कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अगले दो दिनों तक गुजरात के दौरे पर रहेंगे और हाल ही में खत्म हुए विधानसभा चुनावों में समर्थन के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं और वोटरों को धन्यवाद देंगे. पिछले 27 सालों में सबसे ज्यादा सीटों (77 अपने और 4 सहयोगियों के साथ कुल 81 सीटें) के साथ कांग्रेस के सामने अपने आप को पुनर्गठित करने और नई पहचान हासिल करने का ऐतिहासिक मौका है. राहुल गुजरात के इस दौरे का पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं.
वो साफ संकेत दे सकते हैं कि कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है लेकिन वो राज्य के अहम मुद्दों को उठाती रहेगी. अपने धन्यवाद ज्ञापन में राहुल को थोड़ा समय निकालकर मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बीजेपी कार्यकर्ताओं का भी शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने अपने कदमों और नीतियों से सुनिश्चित किया कि गुजरात कांग्रेस-मुक्त नहीं हुआ और कांग्रेस ज्यादा मजबूत होकर उभरी.
चुनाव खत्म होने के साथ ही राहुल की आस्था गायब !
राहुल को अपने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाना चाहिए कि वो जब भी मौका मिलेगा, गुजरात आएंगे. उन्हें इस बात की घोषणा भी करनी चाहिए कि गुजरात प्रभारी अशोक गहलौत उनके मुख्य प्रतिनिधि के तौर पर राज्य में काम करते रहेंगे. उन्हें अपने दौरे का इस्तेमाल किसी नौजवान और आक्रामक विधायक (जैसे अमरेली से परेश धनानी) को विपक्ष का नेता बनाने के लिए करना चाहिए और उसे इस काम को बेहतर ढंग से करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.
अगर राहुल व्यक्तिगत रूप से इसकी जरूरत महसूस करते हों तो वो एकाध मंदिर भी जा सकते हैं और ये संदेश दे सकते हैं कि व्यक्तिगत आस्थाएं उनकी पार्टी की विचारधारा के आड़े नहीं आतीं. इसके साथ वो बीजेपी के इस प्रोपेगंडा को भी खारिज कर सकते हैं कि चुनाव खत्म होने के साथ ही राहुल की आस्था गायब हो जाएगी.
हालांकि, मंदिरों से ज्यादा उन्हें गुजरात में दो दूसरी जगहों को प्राथमिकता देनी चाहिए. उन्हें साबरमती नदी के किनारे बसे महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम जाना चाहिए. उन्हें आश्रम में बिना किसी पक्षपात के जाना चाहिए और कांग्रेस नेता के रूप में नहीं, बल्कि निजी हैसियत से सर्व धर्म प्रार्थना बैठक में शामिल होना चाहिए. उन्हें गुजरात के लोगों के सामने शपथ लेनी चाहिए कि वो गांधी के ‘अंत्योदय’ के सपने को पूरा करने के लिए और एक बराबर, न्यायपूर्ण और अहिंसक समाज बनाने की नीतियों को बढ़ावा देने के लिए अपने आप को समर्पित करेंगे.
सादगी और ईमानदारी
आश्रम के प्रांगण में, उन्हें जमीनी नेताओं, स्वतंत्र गैर-सरकारी संगठनों और बुद्धिजीवियों के साथ खुलकर चर्चा करनी चाहिए और दलित और आदिवासी कल्याण, पर्यावरण संरक्षण, जल संसाधन संरक्षण, सांप्रदायिक सद्भाव, महिला सशक्तिकरण और ऐसे ही दूसरे उद्देश्यों पर उनके सुझाव लेने चाहिए. इसके बाद उन्हें सरदार पटेल की जन्मभूमि करमसद में उनके स्मारक जाना चाहिए और घोषित करना चाहिए कि किसान कल्याण और राष्ट्रीय एकता के मामले में कांग्रेस का रुख सरदार पटेल वाला होगा, जिन्होंने गुजरात कांग्रेस की 25 सालों तक अगुवाई की थी.
राहुल इस चीज का भरोसा दिला सकते हैं कि वह और उनकी पार्टी का हर सदस्य अपने जीवन में सरदार पटेल की तरह सादगी और ईमानदारी लाएगा. बीजेपी इन यात्राओं का मजाक उड़ा सकती है और कुछ लोग इन्हें आदर्शवादिता और प्रतीकात्मक राजनीति का दिखावा कह सकते हैं. लेकिन गांधी, नेहरू और सरदार के मूल आदर्शों से कांग्रेस को दोबारा जोड़कर राहुल पार्टी की बड़ी भलाई करेंगे.
राहुल को अपने नवनियुक्त विधायकों के अलावा हारे हुए उम्मीदवारों के साथ भी अच्छा समय बिताना चाहिए. साथ ही अहमदाबाद, सूरत, वड़ोदरा और राजकोट की पार्टी इकाइयों के साथ विशेष सलाह-मशविरा करना चाहिए ताकि शहरी इलाकों में पार्टी के संगठन और रणनीति में कमियों की पहचान की जा सके. उनसे मिले सुझाव गुजरात के शहरी इलाकों में कांग्रेस के पुनरोत्थान का आधार बन सकते हैं. राहुल को इस यात्रा के दौरान हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी से भी मिलना चाहिए और सामाजिक न्याय, ग्रामीण विकास, किसान कल्याण और युवा सशक्तिकरण के उनके अभियानों को पार्टी के समर्थन का भरोसा दिलाना चाहिए.
राहुल को राज्य के कांग्रेस नेतृत्व को निर्देश देना चाहिए कि वो करीब पंद्रह टीमें बनाएं, जिनमें से सभी में चार-पांच विधायक हों और जो लोगों के मुद्दों को विधानसभा में और उसके बाहर मजबूती से उठाएं. ये मुद्दे ग्रामीण और शहरी गरीबी, रोजगार निर्माण, छोटे और मझोले उद्योग, बड़े उद्योग, प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, बाल मृत्यु, महिलाओं की सुरक्षा, आवास, बुनियादी सुविधाएं और युवा विकास जैसे हो सकते हैं.
नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ मोदी की वफादार ट्रोल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वरिष्ठ बीजेपी नेताओं के ‘शहजादा’, मंद बुद्धि, गुजरात के विकास का शत्रु और नकली हिंदू जैसे विशेषणों के साथ निजी हमले पर भी राहुल ने चुप्पी साधे रखी और राज्य में कांग्रेस को मजबूत स्थिति में लाने की अपनी रणनीति पर काम करते रहे. वो उनके और नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ मोदी की वफादार ट्रोल आर्मी की तरफ से फैलाए जा रहे झूठ पर भी शांत रहे. गुजरात के इस और आने वाले सभी दौरों में राहुल को अपना यही रवैया बनाए रखना चाहिए और अपने भाषणों और कदमों में मुद्दों पर बात करते रहनी चाहिए. 2017 का गुजरात का जनादेश साफ है कि राहुल और कांग्रेस, दोनों का भविष्य उज्ज्वल है.
(लेखक वडोदरा की महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हैं. उनका ट्विटर हैंडल @Amit_Dholakia है. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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