ADVERTISEMENTREMOVE AD

Nancy Pelosi तो बहाना है, ताइवान को धमका कर Xi Jinping अपना सिक्का जमाना है

Nancy Pelosi का दौरा China के लिए Taiwan पर आक्रमक होने का बहाना बन सकता है

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

चीन (China) की सेना इस समय ताइवान को लेकर काफी आक्रामक रुख अपना रही है. इसे इस तरह से देखने की भूल बिल्कुल भी न करें कि इस आक्रामकता का मुख्य कारण अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी का हालिया (2 और 3 अगस्त) ताइवान दौरा है. यहां पर हमें इस बात पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है कि अमेरिकी राजनयिकों का ताइवान का दौरा कोई नई बात नहीं है. अमेरिका में सेवाएं देने वाले अधिकारियों ने भी हाल ही में ताइवान का दौरा किया है. 2020 में अमेरिका के तत्कालीन स्टेट सेक्रेटरी कीथ क्रैच और हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विस (HHS) सेक्रेटरी एलेक्स अजार ने ताइवान का दौरा किया था. लेकिन चीन की ओर से कभी इतनी कड़ी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली जितनी कि इस बार पेलोसी की ताइवान यात्रा के दौरान दिखी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अपनी यात्रा के दौरान ताइवान में पेलोसी ने ताइवान की 'स्वतंत्रता' जैसे किसी 'गलत या निषिद्ध' शब्दों का प्रयोग नहीं किया. उन्होंने जो बयान दिए वह मुख्य तौर पर ताइवान के लोकतांत्रिक लचीलेपन पर केंद्रित थे. व्हाइट हाउस और यहां तक ​​कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शी जिनपिंग के साथ जब हाल ही में कॉल के दौरान बात की थी तब यह दोहराया गया था कि ताइवान पर अमेरिका की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है. हालांकि इस तरह के स्पष्ट बयान के बावजूद चीन ने ज्यादा प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

स्नैपशॉट
  • हाल ही में अमेरिकी अधिकारियों ने भी ताइवान का दौरा किया था, लेकिन चीन की ओर से कभी इतनी कड़ी प्रतिक्रिया नहीं देखने को मिली जितनी कि इस बार पेलोसी की ताइवान यात्रा के दौरान दिखी.

  • पेलोसी की यात्रा न तो कोई कारण था न ही कोई ट्रिगर बल्कि यह एक बहाना था जिससे कि ताइवान को डराया जा सके. वहीं इस मौके का उपयोग ताइवान के साथ आगे अन्य देशों को जुड़ने से रोकने और मना करने के लिए भी करना था.

  • चीन का 'गुस्सा' सिर्फ पेलोसी के दौरे नहीं जुड़ा है बल्कि यह 2016 से बढ़ रहा है.

  • चीन चाहता है दुनिया के बाकी मुल्क ताइवान को अलग-थलग कर दें और यह स्वीकार करें कि चीन की सैन्य कार्रवाईयां उचित और वैध हैं.

  • इस साल के अंत में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस से पहले चीन को अपनी सैन्य धमकी, ग्रे जोन टैक्टिक्स और यथास्थिति में बदलाव को सही ठहराने के लिए एक कारण की तलाश है, ताकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग यह प्रदर्शित कर सकें कि वह चीन की संप्रभुता की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं.

  • चीन का 'गुस्सा' सिर्फ पेलोसी के दौरे नहीं जुड़ा है बल्कि यह 2016 से बढ़ रहा है.

0

चीन गुस्से में क्यों है?

पेलोसी की यात्रा न तो कोई कारण था न ही कोई ट्रिगर बल्कि यह एक बहाना था जिससे कि ताइवान को डराया जा सके. वहीं इस मौके का उपयोग भविष्य में ताइवान के साथ अन्य देशों को जुड़ने से रोकने और मना करने के लिए भी करना था. चीन का 'गुस्सा' सिर्फ पेलोसी के दौरे नहीं जुड़ा है बल्कि यह 2016 से बढ़ रहा है, जब त्साई इंग-वेन ने ताइवान के राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण किया था तब गठित हुई नई सरकार ने तथाकथित 1992 की आम सहमति को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और ताइवान के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार पर जोर दिया. त्साई ने 2021 के एक लेख में लिखा था कि "लोकतंत्र को अपनाने का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ताइवान का भविष्य लोकतांत्रिक तरीकों से ताइवानियों द्वारा तय किया जाना है."

चीन के गुस्से की वजह, त्साई प्रशासन की न्यू साउथबाउंड पॉलिसी की घोषणा थी. यह अपने विदेशी संबंधों में विविधता लाने और ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को शामिल करने के लिए एक पॉलिसी फ्रेमवर्क था. इस क्षेत्र के अन्य देशों के साथ अपने संबंधों के दायरे का विस्तार करके चीन पर निर्भरता को कम करना इस पॉलिसी के प्रमुख उद्देश्यों में एक है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ताइवान की तरफ दुनिया का ध्यान बढ़ रहा है

2016 से ताइवान के खिलाफ चीन ने कई दंडात्मक कदम उठाए हैं. ताइवान को विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) से बाहर रखना प्रारंभिक कदमों में से एक था. ताइवान 2009 से 2016 तक WHA में एक नॉन-वोटिंग ऑब्जर्वर था. लेकिन 2017 में 70वें WHA के लिए ताइवान को आमंत्रित नहीं किया गया, क्योंकि ताइवान ने "चीनी ताइपे" (पूर्व का नाम) के तौर पर भाग लेने से इनकार कर दिया था. COVID-19 महामारी के दौरान भी चीन के दबाव की वजह से ताइवान को सभी उच्च-स्तरीय वार्ताओं से बाहर रखा गया था, ऐसे में उसे अपने दम पर महामारी से निपटना पड़ा.

अलग-थलग रखने के बावजूद भी ताइवान उन चुनिंदा देशों में से एक रहा है जिसने बखूबी इस महामारी को संभाला. इसके बेहतरीन कोविड रिस्पॉन्स की इतनी तारीफ हुई कि चीन और ताइवान के COVID-19 रिस्पॉन्स के बीच प्रमुखता से तुलना होने लगी थी.

ताइवान से संबंधित डेवलपमेंट्स और पिछले तीन वर्षों में इस देश ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो ध्यान आकर्षित किया है, उससे चीन की लीडरशिप परेशान है. महामारी से पहले ताइवान के राजनयिक सहयोगियों को अपनी ओर मिलाने और उसके (ताइवान के) इंटरनेशनल स्पेस को कम करने से चीन कुछ हद तक संतुष्ट था. दुनिया भर के नेताओं और सिविल सोसायटी से ताइवान को जो अद्वितीय समर्थन मिल रहा है उसने चीन की बेचैनी और असुरक्षा की भावना को बढ़ा दिया है, इसकी वजह से उसे विश्वास हो गया है कि स्थिति पर वह अपनी पकड़ खो रहा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ताइवान को अलग-थलग करना चाहता है चीन

चीन चाहता है दुनिया के बाकी मुल्क ताइवान को अलग-थलग कर दें और यह स्वीकार करें कि चीन की सैन्य कार्रवाईयां उचित और वैध हैं. इस साल के अंत में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस से पहले चीन को अपनी सैन्य धमकी, ग्रे जोन टैक्टिक्स और यथास्थिति में बदलाव को सही ठहराने के लिए एक कारण की तलाश है, ताकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग यह प्रदर्शित कर सकें कि वह चीन की संप्रभुता की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं. आखिरकार, शी जिनपिंग को चीन की जनता को यह विश्वास दिलाना है कि वह तीसरी बार राष्ट्रपति बनने योग्य हैं.

यह चीन की त्साई, ताइवान और उसके लोगों से बदला लेने की रणनीति है, जो चीन की धमकी से घबराए बिना स्वतंत्र रूप से रहना और दुनिया के साथ जुड़ना चाहते हैं. उदार लोकतंत्रों को चीन को उकसाने के बजाय उसे अनुचित आक्रमण को रोकने के लिए मनाना चाहिए.

(सना हाशमी, ताइवान-एशिया एक्सचेंज फाउंडेशन में विजिटिंग फेलो हैं. वे ट्विटर पर @sanahashmi1 से ट्वीट करती हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें