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कोरोना वैक्सीन से खत्म होगा 'कोविड-19'- इसे मंदी भी मिटाने दीजिए

'कोरोना वैक्सीन 'कोविड-19' खत्म करने के साथ मंदी भी मिटा सकती है'

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कोविड 19 वैक्सीन से उत्साहित होकर मैंने एक आर्टिकल लिखा था जिसमें वैक्सीन वितरण की दो तरफा योजना लागू करने की बात थी. गरीब/जरूरतमंद/सबसे ज्यादा खतरे में रहने वालों को सरकार की ओर से वैक्सीन मुफ्त मिलनी चाहिए जबकि ऐसे व्यक्ति जो ज्यादा पैसे देने को तैयार हैं, उन्हें तत्काल योजना के तहत वैक्सीन पहले दी जा सकती है. मैंने नैतिकता की बात को दरकिनार करते हुए कहा कि वैक्सीन न तो पूरी तरह से निजी है और न ही पूरी तरह से सरकार की.

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'कोरोना वैक्सीन 'कोविड-19' खत्म करने के साथ मंदी भी मिटा सकती है'
मैंने अपनी बात का समर्थन करते हुए कहा था कि सिर्फ 10 फीसदी वैक्सीन की खुराक को ही निजी तौर पर, 10,000 रुपये प्रति खुराक की असामान्य ऊंची कीमत पर बेचा जाना चाहिए. इसके बाद मैंने अंकगणित के जरिए ये साबित करते हुए निष्कर्ष निकाला था कि इससे सरकार को एक लाख करोड़ रुपये मिल जाएंगे जिससे बाकी की 90 फीसदी वैक्सीन पूरी तरह से मुफ्त में लोगों को दी जा सकेगी. मैंने अपनी बात को आलंकारिक प्रश्न के साथ खत्म किया था: क्या आपने सोचा है कि अगर हम कोविड 19 वैक्सीन में प्रीमियम तत्काल स्कीम की अनुमति नहीं दें तो क्या होगा?
राघव बहल
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  • हजारों भारतीय परिवार वैक्सीन लगवाने के लिए विदेश चले जाएंगे जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था में निवेश करने के बजाए हमारे संसाधन कम हो जाएंगे.

  • एक फलता-फूलता काला बाजार उभरेगा जो लोगों से ज्यादा पैसे लेकर टीका दिलवाएगा या चोरी किए गए वैक्सीन तक जिनकी पहुंच होगी- ऐसे में फिर से अंडरवर्ल्ड को वैध नकदी चली जाएगी.

'कोरोना वैक्सीन 'कोविड-19' खत्म करने के साथ मंदी भी मिटा सकती है'

मुझे लगा कि मैंने अपनी बात इस तरीके से कही है जो सबको स्वीकार होगी-एक सुपरटैक्स उन लोगों पर जो पैसे देने को तैयार हैं और बाकी की जनता के लिए पूरी तरह से सब्सिडी. लेकिन मैंने पाठकों से क्रियाशील, ऊपर से नीचे तक चीर-फाड़ वाले झटके की उम्मीद नहीं की थी. यहां पाठकों की प्रतिक्रिया का एक प्रमाणिक संग्रह है:

  • "कितना शानदार और नया आइडिया है. अफसोस, देखने वाले इसे इस तरह पेश करेंगे “अमीरों के लिए स्वास्थ्य सुविधा पहले” और वास्तव में जो आप अनुमान/आशंका जता रहे हैं वही होगा. अमीर लोग वैक्सीन लेने के लिए विदेश चले जाएंगे : ये एक करीबी दोस्त और साथ काम करने वाले की प्रतिक्रिया है जिसकी राजनीतिक राय को मैं अहमियत देता हूं."

  • "मैं पूरी तरह से सहमत हूं. मेकैनिज्म डिजाइन के नजरिए से ये बहुत अच्छा है. चूंकि वैक्सीन एक निजी वस्तु है, बाजार (खरीदार और विक्रेता के बीच स्वैच्छिक व्यापार) इसके वितरण के लिए सही साधन है. चूंकि वैक्सीन एक सरकारी वस्तु है (बाहरी कीमत के कारण जिसे मुक्त बाजार के जरिए आंतरिकता नहीं दी जा सकती और इस तथ्य के कारण कि वैक्सीन के विकास की लागत एक डूबी हुई लागत है) क्रॉस सब्सिडाइजेशन उन लोगों तक वैक्सीन पहुंचाने का सही साधन है जो कीमत के कारण इसे नहीं खरीद सकेंगे: ये एक दूसरे दोस्त की राय है जो एक अमेरिका की यूनिवर्सिटी में नामी विद्वान/अर्थशास्त्री हैं."

इसके अलावा अज्ञात पाठकों से भी हजारों प्रतिक्रियाएं आईं जिनमें से कई इंस्टाग्राम पर भी थे. यहां कुछ उदाहरण दे रहा हूं:

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  • कोई भी वैक्सीन की कीमत की सीमा तय करने पर बात क्यों नहीं कर रहा है? भारतीय मेडिकल कम्युनिटी ने कोविड टेस्टिंग के मामले में डरे हुए लोगों का जमकर फायदा उठाया और वैक्सीन के मामले में भी वो ऐसा ही करेंगे (मेरा जवाब: ये पाठक साफ तौर पर मुनाफाखोरी की आशंका से डरे हुए हैं )

  • ये सिर्फ अमीरों का विशेष अधिकार नहीं हो सकता, वैक्सिन बिना किसी वर्ग भेद के सबके लिए उपलब्ध होनी चाहिए. (मेरा जवाब: शायद इस पाठक ने पूरा आर्टिकल नहीं पढ़ा. मेरा प्रस्ताव का डिजाइन ऐसे तैयार किया गया है जिसमें अमीरों को सुपरटैक्स देना होगा और इसके साथ ही बाकी अन्य लोगों को पूर्ण सब्सिडी मिलेगी.)

  • इस तत्काल स्कीम का समर्थन करता हूं, बशर्ते सरकार इस फंड को सार्वजनिक करे, जिससे हर कोई ये देख सके कि फंड में क्या हो रहा है. दूसरा पीएम केयर्स घोटाला नहीं चाहता. (मेरा जवाब: ये व्यक्ति एक स्वस्थ आलोचक है. जवाबदेही पर जो बात वो कह रहे हैं वो अहम है.)

  • आपका आइडिया अच्छा लगा, हालांकि इस बात की बहुत संभावना है कि कुछ लोग “आसानी” से कम आय वर्ग के लोगों के लिए कीमत में सब्सिडी की बात को भूल सकते हैं और वैक्सीन के लिए ज्यादा कीमत जुटाने पर ध्यान दे सकते हैं. (मेरा जवाब: एक और स्वस्थ आलोचक! लेकिन हां, गहन निगरानी भी अहम है.)

  • मुफ्त टीकाकरण आर्थिक स्थिति के आधार पर होना चाहिए- जो इसके लिए पैसे दे सकते हैं उन्हें पैसे देने चाहिए और जो नहीं दे सकते उन्हें मुफ्त में दी जानी चाहिए. 130 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त में वैक्सीन मुहैया कराना सरकार और अर्थव्यवस्था पर बहुत ज्यादा दबाव डालेगा. (मेरा जवाब: शाबाश! इसकी स्कीम मुझसे ज्यादा मुश्किल है लेकिन कम से कम सिद्धांत मेरे समान ही है.)

  • संभव नहीं है क्योंकि इसके दो जवाब होंगे: 1. ये सरकार अंबानी/अडानी की सरकार है और 2. गरीबों को बाद में क्यों दिया गया, पहले दिया जाना चाहिए था (मेरा जवाब: आप टीवी पर बहुत ज्यादा खबरें देखते हैं लेकिन मेरे आर्टिकल को ध्यान से पढ़ने की जहमत नहीं उठाई)

  • अगर मोदी वैक्सीन को ऊंची कीमत पर बेचना शुरू कर दें तो लोग उनके खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर देंगे. वो भविष्य में फायदे की बात (हमेशा की तरह) नहीं सुनेंगे और सरकार की आलोचना करना शुरू कर देंगे. (मेरा जवाब: इन्होंने शायद मेरे प्रस्ताव को पूरी तरह समझा नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी वैक्सीन को ऊंची कीमत पर बेच नहीं रहे हैं- वो अमीरों से ऊंचा टैक्स वसूल रहे हैं.)

'कोरोना वैक्सीन 'कोविड-19' खत्म करने के साथ मंदी भी मिटा सकती है'
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'लोग पीएम मोदी के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे अगर वो महंगी वैक्सीन बेचेंगे'

पाठकों की प्रतिक्रिया के बाद अब मैं और ज्यादा समझदार हो गया हूं. स्पष्ट तौर पर मुझे और गरीबों के लिए सब्सिडी का तर्क देने के बजाए तत्काल योजना के लिए और दमदार आर्थिक मामला बनाना चाहिए था. उदाहरण के तौर पर, मुझे इस बात पर जोर देना चाहिए था कि:

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  • प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना नहीं होगी. तत्काल योजना सरकार या सरकारी तंत्र के बजाय निजी अस्पतालों के जरिए लागू की जाएगी. इसके अलावा निजी कंपनियां सीधे ही “गैर सरकारी ब्रांड” आयात करेंगे जिससे सरकार के टीकाकरण अभियान के तहत दी जा रही वैक्सीन की उपलब्धता पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा. ये निजी अस्पताल/क्लिनिक वैक्सीन लगवाने को तैयार लोगों से हर खुराक पर 10,000 रुपये का सुपरटैक्स देंगे.

  • अगर होटलों, एयरलाइंस, थिएटर्स, बार, माल्स अपने सभी कर्मचारियों का टीकाककरण करवा लें तो इसके आर्थिक प्रभाव का अंदाजा लगाइए- क्या उनके पास आने वालों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं बढ़ जाएगी. अगर एक होटल या एयरलाइन अपने नियमित ग्राहकों को “मुफ्त टीकाकरण” भी देना शुरू कर दे तो क्या उनका व्यवसाय नहीं बढ़ेगा?

  • मान लीजिए कि एक बड़ा औद्योगिक परिसर प्राथमिकता के आधार पर अपने सभी कर्मचारियों का टीकाकरण करवा लेता है- क्या उनकी उत्पादकता में काफी ज्यादा उछाल नहीं आएगा? इसकी तुलना में कि आधी-अधूरी क्षमता के काम लिया जाए.

  • कल्पना कीजिए अगर 300 लोगों का एक शूटिंग क्रू अपने सभी सदस्यों को हर दिन या हर हफ्ते आरटीपीसीआर टेस्ट के बदले वैक्सीन लगवा दे, क्या प्रोडक्शन कंपनी 100 दिन के लिए हर दिन, हर व्यक्ति के टेस्ट के लिए 1000 रुपये देने के बजाए प्रति व्यक्ति 10,000 रुपये देना पसंद नहीं करेगी?

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आर्थिक मंदी के खिलाफ कोविड 19 वैक्सीन एक शक्तिशाली एंटीडोट साबित होगा, ये साबित करने के लिए मैं एक के बाद एक कई उदाहरण दे सकता हूं. हां सबसे पहले ये वायरस के खिलाफ स्वास्थ्य साधन है. लेकिन इससे हमें इसके अगले सबसे अच्छे इस्तेमाल के प्रति आंखें बंद नहीं करना चाहिए- यानी जैसे की ये वायरस को मार सकता है, ये मंदी को भी दूर कर सकता है.

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