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कश्मीर में UAE के एमार ग्रुप का बड़ा निवेश: बिग पिक्चर समझिए

जिस तरह से अमेरिका ने अफगानिस्तान से वापसी की है उससे खाड़ी देशों का विश्वास अमेरिका के प्रति कम हुआ है.

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संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के एमार समूह (Emaar group) ने हाल ही में श्रीनगर में 5,00,000 वर्ग फुट का शॉपिंग मॉल बनाने के लिए जम्मू और कश्मीर सरकार के साथ एक समझौता किया है. एमार संयुक्त अरब अमीरात का सबसे बड़ा रियल एस्टेट डेवलपर है. जम्मू में इस समूह द्वारा जिस तरह निवेश किया जा रहा है उससे यह संभावना जताई जा रही है कि यहां भविष्य में निवेश के और भी रास्ते खुलेंगे. 2019 में इसका विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के बाद से यह जम्मू-कश्मीर में अब तक का सबसे बड़ा एफडीआई है. ऐसे में इसके महत्व को कम करना असंभव है.

भारत में यूएई के राजदूत डॉ. अहमद अब्दुल रहमान अल्बन्ना ने कहा है कि "यूएई और भारत व्यापक रणनीतिक साझेदार हैं. जम्मू और कश्मीर में एमार का यह प्रोजेक्ट एक मील का पत्थर की तरह होगा." उन्होंने यह भी कहा कि "यूएई और भारत की आर्थिक साझेदारी एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है और इस अवसर पर विचार करने के लिए हम यूएई के अन्य निवेशकों का भी स्वागत करेंगे. हम उन्हें इसे एक अवसर के तौर पर भी देखने के लिए आमंत्रित करेंगे."

इससे पहले ही यूएई के एक समूह लुलु ग्रुप ने वहां एक खाद्य प्रसंस्करण केंद्र स्थापित करने के लिए 600 मिलियन यानी 60 करोड़ रुपये की पेशकश की थी.

एमार ग्रुप की घोषणा दुबई और जम्मू और कश्मीर सरकार के बीच अरबों डॉलर के निवेश समझौते के हिस्से के रूप में हुई है. एमार वहां पर और ज्यादा रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स डेवलव करने की योजना बना रहा है.
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आर्टिकल 370 पर यूएई की प्रतिक्रिया

यह एक संयोग ही है कि यूएई 2019 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के भारत के फैसले के लिए अपना समर्थन व्यक्त करने वाले पहले देशों में से एक था. जिस दिन भारत ने यह कदम उठाया था उसके दूसरे दिन भारत में संयुक्त अरब अमीरात के राजदूत डॉ अल बन्ना ने गल्फ न्यूज को बताया कि उनके विचार से, "स्वतंत्र भारत के इतिहास में राज्यों का पुनर्गठन कोई अनोखी घटना नहीं थी. इसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना और दक्षता में वृद्धि करना था." इसके साथ ही उन्होंने भारतीय संविधान द्वारा परिभाषित जम्मू और कश्मीर से संबंधित निर्णय को "आंतरिक मामला" माना था.

यह बयान ऐसे समय आया था जब पाकिस्तान ने भारत से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था और भारत के साथ राजनयिक और व्यापारिक संबंधों को खराब कर दिया था. इसके साथ ही भारत के फैसले के खिलाफ पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय राय बनाने की काफी कोशिश कर रहा था.

पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की में अपने समकक्षों के साथ फोन लाइन पर थे. तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने भी जम्मू और कश्मीर पर भारत के फैसले के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया था और इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र महासभा में उठाया था.

एक ओर यूएई, जो पहले पाकिस्तान का एक मजबूत मित्र था और अब भी इसके साथ घनिष्ठ संबंध रखता है. वहीं दूसरी ओर इस देश ने तीसरी बार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की मेजबानी की और उन्हें संयुक्त अरब अमीरात के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ जायद' से सम्मानित किया.

आइए अब तेजी से आगे बढ़ते हैं. दुबई प्रशासन ने राज्य में निवेश करने के लिए जम्मू और कश्मीर सरकार के साथ एक समझौता किया है. जिसके तहत यूएई की कंपनियां वहां सबसे बड़ा विदेशी निवेश करने का वादा कर रही हैं. आइए जानते हैं इस रणनीति के पीछे आखिर क्या दृष्टिकोण है?

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अमेरिका की अफगानिस्तान से वापसी

अनेक बाधाओं के बावजूद एक ओर भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है; वहीं दूसरी ओर संयुक्त अरब अमीरात के साथ आर्थिक साझेदारी, जो पश्चिम एशिया का आर्थिक और वाणिज्यिक केंद्र के तौर पर जाना जाता है. उसका दोनों पक्षों के लिए रणनीतिक महत्व का है. भारत आज संयुक्त अरब अमीरात का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है वहीं यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है. गौरतलब है कि 2018 में दोनों देशों के बीच कुल गैर-तेल व्यापार 35.9 अरब डॉलर का दर्ज किया गया था.

इस लिहाज से देखें तो जम्मू और कश्मीर में यूएई द्वारा जो निवेश किया जा रहा है वह एक तार्किक कदम है, क्योंकि जम्मू और कश्मीर में विशेष रूप से होटल या हॉस्पिटैलिटी और पर्यटन के क्षेत्रों में भारी निवेश की क्षमता है.

और इस निवेश के केंद्र में यूएई की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था की सुरक्षा और इसकी निरंतरता निहित है. जिस तरह से अमेरिका धीरे-धीरे खाड़ी क्षेत्र से पीछे हटा है उसकी वजह से अपने ही जैसे खाड़ी (गल्फ) राजतंत्रों (monarchies) की तरह संयुक्त अरब अमीरात ने अमेरिकी वापसी को अविश्वास के तौर पर देखा है. इस कारण यूएई को एक अन्य मजबूत सहयोगी की तलाश काफी जरूरी थी.

ऐसे में भारत उसका सबसे निकटतम मजबूत देश है. भारत के पास नौसैनिक शक्ति है और यह यूएई की अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ता हुआ अहम भागीदार है.

अफगानिस्तान से अमेरिका ने जिस अराजक तरीके से वापसी की है उससे मुश्किलें और बढ़ गई हैं. काबुल में तालिबान की आसान जीत ने पश्चिम एशिया में खतरे की घंटी बजा दी है. यह दक्षिण एशिया में राजनीतिक इस्लाम के उदय को इंगित करता है, जो नेशन-स्टेट (राष्ट्र-राज्य) को खारिज करता है. कुछ खाड़ी राजशाही इसके खिलाफ हैं और इसका मुकाबला करने के लिए यूएई ने यमन और लीबिया में हुए संघर्ष में हस्तक्षेप किया था.

तालिबान की इस तरह की जीत से अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी समूह बहुत लाभान्वित होंगे. ये खाड़ी देशों के आस-पास अभी भी सक्रिय हैं. ये संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे खाड़ी राजशाही के लिए सीधा खतरा हैं.

अमेरिका के अफगानिस्तान से बाहर निकलने के बाद मिस्र के राजनयिक रैमजी एजेल्डिन रैमजी ने लिखा, "अरब देशों को, अन्य देशों के साथ-साथ... को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा. यदि वाशिंगटन इस क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखने के लिए आगे का रास्ता बनाने या उसका नेतृत्व करने में विफल रहता है, तो अमेरिका के प्रति उनके विश्वास में जो कमी है वह बढ़ जाएगी."

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यूएई के हित में नहीं है उग्रवाद

कश्मीर में इस्लामी विद्रोह, जिसे पाकिस्तान की नकदी-संकट वाली सरकार के आतंकवादियों द्वारा समर्थित और उकसाया गया है, वह स्पष्ट रूप से यूएई जैसे देशों के हित में नहीं है.

कश्मीर में विद्रोह आर्थिक रूप से प्रेरित नहीं है, लेकिन विद्रोह ने ऐतिहासिक आर्थिक असमानता ने एक अहम भूमिका निभाई है. यहां आर्थिक विकास को लंबे समय से संघर्ष समाधान और आतंकवाद का मुकाबला करने में एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में मान्यता दी गई है. इसके अलावा, यूएई में कई कश्मीरी रहते हैं और वहां काम करते हैं. इसके साथ ही यूएई एक सहिष्णु मुस्लिम देश के रूप में, इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण सकारात्मक भूमिका निभाने की क्षमता रखता है.

यूएई धार्मिक सहिष्णुता, एकता, विविधता, अंतरधार्मिक सहयोग, महिला सशक्तिकरण और श्रम नियमों में सुधार को बढ़ावा दे रहा है ताकि धार्मिक कट्टरपंथ की आग को बुझाया जा सके.

भारत और यूएई के बीच रणनीतिक गठबंधन कई क्षेत्रों में है. यमन में भी दोनों देशों ने साथ मिलकर काम किया है. घायल हुए यमन के सैनिकों का भारतीय अस्पतालों में इलाज चल रहा है. अफगानिस्तान के लिए इसी तरह की संयुक्त पहल पर भी विचार किया जा सकता है. दक्षिण एशिया-खाड़ी क्षेत्र में भारत और यूएई में शांति और सुरक्षा को लेकर समान चिंताएं हैं. हाल ही में हौथी या हैती विद्रोहियों द्वारा संयुक्त अरब अमीरात के झंडे वाले जहाज पर कब्जा इस तरह के सहयोग और समन्वय के महत्व व इसको तात्कालिकता प्रदान करने पर जोर देता है.

(अदिति भादुड़ी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ट्विटर पर @aditijan से ट्वीट करती हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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