त राशन गुजारे भर की सब्सिडी की तरह है, जो पोषण नहीं देता और उनकी सेहत को भी दुरुस्त नहीं रख सकता.
नरेंद्र मोदी ने बड़ी ही चतुराई से अमीर भारत को लेकर की गई आलोचना और दो AA वेरिएंट्स वाले राहुल गांधी के बयान को भी मोड़ दिया. उन्होंने नेहरू और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकारों की आलोचना करते हुए ये याद दिलाने की कोशिश की कि कैसे उस वक्त की सरकारों को टाटा और बिरला के नाम से पहचाना जाता था.
इतना ही नहीं, पीएम मोदी ने उद्ममी भारत का बचाव ये कहते हुए किया वो वेल्थ क्रिएटर्स हैं, कोई वायरस नहीं. यहां भी मोदी, कांग्रेस पर आरोप लगाना नहीं भूले कि पार्टी कम्यूनिस्ट्स की बुरी संगत में है और उनके खराब प्रभाव की वजह से ही वेल्थ क्रिएटर्स का विरोध कर रही है.
ऐसा लग रहा था कि उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि वो ठीक वही कर रहे हैं जो कांग्रेस ने लंबे समय तक किया है. गरीबों की बात करना और बड़े बिजनेस दिग्गजों को बढ़ावा देना.
पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा कि दुनियाभर में लोगों को ऐसा लगा कि भारत कोरोना महामारी से पूरी तरह से टूट जाएगा, लेकिन देश पहले से भी ज्यादा मजबूती से सामने आया और इसकी वजह सरकार की नीतियां रहीं. ये साफ है कि वो एक ऐसे विपक्ष के सामने खड़े थे जो उन्हें असफल साबित करना चाहता है और इसलिए उन्होंने अपने भाषण में ये तमाम बातें कहीं.
ये एक तरह से अहंकार की लड़ाई भी है और पीएम मोदी इस झूठी लड़ाई में शामिल हो सकते हैं, लेकिन सच ये है कि सरकार कोरोना महामारी के दौर में कई बिंदुओं पर लड़खड़ाई है और स्थितियों को संभाल नहीं पाई. महामारी के दौर में देश ने खुद को संभाला, लेकिन सरकार की कई छोटी और बड़ी चूकें भी सामने आईं. हालांकि प्रधानमंत्री ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जो समस्याओं और असफलताओं को स्वीकार कर सकें.
प्रवासी मजदूरों से जुड़ी दो बातें जो याद रखनी चाहिए
पीएम मोदी के भाषण का सबसे खराब हिस्सा वो था जब उन्होंने विपक्ष की आलोचना का जवाब देते हुए महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार पर दोष मढ़ना शुरू कर दिया और कहा कि इन दोनों राज्यों की सरकारों ने प्रवासी मजदूरों को मुंबई और दिल्ली से अपने राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जाने पर मजबूर किया क्योंकि, वो अपने लोगों को सुरक्षित करना चाहते थे.
ये सब कहते हुए शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये डर भी होगा कि साल 2020 में प्रवासी मजदूरों ने जो कुछ झेला और जिन परिस्थितियों से गुजरे, उसकी यादें आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों पर असर डाल सकती हैं. पीएम मोदी ने कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी पर डिवाइड एंड रूल पॉलिसी को अपनाने के आरोप लगाए, लेकिन वो प्रधानमंत्री ही थे जो इस तरह की नफरत पैदा करने वाली रणनीति में शामिल थे.
यहां नरेंद्र मोदी को ये याद दिलाने की जरूरत थी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छात्रों को राजस्थान के कोटा से लाने के लिए बसों का इंतजाम किया था और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ये डर लग रहा था कि प्रवासी मजदूरों के वापस आने से स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाएगा.
असल में बांटने और शासन करने का खेल कौन खेल रहा है?
यहां ये देखना भी जरूरी है कि न तो केंद्र न ही राज्य सरकारों को इस बात का कोई अंदाजा था कि प्रवासी मजदूरों की समस्या का समाधान कैसे करना है. केंद्र सरकार ने राज्यों पर दोष मढ़ा कि उनके पास ऐसे प्रवासियों की लिस्ट नहीं है, जो उनके शहरों या राज्य में कहीं भी काम कर रहे हैं.
अगर नरेंद्र मोदी को ये लगता है कि वो अपनी पार्टी और दूसरे दलों के बीच के खेल में या केंद्र और राज्य सरकारों के बीच चल रही इस होड़ में प्रवासी मजदूरों की इतनी बड़ी तकलीफ को नजरअंदाज कर देंगे, तो सोचिए कि बांटने और शासन करने यानी जोड़ तोड़ वाला काम कौन कर रहा है? कौन बेशर्मी से हिंदी पट्टी के राज्यों को महाराष्ट्र और दिल्ली के खिलाफ भड़का रहा है?
यही वजह है कि राहुल गांधी के राज्यों के संघ शब्द के इस्तेमाल पर पीएम मोदी का एतराज और राष्ट्रवाद के भाव को लेकर उनका कमजोर काउंटरपॉइंट असल में राज्यों के संघ को गिराने का काम कर रहा है. वहीं चाहे नरेंद्र मोदी हों या राहुल गांधी दोनों के भाषण की कुछ बातें दिखाती हैं कि कैसे देश में पॉलिटिकल डिबेट का स्तर गिर रहा है.
(लेखक एक पॉलिटिकल जर्नलिस्ट हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी विचार हैं. )
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