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मुंबई की स्पिरिट ने BMC अधिकारी की वाट लगा दी !

जब मुंबई की स्पिरिट मेट BMCअधिकारी !

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तन पर सफारी सूट, मन में अगले महीने केन्या सफारी का सपना, आंखों पर गोल्डन फ्रेम का चश्मा, कलाई पर सोने की घड़ी और उंगलियों में फंसा 378 रुपये का पेन. वो जिसने पेन गिफ्ट किया था उसने चिप्पी नहीं हटाई थी. भोसले साहब ने तीन दिन से देखी जा रही फाइल से सिर उठाया तो देखा कि तांबे वहीं खड़ा है.
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“सर, आपने सोशल मीडिया देखा क्या? अक्खी मुंबई BMC को गाली दे रही है?”, जगह-जगह पानी भरा है, भोसले के जूनियर तांबे ने कहा.

“ऐं?”, भोसले ने कान खुजाते हुए पूछा.

“सर, बड़ी बेइज्जती हो रही है BMC की. कुछ करना पड़ेगा”, तांबे परेशान दिखा.

"एक बात बता तांबे, तुझे BMC में कितना साल हुआ. तू तो 2005 के टाइम भी था न इधर, फिर 2008 में भी और अभी भी है. ये जो ...नवीस है न, सब ठीक कर देगा...देखना तू. चिंता कायकू करने का."

"फड़णवीस जी?", तांबे ने पूछा.

"भाऊ...तू जास्ती सुनता है क्या...मैं बोला..अखबारनवीस..बोले तो जर्नलिस्ट...वो हर बार लिखता है न ये लोग. मुंबई की स्पिरिट देखो, मुंबई की स्पिरिट ने बचाया. तू देखना कल-परसों तक मुंबई का बाढ़ गायब हो जाएगा...बस स्पिरिट रह जाएगा. तू एक काम कर. नीचे जा और दामले को दो मस्त कटिंग बोल और मेरे लिए एक रगड़ा पेटीज."

शाम को भोसले अपनी गाड़ी में बैठ कर धीमी रफ्तार में कुछ किलोमीटर ही चल पाया था कि उसे एक आवाज सुनाई दी.

"भोसले साहब, आप सुन रहे हैं?"

भोसले की हवा टाइट हो गई.

"क..क...कौन है...जो भी है...अइसे डराने का नहीं...सीधे सामने आने का", भोसले ने मरियल आवाज में ललकारा.

"अरे भोसले भाऊ. डरने का नहीं. मैं मुंबई की स्पिरिट हूं. बस कुछ सवाल पूछने थे आपसे?"

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"तुम? तुम इदर है तो मुंबईकर बाढ़ से कैसे निपटेगा...वो घर कैसे पहुंचेगा...कल का अखबार में तुम्हारा नाम कैसे आएगा", भोसले एकदम बौखला गया.

"हो साहिब. बात सई है पर अब अपने को जमता नहीं है. थकने लगी है मैं. हर बार वही चिक-चिक. बम ब्लास्ट हो तो मेरे को आना पड़ता है. सड़क पे पानी भर जाए तो सबको मेरा याद आता है. यहां तक कि आपका मिसेज परसों टिंडे का सब्जी गैस पे रखके भूल गया. सब्जी जल गया तो आपका बेटा बोला...चिल मम्मी...परेशान नहीं होने का..वी आर मुंबईकर्स...मुंबई का स्पिरिट है !"

"तु...तु...तुमको क्या मांगता है. और तुम मेरे घर तक कैसे पहुंची", भोसले ने घबराते हुए पूछा.

"क्या साहिब. मैं तो हर जगह है. आपके घर में, आपकी गाड़ी में अभी आपसे बात कर रही है. रात को आप दो बोतल स्पिरिट पीकर कितना स्पिरिट-स्पिरिट चिल्लाते हैं. भूल गए क्या?

मैं तो हर मुंबईकर के अंदर है. वो मुझे आना पड़ता है, जब भी मुंबईकर तकलीफ में होता है. पर अब बहुत थक गई है मैं. मैं खुद तकलीफ में है. अपने को एग्जिट करने का है अब, उससे पहले बस कुछ सवाल का जवाब चाहिए.”
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"पहले वादा करो कि इसके बाद तुम मुझे परेशान करने नहीं आओगी?"

"हो साहिब. भोसले साहिब, ये जो बार-बार पानी भर जाता है शहर में, इसका कोई इलाज नहीं है क्या. वो क्या बोलते हैं ड्रेनेज-प्रुनेज...ठीक नहीं क्या?"

"ये सब मैं तुमको नहीं बता सकता", भोसले उखड़ गया.

तभी भोसले की गाड़ी अचानक रुक गई. एक्सीलरेटर पूरा दबाने पर भी गाड़ी खिसक नहीं रही थी.

"ये..ये क्या हो रहा है?", भोसले बुदबुदाया.

"भोसले साहिब, जवाब तो आपको अभी देना पड़ेगा. वरना घर कैसे पहुंचेंगे. भाभीजी को रितिक का पिच्चर ले जाना है न...प्रॉमिस टूटा तो कल कैंटीन की थाली खानी पड़ेगी."

भोसले समझ गया कि मामला गंभीर है. माने, BMC कैंटीन का खाना वाकई बहुत खराब है !

“देखो. वो ड्रेनेज वगैरह टेक्निकल मैटर है. हम काम करते हैं. BMC के तमाम कर्मचारी लगते हैं. तब जाकर सारा ड्रेन साफ होते हैं. हमारी कमी नहीं है, वो बारिश ही ज्यादा हो जाती है.”

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"हो. आपका बात मान लिया तो मतलब सारा जिम्मेवारी तो गणपति का हुआ, ऊपर वाले का हुआ. आपका कोई जिम्मेदारी नहीं."

भोसले फंस गया. उसे समझ आ गया कि अभी कुछ भी उलटा जवाब देने का मतलब होगा मुंबई की स्पिरिट से सीधा पंगा.

"नहीं, मतलब. कुछ एरिया का फाइल अटक जाता है. कभी फंड की भी दिक्कत रहती है. तो मुश्किल हो जाता है.", भोसले ने कहा.

"हम्म्म. तो आपका सोने का घड़ी, ये मोटी चेन, गाड़ी-वूड़ी में फंड का दिक्कत नहीं होता. सारा दिक्कत बस ड्रेन साफ करने में होता है." मुंबई की स्पिरिट फॉर्म में आ रही थी.

"मैं...मैं...दिखवाता हूं...तांबे को बोलके आज ही...फाइल खुल..वाता हूं", हकलाते हुए भोसले ने कहा.

“हर साल वही झाम, वही दिक्कत, BMC को वही गालियां...इस सबके लिए अब फाइल खुलवाओगे, साहिब.”
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"तुमको आइडिया नहीं इधर का. मुंबईकर मस्त है एकदम. इतना चिकचिक होता है तो भी अधिकारी लोग से सवाल नहीं पूछता. हम तो छोटे अधिकारी हैं. बड़ा-बड़ा नेता चलाता है BMC को. उनको जाके क्यों नहीं पूछती तुम सवाल. मेरे को कायकू फंसाती. मैं तो बस ऑर्डर फॉलो करता", भोसले फट पड़ा.

"हो साहिब. उससे भी पूछेगी. अभी इतनाइच कहना है कि तुमने अपने काम में कोई लफड़ा किया तो मेरा वॉर्निंग याद रखना. मुंबई का स्पिरिट-विस्पिरिट बहुत हो गया. अब मैं तुमको दिखाएगी असली स्पिरिट."

भोसले के माथे पर पसीना छलछला गया. उसने हवा में ही हाथ जोड़े और काम करने का वादा कर दिया.

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“अच्छा चलती है मैं. याद रखना भोसले, अगर मुंबईकर को फिर से मुझे याद करना पड़ा तो BMC से लेके नेतागीरी तक मैं छोड़ेगी नहीं किसी को...स्पिरिट-वुस्पिरिट कुछ नहीं है, मजबूरी है मेरी. लेकिन, जिस दिन अता माझी सटकेल तो कोई बचेंगा नहीं.”

(भारी बारिश से जूझते मुंबईकरों और मुंबई की स्पिरिट पर व्यंग्य)

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