एक खुले समाज की खूबसूरती यही है कि इसकी आजादी कट्टरपंथियों को शांत करती है. उन्हें जल्दी ही पता चल जाता है कि उनका छाती पीटने वाला भावनात्मक दिखावा न सिर्फ लोगों को लुभाने में नाकामयाब हो जाता है, बल्कि कुछ देर बाद मजाक का विषय भी बन जाता है.
पहले BJP जिसे एक सफलता के पक्के फॉर्मूले के तौर पर देख रही थी, अब वही फॉर्मूला उनके लिए फिसलन भरी जमीन में तब्दील हो गया है.
ऐसा ही कुछ RSS चीफ मोहन भागवत के भड़काऊ रुख को लेकर हुआ, जिन्होंने देश के युवाओं को भारत माता की जय बोलना सिखाने के अपने सुझाव पर यू टर्न ले लिया.
क्योंकि बलपूर्वक नियंत्रण, लोकतंत्र के खिलाफ है, तो भगवा ताकतों ने भी एक नारे को जबरदस्ती लोगों के गले में उतारने की अपनी कोशिशों के उलटे परिणामों के बारे में जरूर सोचा होगा.
और ऐसे में BJP ने अपना राष्ट्रभक्ति कार्ड भी खो दिया. और यह भी महज इत्तेफाक नहीं हो सकता कि इस मुद्दे पर कदम पीछे हटाती RSS ने संसदीय कार्यमंत्री वैंकेया नायडू द्वारा मोदी को ‘भारत को दिया तोहफा’ कहे जाने को अपना समर्थन नहीं दिया है.
RSS ने शायद अब अपने सिद्धांतों और ‘विदेशियों’ को नकारने की अपनी नीति में अंतर करना शुरू कर दिया है
RSS हेडक्वार्टर नागपुर से मिले इशारों से तो लगता है कि अब वे भावुक नारों और पर्सनलिटी कल्ट की राजनीति से पीछे हटकर सरकार की दिखाई देने वाली उपलब्धियों का गुणगान करने लगे हैं.
संघ परिवार के राष्ट्रवाद पर एकाधिकार के दावे से इतर वे अब अपने सिद्धांत और ‘विदेशियों’ को नकारने की अपनी नीति में अंतर करने लगे हैं. यह समझ कि अति राष्ट्रवाद गुंडागर्दी में बदलने लगता है - जैसा कि BJP समर्थक वकीलों के जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर हमले में देखने को मिला था - ने भी RSS को अपने कदम पीछे हटाने पर मजबूर किया होगा.
हालांकि RSS का पहला निशाना युवा थे, पर बीजेपी ने सभी के लिए इस नारे को अनिवार्य बनाने की कोशिश की. वैंकेया नायडू ने कहा था कि इस नारे को बोलने से मना करना, किसी का अधिकार नहीं.
इसीलिए BJP, शिवसेना और धर्म निरपेक्ष मानी जाने वाली कांग्रेस और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी ने महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य को ‘भारत माता की जय’ न बोलने पर विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया.
थोड़ा शक है कि आने वाले दिनों में खुद को जरूरत से ज्यादा राष्ट्रभक्त दिखाने वाले लोग इस रास्ते से अपने कदम पीछे खींचते नज़र आ सकते हैं.
सबसे शर्मिंदा है कांग्रेस
एक ओर जहां BJP को पलटते देखना दिलचस्प होगा, वहीं सबसे ज्यादा शर्मिंदगी कांग्रेस के चेहरे पर नजर आ रही है, जिसने BJP के रास्ते पर चलते हुए अपने लिए कुछ हिंदू वोट जुगाड़ करने की कोशिश की.
अब जब RSS चीफ ने कहा है कि किसी को नारा लगाने के लिए बाध्य न किया जाए, यहां कांग्रेस के चेहरे से पर्दा उठ गया है कि अब यह पार्टी न तो धर्मनिरपेक्ष ही है, न ही किसी और विचारधारा पर ही टिकी है.
इस वक्त यह पार्टी एक अक्षम नेतृत्व में बिना मार्गदर्शक सिद्धांतों के भटक रही है. 131 साल पुराना यह बिखरता संगठन अब किसी भी सहारे पर खड़ा होने को तैयार है, भले ही वह मौकापरस्ती भी क्यों न हो.
NCP - या फिर ‘नेचुरली करप्ट पार्टी’ जैसा कि मोदी ने एक बार इसे कहा था, के साथ भी यह किस्सा है - शायद इसीलिए कि इस पार्टी के सदस्य भी उसी कांग्रेस के समय के ही हैं.
BJP के सामने सवाल होंगे - RSS ने पार्टी को बीच मझधार में क्यों छोड़ दिया जबकि उसी ने BJP को नारे की राजनीति में ये सोचकर डाला था कि इससे पार्टी को चुनावों में मदद मिलेगी.
राष्ट्रभक्ति कार्ड, JNU, हैदराबाद यूनिवर्सिटी व अन्य विश्वविद्यालयों में होने वाली कथित एंटी नेशनल एक्टिविटीज के खिलाफ इस्तेमाल किया जाना था.
अब इन संस्थानों के अल्ट्रा लेफ्ट और जेहादी तत्वों, जैसा कि वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आरोप लगाया था, पर विश्वविद्यालय के अंदर मौजूद भगवा ताकतों का उतना दबाव नहीं रहेगा जितना पहले था.
लेकिन कम समय तक चले इस ‘भारत माता की जय’ एपिसोड ने BJP और बाकी पार्टियों के बीच के मूल अंतर को साफ कर दिया है - कि बाकी पार्टियां कम से कम अपने आज्ञापत्र को देश पर थोपना नहीं चाहतीं.
जबकि 2014 में सत्ता में आने के बाद BJP यही करने की कोशिश कर रही है.
भारत के सहिष्णु बहुसांस्कृतिक सिद्धांत
अन्य पार्टियों की तरह BJP ने भी इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च, फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, नेशनल बुक ट्रस्ट आदि में अपने लोगों को महत्वपूर्ण जगहों पर बिठाया ही है, लेकिन इसके अलावा BJP ने देश को अपने भगवा सांचे में ढालने की कोशिश की है. ‘भारत माता की जय’ इस सिलसिले में खेला गया नया दांव था.
लेकिन भारत के सहिष्णु बहुसांस्कृतिक सिद्धांत अभी जीवित हैं और इन्होंने सत्तावादी प्रवृत्तियों को निकाल बाहर किया है.
उम्मीद की जा सकती है कि RSS से मिलते संयम रखने के सबूतों के पीछे नई दिल्ली और नागपुर से मिली फटकार ही हो सकती है जिसने अतिवादी भगवा ताकतों को कानून के दायरे में रहने के लिए मजबूर किया है.
योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज जैसे नेताओं को तो खुद प्रधानमंत्री मोदी या BJP अध्यक्ष अमित शाह या फिर RSS ने ही चुप कराया है.
लेकिन अभी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), संघ परिवार के छात्र संगठन के समर्थक आदि भी मोर्चे पर हैं, जिन्होंने अपने दुश्मन कन्हैया कुमार को भाषण देने के लिए अलीगढ़ में नहीं घुसने दिया. जबकि यह काम पुलिस का है, न कि विजिलेंट ग्रुप्स का.
(अमूल्य गांगुली राजनीतिक विश्लेषक हैं. सभी विचार लेखक के अपने हैं. आप उन्हें amulyaganguli@gmail.com पर लिख सकते हैं.)
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